बुधवार, 27 सितंबर 2017

‘‘गुरमीत’’ पर एक ‘‘स्वेत पत्र’’ (व्हाईट पेपर) जारी करने की क्या अभी भी आवश्यकता नहीं हैं?


‘‘गुरमीत सिंह’’ उर्फ ‘ड़ॉ.’ उर्फ ‘बाबा’ उर्फ ‘‘बिग बॉस’’ उर्फ ‘पिता’ उर्फ ‘राम रहीम’ उर्फ ‘इन्साँ’ उर्फ ‘मेसंजर ऑफ गॉड’ फिल्म निर्माता-निर्देशक-संगीतज्ञ-एक्टर, खिलाड़ी इत्यादि अनेकानेक व्यक्तित्व एक ही व्यक्ति गुरमीत के रूप में आपके सामने आश्चर्य मिश्रित रूप से प्रकृट हुआ हैं। हर किरदार के साथ उसके कार्यो की अलग अलग कार्य श्रंृखलाएॅ भी एक फिल्मी कथा के रूप में आपके सामने हैं। जरा सोचिए, क्या एक व्यक्ति में इतने अनेक व्यक्तित्व एक साथ होने के साथ साथ परस्पर इतने विपरीत किरदार भी हो सकते हैं? यह सामान्यतः संभव नहीं लगता हैं। लेकिन गुरमीत ने इस असाधारण असामान्य कार्य को भी बहुत आसान तरीके से सामान्य बना दिया। इसीलिये वह आज का सबसे चर्चित लेकिन घृणास्पद चेहरा हैं। 
ऐसा व्यक्ति लगभग 20 साल से चरम विरोधाभास के बीच गैर कानूनी, असामाजिक अनैतिक व्यवहार करता रहा हैं। लेकिन इन घृणित कार्यो का इतनी लम्बी समयावधि तक जनता के सामने न आना, क्या राज्य सरकार की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता हैं? क्या यह केन्द्र सरकार की विफलता को भी नहीं दर्शाता हैं? क्या यह समस्त केन्द्रीय एवं स्थानीय खुफिया जांच एजेंसियाँ की गहन विफलता नहीं हैं? ये प्रश्न बहुत ही गंभीर हैं, जो देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुडे़ हुए हैं। इसीलिये अब समय आ गया हैं कि इस पूरे कांड पर एक स्वेत पत्र राज्य/केन्द्र सरकार द्वारा तुरंत जारी किया जाना न केवल समयानुकूल होगा, जो जनता के मन में छिपे ड़र अंधविश्वास व अर्द्धसत्य पर पड़े परदे को भी दूर करेगा। 
डेरा सच्चा सौदा के मामले में पूरे सिस्टम (प्रणाली) की पूर्णतः और पूर्णतः विफलता रही हैं, चाहे फिर, वह प्रशासन की हो, शासन की हो, या समस्त सूचना तंत्रों की हो। ‘‘सच्चा सौदा’’ डेरा नाम का यदि शब्दार्थ निकाला जाय तो प्रतीत होगा कि सच (सत्य) के साथ सौदा होने के कारण यह निर्लज्जता पूर्ण स्थिति निर्मित हुई हैं। हरियाणा के सिरसा में सात सौ एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में बना यह डेरा एक दिन, एक महीना, एक साल की क्रिया-प्रक्रिया का परिणाम नहीं हैं। इसके अतिरिक्त राजस्थान (जहाँ बहुत बड़े क्षेत्रफल में डेरा फैला हुआ हैं,) सहित कई प्रदेशों में डेरा सच्चा सौदा के आश्रम हैं। इन समस्त सम्पत्तियों का संचय व कुसृजन अचल सम्पत्ति से संबंधित समस्त कानूनी प्रक्रिया, नियमों का घोर उल्लंघन करके किया गया हैं। डेरा के अंदर बने अनेक भवन, शापिग काम्प्लेक्स से लेकर विश्व के सात आश्चर्यो की अनुकृतियों के साथ टाइटन की आकृति निर्माण सहित, सेवन स्टार होटल के निर्माण की समस्त प्रकार की आवश्यक अनुमतियाँ थी या नहीं, यह भी अनबुझा प्रश्न हैं। यदि उत्तर होता तो डेरा के अंदर अनेकानेक गुफाओं के निर्माण की जो कथाएँ सामने आ रही हैं, वह प्रश्नवाचक नहीं रह जाती। तब क्या समस्त संबंधित प्रशासनिक ढाँचा आँखे मूँदे बैठा था? बेखबर था? क्या उसे ऐसी विकट स्थिति के बाबत् कोई भी भनक नहीं लगी? तो क्या यह सूचना तंत्र की पूरी तरह से विफलता नहीं हैं? और यदि खबर थी, तो इस अपराधिक षडंयत्र में प्रशासन की भागीदारी क्यों नहीं मानी जानी चाहिए? एक उत्तरदायी शासन के कितने और कैसे-कैसे उत्तरदायित्व होते हैं, तथा उन्हे किस तरह निभाया जाना चाहिये, इस घटना को लेकर यह मूल प्रश्न हृदय को चुभने वाले हैं। लेकिन आम नागरिको से लेकर देश के बुद्धिजीवी वर्ग के दिमाग में भी यदि ये प्रश्न नहीं कौंध रहे हैं, तो उत्तर का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता हैं।
अभी जब करोड़ो रूपये के दसियों बैंक खातो को सीज किया गया, क्या वे सभी खाते प्रदर्शित किये गये थे नोटबंदी के समय बाबा राम रहीम (डेरा) ने कितने वैध अवैध नोट बैंको में जमा कराये थे? आयकर विभाग ने क्या इस संबंध में उसे कोई नोटिस दिया था? यह सब अभी काल के गर्भ में ही कैद हैं। गुरमीत द्वारा डेरा में स्वतः की मुद्रा का भी प्रचलन किया गया था, जो निःसदेह गैरकानूनी कृत्य था। डेरा में बने अस्पताल में हजारो लोगो को नपुसंक बनाया गया। डेरा में बड़ी संख्या में अवैध हथियारो के जखीरे का एकत्रीकरण कैसे संभव हुआ? बड़े-बड़े मीडिया हॉऊसेस् ने उसे आराम देय कुर्सी पर आमने सामने बैठा कर लम्बे-लम्बे साक्षात्कार कर अपनी टीआरपी तो अवश्य बढ़ाई। लेकिन खोजी पत्रकारिता का दावा करने वाली ‘‘मीडिया’’ गुरमीत की एक भी बुराई की खोज उसे सजा घोषित होेने के पूर्व तक नहीं बता पाई। डेरा के अंदर 600 से ज्यादा नर कंकाल पाये गये। इन व्यक्तियों के दाह संस्कार डेरा में ही डेरा के तरीके से कर दिए गये। क्या वह स्थान घोषित श्मशान घाट हैं? क्या सैकड़ो व्यक्तियों द्वारा उसकी देह और मृत्योपरान्त उपयोग का सम्पूर्ण अधिकार शपथ पत्र के साथ गुरमीत को सौप देना कानूनी हैं? धार्मिक हैं? नैतिक हैं? इन सब गैर-कानूनी कार्यो की हवा तक बाबा को सजा देने के बाद की गई उनकी गिरफ्तारी तक प्रशासन को नहीं लगी थी। गुरमीत द्वारा बनाये गये 19 वर्ल्ड रिकार्ड़ जो गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड़ लिमका बुक रिकार्ड़ में दर्ज किए गए, जिनके प्रमाण पत्र सतत् डेरे में प्रदर्शित किए। क्या वे सभी वास्तविक हैं? और यदि नहीं, तो फिर इस ओर प्रशासन का ध्यानाकर्षण क्यों नहीं हुआ। इसकी जांच क्यों नहीं की गई? 
विभिन्न राजनैतिक पार्टियो के हर नेता, और धार्मिक संस्थाओ केे अनेक व्यक्ति गुरमीत को दंडवत प्रणाम कर स्वयं को सम्मानित महसूस करते थे। गुरमीत को सजा प्राप्त होने के बाद हरियाणा के शिक्षा मंत्री का यह कहना कि मात्र बाबा गलत हो सकता हैं। डेरा गलत नहीं हैं। गुरमीत यदि गलत हैं, तो डेरा सही कैसे? फिर कौन सही व्यक्ति उसे चला रहा हैं? इसका नाम भी शिक्षा मंत्री बताये? क्या एक व्यक्ति बिना किसी की सहायता के कुछ अंधभक्त अनुयायियों की सहायता के बिना इतना बड़ा कांड़ कर सकता हैं? इतना बड़ा बवाल मच जाने के बावजूद, अभी भी हमारी मानसिकता गुरमीत व उसकी घृणित मानसिकता पर हमला करने की नहीं हैं? 
डेरा में सैकड़ो लडकियों का साध्वियों के रूप में रहना एवं अनैतिक कार्यो में सलग्न रहना भी प्रशासन की असफलता ही हैं। डेरा सच्चा सौदा की नम्बर दो प्रमुख साध्वी विपसना जिसे इस सम्पूर्ण कर्म कांड की जानकारी हैं, के विरूद्ध अभी तक प्रथम सूचना पत्र दर्ज न होना क्या दर्शाता हैं? संपूर्ण घटना क्रम एवं चक्र्र को देखते हुये ऐसा लगता है कि, डेरा सच्चा सौदा के आश्रम की सात सौ एकड़ जमीन भारत देश का हिस्सा नहीें हैं, वरन वह एक ऐसा क्षेत्र हैं, जिस पर भारत शासन का कोई हक नहीं हैं, या उस पर भारत सरकार का कोई कानून लागू नहीं होता हैं।
इस पूरे कांड में तीन मुख्य किरदार रहे हैं, जो भूतो न भविष्यति की स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। मुख्य किरदार गुरमीत तो हैं ही। जिस के व्यक्तित्व की कल्पना सामान्यतः कल्पना से परे हैं। उसने माफी के नाम पर देहिक के शोषण करके ‘‘माफी’’ शब्द को ही बदनाम कर दिया। लेकिन क्या इससे भी बढ़कर व्यक्तित्व हनीप्रीत का नहीं हैं? जो महिला नाम पर ही कलंक हैं? रोजी रोटी के लिये चकला चलाने वाली महिला के भी कुछ नियम सिद्धान्त होते हैं। लेकिन हनीप्रीत ने तो ‘पिता’ ‘बेटी’ के संबंध को ही तार-तार कर दिया। उसने अन्य साथी लड़कियों को जो साध्वी बनकर डेरा की सेवा में रहती थी, उन्हे भी पाश्विक, भयपूर्ण भ्रम पूर्ण व अन्य समस्त निम्न स्तर के तरीको से गुरमीत की शारीरिक भूख प्यास को पूरा करने के लिये इन सैकड़ो साध्वियों को प्रतिदिन उस व्यक्ति को सौपा जिसके साथ स्वतः उसके पति जैसे संबंध थे। ऐसी प्रकृत्ति, प्रवृत्ति, अनर्थ सोच एवं कार्य प्रद्धति शायद ही कोई अन्य महिला की हो सकती हैं। तीसरा किरदार विश्वास गुप्ता हैं जो हनीप्रीत का शादी शुदा पति होने के बावजूद यह सब अनैतिक कार्य व रिश्ते को तार-तार होते देखता रहा, सहता रहा व हनीप्रीत से तलाक होने के बावजूद भी उसने एक भी रिपोर्ट गुरमीत या हनीप्रीत के खिलाफ नहीं लिखाई। बल्कि इसके विपरीत गुरमीत की प्रताड़ना व उससे अपनी जान माल के खतरे के ड़र से विश्वास गुप्ता ने सबके सामने अपने पिताजी के साथ मिलकर बाबा से गिड़गिड़ाकर माफी माँगी। क्या स्वयं की प्रतिष्ठा व पत्नी के सतीत्व से बढकर किसी व्यक्ति के लिये जीवन हो सकता हैं? यहाँ एक और बड़ा प्रश्न पैदा होता हैं कि गुरमीत ने जिस कुटिल उद्देश्य को लेकर अन्य सेवादारों को नपुसंक बनाया, उसी उद्देश्य के लिये विश्वास गुप्ता को भी क्यो नहीं बनाया? डेरा सच्चा सौदा की नये-नये तथ्यों के साथ दिन प्रतिदिन नई-नई कहानियाँ प्रकाश में आ रही हैं। निश्चित रूप से यह किसी फिल्मी कहानी से भी ज्यादा हैं और, किसी भी फिल्म निर्माता को इस पर फिल्म निर्माण के लिये किसी लेखक से कोई पठकथा लिखवाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
गुरमीत को जेड़ प्लस की सुरक्षा मिलना भी कई प्रश्नों को जन्म देता हैं व सिर्फ इसी मुद्दे पर केन्द्रीय/राज्य सरकार को तुरंत ही स्वेत पत्र जारी करना चाहिए। जेड़ प्लस सुरक्षा का अर्थ क्या होता हैं? जेड़ प्लस सुरक्षा का सुरक्षा कवच कितना बड़ा होता हैं? यह अन्याय, अत्याचार, अनाचार, खौफ के विरूद्ध व देश व समाज के हितो के लिये लड़ने वाले व्यक्ति की जान पर खतरा होने की स्थिति में उस व्यक्ति की जान की सुरक्षा के लिये दी जाती हैं। अत्याचारी, व्यभिचारी, हत्यारे, पाखंड़ी, धूर्त व धर्म के विरूद्ध कार्य करने वाले व्यक्ति को नहीं? जेड़ प्लस सुरक्षा का मतलब हैं पुलिस अधीक्षक (आईपीएस केड़र) से लेकर सौ से अधिक पुलिस कर्मियो का दल बल जेड़ प्लस सुरक्षा के रहते हुये डेरे में इतने अनैतिक कार्य लगातार कैसे होते रहे। अन्यथा इन सुरक्षा बलो की नजर के नीचे इस बलात्कारी ने इतने अनैतिक काम कैसे कर लिये? क्यो इस बल द्वारा कोई भी सूचना प्रशासन को नहीं दी गई? यह सब तो स्वेत पत्र आने पर ही पता लग सकता हैं। 
प्रश्न तो अनेक हैं? लिखते जा रहा हूँ तो नये-नये प्रश्न पैदा हो रहे हैं। लेकिन समय की सीमा हैं। इन सब प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये भारत सरकार, केन्द्रीय सरकार ,केन्द्र शासित प्रदेश चढीगढ (यदि पंचकूला उसमें शामिल हैं तो) इस मामले में स्वेत पत्र जारी करके जनता को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने का कार्य क्यों नहीं कर रहे हैं, क्यों नहीं करना चाहते हैं? जब कि हम पूर्व में छोटे-छोटे कांडो में भी सरकार से स्वेत पत्र जारी करने की माँग करते रहे हैं, संसद में भी यही मांग करते रहे हैं। यह हमारी बड़ी पुरानी आदत हैं। अतः अब यह स्वेत पत्र जारी किया जाना इसलिए भी नितांत आवश्यक हैं, ताकि भविष्य में इस तरह के धूर्त बाबा की उत्पत्ति की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

बुधवार, 20 सितंबर 2017

डॉ. ‘‘गुरमीत सिंह’’ का दूसरा रूप ‘‘बाबा‘‘ ‘‘राम रहीम’’?

पिछले कुछ दिनो से प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक मीड़िया में बलात्कारी, व्यभिचारी, अय्याश, पाखंड़ी, परमार्थ के बहाने अपनी स्वार्थी, वहशी, हवस की पूर्ति का एन केन प्रकारेन, साधक बाबा डॉ. गुरमीत सिंह से संबंधित खबरे भरी पड़ी हैं। दिन प्रति दिन नई नई गंदी स्टोरी प्रमाण सहित सामने आ रही हैं। इस बात में कोई शक नहीं हैं कि बाबा समाज के लिए एक बोझ हैं, जिसे उसकेे सही स्थान पर (जेल) पहुंचा दिया गया हैं। 
इस पृथ्वी पर जो भी व्यक्ति आता हैं वह सम्पूर्ण नहीं होता हैं। उसके हमेशा दो पहलू होते हैं, जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के भी दो पहलू एक अच्छा व दूसरा बुरा होता हैं। गुरमीत में अनगिनत, अकल्पनीय, अक्षम बुराइयों के रहते हुये यह सिद्ध हो चुका हैं कि उसका व्यक्तित्व बुराईयों से अटाटूट भरा पड़ा हैं। इस तरह  से उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व खराब होकर खारिज कर दिए जाने के लायक ही हैं। फिर भी, आगे हम यहॉं पर सिक्के के दूसरे पहलू को भी पढ़ने का प्रयास करते हैं। 
अनगिनत बुराइयो की व्यापकता के कारण गुरमीत का तनिक तिनका सा भी उजला पक्ष न तो स्वतः दिख रहा हैं और न ही हम देख पा रहे हैं। हम मंे कम से कम इतना तो साहस अवश्य होना ही चाहिए कि, हम बुरे व्यक्तित्व के किचिंत तिनके भर उजले पक्ष को भी पढ़ सकें और उस पर विचार मनन् कर सके। आचार्य बिनोवा भावे व सम्पूर्ण क्रांति के जनक जय प्रकाश नारायण से प्रेरित होकर हमारे मध्य प्रदेश में ही पहले डाकू मान सिंह, फिर डाकू मोहर सिंह ने मूरत सिंह सहित बडी संख्या में अनेक डाकुओं के साथ आत्म समर्पण किया था। आज वे समाज के सभ्य नागरिक बनकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इन सबके बहुत पहले भी वाल्मिकी से लेकर चक्रवर्ती राजा सम्राट अशोक जैसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों के उदाहरण हमारे समक्ष हैं, जो प्रारंभ में बुरे थे, बाद में किसी एकाधिक घटना से प्रेरणा प्राप्त कर बुरे से अच्छे और अतंतः महान व्यक्ति बनकर इतिहास प्रसिद्ध हो गए। 
ये उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि बुरे व्यक्तित्व में भी अवश्य कुछ न कुछ अच्छाई छिपी होती हैं और अच्छे व्यक्ति में भी कुछ न कुछ बुराई होती ही हैं। जब किसी की बुराई, अच्छाई पर हावी होती हैं, तब वह बुरा व्यक्ति कहलाता हैं व जब किसी में अच्छाई ,बुराई पर हावी होती हैं, तब वह अच्छा व्यक्ति कहलाता हैं। फूलन देवी भी डाकू थी। लेकिन उसके व्यक्तित्व का एक पहलू कहीं न कहीं उजला पन लिये हुये था, जिसके बल पर वह चुनाव जीत कर संसद में पहुंॅच सकी।  
अपराधी गुरमीत सिंह के बुरे पक्ष के संबंध में पहले भी मैं एक लेख लिख चुका हैं। अब उसके उजले पक्ष जो उसके नाम राम रहीम से इंगित होता हैं, पर कुछ उजाला डालने का दुःसाहस पूर्ण  प्रयास कर रहा हूंूॅ। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह हैं कि आखिर गुरमीत राम-रहीम के करोडो अनुयायी (एक अनुमान के अनुसार लगभग 6 करोड़ से अधिक) कैसे बने, कई हजारो शिष्य अंधभक्त कैसे हुये व सैकडों शिष्य इस सीमा तक समर्पित कि उसे भगवान मानने वाले, कैसे बन गए। यही नहीं वे साधक व साध्वी बने और उन्होने अपना पूरा जीवन ही डेरे को सौप दिया। यही उसके व्यक्तित्व का एकमात्र उजला पक्ष कहा जा सकता हैं। इक्कीसवी सदी के विज्ञान से ओतप्रोत माहोल में हर तरह के व्यभिचारी बाबा के इतने सारे अंधभक्त बन गए कि वे उसके लिए मरने मारने के लिये उतारू हो जाते हैं, यह कैसे संभव हुआ? अर्थात् उसके व्यक्तित्व में अनेकानेक विध्वंशक तत्वों के साथ कुछ न कुछ निर्माण कारक तत्व भी मौजूद हैं।  
यह बात भी सामने आयी कि ‘‘बाबा’’ अपने कई सैकड़ो शिष्यों को रोजी रोटी देता रहा हैं।  उसके वृहत डेरे में सैकडों लोग प्रतिदिन मुफ्त भोजन करते हैं। उसने अस्पताल व स्कूल खुलवाये जहॉं शिष्यों को मुफ्त इलाज व मुफ्त शिक्षा की सुविधा दी जाती हैं। गुरमीत सिंह के साधक व साध्वियों ने कही भी यह दावा नहीं किया कि बाबा तांत्रिक (सिद्ध पुरूष) हैं या बाबा की किसी कार्य पद्धति सिद्धी, पूजा अथवा तंत्र से, भक्तों की समस्त इच्छाओं या मनोकामनाओं की पूर्ति हो जाती हैं। इसके बावजूद भी यदि वे उसके इतने अंधभक्त हैं, तो निश्चित रूप से गुरमीत के व्यक्तित्व में सम्मोहन अथवा कुछ ऐसा विशेष गुण भी हैं, जो एक सामान्य नागरिक को शिष्य बनाकर अंधभक्त बना लेता हैं। भक्तों की अंधभक्ति भी इस सीमा तक कि वे अपने बच्चो व परिवार के सदस्यो पर भी विश्वास न करके बाबा पर अटूट अंध विश्वास (भगवान मानने की सीमा तक) करते हैं जो बाबा की कार्यपद्धति का एक अहम तथ्य हैं। अन्यथा, यह अंधभक्ति निश्चित रूप से गुरमीत के हजारो समर्थको के दिमाग के दिवालियापन को ही दर्शाती हैं। यदि ऐसी अटूट अंधभक्ति का उपयोग  सत्कार्यो के निष्पादन हेतु किया जा सके तो समाज व देश का भला हो सकता हैं। 
गुरमीत एक आधुनिक ढोंगी बाबा हैं इसलिए उसने पीले चोले को धारण न कर 21 वीं सदी का चोला पहना। जिस कपड़े का एक बार उपयोग किया उसे दूसरी बार नहीं छुआ। डेरे में दस हजार से अधिक पोशाखें व ढेड़ हजार से अधिक जूते चप्पल मिले थे। साथ ही उसने कई गाड़ी भी अलग-अलग तरह की डिजाईन की या करवाई। उसके काफिले में सैकडों डिजाईन गाडियों का कारवॉं हैं, जो रजिस्टर्ड ब्रांड के डिजाईन की नहीं हैं। इसीलिए वह डिजाइनर बाबा कहलाए इस डिजाईनिग कार्य को रचनात्मक माना जा सकता हैं। छः म्युजिक एलबम जारी कर वह रॉक स्टार बाबा भी कहलाया। इसके साथ ही उसने फिल्म निर्माता, निर्देशक, एक्टर इत्यादि का भी कार्य किया व चार फिल्मे बनाई। उसने अपनी ऐशो आराम व व्यभिचार पूर्ण अय्याश जिदंगी के लिए अपने डेरे में सात सितारा होटल बनाया जिसकी सबसे विशेष बात  सात कमरे ऐसे बनवाए जो विश्व की सात धरोहर से रूबरू हो सके। इस प्रकार बुरे उद्देश्य को लेकर किए गये निर्माण में भी अनजाने में वह कुछ नवीन (अच्छा) कर बैठा। उसने डेरे में कई मार्केट बनाकर उनमें बहुत से शिष्यों को रोजगार भी दिया। 
बाबा के व्यक्तित्व का एक और अच्छा महत्वपूर्ण योगदान उसके द्वारा करीब 19 से अधिक वर्ल्ड़ रिकार्ड़ व अन्य रिकार्ड़ बनाये गये जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड़ व लिमका बुक ऑफ रिकार्ड़ व अन्य संस्थाओ में दर्ज हैं। इनके प्रमाण पत्र डेरे में प्रदर्शित किये गये हैं। यद्यपि उनमें से अधिकांश रिकार्ड कितने सही व उपयोगी हैं, इस पर प्रश्नचिन्ह जरूर लगाया जा सकता हैं।  गुरमीत ने सैकडो शिष्यों से देह दान के शपथ पत्र भी भरवाएॅं हैं। लेकिन इस अच्छे कार्य में भी मानव अंगों की तस्करी का गोरख धन्धा होना बतलाया जा रहा हैं। वह क्रिकेट, बिलिर्यड़, बेड़ मिंटन आदि कई खेलो में रूचि रखता रहा हैं।   
गुरमीत के द्वारा सर्वधर्म समभाव का संदेश देने के लिये अपना नाम गुरमीत सिंह से बदल कर गुरमीत राम रहीम रखा। जाति प्रथा की समाप्ति के लिये जाति सूचक नाम हटाकर अपने भक्तों के नाम के आगे ‘‘इन्सा’’ (इन्सान) लगाने को प्रेरित किया व स्वयं भी लगाया। यह भी कहा गया हैं कि गुरमीत ने गरीब परिवार के बच्चों की शादियों में भी आर्थिक सहायता प्रदान की। भ्रूण हत्या, सामूहिक रक्तदान, आपदा प्रबंधन के लिये ग्रीन वेलफेयर फोरम के नाम से प्रशिक्षित अनुयायियों के दल का गठन किया। स्वच्छता, जैविक खेती व अन्य कई सामाजिक कार्यो के लिये अभियान भी चलाए। नेपाल में आये भूकंप में भी उसने सहायता प्रदान की थी। देश की 130 करोड़ की जनसंख्या में से कुल लगभग 29 नागरिको को सरकार द्वारा प्रदत्त की गई जेड़ प्लस सुरक्षा में एक व्यक्ति राम रहीम भी शामिल हैं।   
बाबा ने बड़ी संख्या में लोगो को शराब, मांस, तंबाकू के व्यसन से मुक्त कराया। भले ही इनकी आड़ में उसका उद्देश्य अनुचित रहा हो। उसके इन कृत्यों की आलोचना नहीं की जा सकती हैं। आज के युग में गांधी जी का वह सूत्र कि ‘‘साध्य के साथ साधन में भी शुचिता होनी चाहिये, कितना सार्थक हैं? यथार्थ धरातल पर आज यह कितना लागू हैं? जब हम आज साध्य की प्राप्ति के लिये साधन की शुचिता को छोड़ देते हैं, तो बाबा ने भी शुचिता को ही पूरी तरह ताक पर रख कर ऊपर वर्णित कुछ अच्छे कार्य सम्पन्न कर दिए। यह भी कहां जा सकता हैं कि गुरमीत ने अपनी अक्षम्य पापी दुनिया पर इस तरह के कुछ अच्छे कार्यो के द्वारा परदा डालकर ढ़कने का प्रयास किया।
गुरमीत के व्यक्तित्व का सबसे खराब पहलू उसका सेक्स के प्रति असीमित असामाजिक घृणित अनुराग रहा हैं। डेरे के स्कूल अस्पताल तथा अन्य सभी कार्य कलाप उसने इसी हवस की पूर्ति के लिए डिजाइन किए व करवाए, यहॉ तक कि इसके लिए उसने अनेक हत्या तथा सैकडो को नपुंसक बनाने में भी कतई गुरेज नहीं किया। यदि उसके व्यक्तित्व से इन अक्षम्य बुराई को हटा दिया जाये, सम्राट अशोक के समान उसका हृदय परिवर्तन हो जाय तो बाबा डॉ. गुरमीत सिंह बाबा राम रहीम बन सकता था तब वह अपने व्यक्तित्व के उपरोक्त कुछ (अच्छे) गुणों के कारण समाज के लिये उस सीमा तक उपयोगी व्यक्ति भी सिद्ध हो सकता हैं?
गुरमीत से भी गिरा हुआ यदि कोेई व्यक्ति इस पूरे कांड में हैं तो वह हनीप्रीत! हैं महिला होकर जिस तरह उसने सैकड़ो महिलाओं को बाबा गुरमीत की हवस का शिकार बनवाया जिसके लिये उसने एक ऐसी महत्वपूर्ण सक्रिय ‘‘विलेन’’ की भूमिका अदा की जो महिला समाज पर एक ऐसा कलंक हैं, जिसकी कल्पना शायद बुरे से बुरा व्यक्ति भी नहीं कर सकता हैं। हनीप्रीत ने सामाजिक रिश्तो को तार-तार कर दिया। इस घटिया कृत्य जिस का शब्दो में उल्लेख करना भी बहुत शर्मनाक हैं, के लिये शायद हमारे अपराधिक दंड संहिता में समुचित दंड़ भी नहीं हैं। अतः गुरमीत के पहिले तो सबसे पहिले हनीप्रीत को पकड़ कर बगैर मुकदमा चलाये उसे सरे आम फॉंसी देना भी शायद सभ्य समाज में असभ्य नहीं कहलायेगा।    

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

रेयान इंटरनेशनल स्कूल में एक मासूम विद्यार्थी की जघन्य हत्या! क्या एक घटना मात्र हैं?

  ‘गुरूग्राम’’ के ‘‘रेयान इंटरनेशनल स्कूल’’ में हुई एक 7 वर्ष के विद्यार्थी प्रद्युम्न की जघन्य हत्या को पिछले कुछ दिनो से इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया ने इतना अधिक कवरेज दिया है कि फिर वही पुराने अलाप व आरोप मीडिया ट्रायल की स्थिति उत्पन्न हो गई हैं। निश्चित रूप से मासूम की उक्त जघन्य हत्या ने अभिभावक के साथ साथ आम नागरिको को झकझोर दिया हैं जिसकी भर्त्सना के लिये शब्द नहीं हैं। एक मॉं ही उस असीमित, असहनीय, अविरल दुख को महसूस कर सकती हैं व वह उसे घिसटते हुये  जी रही हैं। अन्य लोग सिर्फ शब्दो द्वारा ही संवेदना व्यक्त कर सकते हैं। इन सबके बावजूद इस घटना को जिस तरह से मीडिया के द्वारा प्रसारित प्रचारित किया जा रहा हैं ‘‘क्या यही एक उचित तरीका बचा हैं’’ प्रश्न यह हैं?
सर्वप्रथम इस तरह की यह घटना देश की प्रथम घटना नहीं हैं, पूर्व में भी घटित होती रही हैं। विद्यमान घटना के 24 घंटे के भीतर ही न केवल अभियुक्त पकडा जा चुका हैं बल्कि उसने अपने इकबालिया बयान में जुर्म भीे स्वीकार कर लिया हैं। वह एक मानसिक रोग का शिकार हो सकता हैं, जैसा कि उसने हत्या के उद्देश्य के संबंध में अपने बयान में बतलाया था। इसके बावजूद पीडित परिवार के सदस्य पुलिस जांच से संन्तुष्ट नहीं हैं, एवं सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं जिसके लिये वे उच्चतम् न्यायालय भी पहुंचे हैं। यह उनका एक पूर्ण संवैधानिक अधिकार हैं जिसकी हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिये। उच्चतम् न्यायालय ने घटना का संज्ञान लेते हुये इसे मात्र एक घटना भर न मानकर राष्ट्रव्यापी स्कूलों में हो रहे ऐसी घटनाओं व अव्यवस्था को रोकने के लिए केन्द्र सरकार, हरियाणा सरकार, मानव संसाधन मंत्रालय व सीबीएसई को नोटिस जारी कर पूछा हैं कि स्कूल के बच्चो की सुरक्षा के बारे में व ऐसे घटना घटित होने पर स्कूल प्रबंधक की जवाबदेही क्या होनी चाहिए? लेकिन परिवार का यह कहना हैं कि उक्त हत्या में कन्डक्टर के अलावा और कोई ‘‘दूसरा’’ भी शामिल हैं। यह दूसरा कौन ? न तो पीड़ित परिवार ने अभी तक किसी की ओर निश्चित्ता के साथ इंगित किया हैं और न ही मीडिया ने। यद्यपि मीडिया इस घटना को जोर-शोर से प्रचारित कर रहा हैं। पुलिस की जांच में भी अभी तक कोई दूसरी थ्योरी भी सामने नहीं आयी हैं। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में प्रथम दृष्ट्या स्कूल प्रशासन पर गहन लापरवाही व सुरक्षा बंदोबस्त में चूक व विभिन्न नियमों के उल्लंघन के आरोप पाये गये हैं। इस आधार पर पुलिस ने स्कूल के दो प्रशासनिक व्यक्तियों को गिरफ्तार भी कर लिया हैं व कार्यवाहक प्राचार्य को भी पूछताछ के लिये हिरासत में लिया हैं।
यदि हम एसआईटी की उक्त रिपोर्ट की सूक्ष्म  विवेचना करे तो यह स्पष्ट हो जाता हैं कि रेयान स्कूल में जो तीन प्रमुख कमियॉं बतलाई गई हैं, वे सब कमोेवेश लगभग हर सरकारी/गैर सरकारी स्कूल में भी मिल जायेगी। इलेक्ट्रानिक मीडिया के ओवी वेन आज भी किसी स्कूल में चले जाएॅं तो उनमें कमोवेश उपरोक्त कमियों के साथ और अन्य कई कमियॉं भी मिल जायेगी। कुछ मीडिया हॉऊस ने यह कार्य किया भी हैं। तब सरकार इस घटना से सबक लेकर तुरंत समस्त स्कूलो की विस्तृत जांच करवाने के आदेश क्यों नहीं दे रही हैं ताकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। मीड़िया ने भी न तो स्वयं इस दृष्टि से कार्य किया हैं और न ही सरकार का ध्यान ऐसी कार्यवाही के लिये आकर्षित किया हैं। यद्यपि अब केन्द्रीय सरकार मानव संसाधन मंत्रालय एवं कुछ राज्य सरकारे ने उच्चतम् न्यायालय द्वारा नोटिस जारी होने के बाद इस दिशा में कुछ कार्यवाही करने हेतु कदम उठाए हैं।
सिर्फ पीड़ित परिवार की असहनीय असीमित व्यथा को लगातार 72-72 घंटे से ज्यादा व्यक्त करके क्या मीडिया अपने दायित्व से मुक्त हो गया हैं? इस तरह की घटना जब एक ग्रामीण इलाके में छोटे से स्कूल में हो जाती हैं तब मीडिया कहां चला जाता हैं?किसी ग्रामीण इलाके की स्कूल की व्यवस्था देख ले। क्या वहॉं बाउंड्रीवाल हैं? क्या सिक्योरिटी गार्ड हैं। क्या वे सब व्यवस्थाएॅ इन ग्रामीण स्कूलो में हैं, जिनकी ओर एसआईटी ने उंगली उठाई हैं। क्या ग्रामीण स्कूल के ‘‘बच्चे’ -‘बच्चे’ नहीं होते हैं? अब जब शिक्षा का अधिकार पूरे देश में एक मूल संवैधानिक अधिकार बन गया है, तब सुरक्षित शिक्षा के पैमाने भी पूरे देश में क्यों नहीं लागू होना चाहिए?
एक बात और हैं, राजनेताओं का शिक्षण संस्थाओं के साथ गहरा नाता हैं, जिसके कारण यदि पब्लिक स्कूलों में कही शिक्षा का स्टेन्डर्ड बढ़ता हैं तो दूसरी ओर अभिमावकों का आर्थिक शोषण भी बढ़ता हैं। साथ ही शिक्षण संस्था संचालन में नियमो की बडी अनदेखी भी होती हैं। लेकिन राजनैतिक दखल होने के कारण कोई भी प्रशासनिक व्यवस्था इन पर कार्यवाही करने में तब तक हिचकते रहते हैं जब तक केाई घटना घटित न हो जाय। इस नेक्सस को तोडना भी समय की पुकार हैं। 
अंत में उक्त जघन्य घटना की भर्त्सना मात्र करते हुये पीड़ित परिवार के साथ पूरी हार्दिक संवेदना दर्शाने के साथ मीडिया अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ, मीडिया ट्रायल कर, अपनी लक्ष्मण रेखा को खुद तोड़ रहा हैं, और यह पहली बार नहीं हो रहा हैं।
  

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