- हरियाणा विधान सभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी को मिली ''अप्रत्याशित'' सफलता ने देश के राजनैतिक पंडितों को ही आश्चर्य चकित नही किया, बल्कि नरेन्द्र मोदी के बाद दूसरी बार संघ प्रचारक रहे मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाकर राजनैतिक गतिविधियो पर तीक्ष्ण नजर रखने वाले क्षेत्रो को भी आश्चर्य मिश्रित गहरी सुखद मनः स्थिति मे डाल दिया। यदि असम गण परिषद के असम आंदोलन से उत्पन्न नेता प्रफुल्ल महंत को छोड दिया जाय तो शायद देश के राजनैतिक इतिहास मे नरेन्द्र मोदी के बाद यह दूसरी घटना होगी जहॉ कोई व्यक्ति पहली बार विधान सभा का चुनाव लड़कर जीत कर सीधे मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुये है। वैसे यदि पीछे जाया जाय तो अटलबिहारी वाजपेयी जनसंघ के जमाने में संघ के एक वर्ष के प्रचारक रहकर प्रचारक की छाप से मुक्त होकर राष्ट्रीय राजनीति के छितिज पर लम्बें समय तक राष्ट्र नेता बने रहकर अन्ततः देश के प्रधानमंत्री भी बने। संघ का यह दर्शन-शास्त्र रहा है कि वह केवल व्यक्ति के ही नहीं बनाता है वरन् व्यक्तिव को गढता है जिससे आत्म विश्वास से परिपूर्ण सुदृढ और कर्मठ व्यक्ति का निर्माण होता हैं। एक ''चाय वाला'' संघ के व्यक्तित्व निर्माण के कारण सीघे मुख्यमंत्री से होता हुआ प्रधानमंत्री बन गया तो दूसरा सामान्य कपडा व्यवसायी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुॅच गया। गुजरात दंगो के आरोपो से धिरे होने के कारण राजनीति में अछूत संघ-स्वयं सेवक नरेन्द्र मोदी आज चुनावी राजनीति में ''पारस'' बन गये है । ये इस बाते को सिद्ध करते है कि 'संघ' की 'कथनी' और 'करनी ' मे 'अंतर' नहीं हैं। अतंर है तो सिर्फ समय के इंतजार का है जो आज के समय भागदौड़ के दौर मे लोग करना ही नही चाहतेे है।
- राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ मूलतः एक सांस्कृतिक संगठन है जो देश की गौरवशाली संस्कृति के संरक्षण व विकास के लिये जो भी आवश्यक कदम उठाने हों, चाहे फिर वह धामर््िाक, सामाजिक, राजनैतिक या अन्य किसी भी क्षेत्र मे ही क्यों न हो, बेहिचक लगातार उठाते रहा है । उसकी इसी पहचान को समाप्त करने के उद्वेश्य से स्वंय को स्वंय द्वारा प्रगतिशील कहे जाने वाले कुछ तत्वों ने दूंिषत मानसिकता से सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर संघ को एक साप्रदायिक संगठन चिन्हित करने का अनवरत् (लेकिन अन्ततः असफल) प्रयास पिछले कई वर्षा से किया हैं जिसके प्रमुख लोगों मे से एक दिग्विजय सिह भी हैं। लेकिन हाल ही के लोकसभा और विधान सभा के चुनावी परिणामों ने संघ पर लगाये जाने वाले इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है। इसे आगे इस तरह से समझा जा सकता है।
- राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ न तो कभी चुनाव लडता है और न ही चुनावी राजनीति मे विश्वास रखता है, लेकिन अनवरत -राष्ट्र सेवा के कार्याें मे जुटा रहता है। संघ के इन्ही अधिकतर सिध्दान्तों को भाजपा ने भी अपनाया हैं ऐसा भाजपा या संघ का ही मानना नही है बल्कि खुद विरोधी भी भाजपा पर यहीं आरोप लगाते है । भाजपा के घोषणा पत्र मे संघ के अधिकतर सिध्दान्त समाहित है जिनके आधार पर उनके द्वारा लोकसभा का चुनाव लडा गया। यदि संघ का कोई स्वंय सेवक भाजपा का प्रत्याशी है तो वह स्वंय को सर्व प्रथम संघ का स्वंय सेवक मानता है और फिर पार्टी का कार्यकर्ता नेता या अन्य कोई वजूद। अर्थात एक प्रचारक भाजपा के कार्यकर्ता/नेता के रूप में चुनावों मे जाता हैं तो उसका स्वंय सेवक के रूप मे वजूद जनता के बीच विद्वमान रहता हैं फिर चाहे नरेन्द्र मोदी हो या खट्टर जिन्होने अपने प्रचारक व्यक्तित्व को कभी नही छुपाया बल्कि सीधे जनता से वोट मांगे और परिणाम आपके सामने हैं।इन परिणामों से यही साबित होता हैं कि जनता ने राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ पर लगे आरोपों को नकार दिया हैं।
- अतः अब तो कम से कम आलोचकोे को जमीनी सत्यता को स्वीकार कर आरेाप लगाना बंद कर (उन्हे) देश हित में संघ द्वारा किये जाने वाले व्यक्तिव निर्माण कार्य मे जुड जाना चाहिये या उन्हे संघ नाम से परहेज है तो वे स्वंय स्वतंत्र रूप से देश निर्माण कार्य मे जुड जाये ताकि वे स्वंय अपने आप को भी देश की प्रगति और निर्माण मे एक भागीदार बना सके।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें