''वेद प्रताप वैदिक'' की ''हाफिज सईद'' से हुई मुलाकात से उत्पन्न यक्ष प्रश्न? राजीव खण्डेलवाल
देश के राष्ट्रीय चैनलो और राजनैतिक हलको में उक्त मुलाकात न केवल तीव्र चर्चा का विषय बनी हुई है, बल्कि उसके औचित्य पर लगातार प्रश्न उठाए जा रहे है। कुछ क्षेत्रो में तो उक्त मुलाकात पर व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वंतत्रता और पत्रकारिता की स्वतंत्रता व खोज पत्रकारिता के अधिकार के आधार पर मौन धारण कर लिया है। क्या यह मुलाकात उनके पत्रकार/खोजी पत्रकार की हैसियत से है, क्या भारत सरकार के अघोषित दूत के रूप में है, या सामान्य नागरिक की हैसियत से है? यह सत्यता जानना जरूरी है।
इस बात से वेद प्रताप वैदिक और भारत सरकार दोनो ने साफ इंकार किया है कि ''उन्हे'' ''सरकार'' ने भेजा था। प्रश्न यह है कि मीडिया और विपक्षी दलो खासकर कांग्रेस, द्वारा इस मुलाकात पर क्यो इतना हाय तौबा मचायी जा रही है ? मुम्बई बम कांड व अन्य आतंकवादी घटनाओ का घोषित फरार अपराधी भारत का दुश्मन नं. एक, दुनिया के चार सबसे बडे आतंकवादियो में से एक हाफिज सईद से भारत के किसी पत्रकार की मुलाकात इस तरह की यह पहली घटना नही है। इसके पूर्व भी संसद पर हमला करने वाले कुख्यात आंतकवादी अफजल गुरू, अर्न्तराष्ट्रीय आंतकवादी दाउद इब्राहिम, मुंबई बम कांड का अपराधी आतंकवादी कसाब व मास्टर माइंड अबू सलेम, लिट्टे के प्रभाकरण, तमिलनाडू के कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन,नक्सलवादी समेत अनेक कुख्यात राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय अपराधी हुए है जिनसे फोन पर हुई बातचीत मुलाकातों व साक्षात्कार सीधे रिकार्डेड एवं लाईव प्रसारण पहले भी आज के अनेक राष्ट्रीय चेनलों के सम्मानित पत्रकारगणों द्वारा किये जा चुके है। वे ही आज वैदिक की उक्त मुलाकात को पानी पी पी कर आलोचना करने से गुरेज नही कर रहे है। मुझे याद आता है मुबंई बंमकांड के समय की आतंकवादी घटना का न केवल सीधा प्रसारण किया गया था। बल्कि एक चैनल द्वारा आतंकवादियो से बातचीत का भी सीधा प्रसारण करके घटना स्थल और विभिन्न घटनाओ की स्थिति की जानकारी का सीधा प्रसारण आतंकवादिओ को मिलने से आतंकवादी घटना केा अंजाम देने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग मिला था। (मुंबई बम कंाड के सीधे प्रसारण ने ही मुझे पहली बार लेख लिखने के लिए मजबूर किया था।) कांग्रेस ने तब इनमे से किसी भी मुलाकात या प्रसारण पर कोई आपत्ति नही की थी, न ही तत्कालीन विपक्ष (भाजपा) ने की। शायद इसीलिए कि तत्समय उन पत्रकारो पर किसी प्रकार की राजनीतिज्ञ छाप या प्रश्न चिन्ह नही लगा था, जैसे कि आज वेद प्रताप वैदिक के साथ है। वह भी इसलिये क्योकि वे अन्ना आंदोलन से लेकर बाबा रामदेव के आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा करके बाबा रामदेव के मोदी के प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम मे प्रमुख सहयोगी रहे है। अतः उनके राजनैतिक स्टेटस से इंकार नही किया जा सकता है।
तथाकथित पत्रकारिता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दुहाई देकर उक्त मुलाकात को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करना भी क्या उचित होगा, यह भी एक प्रश्न है? निःसंदेह वेद प्रकाश वैदिक देश के वरिष्ठतम अत्यंत सम्मानीय अनुभवी व बुजुर्ग पत्रकार है। वे ''न केवल संविधान के ज्ञाता है बल्कि अपने लम्बे अनुभव के कारण संविधान में निहित भावना के मर्मज्ञ भी है। क्या एक पत्रकार के अधिकार, एक नागरिक के नागरिक व संवैधानिक अधिकार से भी ज्यादा है ? जो निर्बाध न होकर संविधान के अंर्तगत कुछ सीमाओ में बाधित है। मुझे अभी हाल के म.प्र. के व्यापम की घटना याद आती है, जब एक दलाल अपराधी के मोबाईल में रिकार्ड किये गये नम्बरो के आधार पर, उन समस्त रिकार्ड मोबाईल नम्बर धारको को ही अपराधी बना दिया गया। जबकि ये तथ्य स्थािपत हो चुके थे कि उनमें से कुछ अभ्यार्थी व्यापमं परीक्षा में शामिल ही नही हुये, कुछ अभ्यार्थी फेल हो गये अर्थात उन्हे किसी प्रकार का फायदा नही मिला । कुछ उनमें से इंजीनियर भी बन चुके थे। लेकिन मात्र एक फोन के नेक्सस (दमगने) के आधार पर अपराधी बना दिये गये। क्या यही सिद्धांत एक फरार अपराधी आतंकवादी के साथ एक पत्रकार भारतीय नागरिक द्वारा मुलाकात करने पर लागू नही होता है प्रश्न यह है ?
क्या एक पत्रकार जो कि भारत के नागरिक है को यह अधिकार है कि वह बिना किसी पूर्व सूचना के देश के घोषित मोस्ट वंान्टेड आतंकवादी से अवैध रूप से मुलाकात कर सकते है? क्या इस मुलाकात के बाद वैदिक जी देश की विभिन्न खुफिया जांच ऐजेन्सीयो के जांच के अधिकार क्षेत्र में नही आ गयेे है ? यहां यह उल्लेखनीय है कि वे किसी अपराधी से अनुमति लेकर जेल मे मिलने नही गये थे। इन सब से हटकर क्या एक पत्रकार सेे स्वतंत्रता के नाम पर उक्त मुलाकात के औचित्य पर प्रश्न नही उठाया जा सकता है। यदि हां, तो क्या पत्रकार की हैसियत से हुई यह मुलाकात किस समाचार पत्र मे प्रकाशित हुई? इंडिया टीवी को भी वैदिक ने स्वयं जानकारी न देकर रजत शर्मा द्वारा बात करने पर ही जानकारी दी। जहां तक लोगो केा ज्ञात है कि वैदिक जी किसी भी समाचार पत्र या मीडिया चैनल के पत्रकार न होकर स्वतंत्र रूप से लिखते रहते है जिसके लिये सामान्यतया किसी मुलाकात या साक्षात्कार की आवश्यकता नही होती है, और न ही हाल मे उनके द्वारा कोई साक्षात्कार किसी का लिया गया है। क्या वैदिक इस बात के दोषी नही है कि 2 जुलाई की हुई उनकी मुलाकात को 10 दिन े बाद फेसबुक के माध्यम से उक्त मुलाकात के फोटोसंेशन जारी किये गये। उन्होने आज तक भी उक्त परस्पर संवाद से केन्द्रीय सरकार को अवगत नही कराया। यदि वे देश हित के लिये मिले थे या हाफिज सईद के हृदय परिवर्तन के लिए उन्होनेे यह वार्ता की, तो क्या यह भारतीय दूतावास की जानकारी में थी? क्या तथाकथित मन परिवर्तन करवाकर वेद प्रताप वैदिक विनोबा भावे या जयप्रकाश नारायण (जिन्होने डाकूओ का आत्मसमर्पण कराया था) के समतुल्य माने जा सकते हैं?क्या मात्र यह हृदय परिवर्तन काफी होगा या क्या इससे देश की सुरक्षा व अर्तराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक 60 करोड का घोषित ईनामी अपराधी पर से प्रश्न चिन्ह हट जायेगा? आश्चर्य इस बात का नही है कि सरकार ने आपसे संपर्क नही किया जैसा कि वैदिक ने कहा, बल्कि आश्चर्य इस बात का है कि ज्ञानी एवं अनुभवी पत्रकार होते हुए भी इस मुलाकात के परिणाम की जानकारी पत्र के माध्यम से या व्यक्तिगत मुलाकात के द्वारा वैदिक ने सरकार व देश की जनता को क्यो नही दी, जब कि वह देश की सुरक्षा आत्म सम्मान अखंडता व राष्ट्रीय भावना से जुडा हुआ मामला है। देश की जनता इसका कारण जानना चाहती है।
क्या एक पत्रकार के अधिकार एक नागरिक अधिकारो से भी ऊपर है? क्या भारतीय संविधान मे दिये गये मूल अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित निर्बाध है? क्या एक पत्रकार जो कि एक भारतीय नागरिक है का दायित्व नही है कि भारत सरकार द्वारा घोषित फरार आतंकवादी अपराधी की लोकेशन के बाबत जानकारी भारत सरकार व खुफिया सुरक्षा ऐजेन्सी के साथ शेयर करते व उसको पकडवाने मे सहयोग करके अपने नागरिक दायित्व का निर्वाह करते। बजाय यह कहते कि भारत सरकार ने उनसे कुछ पूछा ही नही। क्या भारत सरकार यह कह कर अपने दायित्व से मुक्त हो सकती कि उक्त मुलाकात की हवा की बदबू मे उनके किसी भी प्रकार का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रिर्मोट योगदान न होने के कारण उक्त घटना से कोई लेना देना नही है। क्या यदि एक सामान्य नागरिक देश के घोषित आंतकवादी से संपर्क करने का प्रयास करते तो अन्य कई पत्रकारो के समान वह भी कानून की जकड मे नही होता, यक्ष प्रश्न यही है।
यदि एक पत्रकार की हैसियत से उनकी मुलाकात हुई होती तो निश्चित रूप से वह पूर्व नियोजित होती, समाचार पत्र की टीआरपी बढाने हेतु अभी तक प्रकाशित हो जाती। लेकिन उक्त मुलाकात को सर्वप्रथम फेसबुक के जरिए फोटेा लांच कर सार्वजनिक किया गया। वैदिक जी ने यह कहा है कि उनकी यह मुलाकात पूर्व नियोजित न होकर अचानक हुई। क्या यह मुलाकात मात्र अकस्मात घटना है, जिससे उत्पन्न प्रभाव क्या भारत की राष्ट्रीय भावनाओ के साथ दुर्घटना नही है?
क्या आपकेा याद नही है कि आडवाणी का पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर कहे गये बोल मात्र से इतना बडा बवाल बना जिसने उनके राजनैतिक भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। लेकिन आज इस मुददे पर राष्ट्रवाद को सबसे उपर रखने वाली भाजपा की चुप्पी उन करोडो नागरिको के लिए जो भाजपा को चाहते है, अकल्पनीय व असहनीय है?
वैदिक जी को इस बात की बधाई दी जानी चाहिए कि भारत एवं अमेरिका सहित दुनिया जिस आतंकवादी को पकडना चाहती है उसकी लोकेशन जब वैदिक जी को मालूम हो गई। तब उन्होने भारत सरकार से इसे शेयर क्यो नही किया? ताकि भारत सरकार ड्रोन हमले कर उस आतंकवादी का अंत कर सकती है, जिस प्रकार ओसामा बिन लादेन का अमेरिका ने किया था।
माननीय वेद प्रकाश वैदिक जी देश की जनता के सामने आकर देश की जनता को उन प्रत्येक क्षणो से अवगत कराइये जो अपने हाफिज के साथ व्यतीत किये थे। यह आपका दायित्व भी है।देश आपकी बात को सच मानकर विश्वास करेगा। इस तरह आपसे जाने अनजाने में यदि कोई तकनीकि अथवा नैतिक ़त्रूटि हो गई हो तो उससे आप मुक्त हो सकेंगे।
अतः में इस मुलाकात की कोई उपलब्धि भारत या भारत सरकार या स्वयं वैदिक जी को भले ही न हुई हो लेकिन हाफिज को इस बात की उपलब्धि अवश्य मिली कि न केवल पाकिस्तानी मीडिया बल्कि भारत में वह वैदिक के माध्यम से यह संदेश देने में सफल रहा कि उसका मुंबई बम कांड मे कोई हाथ नही है, जैसा वैदिक ने अपने टीवी साक्षात्कार मे कहा। वैदिक ने हाफिस से मुलाकात कर उक्त संदेश देने के लिए मुलाकात का जो प्लेटफार्म दिया उसके लियेे वे निश्चित रूप से दोषी है।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष है)