'1.जनलोकपाल बिल' के मुददे पर 'आप' पार्टी गठन से लेकर 'सरकार 'तक बलिदान करने वाले केजरीवाल ने उक्त बिल को दिल्ली विधानसभा मे चर्चा के लिये प्रथम स्थान न देकर पांचवा स्थान दिया, क्यों ?
2. (अ) दिल्ली प्रदेश बनने के साथ कानूनन उपराज्यपाल को जनलोकपाल बिल भेजने की बाध्यता है जिस पर आपत्ति क्यो ? उनका यह तर्क है कि संविधान में यह कहा लिखा है? संविधान के पन्नो की किताब मीडिया पर दिखाते समय उपरोक्त तर्क करते समय वे शायद यह भूल गये कि दिल्ली राज्य गठन के समय संविधान के अंतर्गत ही बनाये गये कानून व नियमो के तहत ही बिल को उपराज्यपाल को भेजा जाना आवश्यक था। इसका पालन करने से उनका कद बढता या घटता ? संविधान मे कही यह नही लिखा है कि हत्या करने पर धारा 302 के अंतर्गत फांसी की सजा दी जा सकती है। बल्कि संविधान के अर्न्तगत बने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत वह एक दंडनीय अपराध है। हर बात सीधे संविधान मे नही लिखी जा सकती है। बल्कि उनके अंतर्गत बनाये कानून नियमो के अर्न्तनिहत ही होती है। अभी हाल ही में मनीष सिसोदिया ने कहा कि नरेन्द्र मोदी से मिलने के लिए पहिले से अपाइंटमेन्ट लेना चाहिए था। यह संविधान में कहां लिखा है ?
(ंब) 'आप' की नजर में ''गैर संवैधानिक'' होने के बावजूद यदि 'आप' समस्त दलो की मांग अनुसार यदि 'आप' उपराज्यपाल को जन लोकपाल बिल भेज देते तो क्या काननून 'आप' एक अपराधी हो जाते ? 'आप' को तो हर हालत में उक्त बिल पास करवाना था जिसके लिये अन्य दूसरे राजनैतिक दलो के समर्थन की आवश्यकता थी। जो वे 'आप' केा संवैधानिक औपचारिकताओ की पूर्ति करने के शर्त पर देने को तैयार थे।
(स) इस तथ्यात्मक सत्य के मददेनजर कि उपराज्यपाल अपनी सहमति नही देंगे, यदि जनलोकपाल बिल आप उपराज्यपाल को भेज देते तथा उपराज्यपाल द्वारा अस्वीकार करने या लम्बित पड़ा रखने की स्थिति मे भी केजरीवाल विधानसभा में अपने उपरोक्त तर्क के आधार पर उक्त बिल प्रस्तुत कर सकते थे। जिससे उनकी प्रतिबंद्धता जनलोकपाल बिल के प्रति ज्यादा दिखाई देती !
3. 'आप' का यह कथन कि शीला दीक्षित के जमाने में 6 बिल उपराज्यपाल की अनुमति के बिना विधानसभा में प्रस्तुत किये गये थे। गलत कृत्य का उदाहरण देकर क्या आप अपने गलत कृत्य को सही सिद्ध कर सकते है ? एक अपराधी यदि किसी मामले मे साक्ष्य के अभाव में छूट जाता है तो क्या दूसरा अपराधी दूसरे प्रकरण में उसी आधार पर उसी तरहे के अपराध के लिए उक्त तर्क के आधार पर छूट की मांग कर सकता है?
4. माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कानून मंत्री सोमनाथ भारती के खिलाफ टिप्पणी करने की जानकारी आने के बाद बावजूद उसे अपने मंत्रिमंडल में बनाये रखना क्या नैतिक था ? जिसकी दुहाई वे प्रारंभ से लेकर अभी तक देते आ रहे है।
5. बिना 'जनमत' लिए प्रथम बीस उम्मीदवारो की घोषणा। क्या यह आम नागरिक की भागीदारी के सिद्धांतो के खिलाफ नही है ?
यह सिलसिला दुर्भाग्यवश आगे भी चलते जा रहा है जो देश की आशा पर एक कुठाराघात है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
2. (अ) दिल्ली प्रदेश बनने के साथ कानूनन उपराज्यपाल को जनलोकपाल बिल भेजने की बाध्यता है जिस पर आपत्ति क्यो ? उनका यह तर्क है कि संविधान में यह कहा लिखा है? संविधान के पन्नो की किताब मीडिया पर दिखाते समय उपरोक्त तर्क करते समय वे शायद यह भूल गये कि दिल्ली राज्य गठन के समय संविधान के अंतर्गत ही बनाये गये कानून व नियमो के तहत ही बिल को उपराज्यपाल को भेजा जाना आवश्यक था। इसका पालन करने से उनका कद बढता या घटता ? संविधान मे कही यह नही लिखा है कि हत्या करने पर धारा 302 के अंतर्गत फांसी की सजा दी जा सकती है। बल्कि संविधान के अर्न्तगत बने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत वह एक दंडनीय अपराध है। हर बात सीधे संविधान मे नही लिखी जा सकती है। बल्कि उनके अंतर्गत बनाये कानून नियमो के अर्न्तनिहत ही होती है। अभी हाल ही में मनीष सिसोदिया ने कहा कि नरेन्द्र मोदी से मिलने के लिए पहिले से अपाइंटमेन्ट लेना चाहिए था। यह संविधान में कहां लिखा है ?
(ंब) 'आप' की नजर में ''गैर संवैधानिक'' होने के बावजूद यदि 'आप' समस्त दलो की मांग अनुसार यदि 'आप' उपराज्यपाल को जन लोकपाल बिल भेज देते तो क्या काननून 'आप' एक अपराधी हो जाते ? 'आप' को तो हर हालत में उक्त बिल पास करवाना था जिसके लिये अन्य दूसरे राजनैतिक दलो के समर्थन की आवश्यकता थी। जो वे 'आप' केा संवैधानिक औपचारिकताओ की पूर्ति करने के शर्त पर देने को तैयार थे।
(स) इस तथ्यात्मक सत्य के मददेनजर कि उपराज्यपाल अपनी सहमति नही देंगे, यदि जनलोकपाल बिल आप उपराज्यपाल को भेज देते तथा उपराज्यपाल द्वारा अस्वीकार करने या लम्बित पड़ा रखने की स्थिति मे भी केजरीवाल विधानसभा में अपने उपरोक्त तर्क के आधार पर उक्त बिल प्रस्तुत कर सकते थे। जिससे उनकी प्रतिबंद्धता जनलोकपाल बिल के प्रति ज्यादा दिखाई देती !
3. 'आप' का यह कथन कि शीला दीक्षित के जमाने में 6 बिल उपराज्यपाल की अनुमति के बिना विधानसभा में प्रस्तुत किये गये थे। गलत कृत्य का उदाहरण देकर क्या आप अपने गलत कृत्य को सही सिद्ध कर सकते है ? एक अपराधी यदि किसी मामले मे साक्ष्य के अभाव में छूट जाता है तो क्या दूसरा अपराधी दूसरे प्रकरण में उसी आधार पर उसी तरहे के अपराध के लिए उक्त तर्क के आधार पर छूट की मांग कर सकता है?
4. माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कानून मंत्री सोमनाथ भारती के खिलाफ टिप्पणी करने की जानकारी आने के बाद बावजूद उसे अपने मंत्रिमंडल में बनाये रखना क्या नैतिक था ? जिसकी दुहाई वे प्रारंभ से लेकर अभी तक देते आ रहे है।
5. बिना 'जनमत' लिए प्रथम बीस उम्मीदवारो की घोषणा। क्या यह आम नागरिक की भागीदारी के सिद्धांतो के खिलाफ नही है ?
यह सिलसिला दुर्भाग्यवश आगे भी चलते जा रहा है जो देश की आशा पर एक कुठाराघात है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)
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