मंगलवार, 12 जनवरी 2016

क्या अब भी भारत को ‘‘इजराईल‘‘ बनने की आवश्यकता नहीं है?

विगत सप्ताह पठानकोट एयरबेस में हुई आंतकवादी घटना में न केवल 6 आंतकवादी मारे गये बल्कि सात जवान भी शहीद हुये। तब से भारत के आम नागरिकों के मन में न केवल पाकिस्तान के प्रति आक्रोश की भावना बढी है, बल्कि पाकिस्तान के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की मंाग  की भावना भी प्रबल रूप से फैल रही है। भारत अभी तक ऐसी कोई विश्वसनीय अचूक व सफल नीति पाकिस्तान के साथ सुनिश्चित नहीं कर पाया है कि पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से नियंत्रित की जा रही आतंकवादी हमलो से किस तरह से निपटा जाय। अभी तक भारत की नीति यही रही है कि आंतकवाद के मुद्दे पर सिर्फ और सिर्फ बातचीत हो तथा सीमा व देश के अंदर हो रही आंतकवादी घटनाओं के बढ़ने पर शांति वार्ता को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया जाए। फिर चाहे सरकार कोई भी रही हो, मात्र बोलने वाले चेहरो की परस्पर अदला बदली भर हुई है, कथन  अर्थ वही हैं। पूर्व में यूपीए सरकार द्वारा पाकिस्तान के साथ ‘‘बातचीत के साथ ‘आतंकवाद’’’ के सिद्धांत को अपनाते समय मुख्य विरोधी भाजपा द्वारा इसके विपरीत ‘‘आंतकवाद’ व बातचीत साथ साथ नहीं हो सकती है’’ के आधार वाला रवैया अपनाया गया था। लोकसभा चुनाव के समय वर्तमान प्रधानमंत्री का यह चुनावी जुमला काफी हिट रहा जिसमें उन्होने चुनावी सभाओं में बारम्बार यह दोहराया  था कि ‘‘एक तरफ टेबिल पर बिरयानी खिलाई जाए व दूसरी तरफ भूमि पर सैनिको की गर्दन कटती जाय’’ यह सब बिलकुल बंद होना चाहिए। 
        क्या भारत को पड़ोसी देश पाकिस्तान द्वारा निर्मित आंतकवाद से निपटने के लिए अमेरिका ,इजराईल और जर्मनी के समान हमला कर आंतकवाद को कुचलने की नीति अपनाने की आवश्यकता नहीं है? जब पाकिस्तान स्वयं आंतकवाद के साथ साथ बातचीत करने के लिए तैयार है तब भारत बातचीत के साथ साथ आंतकवाद को कुचलने के लिए हमला करने की नीति अपनाने को क्यो तैयार नहीं है, यक्ष प्रश्न यही है? जब संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के बिना अमेरिका पाकिस्तान में स्थित आंतकवादी ओसामा बिन लादेन व उसके ठिकानों पर हमला कर उनको नेस्तनाबूद कर समाप्त कर सकता है, जर्मनी अपने देश के (100 से अधिक) बंधक नागरिको को सुरक्षित वापस लाने के लिये  दूसरे देश की सीमा में घुस कर हमला कर सकता है, और इजराईल अपनी भूमि की रक्षा के लिए बिना किसी डर के विदेशी देशो पर लगातार आक्र्रमण कर सकता है, तो भारत ऐसा क्यों नहीं कर पा रहा है? जबकि उपरोक्त देशों की तुलना में भारत आंतकवाद के हमलो से कहीं ज्यादा ही प्रभावित है। भारत पर पाकिस्तान विभिन्न आंतकवादी संगठनों के हस्ते आंतकवादी घटनाओं के द्वारा बार-बार हमला कर रहा है जिन हमलों के आधार व सूत्रधार पाकिस्तान की यूनाइटेड जेहाद हाउंसिल, आई.एस.आई सहित अनेकों आंतकवादी संगठनों व पाकिस्तानी सेना में ही हैं, तब उपरोक्त देशों के समान ही भारत भी पाकिस्तान द्वारा उत्पन्न व नियत्रित आंतकवाद  को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान के विरूद्ध कड़ी सैनिक कार्यवाही क्यों नहीं करता है। वास्तव में यह कार्यवाही पाकिस्तान पर हमला नहीं कहलायेगी बल्कि पाकिस्तान में छिपे हुये आंतकी व उन स्थानों पर जहॉ आंतकवादियो को पनाह और ट्रेनिंग दी जा रही है, हमला कर उनको खत्म करना भर है। पाकिस्तान व विश्व के अन्य राष्ट्र भी उसी प्रकार चुप रहेगें जैसे जब अमेरिका ने पाकिस्तान के भीतर जाकर लादेन को खत्म किया तब चुप रहे थे। जिस प्रकार अमेरिका ने अमेरिका न्यायालय या  अंतराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा ओसामा बिन लादेन को अपराधी घोषित किए बिना समाप्त किया था उसी प्रकार भारत भी उन्हीं अंतराष्ट्रीय नियमों व परिपाटियों के तहत अमेरिका के समान उन्हें निस्त नाबूद कर सकता है। पाकिस्तान के समान ही यदि भारत भी हमले के साथ-साथ आंतकवाद पर बातचीत का स्टंेड़ ले तो अब उक्त समस्या का 100 प्रतिशत स्थायी निदान हो जायेगा। जरूरत पूरी शक्ति के उपयोग करने की भी नहीं सिर्फ ताकत, बल व साहस के ट्रेलर दिखाने भर की हैं।
        भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत एक नागरिक को स्वयं की रक्षा का अधिकार प्राप्त है जिसके तहत यदि परिस्थितियों ऐसी आवश्यक हो तो अपनी जान बचाने के लिए वह आक्रमण कर दूसरे व्यक्ति को मार भी सकता है। ठीक इसी प्रकार व्यक्तिगत आत्मरक्षा के सिद्धान्त को आगे बचते हुये भारत देश को अपनी संप्रभुता सुरक्षा व आत्म सम्मान की रक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आंतकवाद को उत्पन्न व पनाह देने वाले उन तत्वों को समाप्त करने का पूर्ण अधिकार है जिनकी जानकारी समय समय पर भारत पाकिस्तान को देता रहा है। क्या अब यह समय नहीं आ गया है, बल्कि हम अब भी काफी देर कर चुके है जब राजनीति से परे देश की सुरक्षा सार्वभौमिकता व आत्म सम्मान की रक्षा हेतु एक स्पष्ट मजबूत परिणाम मूलक विश्वसनीय नीति पाकिस्तान के संबंध में बनाई जानी चाहिए? अन्ततः यह स्पष्ट है कि भारत को पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति में बदलाव लाकर देश की आंतरिक सुरक्षा व बाहरी सीमा की रक्षा हेतु आम नागरिको की इच्छाओं की पूर्ति करने का यही उचित वक्त है। लोहा गर्म है, चोट अविलम्ब करनी चाहिए, परिणाम सुनिश्चत है।

        

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