‘‘गिलास आधा खाली हैं या आधा भरा हैं’’, यह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष दयाशंकर द्वारा सुश्री मायावती पर की गई अभद्र, अमर्यादित टिप्पणी व उससे उत्पन्न प्रतिक्रिया व उस पर अगली क्रिया-प्रतिक्रिया पर लगभग सही बैठती हैैं। यह घटना निम्न महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर देश की जम्हूरियत का ध्यान भी आकर्षित करती हैं।
1. क्या क्रोध में दी गई प्रतिक्रिया में कुछ भी कहा जा सकता हैं? ‘‘कुछ भी’’ ?
2. क्या भारतीय न्यायप्रणाली गाली के बदले महागाली, ‘‘अंाख के बदले अंाख’’ अर्थात जैसे को तैसे बचाव की अनुमति देती हैं?
3. क्या व्यक्ति को स्वयं के बचाव के लिये रिश्तेदारी चुनते समय, सहूलियत के हिसाब से रिश्स्तेदारी चुनने का अधिकार हैं? (स्वाति सिंह ने मीडिया के सामने कथन किया हैं कि वह एक पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि मां व बहू के रूप में अपनी लड़ाई लड़ रही हैं)
4. क्या अचानक उत्पन्न हुये संकट के समय कोई व्यक्ति तुरंत अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त न करते हुए बाद में शांतिपूर्वक, ठंड़े दिमाग से सोच समझकर अपने बुद्धि कौशल का भरपूर उपयोग लेते हुए साहस पूर्वक सामना करके संकट की दिशा को दूसरी ओर मोड़ सकता हैं?(जैसा कि वर्तमान प्रकरणों में हुआ)
5. एक सामान्य नागरिक यदि साहस के साथ मु़द्दे को सही रूप से प्रस्तुत कर सार्थक तर्क के साथ खड़ा और अड़ा रहे तो वी.वी.आई.पी (मायावती को) को भी ऊपर से उतर कर नीचे आकर सामान्य नागरिक के सामने बराबरी से खड़े रहने के लिये मजबूर हो जाना पडता हैं।
मैं, आगे जो लिखने जा रहा हंॅू ,उसके सार व निष्कर्ष को ही ऊपर वर्णित किया गया हैं। आईये, अब उक्त घटना का ंिबंदुवार विश्लेषण कर लिया जाये।
प्रथम दिन दयाशंकर ने जो भी अमर्यादित अपशब्द ‘‘बहन’’ मायावती के लिये कहे उसके निम्नतम स्तर के संबंध में कतई भी दो राय नहीं हैं और न ही उसे दुहराया जा सकता हैं। इसलिये पूरे देश में सम्पूर्ण समाज में (सिर्फ दलितो में ही नहीं) राजनैतिक विचारांे की सीमा को तोड़ते हुये प्रत्येक राजनैतिक दल ने न केवल उक्त कथन की धोर भर्त्सना व निंदा की बल्कि दयाशंकर के विरूद्ध आक्रोश का एक स्वाभाविक वातावरण भी पैदा हुआ। इस कारण से न केवल पार्टी को दयाशंकर को तुरंत प्रक्रिया का पालन किये बिना (कारण बताओं नोटिस दिये बिना) पूर्व में पार्टी के उपाध्यक्ष पद सहित समस्त पदो से च्युत कर तत्पश्चात पार्टी से छः साल के लिये निष्कासित करने के आदेश देने पड़े वरण दयाशंकर भूमिगत भी हो गये।
घटना के अगले दिन मायावती ने संसद में जो बयान दिया जहॉं उन्होंने न सिर्फ दयाशंकर द्वारा दी गई गाली की दिशा को (उनसे टकराने के बाद) दयाशंकर के परिवार पत्नी, बच्चे व मां की ओर मोड़ दिया बल्कि उसमें अपनी तरफ से एक ‘(अप)’ शब्द भी नहीं जोड़ा। लेकिन बाद में पूरे देश में अपनी नेत्री (बहन जी) के प्रति प्रतिबंद्धता दिखाने के उद्ेश्य से होश खोकर जोश में बसपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने क्रोध में आकर (ऐसा बसपा प्रवक्ता द्वारा कहा गया) जैसी- जैसी जो अमर्यादित प्रतिक्रिया दी, जैसे दयाशंकर कुत्ते को फांसी दो, उसके डी.एन.ए.में कमी हैं इत्यादि, तिलक तराजु और तलवार जैसे कुत्सित नारे देने वालों से आप उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। इन सबकी प्रतिक्रिया स्वरूप ही दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह ने (स्वयं को पत्नी के रूप में नहीं बल्कि मां व बहू के रूप में मीड़िया के द्वारा देश के सामने जोरदार ढंग व तर्क से (बहन (मायावती की मर्यादा के सामने अपनी मां व बच्चे की मर्यादा को बराबरी से खड़े करते हुए) जो जवाब दिया उसी के परिणाम स्वरूप पूर्व में बैक फुट पर जा रही भाजपा जो लाल सिंग्नल पर खड़ी थी वह पीले सिंग्नल को पार करते हुई न केवल हरे सिंग्नल पर लगभग पंहुच गई बल्कि मायावती को हरे सिंग्नल से पीछे धकेल कर अब उसे लाल सिंग्नल तक धकियाने का प्रयास कर रही हैं।
बात स्वाति सिंह की भी कर ले। उन्होने मायावती के विरूद्ध वही कार्यवाही करने की मांॅग की हैं जो दयाशंकर के विरूद्ध हुई हैं। मायावती ने संसद में अपने कथन में दयाशंकर द्वारा कहे गये कथनों को दयाशंकर द्वारा स्वयं के परिवार पत्नी, मां व बच्चे के लिये कहा गया कथन निरूपित किया। इससे यह बात तो सिद्ध होती हैं कि दयाशंकर ने बहन जी के लिये इतने खराब शब्दो का उपयोग किया जिसे उनकी पत्नी भी स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। बल्कि उन्हे बहन जी के इस प्रति कथन से बहुत धृणा हो रही हैं। लेकिन स्वाति सिंह ने अपने पति केे इस कथन के लिये, अपने पति की आलोचना भर्त्सना व उनके विरूद्ध आगे आकर कार्यवाही की मांग नहीं की, बल्कि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वे अपने पति का प्रतिनिधित्व करने नहीं आयी हैं और न ही उनका बचाव करने आई हैं। उन्होंने कहा मैं अपनी बेटी व मां के सम्मान की लड़ाई लड़ने आयी हूं। स्वाति सिंह ने यह भी कहा था कि यदि सुरक्षा का आश्वासन मिल जाय तो उनके पति पुलिस के समक्ष प्रस्तुत हो सकते हैं, यानी वे उनके स्थान के संबंध में भलीभाती जानती थी। क्या पत्नि के रूप में उनका यह दायित्व भी नहीं बनता हैं कि वे दयाशंकर को पुलिस के सामने प्रस्तुत करे? यदि बात पति के सम्मान की रक्षा की होती तो भी क्या वे सिर्फ मां व बच्चे के सम्मान की लड़ाई ही लड़ती रह जाती ? क्या वे अपने पति के सम्मान की लड़ाई नहीं लड़ती? यही सुविधा की नीति हैं और देश में सुविधा की राजनीति हैं। इसी कारण उक्त घटना के समस्त पक्ष, घटना को राजनैतिक रंग दे देकर उसका राजनैतिक लाभ लेने हेतु प्रंबध कर 2017 के चुनाव में मुद्दा बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसकी परिणीति अराजनैतिक स्वेता सिंह के उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में उतरने की प्रबल संभावना बनती जा रही हैं।
यह घटना सिद्धान्त ‘‘जैसे को तैसा’’ को बल देने की आशंका का डर पैदा कर रही हैं। मायावती जैसी राष्ट्रीय नेत्री का ‘‘स्वयं की’’ देवी से तुलना करते हुये (’’कार्यकर्ताओं में ऐसी मान्यता हैं ऐसा मायावती ने कहा हैं) बसपा नेताओं व कार्यकताओं द्वारा की गई प्रतिक्रिया को क्रोध में दी गई प्रतिक्रिया कह कर सही ठहराने का प्रयास करना भी कम घातक नहीं हैं। क्या आपने कभी देखा है कि एक महिला (मायावती) के विरूद्ध की गई टिप्पणी व उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप तीन महिलाओं (दयाशंकर की पत्नि, मां व बेटी) के सम्मान को पूरे देश की माताओं व बहनो के सम्मान के साथ जोड़ कर पूरे देश में जो आक्रामक प्रतिक्रिया हो रही हैं। क्या वास्तव में हमारा देश इतना असहिष्णु हैं? यदि हॉं तो ऐसी ही प्रतिक्रिया आतंकवादी, अलगावादियों, नक्सलवादी इत्यादि (जो देश की एकता अखंड़ता व सुरक्षा के लिये खतरा बने हुये हैं) के विरूद्ध पूरे देश के सम्मान व गरिमा के साथ जोड़कर क्यों नहीं होती हैं? क्या यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न नहीं हैं, जिसका जवाब देश की राजनैतिक कार्य प्रणाली में ही अन्तर्निहित हैं।