शनिवार, 24 मई 2014

देश मंे ”राजनीति“ पर कब ”वास्तविक“ ”स्वाभाविक“ ”स्वीकारिताकारक“ ”प्रतिक्रिया“ होगी ?

         देश मंे "राजनीति" पर कब "वास्तविक" "स्वाभाविक" "स्वीकारिताकारक"  "प्रतिक्रिया" होगी ?
                                      
        हाल ही में देश में दो बडी राजनैतिक लोकतांत्रिक घटनाऐं घटी है जिसकी सत्यता से इस देश का कोई भी नागरिक इंकार नही कर सकता है। पहली नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक गैर कांग्रेसी पार्टी की 2014 के लोकसभा के चुनाव में ऐतिहासिक विजय एवं दूसरा नीतीश कुमार का नरेन्द्र मोदी की उक्त विजय की आंधी में हुई निर्णायक हार के कारण, नैतिकता के आधार पर दिया गया इस्तीफा। उपरोक्त दोनो घटनाओं पर देश में विपक्षी पक्षो ने जो प्रतिक्रियाये व्यक्त की, उससे निश्चित रूप से  एक आम नागरिक को निराशा ही हुई है, जो स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नही हैं।
        नरेन्द्र मोदी की जीत निसंदेह समस्त खिलाफत के बावजूद एक निर्णायात्मक जनादेश है जिसको  समस्त भागीदार पक्षो ने हृदय की गहराईयो से स्वीकार कर, स्वागत कर विपक्षी पक्ष केा अगले पांच सालो के लिए जनता के बीच जाकर अपनी खोई हुई विश्वनीयता को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, बजाय इसके कि उपरोक्त जनादेश में नुक्ताचीनी करे, खामियां निकाले व जनादेश को स्वीकार न करे।
        इसी प्रकार नीतीश कुमार ने जिस दिन नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया तो उनके विरोधियो ने यह प्रतिक्रिया दी थी की नीतीश कुमार नौंटंकी कर रहे है। विधायको को भावनात्मक रूप से ब्लेकमेल मेल कर रहे है और  अगले दिन होने वाली विधायक दल की बैठक में वे पुनः नेता चुने जायेगे और फिर से मुख्यंमंत्री बन जायेगे। दूसरे दिन जब विधायक दल ने सर्वसम्मिति से नीतीश कुमार को नेता माना व उनका इस्तीफा अस्वीकार कर दिया गया तब भारी मान मनौवल के बावजूद नीतीश कुमार ने इस्तीफा वापस लेने से स्पष्ट इंकार कर दिया और  एक दिन विचार के लिये समय मांगा व नये मुख्यमंत्री चुनने के संकेत दिये तब भी उनकी आलोचना की गई।  जब अगले दिन नीतीश कुमार ने नये मुख्यमंत्री के रूप में महादलित नेता जीतनराम मांझी  की घोषणा मुख्यमंत्री के रूप में की गई तब फिर उन्हीे विरोधियो ने उन पर यह आरोप लगाया कि दलित कार्ड खेलकर रिमोट कंटोल द्वारा नीतीश कुमार अगले वर्ष होने वाले चुनाव के लिए चुनावी कार्ड का खेल खेल रहे है। आखिरकार राजनीति में यदि एक व्यक्ति सही कदम उठाना चाहता है, करना चाहता है और यदि वह वास्तव में ऐसा करता है तो उसे विरोधी पक्ष द्वारा खुले हृदय से प्रोत्साहित क्यो नही किया जाता है ? आज की राजनीति का यही एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?
         यदि नीतीश कुमार विधायको के अनुरोध के दबाव के आगे अपना इस्तीफा वापस ले लेते तब उन्हे उनके विरोधी नौटंकी करार सिद्ध करते और जब इस्तीफा वापस नही लिया तब भी उन्हे नौटंकीकार करार सिद्ध कर रहे है। चुनाव में हार के बाद यदि इस्तीफा नही देते तब यही कहा जाता कि जनादेश की भावना के विपरीत मुख्यमंत्री कुर्सी से चिपके रहे। आखिर नीतीश केा क्या करना चाहिए था जिसकी एक स्वाभाविक सकारात्मक प्रतिक्रिया राजनैतिक क्षेत्र में होती ? शायद हमारे देश में अभी तक उक्त स्तर की स्वस्थ राजनीति नही आई है। इसलिए ''राजनीति'' के इस गलियारे मे चलने वाले हर ''राजनीति के रंग से गढे'' कदम की ''प्रतिक्रिया'' ''राजनीति''के तरीके से ही होते रहेगी। देश राज्य और समाज के हितो का ध्यान बिल्कुल नही रहेगा, ऐसा वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के देखने से लगता है।

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