बहुप्रतीक्षित ‘‘मेसंजर ऑफ गाड’’ ‘‘बाबा’’ स्वयंभू ‘‘संत’’ ‘‘गुरमीत सिंह’’ ‘‘राम’’ ‘‘रहीम’’ ‘‘इन्संा’’ डेरा सच्चा सौदा प्रमुख पर निर्णय की तारीख 25 अगस्त पूर्व में ही दिनांक 18 अगस्त को तय की जा चुकी थी। समस्त प्रशासनिक, न्यायिक चेतावनी एवं जांच ऐजेंसीज के ‘‘इनपुट’’ होने के बावजूद हरियाणा पुलिस, पैरा मिलेट्री बल व शासन-प्रशासन सब असफल हो गये और बेलगाम हिंसा में 38 लोग अकारण ही अकाल मौत के शिकार हो गये। इस भयावह स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन? निश्चित रूप से इसके लिये ऊपर उल्लेखित समस्त लोग मुख्यतःसामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या मात्र ये ही सब जिम्मेदार हैं? अन्य कोई नहीं ? यह घटना का एक पहलू भर हैं। अनचाहे उत्पन्न हुई इस परिस्थति के दूसरे पहलू पर भी विचार किया जाना आवश्यक हो गया हैं।
भारतीय न्याय व्यवस्था का यह एक पहला ऐसा मामला हैं जो अन्य मामलों से बिल्कुल अलग व कई कारणों से अनूठा हैं। न्याय के इतिहास में शायद यह पहली बार ही हुआ हैं जब किसी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा निर्णय घोषित करने के पूर्व पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने लगातार दो दिनों में पांच बार त्वरित सुनवाई कर सीबीआई कोर्ट द्वारा दिये जाने वाले निर्णय की घोषणा के बाद की संभावित आशंकित परिस्थतियों में कानून व्यवस्था बनाये रखने के उद्देश्य से न केवल कई कड़े व बहुत ही स्पष्ट निर्देश जारी किये वरण हरियाणा के डीजीपी को जमकर फटकार तक लगायी। यह भी कहा गया कि किसी भी संभावित अनपेक्षित उत्पात की स्थिति के लिये उन्हे ही जिम्मेदार ठहराया जायेगा। न्यायिक इतिहास में यह भी पहली बार ही हुआ हैं कि उच्च न्यायालय ने संबधित पक्ष को बिना कोई नोटिस दिये या शपथ पत्र लिये मामले की गम्भीरता को भॉंपते हुए संबधित पक्षकारों को बुलाकर तुरंत सुनवाई कर ऐतिहासिक समुचित आदेश एवं निर्देश पारित किए। यह मामला अपने आप में इस कारण से भी अनोखा हैं जिसमें पीड़िताओं द्वारा औपचारिक रूप से कोई प्रथम सूचना पत्र दर्ज नहीं कराया गया। अपितु घटना के संबंध मंे सिर्फ गुमनाम पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी एवं पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय को भेजे गए थे, जिसके संज्ञान में ही सीबीआई द्वारा जांच की गई थी। समस्त इनपुट और प्रशासनिक आदेश के बावजूद सरकार पूरी तरह से असफल रही और 18 अगस्त (जब निर्णय की तारीख 25 अगस्त तय की गई) से निर्णय के आते तक लाखो लोग पंचकुला सीबीआई न्यायालय के आस पास के क्षेत्र में जमा होने दिए गए। अतः ऐसी अनियत्रिंत स्थिति उत्पन्न हो जाने देने के लिए सरकार पूर्णतः जिम्मेदार हैं। जब प्रतिबंधात्मक आदेश के बावजूद ‘‘डेरा सच्चा’’ के समर्थक इतनी बडी संख्या में इक्ट्ठा हो गये जिससे प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई तब क्या माननीय न्यायाधीश जगदीप सिंह को निर्णय को कुछ दिन के लिये स्थगित नहीं कर देना चाहिए था ताकि इकठ्ठा हुई भीड़ समय के साथ तितर वितर हो जाती व तनाव पूर्ण स्थिति डिफ्यूज (सामान्य)हो जाती। पूर्व में भी धारा 376 से लेकर धारा 302 के साथ देशद्रोह सहित कई गंभीर भयानक अपराध के मामलों की सुनवाई न्यायालय, विशेष न्यायालय एवं सीबीआई कोर्ट के द्वारा कई कारणों से स्थगित की जाकर आगे बढाई गई हैं। तब परिस्थिति विशेष में सीबाीआई कोर्ट ने निर्णय को स्थगित कर स्थिति को बेकाबू होने से रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया? विशेषकर ऐसी स्थिति में जब एक तरफ उच्च न्यायालय ने यह महसूस किया कि शासन प्रशासन स्थिति से निपटनेे के लिये मानसिक रूप से माकूल नहीं हैं। एक बार गुरमीत को न्यायालय में पेशी पर लाने पर हुये हंगामे के मद्देनजर न्यायालय ने असामान्य कदम उठाते हुये आगे वीडियो कांफ्रेस के जरिये लगातार सुनवाई की। वैसा ही निर्णय दिए जाने के दिन अति असामान्य स्थिति हो जाने के कारण निर्णय को यदि स्थगित कर दिया जाता, तो उस दिन 38 लोगों के जानमाल व करोडों रूपये की सम्पत्ति के हुए नुकसान से बचा जा सकता था व पंचकुला के निवासियों का ड़र व आंतक के साये में जिये 24 घंटे के जीवन को टाला जा सकता था। अतः सीबीआई न्यायालय के न्यायाधीश को 25 अगस्त के निर्णय को आगे न बढाने से उत्पन्न हुई स्थिति के लिये नैतिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता हैं, विशेष कर उन परिस्थितियों को देखकर जब स्वयं उच्च न्यायालय ने परिस्थतियों की वीभत्सता का आकलन करते हुये आदेश व प्रतिबंधात्मक निर्देश जारी किये हो।
बात टीवी चंेनलो की ले ले। टीवी चेनलों द्वारा ‘‘बाबा’’ ‘‘राम’’ ‘‘रहीम’ का नाम बार-बार लेकर इन नामो को बदनाम करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही हैं। विभिन्न चेनलो के ओवी वैन इस हिंसा में नष्ट हुये हैं। इसका समाचार देने में जब वे परस्पर एक दूसरो की चेनल का नाम लेने पर परहेज करते रहे व सिर्फ न्यूज चेनल बोलते रहे हैं, तब बाबा ‘राम’ ‘रहीम’ के नाम पर यह मेहरबानी क्यों नहीं कर रहे हैं। मात्र ‘‘गुरमीत’’ सिंह जो उसका मूल नाम हैं, का उल्लेख करने से क्या मीडिया रिपोर्टिग पूरी नहीं हो पाती हैं ? एक तरफ राम रहीम का नाम लेकर इन नामो को जाने अनजाने बदनाम किया जा रहा हैे जो करोड़ो लोगो के लिये आस्था की भावना हैं (‘‘राम रहीम’’ को भगवान बनाकर ‘‘राम’’ और ‘‘रहीम’’ को भगवान रहने से वचित किया जा रहा हैं) तो दूसरी तरफ उन 800 से अधिक गाड़ियों के काफिले का बार बार उल्लेख कर गुरमीत को महिमा मंडित किया जा रहा था। आज तक की ऐंकर अंजना ‘‘ओम कश्यप’’ ‘‘आज तक’’ की ओवी वैन पर हुए हमले के बाद बार-बार चिल्ला-चिल्ला कर गुरमीत के समर्थकों पर उन्हे दोषी मानकर भड़कती हैं। लेकिन उसके साथ ही वह यह भी रिपोर्ट करने लग जाती हैं कि गुरमीत केा हेलीकाप्टर के जरिये जेल ले जाया जायेगा। ऐसी रिपोर्ट करके जाने अनजाने में क्या वह समर्थको को गुरमीत के मौका स्थल (लोकेशन) को नहीं बता दे रही हैं? क्योकि यह जानकारी पाकर गुरमीत के समर्थक हेलीपेड़ पर इकठ्ठा हो सकते थे। इस मामले में एनडी टी.वी. ने कुछ समझदारी की रिपोर्टिग की। हिंसा की कुछ घटनाओ का सीधे लाइव प्रसारण नहीं किया। वहीं अन्य चेनल समस्त घटनाओं को लाइव दिखा रहे थे। सबसे पहले व सबसे आगे के काल चक्र में मीड़िया को उनकी जिम्मेदारी सिखाने के लिये एक पाठशाला आयोजित करने की भी नितांत आवश्यकता हैं।
महत्वपूर्ण बात हैं गुरमीत समर्थक भारतीय नागरिको का समाज व देश के प्रति दायित्व व अपने गुरू के प्रति अति सीमा तक का असीमित अंधविश्वास! आखिर हमारा देश किस दिशा में जा रहा हैं? हमारी यह संस्कृति हमे कहां ले जा रही हैं? भारतीयता की बात करने वाली समस्त राजनैतिक पार्टियॉं स्वार्थसिद्धि हेतु किस तरह की राजनैतिक रोटियां सेंक रही हैं? ‘‘भारत व भारतीयता’’ के इतर सब कुछ इस उपद्रव में शामिल हैं। धर्म या कहे धर्म के ठेकेदार बाबाओं के साथ राजनीजिज्ञों का घाल मेल इतना गहरा हो गया हैं कि सत्ता साधने के लिये धर्म, संस्कृति सेवा भाव व नैतिकता सब कुछ बेमानी/बेपटरी हो गई हैं। गुरमीत को बलात्कार के अपराध में दोषी करार दिए जाने के बाद उसकेे समर्थको ने अंधभक्त बनकर अनगिनती सामान्य जनो की शांति भंग कर दी तथा देश की सम्पत्ति नष्ट कर दी। यह कैसी भारतीयता/संस्कृति? इस घटना के पूर्व भी आशाराम, रामपाल, रामवृक्ष, नित्यानंद व अन्य कई धर्मगुरू संत, बाबा, स्वामी सेक्स स्कंेडल में फंसे हुए हैं, जिन पर प्रकरण चल रहे हैं। इस सबके बावजूद उनके शिष्यों व समर्थको की आस्था ऐसे गुरूओं के प्रति कम नहीं हो रही हैं। उनका उनके गुरूओं के प्रति ऐसा समर्पण सिर्फ धार्मिक गहरे अंधविश्वास के कारण हैं जो घातक हैं। फिर ऐसा ही समर्पण अपने देश व माटी के प्रति क्यो नहीं प्रदर्शित हो रहा हैं? जब पडोसी देश हमे लगातार ऑंख दिखाते रहता है व आंतकी घटनाओं को अंजाम देता रहता हैं तब यदि वे सब सड़क पर आकर ऐसी ही निष्ठापूर्ण श्रद्धा देश एवं देश की सम्पत्ति के प्रति प्रदर्शित करते तो निश्चित रूप से हमारे शासनाधीशों को दुश्मनों के विरूध एक कड़क निर्णय लेने के लिये न केवल सम्बल मिलता, बल्कि वे देश हित में निर्णय लेने हेतु मजबूर भी होते।
एक सजायाफ्ता बलात्कारी एवं आरोपी हत्यारे ‘‘गुरू’’ के समर्थन में उसके समर्थक व शिष्य सामने आकर किस संस्कृति या नैतिकता की किताब को लिख रहे हैं? उनका ऐसा अंधा समर्थन भी गुरमीत के अपराध से कम नहीं हैं। यह समर्थन देकर व्यक्ति अपने परिवार व समाज को किस नैतिकता का संदेश देना चाहता हैं। क्या इससे व्यभिचार को बढावा नहीं मिलेगा? क्या देश हितैषी स्वस्थ्य संस्कृति के लिये उसके नागरिकों की इस तरह नैतिकता से गिरना चिंता का बड़ा विषय नहीं हैं? इस देश की संस्कृति के ठेकेदारों का इस प्रकार नैतिकता के गिरने पर और उसको गिरने से रोकने के लिये दूर-दूर तक कोई बयान बाजी करते नहीं दिखना क्या जाहिर करता हैं? न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हैं’’ ऐसे जुमले का बारम्बार बखान करने वाले राजनीतिज्ञों व धर्म के ठेकेदारों से यह जुमला सुनने के लिए हमारे कान तरसते रह गए। क्या गुरमीत के प्रति उनकी यह मौन सहमति/समर्थन नहीं माना जाना चाहिए?
इस पूरे घटना क्रम में उन दोनो साहसी साध्वियों की कोई (सार्थक) चर्चा तक नहीं कर रहा हैं जिन्होने विपरीत परिथतियों में भी लम्बे समय से आंतक व ड़र के साये में लड़ाई लड़ी व बिना समर्पण किये लड़ाई को उसके परिणाम तक पहुंचाया। उनके आगे हम नतमस्तक हैं। सरकार का यह दायित्व हैं कि जब एक आरोपी को जेड़ प्लस सुरक्षा प्रदान की जा रही थी तो उसके अत्याचार से पीड़ित अबलाओ को इस भयावी, मायावी राक्षस से बचाने के लिये आवश्यक सुरक्षा व सुविधा अभी तक क्यों नहीं दी गई? वे समस्त साध्वी जो आश्रम में सेवा दे रही थी उन्हे अभी तक किसी नारी आश्रम में क्यों नहीं भेजा गया व उनके बीच विभिन्न महिला संगठनों के माध्यम से मोरल पुलिसिंग क्यों नहीं की गई? अनुत्तरित प्रश्न के सही उत्तर व उनका क्रियान्वयन ही व्यवस्था को सुधार पायेगा।
अंततः गुरमीत को विशेष न्यायाधीश केन्द्रीय जांच ब्यूरो के द्वारा 20 वर्ष की सजा सुनाई गई। विशेष न्यायाधीश को हेलीकाप्टर से सुरक्षा कारणो से रोहतक जेल में बनाई अस्थाई कोर्ट तकं पंहुचाना भी न्याय के इतिहास में प्रथम बार हुआ हैं। गुरमीत को अपराधी सिद्ध घोषित करने के निर्णय के बाद डिप्टी एडवोकेट जनरल (जो गुरमीत के भतीजे हैं) को बर्खास्त करने की घटना भी असाधारण हैं।
सामाजिक मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों के लिये यह घटना शोध का विषय हैं जहां इंसान अच्छाई-बुराई में परख किये बिना ही हिन्दू धर्म में ईश्वर के कई अवतार होने के बावजूद अपनी अंधी धार्मिक आस्था एक बलात्कारी व हत्यारे अपराधी के प्रति इस सीमा तक समर्पित करता हैं कि हजारो की संख्या में इकठ्ठा होकर मरने मारने के लिये उतारू होकर हिंसक हो उठे। यही से नैतिकता की शिक्षा का पाठ पढाने की आवश्यकता, वक्त की पुकार हैं।
जय हिंद!