"क्या भाजपा नेतृत्व को रामनाथ कोविंद की घोषणा करते हुए दलित कार्ड खेलने के बजाय यह कथन एवं दावा करना चाहिए था कि उसने एक सरल, प्रखर बुद्धिजीवी, वकील, गहन सवैंधानिक व राजनैतिक अनुभव रखने वाले एवं संयुक्त राष्ट्र संघ में उच्च पद पर काम करने के अनुभवी बेदाग छवि के व्यक्ति को सर्वोच्य पद के लिये उतारा हैं?"
"देश में विपक्ष (यूपीए) का रवैया ऐसा कैसे हो सकता है कि जैसे उन्होंने मान लिया हो की सत्तापक्ष के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का चुनाव जीतना तय हैं? "
"क्या वास्तव में मोदी के आने के बाद से देश में लम्बे समय से सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के दिमाग का दिवालियापन हो गया हैं? "
"क्या मोदी वास्तव में ‘‘कांग्रेस विहीन भारत’’ से भी एक कदम आगे ‘‘विपक्ष विहीन भारत’’ की ओर बढ़ चुके हैं?"
भाजपा ने चतुर पहल करते हुये बिहार के गर्वनर रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के लिये घोषित करके राजनैतिक श्रेष्ठता के साथ बढ़त प्राप्त कर एक बड़ी सफलता हासिल की हैं। विपक्ष को तो मानो सांॅंप ही सूंघ गया हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उनकी उम्मीदवारी की घोषणा करते समय यह कहां ’’रामनाथ कोविंद दलित समाज से उठकर आये हैं और उन्होंने दलितो के उत्थान के लिए बहुत काम किया हैं वे पेशे से एक वकील हैं उन्हे संविधान का अच्छा ज्ञान भी हैं इसलिए वे एक अच्छे राष्ट्रपति साबित होंगे और आगे भी मानवता के कल्याण के लिए काम करते रहेंगे।’’ भाजपा के पास जातिवादी राजनीति पर चोट करने का यह एक अति सुंदर मौका था। यदि भाजपा नेतृत्व इस समय थोडी बहुत सूझ बूझ से काम लेता तो मतदाता के सामने अधिकृत रूप से रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा करते समय उन्हे ‘‘दलित’’ के रूप में पेश न करके योग्यता (जो उनके पास भरपूर मौजूद हैं) के आधार पर उनके नाम को पेश करते तब भाजपा एक और राजनैतिक धमाके की अधिकारी भी बन जाती। तब भी क्या उनका स्पष्ट दिखने वाला यह ‘‘दलित कार्ड़’’ एक अघोषित मेसेज नहीं देता? ऐसा करके भाजपा कम से कम अपने आप को जातिवादी राजनीति के आरोपो से तो अलग कर लेती, जिसकी वह शुरू से ही घोर विरोधी रही हैं। विपक्ष ने भी विरोध में दूसरा उम्मीदवार ‘‘एक दलित’’ नेत्री मीरा कुमार को उतारा।
भाजपा नेतृत्व को रामनाथ कोविंद की घोषणा करते समय यह कथन एवं दावा करना चाहिए था कि उसने एक सरल, प्रखर बुद्धिजीवी, वकील, गहन सवैंधानिक व राजनैतिक अनुभव रखने वाले एवं संयुक्त राष्ट्र संघ में उच्च पद पर काम करने के अनुभवी बेदाग छवि के व्यक्ति को सर्वोच्य पद के लिये उतारा हैं। रामनाथ कोविंद जिस राज्य के राज्यपाल थे उसके मुख्यमंत्री ने भी उनकी इन्ही योग्यताओं को सराहा एवं स्वीकारा हैं। जबकि देश के अन्य प्रांतो में जहॉं विपक्ष की सरकारे हैं तथा जहॉ के राज्यपाल सत्ताधारी सरकार द्वारा नियुक्त किये गये एवं अन्य दल से संबंधित रहे हैं, वहॉं अकसर आपस में टकराव की स्थिति ही निर्मित होती रही हैं।
ऐसा व्यक्ति जो कि भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के साथ-साथ पार्टी के अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय मोर्चे का अध्यक्ष रहा हो, यदि उनके नाम की उपरोक्त योग्यताओं के आधार पर राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी की घोषणा की जाती तो निश्चित रूप से भाजपा को दलित कार्ड़ फेके बिना भी स्वयं दलित वर्ग का फायदा मिल जाता व विपक्षी दलों को आरोप लगाने का मौका भी नहीं मिलता। ऐसे व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति मात्र दलित होने के कारण नहीं वरण अपनी योग्यता के आधार पर चुने जाते। लेकिन आज की छुद्र राजनीति में शायद ऐसी गंभीर सोच लुप्त हो गई हैं।
ऐसा लगता हैं कि भाजपा की इस घोषणा पर विपक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार उतार कर मानो वाकओवर ही दे दिया हैं। यूपीए ने उम्मीदवार की घोषणा अवश्य की हैं लेकिन ऐसा लगता हैं कि वह एनडीए के उम्मीदवार की जीत के प्रति (निराशा के कारण) इतने ज्यादा आश्वस्त हैं कि वेे होश खोकर विरोध के जोे वास्तविक मुद्दे उनके पास हैं उनको भी वे उठाना तक भूल गये हैं। इस सुनिश्चित जीत की प्रत्याशा में पूरे देश के मीड़िया से लेकर बुद्धिजीवी वर्ग का ध्यान भी एक बड़ी भूल की ओर नहीं गया। एनडीए के उम्मीदवार श्री रामनाथ कोविंद राज्यपाल के पद पर थे जिन्हे प्रोटोकाल के तहत सुरक्षा प्राप्त थी। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा होने के साथ ही रामनाथ कोविंद को बिना मांगे केन्द्रीय सरकार द्वारा जेड़ प्लस सुरक्षा प्रदान की गई। हो सकता हैं कि राज्यपाल पद से इस्तीफा देने व स्वीकार होने के बाद उनकी पूर्ववर्ती सुरक्षा हटा ली गई हो। लेकिन जब यूपीए ने मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तब से अभी तक भी उन्हे रामनाथ कोविंद के सम्यक श्रेणी की सुरक्षा प्रदान नहीं की गई हैं। यदि रामनाथ कोविंद गर्वनर रह चुके थे, तो मीरा कुमार भी स्पीकर व केन्द्रीय मंत्री रह चुकी हैं। चूॅंकि वे देश के तीन सबसे उच्च पद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व उसके बाद तीसरा बड़ा पद लोकसभा के स्पीकर के पद में से एक स्पीकर पद पर रही हैं, अतः उन्हे भी वही सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए थी। देश के संविधान में सभी उम्मीदवारों को बराबर का हक व अधिकार हैं। दोनो व्यक्ति फिलहाल दोे विरोधी गठबंधन एनडीए व यूपीए के घोषित उम्मीदवार हैं जिनके फार्म की तकनीकी जांच (स्क्रुटिनी) भी अभी नहीं हुई हैं। (अर्थात् फार्म निरस्त भी हो सकता हैं) चुनाव परिणाम की घोषणा आज नहीं की जा सकती हैं? न ही तकनीकि रूप से (जीत की) कल्पना ही की जा सकती हैं। देश का इतिहास आश्चर्यजनक चुनाव परिणामों से भरा पड़ा हैं। चुनावो में इंदिरा गांधी से लेकर अटलजी सहित अनेक नामी ज्ञानी व्यक्ति भी संभावनाओं के विपरीत हार चुके हैं। लेकिन सबसे खराब हालत तो वर्तमान समय में यूपीए की हैं जिसने यह मान लिया हैं कि रामनाथ कोविंद का चुनाव जीतना तो तय ही हैं। इसीलिए न तो उसने रामनाथ कोविंद को जेड़ प्लस सुरक्षा देने का विरोध ही किया और न ही अपने उम्मीदवार मीरा कुमार के लिये कोविंद समतुल्य सुरक्षा की मांग ही की।
इस अवसर पर मैं नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह की जोड़ी को बधाई देना चाहता हैूंॅ जिन्होने एक नेक, सामान्य व सरल स्वभाव वाले, उपयुक्त, योग्य एवं बेदाग व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने का अवसर देकर दलित वर्ग में अपनी पैठ को और मजबूत कर लिया हैं। राजनीतिक दृष्टि से कई निशाने एक साथ मारने में माहिर मोदी अपने इस कदम में पूर्णतः सफल रहे हैं। इसलिये अब यूपीए को राष्ट्रपति चुनाव को सैद्धांतिक आवरण देने में भी मुश्किल हो रही हैं। यूपीए का यह आरोप हैं कि सर्वसम्मति के प्रयास किये जाने के दौरान भाजपा द्वारा उम्मीदवार का कोई नाम प्रस्तावित नहीं किया गया, अतः भाजपा किस बात पर सर्वसम्मति का प्रयास कर रही थी? वास्तव में यह उनकी अक्ल के खोखलेपन व सोच के दिवालियापन को ही दर्शाता हैं। यह वास्तविकता हैं व राजनीति का सिंद्धात भी यही हैं कि सत्ताधारी पार्टी जिसके पास बहुमत होता हैं वह अपनी मरजी/इच्छा के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाती हैं व सही सोच रखने वाली पार्टियॉं उस पर सर्वानुमति बनाने का प्रयास करती हैं। अभी तक कंाग्रेस जो करती आ रही थी भाजपा ने भी वही किया हैं। कांग्रेस ने पूर्व में राष्ट्रपति के चुनाव में शायद ही कभी सर्वानुमति के प्रयास किये हांे। यदि कंाग्रेस का आरोप सही हैं तो कंाग्रेस ने भी उम्मीदवारी पर संशय क्यों बनाए रखा? उसने भी तो भाजपा से चर्चा के दौरान अपनी ओर से कोई उम्मीदवार या उम्मीदवारों का पेनल पेश करके भाजपा को सीमा में बॉंधने का प्रयास नहीं किया? वास्तव में मोदी के आने के बाद से देश में लम्बे समय से सत्ता पर काबिज रही कंाग्रेस के दिमाग का दिवालियापन हो गया हैं। इसलिये उसे कुछ समझ मेें ही नहीं आ रहा हैं कि वह मोदी के कदमो का राजनैतिक जवाब कैसे दे। यूॅं भी मोदी ‘‘कांग्रेस विहीन भारत’’ से भी एक कदम आगे ‘‘विपक्ष विहीन भारत’’ की ओर बढ़ चुके हैं।