राजीव खण्डेलवाल:
जेएनयू एसयू के अफ़जल गुरू (संसद पर हमला करने वाला अपराधी) को फांसी देने की बरसी का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, यही अपने आप में एक आश्चर्य की बात है। यह हमारे देश में ही संभव है जहॉ देश की सम्प्रभुता, एकता व देश की आत्मा संसद पर हमला करने वाला हमलावर (जिसे देश के सर्वोच्च-उच्चतम् न्यायालय द्वारा समस्त न्यायिक प्रक्रिया को पूरी करने के बाद फंासी दी गई थी) के समर्थन में फांसी की बरसी के कार्यक्रम हो सकतें है। इस कार्यक्रम में देश विरोधी और कश्मीर की स्वायत्तता व देशद्रोही अपराधी अफ़जल के समर्थन में जिस तरह से देशद्रोही नारे लगाये गये वे निश्चित रूप से न केवल असहनीय कृत्य हैं, बल्कि पूर्ण रूप से किसी भी रूप में अक्षम्य देशद्रोही कृत्य हैं। यह देश की सहिष्णुता, उदारता, या स्वतंत्रता का लक्षण नहीं बल्कि हमारी कमजोरी की निशानी है। इस कृत्य के लिये भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत देशद्रोह व विभिन्न धाराओं के अंतर्गत समस्त जिम्मेदार आरोपी व्यक्तियों के विरूद्ध तुरंत कड़ी से कडी़ कार्यवाही की जानी चाहिये थी, जो अभी तक प्रारंभ नहीं हो पाई है। (मात्र जेएनयू के अध्यक्ष को छोड़कर)
पिछले कई वर्षो से ‘‘जेएनयू’’ में ‘‘आइसा’’ द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में इस तरह के राष्ट्र विरोधी नारे सुनने व देखने को मिलते रहे हैं। लेकिन ‘‘स्वायत्तता’’ स्वतंत्रता के नाम पर उन्हें बोलने की आजादी दी गई व कभी भी उनके खिलाफ कोई सार्थक कड़ी कार्यवाही अभी तक नहीं की गई। इसी का यह परिणाम हुआ कि देश विरोधी ताकतों के हौसले बढ़ते बढ़ते इतने उग्र हो गये है कि हमारे ही देश में देश की राजधानी में व संस्कति की शिक्षा देने वाले विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में ‘‘भारत वापस जाओ’’ं ‘‘पाकिस्तान जिंदाबाद’’ ‘‘अफ़जल गुरू की फांसी की सजा न्यायिक हत्या है’’ हर घर में एक अफ़जल होगा, लड ़के लेगे कश्मीर, हिन्दुस्तान की बरबादी तक लड़ते रहेेेंगे, हिन्दुस्तान के टुकड़े हांेगे हजार आदि के नारे व बैनर सरे आम मीड़िया के समाने लगाये गये। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा तकलीफ की बात यह हुई कि 10.02.16 को इंडिया न्यूज़ के डिबेट कार्यक्रम में टी.वी.एंकरिग कर रहे दीपक चौरसिया जिन्होंने इस कार्यक्रम का यह शीर्ष (हैडिंग) दिया था ‘‘यहॉं बोलने की आजादी है, तो क्या देश विरोधी बयान बाजी होगी’’ लिया हुआ शीर्ष प्रश्न बहुत अच्छा था। लेकिन वेे कार्यक्रम में जिस तरह से डिबेट में भाग लेनें वाले अनिर्वाण भट्टाचार्य, कार्यक्रम आयोजक, कन्हैया कुमार, अध्यक्ष जेएनयू एसयू , प्रो.दिनेश वार्ष्णेय सी.पी.आई नेता व पूर्व छात्र ने अत्यधिक भारत विरोधी जहर उगला, खासकर अनिर्वाण भट्टाचार्य द्वारा जो सहनशीलता की हर सीमा को पार कर गया। यह सब केवल हमारे देश में ही संभव हो सकता हैं। मैं दीपक चौरसिया से मात्र यह पूछना चाहता हूंॅं कि आजादी-स्वतत्रंता के नाम पर अनाप-शनाप बोलने वाले अनिवार्ण भट्टाचार्य जैसे भारत विरोधी देशद्रोही को टी.वी. चेनल पर आपने भारत विरोधी बयान देने से क्यों नहीं रोका? उनसे बयान वापस लेने तथा माफी मांगने के लिये क्यों नहीं कहॉं गया? जबकि इसके विपरीत संवित पात्रा, भाजपा प्रवक्ता को दीपक चौरसिया के द्वारा देशद्रोही के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही की मांग उठायेे जाने के अनुरोध के बावजूद अपेक्षानुसार उनके द्वारा ऐसी मांग न किये जाने पर दीपक चौरसिया द्वारा संवित पात्रा की न केवल आलोचना की गई बल्कि दीपक ने उन्हें लताड़ा भी। क्या मीड़िया के दीपक का कार्य सिर्फ प्रत्येक घटना की रिकाडिंग कर उसे प्रसारित करना मात्र है? क्या वे भारतीय नागरिक नहीं हैं? क्या देश की अखंडता के प्रति उनका कोई दायित्व नहीं है? दीपक चौरसिया ने भारत विरोधी भाषा, देश की अंखंडता पर आघात करने व देशद्रोही कृत्य करने पर अनिर्वाण भट्टाचार्य को क्यों नहीं रोका व उससे माफी मांगने को क्यों नहीं कहॉं ? क्या प्रेस की स्वतंत्रता दीपक चौरसिया को इस सीमा तक डिबेट को ले जाने की इजाजत देती हैं? यदि नहीं ! तो दीपक चौरसिया के विरूद्ध देशद्रोह की भावना को प्रश्रय देने, प्रसारित करने में सहयोग देने के आरोप का मुकदमा क्यों नहीं दर्ज होना चाहिये? वे (भट्टाचार्य को) बार बार मात्र यह कहते रहे कि ‘‘मैं आपको झूठ बोलने का अधिकार नहीं देे सकता हॅंू’’ उनका यह ढीला ढाला कथन बेमतलब था।
संवित पात्रा ने जिस जोरदार तरीके से अनिर्वाण भट्टाचार्य का विरोध किया, वह प्रशंसनीय हैं, उन्हें उनके इस तरह के डिबेट हेतु साधुवाद देना चाहिए। उन्होंने इस बात पर खेद भी व्यक्त किया कि उन्हें एक राष्ट्रद्रोही के साथ बैठकर डिबेट करना पड़ रहा है, यह उनके लिए एक धिक्कार का विषय है।
यह भी एक दुखद विषय है कि अभी तक इस मामले को लेकर पूरे देश में न ही केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा और न ही स्वदेशी संगठनों या नागरिको द्वारा भट्टाचार्य के विरूद्ध देशद्रोह के अपराध की प्रथम सूचना पत्र देश के विभिन्न स्थानों पर क्यों दर्ज नहीं की गई हैं? जबकि पूर्व में इस तरह के मामलों में अविलम्ब कड़क शिकायते दर्ज होती रही हैं व कार्यवाही न होने पर प्राइवेट इस्तगासा तक न्यायालय में पेश होते रहे है।
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