वर्ष 1947 में अखण्ड भारत के विभाजन के बाद जब स्वतंत्र भारत का उदय हुआ, तत्समय कश्मीरी पण्डित पं. नेहरू की गहन राजनैतिक भूल (समय पूर्व काश्मीर मुद्दे को सयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने) का परिणाम ही हैं कि आज 13297 किलोमीटर में फैला व चार करोड़ जनसंख्या वाला भू भाग नासूर बनकर कश्मीर ‘‘(पीओके)‘‘ के रूप में विद्यमान हैं। ‘‘पीओके‘‘ जो वास्तव में पाकिस्तान द्वारा नि
यंत्रित कश्मीर है, जिसे पाकिस्तान ‘‘आजाद कश्मीर‘‘ कहता हैं, वह यथार्थ में आजाद हैं कहॉ? या यूं कहे कि वह पाकिस्तान शासको की गुलामी में जकड़ा हुआ प्रदेश है। वस्तुतः वहां वास्तविक लोकतंत्र का प्रारम्भ से ही अभाव रहा हैं या यूॅं कहे कि वहां लोकतंात्रिक भावनाओं व गतिविधियों की कल्पना करना ही मिथ्या व हास्यास्पद हो गया है। इसके विपरीत जम्मू और काश्मीर जो भारत का अमिट अंग भाग हैं, में विश्व के सबसे बडे़ लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत के लोकतांत्रिक मूल्यो की एक जैसी छाप हैं जो भारत के अंन्य प्रदेशों में हैं। 1947 से भारत पाकिस्तान के बीच अशांत, अच्छे व बुरे संबंधो के उतार-चढ़ाव का एक मात्र कारण कश्मीर ही रहा है। लेकिन पिछले कुछ समय से खासकर हाल में ही पीओके में जो घटनायें तेजी से घटित हो रही हैं, उन पर गहन विचार किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं।
जम्मू-कश्मीर के बाबत् एक ध्यान देने योग्य जानकारी यह है कि यद्यपि हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था। लेकिन उस समय तक कश्मीर ब्रिटिश उपनिवेश के अंतर्गत नहीं था। बल्कि वह राजाशाही के अधीन था जिसके शासक राजा हरिसिंह थे। स्वाधीनता प्राप्ति की तारीख 15 अगस्त 1947 तक राजा हरिसिंह ने अपने राज्य को भारत में शामिल नहीं किया था। यह राज्य बाद में 26 अक्टूबर 1947 को भारत में शामिल हुआ। इसीलिए जम्मू-काश्मीर में प्रत्येक वर्ष 26 अक्टूबर को राज्यारोहण दिवस मनाया जाता है।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि 21 जुलाई 2016 को पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ व सम्पूर्ण विश्व को यह दिखाने के लिये कि पीओके में लोकतंत्र है, जम्हूरियत हैं, चुनाव कराने का नाटक किया। नाटक इसलिये कह रहा हूंू क्यांेकि वास्तव में वहां जनता से स्वतत्रता पूर्वक नहीं वरण् शासन की इच्छानुसार सैन्य बल के नियत्रण में बल पूर्वक वोट डलवाए। इसीलिय वह चुनाव नहीं नाटक था! उक्त तथाकथित चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएलएन को 41 में 32 सीटे हासिल हुई, जिस पर वहां की पीपीपी, तहरीक ए इंशाफ सहित अन्य समस्त पार्टियों समेत वहां के अवाम ने पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर धांधली के गहरे आरोप लगाये। यह कहा गया कि फर्जी वोट, बाहुबल, मनी पावर और हथियारो के आंतक के साये में वोट डलवाये गये। प्रत्येक उम्मीदवार को पांच करोड़ रूपये, धन वोट खरीदने के लिये दिया गया। चुनाव के समय पूरे क्षेत्र को लगभग सैनिक छावनी बना दिया गया गया। पाक अधिृकत राजधानी मुजफ्फराबाद में तो नवाज शरीफ के खिलाफ इतना विरोध हुआ कि उनका स्वागत न केवल ‘‘खून के बदले खून‘‘ के नारों से हुआ वरण् ‘‘गो-बैक‘‘ के नारे भी लगे। इसने काश्मीर में 1946 में हुए वाकये की याद दिला दी जिसमें पंडित नेहरू एवं उनके साथियों को कोहला पुल पर रोक दिया गया था व प्रदेश में प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। ऐसा नजारा जो अब देखने को मिल रहा है ‘‘पीओके‘‘ में इस से पूर्व कभी नहीं हुआ।
नवाज शरीफ के नेतृत्व में आई.एस.आई. भारत के जम्मूू कश्मीर सहित अन्य प्रदेशों में ही नहीं बल्कि अपने मूल स्थान पाकिस्तान के कई प्रदेशों जैसे बलूचिस्तान व ‘‘पीओके‘‘ इत्यादि में भी बची-खुची तथाकथित लोकशाही को समाप्त कर आंतक व दमन का वातावरण पैदा कर रहा है। इस प्रकार की आंतकवादी कार्यवाही के विरोध में बलूचिस्तान में तो जम्हूरियत इतनी ताकत से खड़ी हो रही हैं कि वहां भी वर्तमान बांग्लादेश (भूतपूर्व पूर्वी पाकिस्तान) जैसी स्थिति पैदा होते जा रही है। आश्चर्य नहीं होगा, यदि निकट भविश्य में बलूचिस्तान भी एक नया देश न बन जाये। यह तो भारत द्वारा पड़ौसी देशों से शांतिपूर्ण संबंध बनाने की वर्तमान भारतीय सरकार की नीति का ही फल है कि अभी तक बलूचिस्तान ‘‘बांग्लादेश‘‘ जैसा अलग देश नहीं बना हैं। बलूचिस्तान में हो रहे नवाज शरीफ के विरूद्ध व्यापक प्रदर्शन का बड़ा प्रभाव ‘‘पीओके‘‘ पर भी पड़ रहा हैं। जहां मानवाधिकार बिल्कुल समाप्त हो चुका हैं किन्तु संयुक्त राष्ट्रसंघ ‘‘पीओके‘‘ और बलूचिस्तान की स्थिति को बिलकुल नजर अंदाज कर रहा हैं।
वास्तव में पिछले वर्ष कश्मीर में आई भयंकर बाढ़ के बाद प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था। इस दौरान मोदी द्वारा जम्मू कश्मीर में भारी राहत एवं पुनर्वास सहायता दी गई थी। यही नहीं उन्होने इससे भी आगे एक कदम बढ़ाते हुए ‘‘पीओके‘‘ में भी सहायता की पेशकश अपने पाकिस्तान समकक्ष नवाज शरीफ को दी थी। इसका इतना ज्यादा अनूकूल प्रभाव ‘‘पीओके‘‘ जनमानस पर पड़ा जिसका प्रतिफल हमको आज देखने को मिल रहा है। ‘‘पीओेके’’ वाले कश्मीरी जनमानस के हृदय में पाकिस्तान की अपेक्षा भारत की व्यवस्था अनुकुल महसूस की जा रही हैं। इसीलिए आज वहां का जनमानस पाकिस्तान से अलग होकर भारत में शामिल होने की मॉंग कर रहा है। वास्तव में यह पाकिस्तान व विशेषकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिये विशेष रूप से शर्मनाक एवं आत्म मंथन का विषय हैं चूंकि पीओके में नवाज शरीफ की सत्ता के अस्तित्व को वहां की राजनैतिक पार्टियों के साथ ही जम्हूरियत ने ललकारा हैं।
उक्त स्थिति इस बात को भी सिद्ध करती हैं कि ‘‘पीओके‘‘ का ‘‘डी.एन.ए.‘‘ पाकिस्तान से बिलकुल नहीं मिलता हैं। देर-सबेर वह भारत (जहां प्राकृतिक एवं सामाजिक रूप से अनुकुल स्थिति हैं) का ही अंग हो जायेगा या अधिकतम पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश बन जायेगा। लेकिन ‘‘पीओके‘‘ अब अधिक समय तक पाकिस्तान का भाग बना रह सकेगा, इसमें निश्चित ही संदेह हैं!
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