भारत देश अचंभित-विचंभित कर देने वाली घटनाओं का एक अभूतपूर्व देश है। कुछ घटनाएं, प्रक्रिया, क्रियाएं या कार्य ऐसे घटित होते हैं, जो प्रथम दृष्टया नामुमकिन से दिखते हैं फिर भी उनका घटित होना सिर्फ हमारे देश में ही सम्भव होता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यह बतानें की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसी लोकतांत्रिक देश पर भ्रष्टाचार का जो गहरा साया पड़ता बढ़ता जा रहा है वह बहुत ही चिंतनीय विषय है, खासकर विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देशों को देखते हुए। विश्व के अन्य देशों में भले ही लोकतंत्र उतना मजबूत न हो, उतना स्वतंत्र न हो जितना भारत में है। लेकिन भ्रष्टाचार के निषाद से ढंका हुआ जो लोकतंत्र भारत में रूप लेता जा रहा है वह हमें लोकतांत्रिक भ्रष्टाचार के क्षेत्र में अग्रणी रूप से खड़ा करता जा रहा है।
यह सब लिखने का अवसर इसलिए मिला कि भारत की फिलहाल एक मजबूत लोकतांत्रिक लगभग निष्पक्ष संवैधानिक संस्था देश के चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त श्री एस.वाय. कुरैशी ने हाल ही में जो झारखंड राज्य के मामले में राज्य सभा की सम्पूर्ण चुनावी प्रक्रिया चुनाव को ही रद्द कर दिया। स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास में यह प्रथम अवसर था चुनाव आयोग का यह अभूतपूर्व ऐतिहासिक कदम लोकतंत्र को बचाने में एक ऐतिहासिक रूप से मील का पत्थर सिद्ध हुआ। देश के संसदीय लोकतंत्र में खरीद-फरोक्त के कई मामले इसके पहले भी आते रहें है। सांसदो को पैसा देकर पूर्व में सरकार बचाई गई थी। (पीवी नरसिम्हराव सरकार इसी झारखण्ड राज्य के संसद सदस्यों के वोट बदले मूल्य के मत पर बची) पैसा लेकर संसद में प्रश्र उठाने वाले कुछ सांसदों के केमरे के सामने रिकार्ड होने पर उनकी सदस्यता भी इसी लोक सभा ने समाप्त की थी। लेकिन संस्थागत रूप से मात्र आशंका एवं अप्रत्यक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर चुनाव कराकर उसे अवैध घोषित करने के बजाय पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही रोक कर सांसद का नहीं बल्कि पूरी राज्य सभा के चुनाव को रद्द कर देना एक नौकरशाह का कठोरतम राजनैतिक स्वच्छता व सुचिता को बनाये रखने का आदेश है। लेकिन इस आदेश की चर्चा देश में और मीडिया में जितनी होनी चाहिए थी, वह नहीं हो पायी। बावजूद इस तथ्य के जब देश पूर्व से ही भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ पिछले दो वर्ष से अन्ना और बाबा रामदेव के नेतृत्व में लड़ रहा है और जिसमें जनता की भागीदारी बढ़ती जा रही है। इससे भी बड़ी दुखद बात यह है कि इन दोनो व्यक्तियों ने भी श्री कुरैशी के इस साहसिक कदम की दिल खोलकर प्रशंसा नहीं की है जो कदम भ्रष्टाचार को रोकने में मदद करता है। शायद 'श्रेयÓ की राजनीति का यही फल होता है।
लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम १९५१ के अंतर्गत चुने गये सांसद, विधायक के विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह भ्रष्टाचार के आधार पर उनका चुनाव अवैध घोषित कर छ: वर्ष के लिए उन्हे चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित करे दें। यह प्रतिबंध व्यक्तिगत है। लेकिन चुनाव आयोग ने जो कदम उठाया वह अकल्पनीय साहसी और दूरगामीं प्रभाव डालने वाला है। झारखण्ड वही प्रदेश है जहां के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ढाइ वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद रहे (३० नवम्बर २००९ से बंद थे) और अभी हाल ही (५ अपे्रल २०१२) मेें वे जमानत पर बाहर आये हैं। झारखण्ड वही प्रदेश है जहां सबसे ज्यादा आरोप सरकार के बनाने एवं गिराने हेतु विधायको की खरीद फरोक्त के लगे। अभी इस राज्य के बनने को मात्र ११ वर्ष (१५.११.२०००) ही हुए है और वहा लोकतांत्रिक संस्था और चुने हुए प्रतिनिधियों पर लगातार गंभीर आरोप पैसे के लेनदेन के लगना झारखण्ड के लोकंतंत्र के लिए ठीक नहीं है। हाल ही में होने वाले राज्य सभा चुनाव में जब विधायकों के खरीद फरोक्त का मामला प्रेस में आया और एक गाड़ी से दो करोड़ से अधिक रूपये जब्त हुए तब मुख्य चुनाव आयुक्त का अचानक बगैर किसी न्यायिक प्रक्रिया के यह निर्णय आना निश्चय रूप से आश्चर्य मिश्रित लेकिन सुखद अहसास कराने वाला आदेश है। यह कहा जा सकता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त कोई न्यायिक अधिकारी नहीं है और न ही उन्होने संबंधित पक्षों को निर्णय लेने के पूर्व कोई सुनवाई का अवसर दिया और न ही कोई जनहित याचिका या अन्य माध्यमों से न्यायालय का कोई आदेश या टिप्पणी आई। इसके बावजूद मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह निर्णय दिया और आम रूप से समस्त संबंधित पक्षों और नागरिकों ने उसपर थोड़ा बहुत ना नुकुर कर उसे स्वीकार किया। इससे यह सिद्ध होता है कि मुख्य चुनाव आयुक्त ने जो निर्णय लिया वह सही था। जनता इसे सही मानती है और उससे सम्बधित समस्त पक्ष भी अपनी अपनी गर्दन बचाते हुए उसे सही मान रहे है। इसलिए मुख्य चुनाव आयुक्त का देश की जनता ने खुले दिल से उनका स्वागत कर उन्हे प्रोत्साहित करना चाहिए। वैसे भी उन्होने इसके पूर्व पांच राज्यो (जिसमें यूपी जैसा बदनाम राज्य भी शामिल था) में सफलता पूर्वक बिना किसी हिंसा के आम तौर पर शांतिपूर्वक चुनाव करवाकर अपनी एक अलग छाप छोड़ी हैं।
उनके उक्त निर्णय ने इस बात का एहसास कराया कि देश में सिर्फ एक ही टी.एन. शेषन नही है। न केवल वर्तमान में टी.एन. शेषन है, बल्कि भविष्य में भी होते रहेंगे। टी.एन. शेषन (पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त) वह शख्स है जिन्होने पहली बार लोक प्रतिनिधि अधिनियम १९५१ के अधीन रहते हुए उन्ही अधिकारो के साथ अपने से पूर्व चुनाव आयुक्तों से हटकर पहली बार चुनावो के प्रचार खर्चे पर सफलता पूर्वक प्रतिबंध लगाकर चुनाव आयोग की महत्ता स्थापित और सिद्ध की थी। अत: ऐसे व्यक्ति श्री एस.वाय. कुरैशी को नमन। उनके उज्जवल भविष्य और दीर्धार्यु की कामना करते हुए उन्हे ईश्वर इसी तरह के निर्भीक निर्णय लोकतंत्र के हित में लेने के लिए ताकत देता रहे, यही ईश्वर से प्रार्थना है।
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