राजीव खण्डेलवाल:
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अन्ना हजारे शायद 'संत' से अब एक 'सेलिब्रेटी' बन चुके है। ऐसा आभास जनमानस मे जाने लगा है, जब से उन्होने स्वयं द्वारा कोई सुरक्षा न मांगने के बावजूद महाराष्ट्र सरकार द्वारा पेश की गयी 'जेड श्रेणी' की सुरक्षा व्यवस्था को 'अनिच्छापुर्वक' स्वीकार किया है। यहा यह उल्लेखनीय है कि कोई भी सरकार जबरदस्ती किसी भी व्यक्ति को उसकी अनुमति के बिना कोई भी सुरक्षा लाद नही सकती है। ५ अप्रेल 2011 को जंतर मंतर पर अनशन पर बैठने के पूर्व पिछले बीस सालो से अधिक महाराष्ट्र प्रदेश मे विभिन्न समस्याओ व मुद्दो को लेकर अन्ना द्वारा सफलतापूर्वक 7-8 बार आंदोलन किया गया। महाराष्ट् की सरकार ने तब कोई सामान्य सुरक्षा व्यवस्था भी शायद अन्ना को उपलब्ध नही करायी। लेकिन ''जंतर मंतर" पर अनशन पर बैठने के बाद अन्ना के एक राष्ट्रीय शख्शियत बन जाने के कारण तत्पश्चात उनके द्वारा रामलीला मैदान मे 1३ दिवसीय अनशन से उन्हे राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली व वे देश के एक लगभग निर्विवाद व शिखर के व्यक्तित्व स्थापित हो गये। अन्ना के इस अनशन को तोडने मे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान केन्द्रीय मंत्री विलास राव देशमुख, राष्ट्रीय संत पूज्य भैयुजी महाराज के सहयोग से सफल रहे। यहां यह उल्लेखनीय है कि ये वो ही विलास राव देशमुख है जिनके मुख्यमंत्रीत्वकाल मे अन्ना ने कई बार सफलतापूर्वक अनशन किया और मुख्यमत्री ने उनके अनशन को सफल मानकर तोड़ा। विलासराव देशमुख का दूसरा चेहरा यह भी है कि वे महाराष्ट्र के चर्चित आदर्श सोसायटी कांड में उन पर प्रमुख रूप से उंगली उठी है जिस संबंध में अन्ना ने कोई बयान नहीं दिया है। इसलिये रामलीला मैदान के अनशन की समाप्ती के बाद अन्ना की जो गतिविधिया रही है वह जनमानस को कुछ अचम्भित सी कर रही है।
दिल्ली से अन्ना का रात्रि मे रालेगढ सिद्धि पहुचना चर्चा का विषय रहा। उससे भी ज्यादा आश्चर्य का विषय यह रहा है कि वे उस गणेश स्थापना उत्सव मे नही पहुचे जिसकी स्थापना पिछले लगातार 22 वर्षो से उनके द्वारा की जाती रही है। इसका कोई उचित स्वीकार योग्य स्पष्टीकरण नही आया सिवाय इसके कि अन्ना का स्वास्थ्य ठीक नही था जों जनता के गले के नीचे नही उतरा। इसके बाद महाराष्ट सरकार द्वार 'जेड' श्रेणी की सुरक्षा को अनिच्छापूर्वक स्वीकार किया जाना भी अन्ना के पूर्व आचरण से मेल न खाने के कारण राजनैतिक हल्को मे इस पर भी आश्चर्य व्यक्त किया गया। क्या व्यक्ति के लोकप्रियता के शिखर पर पहुचॅने पर उसके जीवन में खतरे बढ़ जाते है, अन्ना को सुरक्षा प्रदान करने से यह प्रश्न स्वभाविक रूप से उत्पन्न होता है। वास्तव मे अन्ना ने अपना वह कठोर रूप व दृढ़ निश्चय जो आंदोलन के दौरान कई बार दिखाया था सुरक्षा व्यवस्था को अस्वीकार करने के लिये क्यों नहीं दिखाया गया यह स्थिति उनपर उंगली उठाने का मौका देती है। सरकार द्वारा उनकी गिरफ्तारी का आदेश निरस्त करने के बाद तिहाड जेल मे डेढ़ दिन तक अवैधानिक रूप से रहने के बावजुद यह उनका द्वढ निश्चय और जनता का बल ही था कि सरकार उनको स्पर्श तक नही कर सकी जैसा कि उन्होने बाबा रामदेव के साथ किया था। यह जनबल की दीवाल की सुरक्षा का ही दबाव था कि सरकार अन्ना को रामलीला मैदान से इलाज के बहाने अस्पताल स्थानांतरित नही कर सकी। जब अन्ना के पास प्राकृतिक रूप से आज देश की जनता की युवा ब्रिग्रेड समुह सुरक्षा के रूप मे सब जगह उपलब्ध हो गई है तब सरकारी सुरक्षा स्वीकार करने का भले ही वह उनकी इच्छा के विपरीत है, क्या औचित्य है। इससे भी बडी बात यह है कि जब अन्ना स्वयं यह घोषणा कर चुके है कि उन्हे अपने जीवन का कोई भय नही है और वह किसी प्रकार की सरकारी गैर सरकारी धमकियो से नही डरते है व उन्होने अपना जीवन देश के लिये न्यौछावर कर दिया है तब उन्होने सरकार के दबाब मे आकर ही सही अपनी सुरक्षा पर विचार किया यह सबसे दुखद पहलु है। ऐसा लगता है कि सरकार दो तरफा रास्तो पर एक साथ काम कर रही है। एक तरफ अन्ना और उसकी टीम को डराना जिसमे वह पूर्णत: असफल रही है। दूसरी तरफ अन्ना को किसी भी तरीके से खुश करने का प्रयास करना और यह शायद इसी कडी का परिणाम है कि सरकार ने अग्रेंजी र्वणावली का अंतिम अक्षर जेड को अंतिम ब्रम्हास्त्र के रूप में उपयोग कर जेड सुरक्षा प्रदान कर दी। अन्ना शायद यह भूल गये कि उनके पास इससे भी अच्छी सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा व्यवस्था ''जेड प्लस" नागरिक सुरक्षा के रूप मे उपलब्ध है। उपरोक्त घटनाये जिस तेजी से घट रही है उससे अन्ना के प्रति कुछ आशंकाओ का पैदा होना स्वभाविक है। जबकि उक्त घटनाये न तो प्राकृतिक है न स्वाभाविक है और न ही अन्ना की अभी तक की कार्यकलापो की प्रकृति से मेल खाती है इसलिए आश्चर्य मिश्रित आशंका है।
एक और बात जो हृदय को चुभने वाली है वह अन्ना का वह कथन जिसमें उन्होने सादी वर्दी में सुरक्षा व्यवस्था स्वीकार करने की बात कही है। एक सम्पूर्ण रूप से पारदर्शी व्यक्तित्व के लिये क्या यह उचित है? यदि उन्हे सुरक्षा व्यवस्था मिलती ही है तो उसकी वर्दी जनता को दिखने में क्या हर्ज है।
अन्ना द्वारा जहॉ रामलीला मैदान पर पिछडे वर्ग के बच्चो द्वारा ज्युस पीकर अनशन तोडा गया वही रालेगंढ़ सिद्धी मे जो गणेश पूजंन भी पिछडे वर्ग के व्यक्ति से कराया गया। यह भी अन्ना के नये रूप की ओर इंगित करता है। इसके पहले किसी भी आंदोलन में या सार्वजनिक गतिविधियों में अन्ना ने जाति विशेष की दृष्टि पिछले वर्ग का कोई कार्ड नहीं खेला। एक सामान्य नागरिक से, हमारी राष्ट्रिय धरोहर एक बच्चे से पूजा करायी गयी, अनशन तुड़वाया गया यदि यह कहा जाता भले ही वह पिछडे वर्ग का ही क्यो न था तो ज्यादा उचित होता। सिर्फ संविधान मे व्यवस्था कर देने मात्र से या प्रतिक रूप मे पिछडे व्यक्ति को आगे रख देने मात्र से यह पिछड़े-अगड़े की समस्या नही सुलझेगी जब तक की हम अपनी सोच में मूल परिर्वतन नही लायेगे। जब तक हम पिछडे व्यक्ति को तुच्छ नजर से देखेंगे, दया का पात्र मानेंगे अंतर मानेंगे तब तक हम वास्तविक न्याय नही कर पायेंगे इसके लिये हमे अपने दष्टिकोण मे मूलभूत परिर्वतन लाना होगा। समस्त व्यक्ति को बराबर मानते हुये पिछडे व्यक्तियो को अपने साथ बराबरी की भागीदारी देते हुये ऐसा वातावरण व परिस्थिति पैदा करनी होगी जहां पिछड़ा व्यक्ति सामान्य रूप से उसका हिस्सा बन सके तभी हम यह असमानता को दूर कर सकते है अत: अन्ना के राष्ट्रीय सोच मे आदी कमी की ओर उक्त घटना कही न कही इंगित करती है ।
अन्ना हमारी राष्ट्रीय धरोहर है। बार-बार ऐसी राष्ट्रीय धरोंहर पैदा नही होती। उनको अक्षुण बनाया रखना हमार राष्ट्रीय कर्तव्य है। लेकिन जिस 'तंत्र' के खिलाफ वे लड़ रहे है वह इतना मजबुत है और उसे अपने आप पर इतना धंमड है कि वह अन्ना जैसे व्यक्ति को भी अपने तंत्र मे समायोजित कर उनके पृथक पहचान को समाप्त कर देगा की सोच लिये हुये है। इसलिये हमे हमेशा होश हवास में रहकर व प्रहरी बनकर अन्ना के आचरण पर यदि रत्ती भर भी आंच आती है या आने की संभावना दिखती है तो हमें उस आंच से अन्ना को दूर रखने का प्रयास करते रहना चाहिये ताकि अन्ना ने जो देश को मजबूत कर आगे बढाने का जिम्मा उठाया है जिसके लिये उन्हे अनेक कदम और आगे उठाने है वे उसमे अपने आप को पुर्ण रूप से मजबुत व फिट माने।
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