‘‘हंगामा हो गया’’ बॉलिवुड फिल्म ‘‘क्वीन’’ का एक प्रसिद्ध गाना है, जो आज विमु्द्रीकरण से उत्पन्न परिस्थिति को देखते हुए एकदम होठो पर आ जाता है। ‘‘हंगामा’’ सिर्फ दर्शकदीर्घा में ही नहीं है, बल्कि जो ’’फिल्म’’ दिखा रहे हैं उनके ‘‘बीच’’ भी है। हंगामा देश के हर क्षेत्र में ही नहीं अपितु नागरिक जीवन के हर क्षेत्र में भी मचा हुआ है। इस अचानक उत्पन्न हुए हंगामें को भड़काने की कोई बात नहीं कह रहा है, सब उसको समयरूपी पानी डालकर ठंडा करने का प्रयास कर रहे है। लेकिन ‘‘हंगामा’’ है कि, ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
आठ नवम्बर को अचानक पूरे देश में केंद्रीय सरकार के वित्त विभाग की अधिसूचना क्रं. 3407 ई द्वारा रू. 500 और 1000 के नोट का विमुद्रीकरण (डिमोनीटाईजेशन) कर दिया गया। अचानक हुई इस कार्यवाही से देश में चारो तरफ उत्पन्न हंगामें से हाहाकार मच गया। यह पहला मौका नहीं है जब देश में प्रचलित कुछ मुद्रा का विमुद्रीकरण (डिमानीटाईजेश्न) किया गया हो। इसके पूर्व भी वर्ष 1978 में मोरारजी भाई ने 5000 और 10000 के नोटों का डिमोनीटाईजेशन किया था। यदि उस समय के 10000 की कीमत आज मापी जाये तो मूल्य सूचकांक के अनुसार वह इस समय 10 गुना से कम नहीं होगी। इस प्रकार इतने हाई डिनामिनेशन के नोट के बंद होने पर भी ऐसा हंगामा नहीं बरपा था जो आज बरप रहा है। परिस्थितियों में मात्र अंतर इतना हैं कि उस समय मुद्रा (करेंसी) को तुरंत बंद नहीं किया गया था। तब कुछ महीनो का समय दिया जाकर एक निश्चित भावी तारीख से मुद्रा को चलने से बंद किया गया था। जबकि आज इसे तुरंत (इंस्टेंट) मात्र 4 घंटे का समय देकर रात्री 12 बजे से बंद कर दिया गया। आज हर चीज व्यक्ति इंस्टेंट (तुरंत़) चाहता है। फिर चाहे वह इंस्टेंट कॉफी हो या इंस्टेंट कॉफी का भुगतान करने के लिए ‘कार्ड’ के द्वारा इंस्टेंट भुगतान। एक और महत्वपूर्ण अंतर वर्ष 1978 और आज की गई कार्यवाही में हैं, वह यह है कि उस समय 5 और 10 हजार रूपये के नोट के बदले कोई नये अंक के नोट की श्रृंखला (सिरीज) जारी नहीं की गई थी और न ही प्रचलित नोटों की श्रंृखला बंद कर कोई नई सिरीज जारी की गई थी। आज न केवल रू 2000 के नये अंक के नोट की श्रृंखला जारी की गई, बल्कि बंद किये गये 500 के नोट की भी नई सीरीज जारी की गई। 2000 के नोट जारी करने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक ने 3 कारणों में से जो एक प्रमुख कारण बतलाया हैं वह उच्च मूल्य के बैंक नोटो का उपयोग गणना में न लिए गये धन के भंडारण के लिए होना है। इसका मतलब उसका उपयोग काला धन (ब्लेक मनी) केे संधारण के लिये होता हैं। तब एक साथ ही (सायमलटेनीईसली) पांच सौ के नोट बंद कर दो हजार के मूल्य के नोट जारी करने का औचित्य क्या रह जाता है। यह न केवल समझ से परे है बल्कि यह उक्त नोटो को बंद किये जाने के उद्धेश्यों को ही निष्फल कर देता है। यदि बात जाली नोटों के कारण की है तब भी सरकार पॉच सौ और हजार के नये श्रृंखला (सीरीज) के नोटो को छापकर उन्हे चलन में लाकर पुराने सीरिज को बंद कर सकती थी जिससे इस तरह का हंगामा तो खड़ा नहीं होता! और सरकार का उद्वेश्य भी पूरा हो जाता।
अब सरकार के इस महत्वपूर्ण उद्वेश्य को देश के हम नागरिक ही पलिता लगा रहे है, नये-नये रास्ते खोजे जा रहे है। सरकार को चूना लगाकर कालेधन को सफेद धन में बदल सकने के प्रयास यथा संभव किये जा रहे है। कोई कोई तो लम्बी दूरी के लिए रेलवे टिकिट की बुकिंग करा रहा हैं। (यदि सम्भव होता तो अन्टार्कटिका महाद्वीप की टिकिट भी बुक करा लेते।) रोजगार के नये अवसर खुल गये है। रूपये बदलवाने की लाईन में लगने हेतु 500 रूपये दिहाड़ी पर नये रोजगार का तबका पैदा हो रहा है। जिनने सोने-चॉदी के जेवर कभी नहीं पहने थे वे भी घर में संदूक में रखने के लिए रातभर सर्राफा बाजार में आकर भीड़ बढ़ा कर रास्ता जाम कर रहे है। इस कार्यवाही से सरकार सरकारी और गैर सरकारी व्यक्तिगत उधारी लेने वालो पर इतनी मेहरबान लगती है कि बगैर सरकार के नोटिस दिये और बिना पक्षकार के बुलावे ऋणि व्यक्ति फोन करके ऋण चुकाने की गुहार कर रहा है। उधार देने वाला मजे में है क्योंकि उसकी वसूली हो रही है और देने वाला भी क्योंकि उसके पास से जा रहे जो मात्र कागज के टुकड़े रह गये हैं का कुछ मोल बन पा रहा है।
लेकिन इन सब से जनता के मन में भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचारियों के प्रति कोई घृणा का भाव आया हो ऐसा नहीं लगता। हाल ही में हमारे ही प्रदेश में व्यापम के नाम से बदनाम संस्था के कर्मचारी नये कलफ लगे हुए कड़क दो हजार के नोट से रिश्वत लेते हुए पकड़े गये। यदि कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, कालाधन समाप्त करना है तो इन सब कार्यवाहियों में संलिप्त नागरिको को कड़क नैतिकता का मूल पाठ पढ़ाने के लिये क्लास में लगातार बैठाये जाने की आवश्यकता है। लेकिन प्रश्न फिर यही पैदा होता है कि इन नैतिक गुणों को पढ़ाने वाले इतने नैतिक शिक्षक कहॉं से लायेंगे? पुराना जमाना था जब सौ-सौ विद्यार्थियों पर एक-एक शिक्षक हुआ करता था। आज के वर्तमान युग में गुणात्मक शिक्षा के लिए हर 25-30 बच्चे पर एक शिक्षक होता है। यदि पुराने अनुपात को ही ले लंे तो भी क्या हमारे पास उतने शिक्षार्थी नैतिक मूल्य पढा सकने योग्य है? प्रश्न के उत्तर की आवश्यकता नहीं हैं क्यांेकि कई बार प्रश्न में ही उत्तर रहता है इसीलिए उसे प्रश्नोत्तर भी कहा जाता है।
यदि हम यह तथ्य स्वीकार करते है कि हमारे देश में नैतिकता की कमी है जो वास्तविकत्ता भी हैं तो फिर एक और रास्ता काले धन को बैंक में लाने का हैं। वो यह है कि केन्द्रीय सरकार अघोषित सम्पत्ति को घोषित करने का एक और मौका देे और व्यक्ति को बैंक में असीमित राशी जमा करने की स्वीकृति/अनुमति देवे तथा उस असीमित राशी पर अधिकतम 30 से 50 प्रतिशत की दर से जो भी सरकार तय करे और उस जमा राशी पर आयकर लेकर उसके द्वारा जमा की गई राशी को नियमित मानकर उसके स्रोत बाबत् जमा करने वाले व्यक्ति से किसी भी प्रकार की कोई पूछताछ नहीं करे। इससे निश्चित ही सभी प्रकार का कालाधन सरकार की नजर में आ जायेगा तथा वह बैक के माध्यम से टैक्स समायोजित कर लेने के उपरान्त देकर सफेद धन बनकर चलन में आ सकेगा और इस तरह इसके कारण होने वाले हंगामा से भी निजात मिल सकेगी।
अंत में इस हंगामा के बीच एक और भी महत्वपूर्ण बात संज्ञान में आई कि उक्त कार्यवाही के बाद लगभग विगत 10 दिवस में न केवल पड़ोसी देश द्वारा की जाने वाली सीमा के उल्लघंन और आतंकवादी घटनाओं व नक्सलवादी घटनाओं में बहुत तेजी से कमी आयी हैं, बल्कि देश के भीतर भी अपराध की घटनाओं में कमी अंकित की गई हैं जैसा कि गृहमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया हैं।
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