शनिवार, 29 दिसंबर 2012

देश के ‘‘लोकतंत्र’’ में क्या ‘‘राजनीतिक तंत्र’’ ‘‘अप्रासंगिक’’ हो गया है?


राजीव खण्डेलवाल:
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                              हमारा देश भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से सरकार जनता के हितों के लिए और उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए हितकारी सरकार के रूप में कार्य करने की कल्पना हमारे संविधान के निर्माताओं ने की थी। उक्त प्रणाली कमोबेस कई संशोधनों के बावजूद आज तक लागू है। स्वाधीनता के पूर्व और स्वाधीनता के पश्चात् देश में एक से बढ़कर एक कई आंदोलन हुए है जहां राजनैतिक नेतृत्व को ठेंगा दिखाया गया है। 1974 का छात्रों द्वारा गुजरात में प्रारंभ किया गया नवनिर्माण आंदोलन यद्यपि राजनैतिक तंत्र को एकतरफ सरका कर प्रारंभ किया गया था लेकिन बाद में वह लोकनारायण जय प्रकाश नारायण के हाथों में आकर देश के तत्कालीन लगभग सम्पूर्ण विपक्षी राजनैतिक पार्टियों (वाममोर्चा को छोड़कर) ने उक्त आंदोलन में बढ़ -चढ़कर हिस्सा लिया जिसकी परीणति उस समय जनता पार्टी के उदय के रूप में हुई। अर्थात आंदोलन राजनीति से अछूता नहीं रह पाया। अन्ना एवं बाबा रामदेव के आंदोलन भी राजनैतिक नेतृत्व से हटकर व्यक्तिगत नेतृत्व के आधार पर कमोबेस राजनैतिक इच्छा लिए हुए आंदोलन हुए जिसमें जनता की बड़ी भागीदारी हुई इससे भी एक नई राजनैतिक पार्टी आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ। इन सब आंदोलनों में जो एक समान बात यह थी कि गैर राजनैतिक होने के बावजूद प्रत्येक आंदोलन में किसी न किसी व्यक्ति या किसी समूह, संस्था द्वारा तत्कालीन मुद्दो पर जनता का आंदोलन के लिये आव्हान किया गया था जिसमंे जनता ने बड़ी संख्या में भागीदारी करके आंदोलनों को मजबूती प्रदान की थी। 
                              यदि उपरोक्त  दृष्टि से देश में चलती बस में हुए गैंग रेप के बाद अभी जो आंदोलन चल रहा है उसको देखा जाये तो निश्चित रूप में वह अपने आप में एक विशिष्टता लिए हुए एक अनूठा आंदोलन है। जहां जनता को किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह, संस्था या कोई राजनैतिक तंत्र ने आव्हानित नहीं किया है। बल्कि जनता के मन में उपरोक्त घृणित घटना का इतना ज्यादा प्रभाव पड़ा कि जनता खासकर युवावर्ग जिसपर ही सामान्यतः चारित्रिक आरोप लगाये जाते है स्वयं स्वस्फुर्ति से देश के अधिकांश भागों में घर से बाहर निकलकर अपनी वेदना व्यक्त करने बिना किसी बुलावे के सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के सामने आये। यह तथ्य ही वर्तमान लोकतंत्र को पूर्नभाषित करने के लिये हमें विवश करता है। ‘गणतंत्र’ स्थापित करते समय यह कहा गया था कि यह गणतंत्र ‘‘जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा’’ है। हमारी लोकतंत्र का मूल आधार यही है और आधार भावना इस आंदोलन में झलकती है जहां सब कुछ जनता द्वारा किया जा रहा है। जिसने एक गहरा प्रश्न पैदा कर दिया है कि अभी तक जो लोकतंत्र राजनैतिक तंत्र (विभिन्न राजनैतिक पार्टियो) द्वारा चलाया जा रहा था क्या स्वस्फुर्ति जन आंदोलन उक्त लोकतंत्र के स्वास्थ के लिए हानिकारक तो नहीं है? क्या यह वर्तमान लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी तो नहीं है। इस आंदोलन के चलते वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व और इनको चलाने वाला पार्टी तंत्र कुछ सबक लेगा? ये सब यक्ष प्रश्न का जवाब भविष्य के गर्भ में है।
                              जिस तरह से पिछले एक सप्ताह से जनता आंदोलित और उद्वेलित हो रही है और सरकार उससे सहमीं हुई है। जिस कारण सरकार को कुछ न कुछ कार्यवाही करने लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। फिर वह चाहे पूर्ण कार्यवाही हो या अधूरी। इससे भी ज्यादा शायद यह पहली बार हुआ है कि इस तरह का यह आंदोलन भी पहली बार है और इस तरह के आंदोलन के कारण राष्ट्रपति को देश की जनता के नाम संदेश देना पड़ा यह भी पहली बार हुआ है। इससे सिद्ध होता है कि सरकार और उसका तंत्र उक्त आंदोलन को न तो कुचलने की स्थिति में है और न ही उसकी उपेक्षा करने की स्थिति में है जैसा कि वह पूर्व में अन्ना और स्वामीं रामदेव के आंदोलन के साथ कर चुकी है। इसलिए यदि आज जनता जाग्रत हुई है तो जनता को इस बात के लिए साधुवाद देना उन प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हो जाता है जो कम से कम इस आंदोलन में प्रत्यक्ष रूप से इस आंदोलनकारी जनता के साथ भागीदार नहीं हुए है। यही उम्मीद की जा इस तरह सकती है कि जो जज्बा इस देश में पहली बार उत्पन्न हुआ है उसको सरकार थकाने की अनायास कोशिस न करे। उस पर तुरंत प्रभावकारी व निर्णयकारी कार्यवाही कर अध्यादेश के माध्यम से उनके (सरकार) द्वारा की जाने वाली कार्यवाही को जनता के मध्य प्रस्तुत करे ताकि उद्वेलित जनता को इस बात का संतोषपूर्ण विश्वास हो कि सरकार ने वास्तव में इस देश की जनता द्वारा यौन हिंसा के संबंध में उठाये गये विभिन्न मुद्दो पर गहनता से विचार कर उस पर तदानुसार आवश्यक कार्यवाही कर भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने में एक साहसपूर्ण सफलता पूर्वक कदम उठाया है ताकि जनता के धन्यवाद के पात्र भी उसकी चुनी हुई सरकार हो सके।

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