राजीव खण्डेलवाल:
‘‘आपकी’’ नैतिकता का पैमाना ‘‘आप’’ के लिए अलग तथा स्वयं के लिये दूसरा। दिल्ली के कानून मंत्री जितेन्द्र तोमर पद पर रहते हुये गिरफ्तार हुये व उसके बाद अभी तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा उन्हें मंत्री पद से न हटाया जाना शायद भारतीय राजनीति के इतिहास का यह दूसरा अवसर है। गिरफ्तारी के तरीके के मुद्दे पर बहस की जा रही है। उसे राजनैतिक बदले की भावना की कार्यवाही बताया जा रहा है। लेकिन इन सबसे हटकर ‘आप’ राजनीति में नैतिकता, मर्यादा व सिंद्धान्त के मुद्दे कोे लेकर राजनीति में नई प्रविष्ट कर राजनीति को नई दिशा देने का सफल प्रयास किया जा रहा था। लेकिन पिछले कुछ समय से आप में जो कुछ चल रहा है,तब से लेकर अभी तक जब दिल्ली के कानून मंत्री की गिरफ्तारी हई, उससे उक्त नैतिकता व सिंद्धान्तों की अस्मिता तार - तार हो कर राजनीति के गंदे तालाब में समुद्र की गहराई तक घुस गई।
याद कीजिए ‘‘आप’’ के प्रारंभिक बयानों को जिनमें दूसरे नेताओं व मंत्रीयों पर आरोप लगने के तुरंत बाद जॉच के निराकरण होने तक तथा न्यायालय के निर्णय आने तक इस्तीफा मंागे जाते रहे थे। अब वही सिद्धान्त (स्टेण्ड) आप द्वारा अपने कानून मंत्री के लिए क्यों नहीं अपनाया जा रहा है? यह बिंदु समझ से परे है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि राजनीति में आने के बाद राजनैतिकों पर ‘‘राजनीति’’ अपना प्रभाव जरूर डालती है। जो भी व्यक्ति राजनीति को सुधारने के लिए उसके राजनीति के सम्पर्क में आता है राजनीति स्वयं बदलने के बजाय उस व्यक्ति को ही बदल कर अपने ही रंग (दोष) में रंग लेती है जिस प्रकार पारस पत्थर कार्य करता है। यदि राजनीति एवं बदले की भावना के आधार पर उपरोक्त गिरफ्तारी की गई तो क्या दिल्ली के गृहसचिव धर्मपाल का स्थानांतरण गुण दोष के आधार पर किया गया है अथवा राजनैतिक द्वेष की भावना से किया गया है? केजरीवाल को यह समझना होगा कि ‘‘उनका कथन ही पत्थर की लकीर’’ है यह भ्रम ठीक नहीं हैं जैसा कि उन्होनें कानून मंत्री की डिग्री के मामले में अपना संतोष व्यक्त कर उसे ठीक बतलाया था। केजरीवाल को समझना यह होगा कि वे ‘‘सीताराम केसरी’’ (कांग्रेस के तत्कालीन कोषाध्यक्ष) के समान व्यक्ति नहीं है जिनके बाबत यह कहा जाता रहा कि ‘‘न खाता न बही जो ‘केसरी’ कहे वही सही’’।
केजरीवाल ने प्रांरभ में जिस सैद्धांतिक राजनैतिक प्रक्रिया को प्रारंभ किया था व उसको बढाने का प्रयास किया था, लगता है वह अब मृतपाय होती जा रही है। वास्तव में केजरीवाल उन करोडो लोगो की आशाओं व भावनाओं पर तुषाराघात कर रहे है, जिन्होने नैतिकता व सिद्धान्त की चमक की उम्मीद केजरीवाल की राजनीति से की थी। यदि वे तुंरत अपने कानून मंत्री से इस्तीफा ले लेते तो ‘सिंद्धान्त की राजनीति ’में थोड़ा उपर उठ जाते जो अवसर उन्होनें खो दिया है। इस घटना ने उसी सामान्य ज्ञान को पुनः सही सिद्ध किया है कि राजनीति में सभी एक ही थैली के चट्टे बटृे होते हैं। अब देश के नागरिको को फिर अन्य किसी केजरीवाल को ढूढना होगा। यह देश का दुर्भाग्य है कि यहॉं जनता किसी व्यक्ति को केजरीवाल या अन्ना बनाने का प्रयास नहीं करती है ,बल्कि जो व्यक्ति अपने को अन्ना या केजरीवाल जिस भी रूप में प्रस्तुत करता है जनता उसे रूप में स्वीकार कर लेती है। अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त करने हेतु जनता को अपनी सोच बदलना होगा व उसे भी व्यक्तित्व गढ़ने में अपने खून पसीने का कुछ अंश समर्पित करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व नगर सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
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