राजीव खण्डेलवाल:
देश के सात राज्य ‘नार्थन ग्रिड’ के फेल हो जाने के कारण बिजली गुल हो जाने से अंधेरे में डूब गये, सरकार भी ‘अंधेरे’ में हैं। देश का मीडिया इन दोनो अंधेरे से जनता को उजाले में लाने का कुछ कार्य कर सकता था। वह भी राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व निभाने में असफल होकर अंधकार को और अंधेरे की ओर बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहा है। जब न्यूज चैनल्स यह समाचार देते है कि ट्रेनों के एसी कोच में बिजली न होने के कारण यात्रियों का दम घुटे जा रहा है (सामान्य कोच के यात्रियों का खयाल नहीं आया?)। सरकार कुछ नहीं कर रही है। क्या सरकार को इस घटना के होने की पूर्व कल्पना थी? क्या न्यूज चैनल्स आरोप प्रत्यारोप के बजाय जनता को इस अचानक हुई बिजली गुल होने की दुर्घटना से निपटने के लिए कुछ सकारात्मक सुझाव नहीं दे सकते है? यह सही है कि सरकार के पास हर स्थिति से निपटने के लिए एक आपात योजना अवश्य होनी चाहिए। इसकी चर्चा न्यूज चैनल्स बाद में भी कर सकते है। लेकिन तुरंत तो उनका दायित्व है कि आशंका के बादलों को हटाकर स्थिति का सामना करने के लिये सकारात्मक जानकारी व सुझाव दें। आजकल न्यूज चैनल्स न्यूज परोसने का कार्य नहीं करते है, बल्कि उनका ब्रेकिंग न्यूज पर ज्यादा ध्यान रहता है। न्यूज जितनी ज्यादा ‘ब्रेक’ होगी उतना ही ज्यादा उनका न्यूज चैनल ‘तेज‘ ‘फास्ट’ कहलाएगा और उनकी टीआरपी भी उतनी ही बढ़ेगी, ऐसा न्यूज चैनलों का मानना होता है। टीआरपी की भी एक अलग कहानी है जिसका आधार भी वैज्ञानिक न होकर जन सामान्य को न समझने वाला आधार है जिसके पीछे न्यूज चैनल दौड़ते है। अधिकांश दर्शक वर्ग भी उस पर विश्वास करता है।
आज सुबह से बिजली फेल हो जाने का समाचार जिस प्रकार न्यूज चैनल दे रहे है। उसमें कुछ भी नयापन नहीं है। नार्थन ग्रिड का फेल होना मेकेनिकल गड़बड़ी है जो न तो सरकार की साजिश है और न ही सरकार उक्त स्थिति के लिए तैयार थी। इसलिए उसके परिणाम का सामना करने के लिए भी सरकार का तुरंत कार्यवाही करने के लिए तैयार न होना लाजमी था। स्थिति का जायजा लेने के बाद ही शासन-प्रशासन कुछ निर्णय लेने की स्थिति में होते है, जिसमें कुछ समय लगना स्वाभाविक है। लेकिन न्यूज चैनल्स उस आवश्यक, न्यूनतम, सामान्य लगने वाले समय को भी शासन-प्रशासन को देने को तैयार नहीं होते है। घटना घटते ही तुरंत खबर चलती है ‘जनता परेशान है और सरकार के द्वारा अभी तक कुछ नहीं किया जा रहा है।’ न्यूज चैनलो के भोपू शासन और प्रशासन की तीव्र गति से आलोचना में लग जाते है। यदि कोई हत्या हो गई है तो उनका यह समाचार ‘अभी तक अपराधी पकड़े नहीं गये है।’ यदि कोई एक्सिडेंट हो जाए तो उनका यह कथन ‘घायलों को अभी तक अस्पताल नहीं पहुचाया गया।’ यदि ट्रेन दुर्घटना हो जाए तो उनका यह कथन ‘कि राहत कार्य अभी तक प्रारंभ नहीं हुआ।’ आसाम जैसे कोई छेड़छाड़ की सामुहिक घटना हो जाए तो ‘अभी तक मात्र एक ही अपराधी पकड़ा गया।’ ऐसे अनेक बहुत से उदाहरण दिये जा सकते है जहां न्यूज चैनल्स ‘अभी तक’ पर ही जोर देते है जिन पर नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप बयान भी आने शुरू हो जाते है। ये न्यूज चैनल्स, संवाददाता और एंकरिंग करने वाले शासन और प्रशासन को स्थिति से निपटने के लिए थोड़ा भी समय देने को तत्पर नहीं होते है। क्योंकि वे तेज चैनल कहलाने की होड़ में शासन प्रशासन से भी उतनी ही तेजी की एक्शन की उम्मीद करते है। तुरंत एक्शन होना चाहिए इसकी उम्मीद भी की जानी चाहिए लेकिन एक्शन लेने के लिए आवश्यक सामान्य समय की भी कल्पना चैनल वालो को करके शासन-प्रशासन को देना चाहिए। किसी भी चैनल द्वारा कोई भी घटना दुर्घटना पर उनकी भी कोई सकारात्मक जिम्मेदारी होती है उस पर उन्होने कभी विचार ही नहीं किया। आसाम छेड़छाड़ के प्रकरण में जनता के बीच वीडियो जारी होने एवं अंततः लगभग समस्त अपराधियों के गिरफ्तार होने के बावजूद कोई भी चैनल का कोई भी संवाददाता उन पकड़े गये अपराधियों के मोहल्ले में जाकर उन अपराधियों के पड़ोसियों से इंटरव्यू नहीं लिया। उनसे यह नहीं पूछा कि इतने दिन से ये अपराधी आपके पड़ोस में रहते थे, घुमते-फिरते थे, क्या आपको मालूम नहीं था? आपने पुलिस में सूचना क्यूं नहीं दी? ऐसा करके वे उन नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी से विमुख होने की गलती का अहसास करा सकते थे। पत्रकारिता में खोजी पत्रकारिता महत्वपूर्ण होती है। इलेक्ट्रानिक चैनल स्टिंग आपरेशन के जरियें यह करते है। लेकिन ये स्टिंग ऑपरेशन भी ब्लेकमैल और कमाई के साधन बन जाते है। इस संबंध में यह आमचर्चा का विषय है कि संबंधित चैनल के स्वार्थ की पूर्ति हो जाये तो स्टिंग सिक्र्रेट बन जाता है अन्यथा वह ब्रेकिंग न्यूज बन जाता है। न्यूज चैनल्स सामान्य रूप से घटना और दुर्घटना के कारणों का पता लगाने का प्रयास क्यों नहीं करते है? जनता, शासन और प्रशासन प्रत्येक के उत्तरदायित्व को बोध कराने का प्रयास सकारात्मक रूप से क्यूं नहीं करते है? यह प्रश्न अक्सर कौंधता है। लोकतंत्र में मीडिया की बहुत ही प्रभावशाली और महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह स्वयं भी यह बहुत अच्छी तरह जानता है। यदि मीडिया सकारात्मक नहीं है, तो वह निश्चिंत ही देश के विकास के आड़े आएगी। इसलिए मीडिया को सनसनीखेज घटनाओं को दिखाने के साथ अपनी सकारात्मकता भी सिद्ध करना चाहिए ताकि न केवल उनकी विश्वसनीयता, स्वीकारिता बनी रहे बल्कि वे समाज में चाहे वह राजनैतिक हो, सामाजिक हो, धार्मिक हो या अन्य कोई क्षेत्र हो अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह कर सके, जिसकी जनता उनसे अपेक्षा करती है और यही उनका देश के प्रति कर्तव्य भी है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
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