मंगलवार, 27 मार्च 2012

क्या अन्ना टीम अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है?



                   अन्ना टीम का रविवार को ६ घण्टे का सांकेतिक अनशन जंतर मंतर दिल्ली में सम्पन्न होने के बाद वहां व्यक्त की गई क्रियाओं की प्रतिक्रिया में संसद में जो अन्ना टीम के खिलाफ प्रस्ताव लाने की बात कही गई है वह निश्चित रूप से न केवल एक चिंतनीय विषय है बल्कि वह हमें यह सोचने पर निश्चित रूप से मजबूर करता है कि यदि आप अति उत्साह और सिर्फ अपने को ही ज्ञानवान और सर्वश्रेष्ठ समझने की शैली अपनायेंगे जैसा कि अन्ना की सिविल सोसायटी पिछले एक वर्ष से जिस तरह बार-बार अपने स्टेण्ड बदलकर व्यवहार कर रही है उस कारण से वह अपनी स्वीकारिता जनता के बीच खोती जा रही है। इसलिए संसद के पिछले शीतकालीन अधिवेशन में संसद में सर्वसम्मति से अन्ना के प्रति सदस्यों द्वारा सद्भावना व्यक्त कर सेंस ऑफ हाउस पारित किया जाकर अन्ना का अनशन तुड़वाने वाली उसी संसद में आज अन्ना टीम के विरूद्ध प्रस्ताव पारित होने की बात क्यों हो रही है इस पर अन्ना टीम को क्या चिंतन नहीं करना चाहिए? वास्तव में सिविल सोसायटी होने का दम्भ भरने वाली अन्ना टीम का अपने को ही देश का एकमात्र प्रतिक के रूप में भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ाई लडऩे वाला मानने के कारण जिस तरह वे देश की अन्य लोकतांत्रिक, प्रजातांत्रिक संस्थाओं पर प्रहार कर रही है वह निश्चित रूप से लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए न केवल खतरनाक खतरा है बल्कि इसलिए भीकि यह पूरा प्रयास लोकतंत्र को बचाने के नाम पर किया रहा है।
                   वास्तव में अन्ना टीम को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति, पूर्ण नहीं होता है कोई भी संस्था, काई भी सिस्टम, कोई भी कानून पूर्ण नहीं होता है। हर एक में यदि अच्छाईयां है तो कुछ न कुछ बुराईयां या कमियॉं भी होती है और हमें उन्हे उसी रूप में पूर्णत: अच्छे-बूरे के साथ स्वीकार करना होता है। हमारा प्रयास सिर्फ इतना होना चाहिए कि हम उस व्यक्ति, संस्था या कानून में जो कमिंया है, बुराईया है, उसको कम करने की दिशा में सार्थक वैयवहारिक और क्रियाशील कदम उठाये। यदि ८०२ की संसद (लोकसभा ५५२ एवं राज्यसभा २५० सहित) में १६२ लोग अपराधी है जो यद्यपि किसी कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा अंतिम रूप से अपराधी घोषित नहीं किये गये है बल्कि उनके विरूद्ध विभिन्न धाराओं में अपराधिक मुकदमें लम्बित है। उसी प्रकार अन्ना टीम के विरूद्ध भी आरोप लगाये गये है जिनमें से एक सदस्य किरण बेदी के खिलाफ तो बाकायदा न्यायालय के आदेश के द्वारा एफआईआर भी दर्ज हुई है। अपने सदस्यों पर आरोप के सम्बंध में अन्ना टीम का यह कहना है कि ये सब आरोप बकवास है विरोधियों द्वारा चरित्र हनन का प्रयास है और सब निरअपराधी है और उसी सांस में सांसदों  के सम्बंध में कहना है कि वे अपराधी है यह दोहरा चरित्र होगा। अन्ना टीम के समर्थन में जितने नागरिकगण सामने आये है क्या वे सब भी उतने ही ईमानदार है जिस मुहिम के लिये वे समर्थन दे रहे है? शायद इसी दोहरे चरित्र के कारण इस पूरे मुद्दे पर झण्झावात पैदा हुई है जिस कारण मूल मुद्दे भ्रष्टाचार से ध्यान भटका है। क्या अन्ना टीम इस बात को भूल गई है कि यह वही संसद है जिसने भावुक होकर एक मत से ऐतिहासिक रूप से अन्ना के समर्थन में प्रस्ताव पारित कर अन्ना से अनशन तोडऩे का अनुरोध किया था। आज वही संसद उनके खिलाफ प्रस्ताव करने जा रही है। केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख वही व्यक्ति थे जिन्होने संसद द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर प्रधानमंत्री की सेंस ऑफ हाउस की चिट्रठी रामलीला ग्राउण्ड पर अन्ना को सौपी थी जिसे अन्ना ने वहा उपस्थित हजारों लोगो के सामने स्वीकार कर उन्हे सम्मान प्रदान किया। तब अन्ना को उनके आदर्श सोसायटी कांड में आरोपित होने के बावजूद उनसे पत्र लेने में कोई झिझक नहीं हुई और आज अन्ना टीम के सदस्य केन्द्रीय सरकार के १४ मंत्रीयों के खिलाफ जिनमें वही देशमुख भी शामिल है एफआईआर दर्ज कराने कीबात कह रही है। क्या अन्ना टीम प्रासिक्यूटर है जो वह कहेगी वही सच है वैसे ही जैसे की न खाता न बही जो केसरी कहे वही सही।  (कांग्रेस के संबंध में पूर्व में यह कहावत काफी प्रचलित थी) अपराध दर्ज करने की एक प्रक्रिया होती है और यदि उस प्रक्रिया में पुलिस प्रशासन अपराध दर्ज करने में असफल रहता है तो उसके लिए न्यायिक प्रक्रिया का प्रयोग किया जा सकता है। निजि शिकायत न्यायालय में दर्ज की जा सकती है। उच्च एवं उच्चतम न्यायालय में संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए जाया जा सकता है। लेकिन किसी भी संस्थागत प्रक्रिया को किसी भी व्यक्ति को अपने हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है। वास्तव में अन्ना टीम का उद्देश्य तो यह होना चाहिए कि समस्त संस्थागत कमियों को वह कम करने के लिए न केवल ठोस उपाय बताये बल्कि उनक ो स्वयं पालन कर जनता जनार्दन को पालन करने के लिए उनपर घोर नैतिक दबाव बनाये । बजाय इसके कि हर मर्ज का एक इलाज जनलोकपाल कहने से काम नहीं चलेगा। अनशन पर बैठे मंच के पीछे जो बोर्ड लगा हुआ था ''यदि जनलोकपाल बिल लागू होता तो शायद ये १४ लोग शहीद नहीं होते, यह उनके दिमागी दिवालियापन को ही दिखाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा ३०२ होने के बावजूद जब हत्यायें नहीं रूक पाई तो मात्र लोकपाल बिल लागू होने से हत्या रूक जाती यह एक हास्यास्पद सोच है। कहने का मतलब यह है कि अन्ना टीम लेाकपाल बिल को एक हव्वा न बनाये इसे मात्र भ्रष्टाचार को दंडित करने का अन्य कानून समान एक कड़ा कानून ही माने जो भ्रष्टाचार को समाप्त या कम नहीं करेगा बल्कि भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में अपने उद्देश्य को प्राप्त करेगा वह भी तब जब उसको लागू करने वाले व्यक्ति भी पूर्ण इमानदारी से कार्य करे। इस राष्ट्र की समस्या कानून की कमियों का न होना न ही है। बल्कि उपलब्ध कानूनो को लागू करने की दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी व उसे लागू करने के लिए श्रेष्ठतम ईमानदार व्यक्तियों की कमी है जिस पर मूलरूप से ध्यान देने की आवश्यकता अन्ना टीम को है होनी चाहिए। इसके विपरीत जितने ज्यादा कानून बनाये जायेंगे भ्रष्टाचार उतना ही अधिक बढ़ेगा इस वास्तविकता को हम देख रहे है। अत: मूल आवश्यकता भ्रष्टाचार की जड़ पर चोट करने की है जहां से भ्रष्टाचार पैदा होती है न को भ्रष्टाचारी पर चोट करने की है। क्योंकि समस्या का पूर्ण निदान इसी में निहित है।
                   अत: अन्ना टीम को यह चाहिए कि इस देश में लोकतंात्रिक शासन चलाने के लिये जितनी भी संस्थाए संविधान व उसके अंतर्गत बनाये गये कानून द्वारा निर्मित की गई है उसे निर्बाध रूप से कार्य करने देवे, उनकी सकारात्मक आलोचना करे उनके अस्तित्व को चुनौती न दे (जैसा कि ''यह संसद ही समस्या है- अरविंद केजरीवाल) उन पर लगातार निगरानी एवं उनका स्तर सुधारने के लिये उनको चलाने वाले व्यक्तियों का नैतिक बल बढ़ाकर उन्हे ईमानदारी की ओर जाते हुए कार्य करने की प्रेरणा दे यही उनका मिशन होना चाहिए व यही वास्तविक सफलता होगी।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)

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