- ''2014'' का नोबेल शान्ति पुरस्कार पाकिस्तान की मलाला युसूफ जई के साथ संयुक्त रूप से मध्य प्रदेश के विदिशा मे पैदा हुये कैलाश सत्यार्थी को दिया गया, जिससे हर भारतीय का सिर गर्व से उॅचा हो गया। ''विशिष्ट'-'दिशा' (वि-दिशा) लिये हुये''कैलाश'('पर्वत) की उचाईयों तक पहुचने का उद्ेश्य लेकर सत्य का रास्ता अपनाते हुये (सत्यार्थी ) भारतीय कैलाश सत्यार्थी को संयुक्त रूप से पाकिस्तानी मलाला युसूफजई के साथ विश्व शान्ति का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने पर भारतीय उपमहाद्वीप के इन दोनो नागरिको को हार्दिक-बधाइयॉ, वन्दन -अभिनन्दन। जहॉ किसी भारतीय को वर्ष 2009 के बाद नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं वहीं मात्र 17 वर्ष की आयु में विश्व की सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता बनी। एक अशांत देश जो अपने पड़ोस में शान्ति भंग करने की लगातार हरकतें कर रहा है के नागरिक को शान्ति के लिये और वह भी महिला को पुरस्कार मिलना निश्चित रूप से बधाई व साहस का ही प्रतीक हैं। कैलाश सत्यार्थी द्वारा बचपन बचाओं आन्दोलन से अभी तक 80 हजार से अधिक बाल मजदूरों को बदहवासी से उबारकर बाल गुलामी व श्रम कानून विरोधी शक्तियों से उन्हे निकालकर, नये जीवन की राह मे ले जाकर साहसिक कार्य किया है। इसके लिये उन्हे नोबेल पुरस्कार मिलना निश्चित रूप से एक व्यक्ति की हैसियत से गौरव की बात है।
- सत्यार्थी ने अपना सम्पूर्ण जीवन निःस्वार्थ रहते हुए बाल-मजदूरी को खत्म करने के लिये सफलता पूर्वक लगाया, जिसका मूल्याकंन व अभिनन्दन पुरस्कार द्वारा ही किया जा सकता हैं। लेकिन क्या यह ''नोबेल '' सम्मान भारत देश के मुकुट को भी नोबेल (सुशोभित) करेगा? और क्या यह भारत का सिंर विश्व मे ऊॅचा उठायेगा ? नोबेल पुरस्कार की भव्यता, अतंर्राष्ट्रीय स्वीकारिता, मान्यता व सर्वोच्चता से दूर हटकर,यदि हम गहराई मे जाकर देश की उन परिस्थितियों जिन पर कार्य करने के कारण नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं, की स्थिति का आकंलन करेगें, तो क्या भारत देश भी उतना ही खुश होगा? जितना कैलाश सत्यार्थी हुये हैं। यह गहरे चिन्तन,विवेचना, सोच व शोध का विषय हैं जिसकी मीमांसा करने से मै खुद को रोक नहीं पा रहा हॅू।
- इसके लिये सर्वप्रथम हमें यह जानना आवश्यक होगा कि''सत्यार्थी''और''मलाला''को किस विषय पर और कौन से कार्य करने के लिये नोबेल पुरस्कार मिला। महिला अधिकारों से मरहूम अशान्त पाकिस्तान में मलाला ने तालिबानियों जैसों के मध्य महिलाओ की शिक्षा व जागरूकता के लिये जीवन की परवाह किये बिना आवाज बुलन्द की। सत्यार्थी ने बाल मजदूरो व बाल अधिकारों के लिये ऐसे कार्य किये जिनसे उन्होने हमारे देश के (तंत्र) सामाजिक ताने-बाने को सुधारने का प्रयास किया। इस कारण वे बच्चे जो हमारे भविष्य के प्रतीक, भविष्य का देश हैं, जिनके युवा होते बाल कंधे पर देश का भविष्य टिका हैं, उनकी भ्रूण हत्या न हो जाय उसे रोक कर समाज व अन्ततः देश के लिये उन्होने एक बहुत ही बडा सराहनीय कार्य किया है, जिसके लिये उन्हे प्राप्त प्रतिफल के वे निश्चित हकदार है। लेकिन जब हम एक देश की नजर से देखते है ंतो यही कार्ये मे निमित्त भाव देश को शर्म से झुका देता हैं। यह नोबेल पुरस्कार हमारे देश के नागरिकों की मानवीय संवेदनाओं पर चोट पहुॅंचाता है।ं यह नोबेल पुरस्कार हमारे देश में बाल-मजदूरी, बाल गुलामी, बाल अधिकार व बच्चों का किस तरह का जीवन स्तर है, इनकी दुर्दशा को दर्शाता है। तदाःनुसार एक तरफ तो यह पुरस्कार इस स्तर को सुधारने वाले को एक ऐसा प्रमाण पत्र देता है जिसमें ''एक व्यक्ति'' का सिर अभिमान से ऊँचा उठ जाता है। लेकिन दूसरी ओर उसी के साथ देश के दिलो की धडकन इस बात को सोचने के लिये क्यों मजबूर नही होती है? प्रत्येक नागरिक की सोेच ऐसी कब होगी, जब सत्यार्थी जैसे व्यक्तियों को ऐसे काम करने की परिस्थितियाँ ही न मिले और हम ऐसे क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पाने के हकदार कम से कम भविष्य मे तो न बने। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे देश में जो कमियाँ हैं, वह हमारे सामाजिक ताने-बाने (ढाँचे)ं मे अभी भी विद्यमान है। आज का शान्ति का यह नोबेल पुरस्कार इन कमियों पर कम से कम हमें यह सोचने के लिये अवश्य मजबूर करेगा। हम में से प्रत्येक नागरिक उन्हेें दूर करने के लिये अभी से पूरी ताकत के साथ सेवा भाव मे लग जायें ताकि भविष्य में फिर कभी किसी एक व्यक्ति या संस्था हम अधिकाशं नागरिकों के सोते रहने के कारण देश हित मे बुराई को दूर करने के लिये फिर से किसी परिस्थितिजन अवसर न मिल पाये ताकि वह फिर किसी अन्य विषय पर नोबल पुरस्कार प्राप्त कर सके जिससे देश को नीचा देखना पडे।
- इस मीमांसा का यह कदापि अर्थ नही है कि सत्यार्थी ने जो कार्य किये हैं वह प्रशंसनीय नहीं हैं और ऐसा भी नही कि यह नोबेल पुरस्कार की प्रतिष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह लगा दे।लेकिन इस देश के 100 करोड से अधिक वयस्क नागरिकों के लिये यह संदेश अवश्य है कि वे कम से कम अपना नागरिक कर्तव्य निभाकर हमारे अव्यवस्थित ढॉचे की समस्त कमियों को दूर करने हेतु तन-मन-धन से आज ही से जुट जायें।
- यदि पुरस्कार भौतिक (सुब्रम्हमण्यम चन्द्रशेखर, सर सीवी रमन),रसायन मेडिसिन जैसे क्षेत्रों मे कार्यं के लिये मिलता तो यह निश्चित रूप से व्यक्ति के साथ-साथ देश का गौरव आगे बढ़ाने जैसा होता। लेकिन यह पुरस्कार एक व्यक्ति के उसकी जीवटता साहस की निरन्तरता, परिपक्वता के साथ निःस्वार्थ भावों के साथ किये गये कार्य उसके निश्छल व्यक्तिव को प्रकट करते हैं। उनके लिये यह पुरस्कार सम्मान का प्रतीक तो हैं किन्तु हमारे देश का सिर इसलिये नीचे झुक जाता है क्योकि ंवह हमारे देश के निर्मल बालकांे की निम्नतर स्थिति को भी दर्शाता हैं।
- यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी को देशहित में किये कार्यो के लिए कोई संज्ञान न लेकर पद्मश्री से भारत रत्न सहित अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों हेतु योग्य नहीं समझा अर्थात स्वयं सरकार भी............................।़
- इसलिये शातिं का नोबेल समुचित नही। यदि वर्तमान नोबेल सूचि में समाज सुधारक के नोबेल का प्रावधान न हो तो अपेक्षित है कि नोबेल निर्णायक मंडल इस विषय को भी सुची मे शामिल करने के प्रयास करे ताकि भविष्य मे समाज सुधार का नोबल दिया जेा सके ताकि वास्तविक रूप मे शांितं के लिये किये जाने कार्य के लिये दिये जाने वाले नोबेल की महत्ता बनी रहे।
- अतः ईश्वर से यही प्रार्थना हैं कि भविष्य में व्यक्तिगत उपलब्धियों के अतिरिक्त अन्य किसी भी सामाजिक स्तर के विषय पर मेरिट पर नोबेल पुरस्कार कमेटी हमें नोबेल देने मे हमारे देश को असहाय व अनुपयुक्त पाये, यही देश के लिये नोबल होगा।
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- (लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014
‘शान्ति‘ का नोबेल पुरस्कार मिलने पर‘सत्यार्थी‘ का मान-अभिमान,लेकिन देश का ....?
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