रविवार, 2 अप्रैल 2017

उच्चतम् न्यायालय के ‘‘निर्णय की मूल भावना’’ का ऑटो कम्पनियों द्वारा घोर उल्लघंन!



     
उच्चतम् न्यायालय ने विगत दिवस 29 मार्च को दिये गये अपने आदेश के द्वारा बीएस-3 (भारत स्टेज- 3 उत्सर्जन मानक) जिसकी शुरूआत केन्द्रीय सरकार ने वर्ष 2000 में की थी, वाले वाहनों के विक्रय व रजिस्ट्रेशन पर 1 अप्रैल 2017 से रोक लगा दी हैं। केन्द्रीय सरकार ने वर्ष 2014 में इस संबंध में एक अधिसूचना भी जारी की थी कि जिसके द्वारा बीएस-3 वाहनों के विक्रय पर 1 अप्रैल 2017 से रोक लगाने के निर्देश भी किये गये थे। इन वाहनों के बेचने पर लगी इस रोक को आटोमोबाईल उत्पादको (सियाम) के साथ कुछ अन्य डीलरो द्वारा उच्चतम् न्यायालय के समक्ष लम्बित याचिका में एक अंतरिम आवेदन दायर की गई थी जिसमें याचिका कर्ताओं द्वारा यह दलील व प्रार्थना की गई कि, इस समय देश में लगभग 8 लाख 24 हजार बीएस-3 वाहन हैं, जिनकी कीमत करीब 12 हजार करोड की हैं़। उनका यह स्टॉक फैक्ट्री से लेकर शोरूम तक में हैं, जिसे 01 अप्रैल 2017 से उक्त वाहनो को बेचने पर लगी रोक को 7-8 महीने के लिये आगे बढा दिया जावे अन्यथा 12 हजार करोड़ का नुकसान होगा। इसेे उच्चतम् न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।  तू डाल-डाल मैं पात-पात के तर्ज पर पूरे देश में ऑटोमोबाईल डीलर्स ने उनके पास बीएस-3 वाहनों का जो स्टॉेक था, उसको कीमत में भारी डिस्काउंट देकर लगभग पूरा स्टाक एक दिन में ही बेच दिया। इस प्रकार देशव्यापी आटोमोबाईल डीलर्स (सियाम) ने उच्चतम् न्यायालय के निर्णय को धत्ता बताते हुये निर्णय के प्रभावी रूप से क्रियान्वयन होने के पूर्व ही उसे प्रभावी रूप से अप्रभावी कर दिया हैं। इस प्रकार उक्त समस्त बीएस-3 वाहनो को विक्रय करके तथा स्टाक 31 मार्च के पूर्व ही समाप्त कर सरकार व उच्चतम् न्यायालय द्वारा सामने लाये गये मुद्दे को लगभग दफन ही कर दिया गया। उच्चतम् न्यायालय ने निर्माताओं के वाणिज्यिक हित की तुलना में देश के नागरिको के स्वास्थ को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हुये व तरहीज देते हुये ‘‘सियाम’’ के बीएस-3 वाहन 1 अप्रैल के बाद बेचने के लिये अनुमति देने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। अतः क्या यह उच्चतम् न्यायालय के बंधनकारी निर्णय की अवमानना नहीं हैं? उनके आदेश की व्यवहारिक रूप से अवहेलना नहीं हैं तो क्या हैं? यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। 
इस घटना से यह तथ्य भी सामने आता हैं कि चूंकि उच्चतम् न्यायालय ने अपने आदेश के पालन की तिथि 1 अप्रैल 2017 से निधारित की हैं इस लिए 30 व 31 मार्च को किये गये वाहनों का विक्रय व तकनीकि रूप से कानूनन सही होने के कारण न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में नहीं आता हैं। लेकिन जो न्यायिक सिंद्धान्त उक्त आदेश में उच्चतम् न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित किया गया, उसका यथार्थ मन्तव्य यह हैं कि बीएस-3 वाहन जिनके कारण पर्यावरण में प्रदूषण फैलता हैं, जिस बढते प्रदूषण के कारण एनजीटी व इपीसीए ने उनके चलन पर रोक लगाई थी।   बल्कि उनका परिचालन पर्यावरण में प्रदूषण बढाने का कारक भी होगा जिसे रोकने के लिये ही यह निर्णय लिया गया था।  
न्याय का यह सिंद्धान्त स्वयं उच्चतम् न्यायालय ने प्रतिपादित किया हैं कि न्याय न केवल  मिलना चाहिए, बल्कि न्याय मिल रहा हैं, ऐसा दिखना भी चाहिए। ठीक इसी प्रकार एक नागरिक या उपभोक्ता का भी यह दायित्व हैं कि वह न केवल कानून व उच्चतम् न्यायालय के बंधनकारी निर्णय का पालन करे, बल्कि वह कानून, आदेश का पालन कर रहा हैं यह दिखता हुआ भी प्रतीत होना चाहिए। उपरोक्त प्रकरण में इस भावना का सम्मपूर्ण रूप से क्षरण होकर उपभोक्ता व सेवा प्रदाता दोनो पक्षकारांे द्वारा निश्चित रूप से अंतिम सीमा तक उल्लंघन किया गया हैं। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि दोनो पक्ष के पास 31 मार्च तक विक्रय-क्रय की समय सीमा थी जिसके अंदर ही उन्होने विक्रय-क्रय किया। यदि यह बात कानून के साथ तथ्यात्मक रूप से सही होती तो वे उच्चतम् न्यायालय के समक्ष क्यो याचिकाकर्ता बनते ?
यह कहना कोई अतिश्यिोक्ति नहीं होगी कि हम भारतीयों का एक विशेष गुण यह भी हैं, कि जब भी कोई कानून विधायिका के द्वारा बनाया जाता हैं या न्यायालय के द्वारा लागू कराया जाता हैं तब हम उसमें ‘‘छिद्र’’ खोज लेते हैं। बल्कि कानून बनने के पहले ही छिद्र खोज लेते हैं यह कहना भी अतिशेयक्ति नहीं होगी। तू डाल-डाल मैं पात-पात वाला यह मुहावरा विश्व के अन्य देशों की तुलना में हम सब भारतीयों पर ही सबसे ज्यादा लागू होता हैं।
एक भारतीय नागरिक होने के नाते प्रत्येक नागरिक व्यक्ति का यह कर्तव्य हैं कि वह कानून का पूर्ण निष्ठा व श्रद्धा पूर्ण भावना के साथ पालन करंे। इस मामले में सिर्फ आटोमोबाईल कम्पनिया ही देाषी नहीं हैं बल्कि वे समस्त नागरिक (जनता) भी हैं, जिन्होने उक्त वाहनों की खरीदी की हैं। सर्व विदित हैं कि चोरी के मामले मंे चुराई गई वस्तुओं को जो खरीदता हैं, वह भी एक अपराधी होता हैं। अमूूमन वस्तु के वास्तविक कीमत से काफी सस्ती होने के कारण ही वह चोरी की वस्तुओं को खरीदता हैं। ठीक इसी प्रकार आटोमोबाईल डीलर के द्वारा दिये गये भारी डिस्काउट के चलते ही वे सभी नागरिक भी जिन्होंने उक्त गाडीयों की खरीदी की हैं, चोरी के माल को खरीदने वाले नागरिकों के समान क्या अपराधी नहीं हैं? चंूकि उक्त माल को बेचने का प्रतिबंध 1 अप्रैल 2017 से लागू करने का आदेश दिया गया था जिसको यर्थार्थ में शून्य कर दिया गया। इस तरह तकनीकि रूप से वे अपना बचाव अवश्य कर सकते हैं। लेकिन एक नागरिक के नागरिक अधिकारेा के समान ही नागरिक कर्त्तव्य भी होते हैं। अतः अपने नागरिक कर्त्तव्यों का पालन न करने के कारण वे भी उतने ही दोषी हैं।
इस पूरे प्रकरण में सरकार भी सुस्त रही व सोती रही। सरकार की ऑंख के ठीक नीचे खुले आम सरकार की नीति को पलीता लगा दिया गया और सरकार उसको रोकने के लिये कोई हरकत में नहीं आई। याद कीजिये नोटबंदी की रात्री जब रात भर 500-1000 नोटों को बदलवाने के लिये सराफा बाजार खुले रहे, तो सरकार ने त्वरित हरकत में आकर तुरन्त आयकर के छापे की कार्यवाही की थी। यदि यहां भी सरकार तुरंत जाग जाती व शोरूमों को सील कर दिया जाता तो भले ही वह उस क्षण अवैधानिक होता, लेकिन पर्यावरण को नुकसान होने से बच जाता जिस लक्ष्य साधन के लिये सरकार ने यह नीति बनाई हैं। 
तथाकथित उपरोक्त कानूनी विक्रय-क्रय को आप इस तरह से भी समझ सकते हैं। संसद को संविधान में संशोधन करने का पूर्ण अधिकार हैं। इस तरह अभी तक संविधान में 100 से अधिक संशोधन भी हमारे मूल संविधान में हो चुके हैं। लेकिन केशवानंद भारतीय के मामले में उच्चतम् न्यायालय ने यह निर्णय दिया हैं कि ऐसा कोई भी संशोधन संसद नहीं कर सकती हैं जो संविधान की मूल भावना के विपरीत हो। ठीेक इसी प्रकार बीएस-3 वाहनो का कानूनी विक्रय का अधिकार होने के बावजूद 30 व 31 मार्च 2017 को किये गये विक्रय से उच्चतम् न्यायालय के आदेश की उसी मूल अवधारणा को खोखला करते हुये धक्का पंहुचा हैं, इसलिये मेरे मत में वह अवैध हैं व उच्चतम् न्यायालय .को स्व प्रेरणा से उक्त विक्रयों का संज्ञान लेकर शीघ्रातिशीघ्र न्यायिक आदेश पारित करना चाहिए। 
जब पाचं वर्ष के लिये चुनी गई सरकार आम चुनाव में हार जाती हैं, तो आई नई सरकार  पिछली सरकार के द्वारा (कुछ दिवस, हफ्ते या महीने पहले) लिये गये निर्णेयों को जो कि संविधान व कानून द्वारा प्रदत्त अधिकार के अतंर्गत ही लिये गये थे, की समीक्षा करके उन्हे पलट देती हैं। तब ऐसी ही भावना के तहत क्या सरकार इन बेचे गये बीएस-3 वाहनो के विक्रय की समीक्षा कर कोई ऐसा कानून बनायेगी जिससे 30 व 31 मार्च 2017 को विक्रय किये गये सभी वाहन परिचालन में सड़क पर नहीं आ सकें, ताकि ऐसी कार्यवाही से हतोत्साहित हो कानून की अवहेलना, मजाक बनाने का उल्लघंन करने वाले लोग जन सुरक्षा एवं कानून के यर्थाथ पालनार्थ सरकार कितनी उद्घृत हैं यह भविष्य के गर्भ मेें ही हैं। (शाहबानांे प्रकरण में तो सरकार ने उच्चतम् न्यायालय के निर्णय को ही संसद द्वारा ‘‘जनहित’’ के नाम पर पलट दिया था।)

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