- जम्मू-कश्मीर विधान सभा के हाल मे ही हुये चुनाव परिणाम मंे लगभग दिल्ली विधानसभा और कुछ-कुछ महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणामो जैसी स्थिती उत्पन्न हुई है। किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। अंततः सरकार का गठन न हो पाने के कारण अस्थाई रूप से जम्मू-कश्मीर प्रांत में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है। दिल्ली में पिछले वर्ष हुये विधानसभा के चुनाव मे भी इसी तरह की समान स्थिति थी। लेकिन वहा पर 'आप' पार्टी ने बिना मांगे, बिना औपचारिक रूप से समर्थन स्वीकार किये, कांग्रेस के द्वारा लिखित मे दिये गयेे एकपक्षीय सर्मथन के आधार पर, प्रारम्भिक हिच-किचाहट के बाद सरकार का गठन कर लिया था। कंाग्रेस पार्टी जो उस समय सता में थी के विरूद्व आप पार्टी चुनाव लड़ी थी, के परोक्ष सर्मथन (''आप'' की नजर मे)ं लेकिन कांग्रेस की नजर में प्रत्यक्ष सर्मथन से सरकार का गठन हुआ था। लगभग सिध्दान्तहीन हो चुके राजनैतिक वातावरण में अभी भी कुछ सिध्दान्तो का झंडा लेकर चलने वाले झंडाबरदार, व उसकी दुहाई देने वाले तत्वो ने उस समय भी उक्त ''सरकार'' के गठन का सैध्दान्तिक विरोध किया था। अब फिर से वही समान स्थिति जम्मू-कश्मीर में हुये विधानसभा चुनाव के परिणाम से उत्पन्न हुई है। पी.डी.पी. ने बिना मांगे नेशनल कांफ्रेस के एक पक्षीय लिखित सर्मथन को एक दम सिरे से खारिज कर सिध्दान्तो की खंडहर् होती राजनीति कोे मजबूत करने के लिये एक बिरला सैध्दान्तिक कदम उठाया है। इसके लिए पी.डी.पी., जिसकी कई ''अन्य कारणो'' से आलोचना की जा सकती है, के बावजूद वह धन्यवाद व साधुवाद की पात्र है। इस अभिनव निर्णय के लिए उनकी पूर्ण रूप से पीठ थपथपायी जानी चाहिए। इसलिये कि पी.डी.पी.के ने़़तृत्व ने सरकार बनाने से स्पष्ट इनकार करते समय यह स्पष्ट रूख लिया कि वे उस कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार नहीं बना सकते है, जिसके विरूध चुनाव लड़कर उन्हे सबसे बड़ी पार्टी होने का जनादेश मिला है। सिद्वान्त का चोला पहनने का आडम्बर करने के बजाए राजनीति में सिध्दान्त को वास्तविक पुट देकर पी.डी.पी. ने अपने को उक्त ''आप'' पार्टी से ऊपर करके एवं अलग दिखने का प्रयास किया है।
- इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश में वर्तमान मे मीडिया हाऊस जरा -जरा सी घटनाओ को ब्रेकिंग न्यूज मे दिखाकर दिन भर न्यूज चेनलो मे चलाते है। आम जनता को न दिखने वाली घटनाओ को मीडिया हाईलाईट कर ब्रेकिंग न्यूज बना देता है जिनका आम नागरिक ,समाजव देश के ''स्वास्थय्'' से कोई लेना देना नहीं होता है। (ओवेसी के बयानो को मीडिया में दी गई तरहीज से महसूस किया जा सकता है) लेकिन मीडिया ने आज के अंधकार में गुम हो गई राजनैतिक नैतिकता से दूर उक्त निर्णय से उत्पन्न हुई एक नैतिक व सिध्दांतो की हल्की सी बिजली की किरण को उजाला बनाने के बजाए उसे अंधकार मय बना दिया। अर्थात् इतनी बड़ी घटना को मीडिया ने न तो डिवेट बनाकर दिनभर चर्चा में रखा और न ही हाथो हाथ रखा। यह मीडिया की कमी व दोष अखरने वाली है।
- पूर्ण रूप से एक नैतिक व सिध्दान्तो के आंदोलन से पैदा हुई निरंतर सिध्दान्तो की दुहाई देने वाली ''आप'' पार्टी भी सत्ता के आकर्षण के आगे झुक गई व सरकार बनाने के लोश् को रोक नहीं पाई, जो पी.डी.पी.ने जम्मू-कश्मीर मे कर दिखाया। समस्त राजनैतिक पार्टीयॉ जो बात तो सिध्दंातो की करती है लेकिन सत्ता के स्वार्थ के आगे कथनी व करनी मे अन्तर पैदा कर सिध्दान्तहीन राजनीति का गठजोड़ करके सत्ता की कुंजी हथियाने का भरसक प्रयास करती है। उन समस्त राजनैतिक पार्टीयो को जम्मू-कश्मीर की उक्त राजनैतिक घटना से सबक सीखकर प्रेरणा लेकर श्विष्य में इसी संकल्प के साथ देश सेवा का संकल्प लेना चाहिए। तश्ी नैतिक राजनीति का पुनरोद्वार होगा। तभी देश में भी विकास की आशा का संचार होगा।
मंगलवार, 20 जनवरी 2015
नेशनल कांफ्रेस को बिना मंागे एकपक्षीय समर्थन को पी.डी.पी का स्पष्ट इनकार! साधुवाद!
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