जनता के सेवक "बयानवीर" राजनेता आखिर कब! 'संजीदगी' से बोलंेगे ?
बिहार सहित देश के विभिन्न राज्यो में हुये उप चुनाव परिणामो ने एक बार पुनः नेताआंे की बयानबाजी की कलाई खोल दी है। विगत लम्बे समय से यह अनुभव किया जाता रहा है कि देश मंे जब भी कोई राजनीतिक या अन्य महत्वपूर्ण घटनाएँ घटती हैं, तो उसके संबंध में प्रत्येक राजनैतिक दल व उनके नेता कभी भी स्वयं की गलती स्वीकार न करते हुए तथा अपने को सर्वोच्च मानते हुए हमेशा अपने विपक्षी लोगो पर घटना के संबंध में तुरंत आरोप जड़ देते हैं। फिर चाहे उन घटनाओ के घटने में स्वयं उनका ही गाहे -बगाहे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हाथ क्यो न रहा हो। राजनीति के इस दुष्चक्र के कारण ही राजनीति स्वस्थ न होकर विषैली हो गयी है।
उप चुनावों के निर्णयांे पर विभिन्न राजनेताआंे के बयान की बानगी देखिए। बिहार में जनता दल (यू), आर.जे.डी., व कांग्रेस के महागठबंधन की जीत पर जनता दल (यू) के महासचिव के.सी. त्यागी का बयान कि ''लोकसभा चुनाव के बाद जनता ने अपनी गलती सुधार ली है,'' क्या यह हास्यास्पद कथन नही है? वे यह भूल गये कि वे स्वयं को तो जनता का सेवक कहलाते हैं और गलतियो को जनता पर थोपते हैं। लेकिन जनता का निर्णय कभी भी गलत नहीं होता है। वास्तव में उक्त नेता व दलांे ने अपनी कुछ गलतियाँ सुधारी हैं, तभी जनता ने उन्हे पहले से बेहतर परिणाम दिये हैं। इसी प्रकार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कश्मीर में यह बयानय कि यदि कश्मीर की जनता को देश के अन्य प्रांतो के समान विकास चाहिएय तो वे भाजपा की सरकार बनावंे।अमित शाह बयान देते समय शायद यह भूल गये कि विभिन्न प्रंातो मे यदि विकास हुआ होता तोे फिर हाल के लोकसभा चुनाव में देश में भाजपा की सरकार की आवश्यकता ही क्यांे होती। या तीन महिनों में ही भाजपा ने देश के अन्य राज्यांे का समूचा विकास कर दिया है ? इसलिये उन्हे कश्मीर मे भी सत्ता सौंपी जानी चाहिए। यदि उनका कथन माना जाय तो एक स्वर से कश्मीर से कन्याकुमारी तक भाजपा को सत्ता सौंप देना चाहिए। शायद वे कहना कुछ चाहते थे, लेकिन कह कुछ गये। इस तरह के अनेकों अनगिनत उदारहण हमारे देश के राजनैतिक सामाजिक ढांचे मे पडे़ हैं। लेकिन फ्रिक किसको है? "बयानवीर" अपने बयान इस तरह के देते चले आ रहे हैं, जिन्हे प्रिन्ट,इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया जनता के बीच परोसता हैय जनता उनको सुनती है,देखती है।यदि वास्तव में जनता उनको अनसुना कर दे या अपनी गहरी प्रतिक्रिया दे, तो इस तरह के ऊल-जलूल बयानो की संख्या में कमी हो सकती है। क्या वास्तव मे ऐसा होगा, प्रश्न यही है ?
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
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