भारतीय जनता पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव के समय कालाधन को समाप्त करने व उसको वापस लाने का चुनावी वादा किया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने सता सीन होने के बाद अभी तक कालेधन की समाप्ति की दिशा में लगातर कई कदम उठाये हैैं। इसी कड़ी में 1000 व 500 की मुद्रा का विमुद्रीकरण का निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता हैं। इसके पूर्व बेनामी ट्रान्जेक्शन अधिनियम में संशोधन करके बेनामी सम्पत्ति, पर रोक लगाई गई। कालेधन अघोषित विदेशी आय व सम्पत्ति एक्ट 1 जुलाई 2015 से 30.सितम्बर 2015 के बीच जारी हुई जिसमें 4164 करोड़ कालाधन बाहर आया व 2425 करोड़ रू टैक्स वसूला गया। ‘‘आई.डी.एस’’ 1 जून 2016 से 30 सितम्बर 2016 के बीच जारी की गई जिसके अंतर्गत लगभग 65 हजार दो सौ पचास करोड़ की कालेधन की राशी घोषित की गई, जिस पर टैक्स के रूप में सरकार ने रू 30000 करोड़ वसूली की। विमुद्रीकरण के बाद लगभग 21 दिन व्यतीत होने के बावजूद आम जनता और छोटे व्यापारी का व्यवसाय अभी तक सामान्य हो पाया हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता हैं। आगे कितना समय और लगेगा यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता हैं। मुझे लगता है कि विमुद्रीकरण से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिये जिस तरह की तैयारी और आकडा़ेे की गणना/संगणना का आकलन सरकार को करना चाहिए था उसमें सरकारी ‘तंत्र’ बुरी तरह असफल सिद्ध हुआ हैं। प्रथम बार वर्ष 1978 में जब रू.10000 व 5000 की मुद्रा का विमुद्रीकरण किया गया था तब वह कुल प्रचलित मुद्रा का मात्र 5 प्रतिशत से भी कम था। इसलिये आम आदमी को उस समय कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ी। क्योकि उक्त विमुद्रीकरण मुद्रा तत्समय उसकी पहुंच सीमा व चलन के बाहर थी। इसके विपरीत हाल में विमुिद्रत दो मुद्राएॅं (500 व 1000 के नोट) का सम्मिलित हिस्सा सम्पूर्ण प्रचलित मुद्रा का 85 प्रतिशत से अधिक हैं। इसलिये आम आदमी को परेशानी झेलनी पड़ रही हैं। भारतीय रिर्जव बैंक विमुिद्रत मुद्रा का 15 प्रतिशत से अधिक भाग भी नये नोटो के रूप में बाजार में नहीं ला पाये, जो परेशानी का मुख्य कारण बन रहा हैं। अभी तक एक अनुमान के अनुसार पन्द्रह लाख करोड़ विमुद्रिकरण मुद्रा के विरूद्ध अभी तक मात्र 1.75 लाख करोड़ नई मुद्रा ही जारी हो पाई हैं। सरकार के पास कालेधन को सफलतापूर्वक बाहर निकालने के तीन विकल्प थे। एक सरकार10000 के नये नोट (डिमोनीेशन) का प्रचलन करती और 6 माह या साल भर के बाद उसका विमुद्रीकरण कर देती। इस तरह निश्चित रूप से कालाधन संग्रह करने वाले सक्षम वर्ग 10000 के नये नोटों में अपने काले धन को संग्रहित करते व इसके लिये अपने 500 व 1000 के नोटो को 10000 के नोटो में बदल लेते और तब पुनः विमुद्रीकरण के बाद एक दम से कालाधन बाहर आ जाता और आम जनता को परेशानी भी नहीं होती। आज 500 के नोट आम जनता की पहंुच से बाहर नहीं हैं इसलिये दूसरा विकल्प यह था कि 500 व 1000 के नोटो की नई सीरिज को छपवाकर भरपूर संग्रह किया जाता और उन्हें बैंको के माध्यम से बाजार में उपलब्ध कराते। त्पश्चात् पूरी पुरानी सीरिज वाले 500 के नोटो का विमुद्रीकरण करते तो पूरे देश में एक लाख से अधिक एटीएम कार्यरत रहते जिससे परेशानी कम होती। तीसरा विकल्प सरकार 50 व 100 के नोटों की आपूर्ति बढाकर भी बैंको के माध्यम से जनता के बीच चलन करने का प्रयास करती तो भी आम जनता की परेशानी कम होती।
तु डाल-डाल मैं पात-पात की तर्ज पर सरकार जब भी नये नये उपाय अपनाकर कालेधन पर नियत्रंण कर जनता की परेशानीयों को झेलने वाले आम गरीब वर्ग को कोई सुविधा प्रदान करती हैं तो दूसरा धनाढय वर्ग इन परेशानी झेलने वाले वर्ग का दुरूपयोग अपने हित में मोड़ कर शासन की सुधारवादी मंशा व कार्यवाही को चूना लगा देता हैं। इससे सरकार भी कई बार हिचक जाती हैं व अपना विकास वादी कदम पीछे लेने को बाध्य हो जाती हैं। एक उदाहरण ले। शादी के लिये 2.50 लाख (ढाई लाख) बैंक से एकमुश्त निकालने पर 9 सूत्रीय गाइड़ लाईन (संशोधन संहित) भारतीय रिर्जव बैंक द्वारा जारी की गई परिपत्र के कारण पैसा निकालने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। इसके लिये यदि मात्र एक शर्त लगायी जाती कि जिस व्यक्ति के घर में शादी हैं वह शादी के कार्ड़ के साथ एक शपथ पत्र भी देता कि शादी के पंजीयन को कलेक्टर द्वारा जारी शादी के पंजीयन का प्रमाण पत्र चार या छः महीने के भीतर प्रस्तुत करेगा। ऐसा नहीं करने पर या झूटे शपथ पत्र देने के आरोप में उस पर अभियोजन की धारा 199 भारतीय दंड़ संहिता के अंतर्गत अभियोजन चलाया जा सकेगा, तो कोई भी व्यक्ति शादी के लिये एकमुश्त पैसा निकालने के लिये दी गई छूट का दुरूपयोग करने की हिम्मत नहीं करता और साथ ही आम व्यक्ति को भी कोई पेरशानी नहीं होती। .
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