विगत दिवस मंदसौर में भाजपा नेता व प्रथम नागरिक नगर पालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार की सरे आम गोली मारकर हत्या कर दी गई। निश्चित रूप से यह एक बेहद दुखद घटना थी और पुलिस ने त्वरित कार्यवाही कर 24 घंटे के भीतर ही एक आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ का उक्त घटना पर यह बयान कि यह भाजपा का अंदरूनी मामला है, बिलकुल अनावश्यक और घटना की भयवता को कम करने वाला है। कमलनाथ यह कहकर क्या इंगित या दर्शाना चाहते है? आज ही एक और भाजपा नेता बलवाडी भाजपा मंडल मनोज ठाकरे अध्यक्ष की बल़वानी में दिन दहाड़े हत्या कर दी गई। गृहमंत्री का उक्त घटना पर यह कथन कि इस घटना में भी भाजपा के आंतरिक मामले की आंशका है, कहकर मुख्यमंत्री के कथन को ही आगे बढ़ाया है।
क्या भाजपा व कांग्रेस के लिये अलग-अलग कानून है? पार्टी या पारिवारिक विवाद में यदि कोई व्यक्ति कानून के बाहर जाकर कानून को तोड़ने पर उतारू हो जाये, तो क्या उसके लिये नियम व जांच की प्रक्रिया दूसरी होगी? हत्या आखिर हत्या है, और यदि मुख्यमंत्री राजनैतिक रूप से कोई लाभ (एडवान्टेंज) लेना चाहते भी है, तो वे यह आरोप तो लगा सकते है कि एक भाजपाई ने भाजपाई की हत्या की, यदि उनके पास इस बात के पर्याप्त साक्ष्य व तथ्य है तो। हत्या का कारण राजनैतिक द्वेष व व्यक्तिगत विवाद भी हो सकता हैं। लेकिन मुख्यमंत्री का यह कथन जिम्मेदार पूर्ण नहीं कहा जा सकता कि उक्त घटना भाजपा का अंदरूनी मामला है। मुख्यमंत्री व गृहमंत्री का यह कथन निश्चित रूप से जांच एजेंसी पर विपरीत प्रभाव डालेगें, जिससे जांच की दिशा भी बदल सकती है। इसलिये मुख्यमंत्री को कम से कम गहन आपराधिक घटनाओं पर खासकर राजनैतिक व्यक्ति के हत्या होने पर इस तरह के अनावश्यक बयानबाजी से अवश्य बचना चाहिए।
क्या कमलनाथ के उक्त कथन का आशय यह तो नहीं है कि भाजपा की चुनाव में लगभग जीती हुई बाजी हारने के कारण उत्पन्न हताशा इसके लिये जिम्मेदार है? भाजपा का अंदरूनी मामला कहकर क्या मुख्यमंत्री व गृहमंत्री भाजपाईयों की हत्या करने की छूट दे रहे है? आखिर इन कथनों के पीछे उद्देश्य क्या है। यदि भाजपा का यह अंदरूनी मामला है व कानून व्यवस्था का मामला नहीं है तो क्या पुलिस प्रशासन का कानून का उल्लंघन करने वाले ऐसे जघन्य अपराध को रोकने का प्रयास का दायित्व नहीं है? वास्तव में ये बहुत ही गंभीर मामले है, क्योंकि ये घटनाएं हत्या जैसे जघन्य अपराधों से जुड़ी है। इसलिये इस पर शासन व प्रशासन दोनो को अत्यंत संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
गृहमंत्री का यह कथन भी हास्यास्पद है कि भाजपा कानून अपने हाथ में न ले। वास्तव में जब गृहमंत्री स्वयं यह कहकर कि यह भाजपा का अंातरिक मामला है, पल्ला झाड़ रहे है तब जब गृहमंत्री ने कानून की कमान समालने से इंकार ही कर दिया हो तो निश्चिय ही भाजपा के द्वारा कानून हाथ में लेने के अलावा क्या विकल्प रहेगा?
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