भारत देश कुल 29 राज्य व 7 केन्द्र शासित प्रदेशों को मिलाकर संघ (यूनियन) बना है। देश का एक प्रमुख पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल की तेजतर्राट मुख्यमंत्री दीदी का यह क्षोभ पैदा करने वाला बयान आया कि नरेन्द्र मोदी को मैं प्रधानमंत्री नहीं मानती हूँ। उनका यह बयान जम्मू-कश्मीर के राजनैतिक नेताओं महबूबा मुफ्ती, फारूख अब्दुल्ला के तथाकथित अलगावादी कहेे जाने वाले बयानों के साथ अलगाव कार्य नेताओं से भी ज्यादा खतरनाक नहीं है? हम सब जानते है कि भारत में संघीय लोकतंात्रिक संसदीय व्यवस्था है। वर्ष 2014 में हुये पिछले आम चुनाव में प्रधानमंत्री के रूप में देश की जनता ने पहली बार पूर्ण बहुमत से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को विजय श्री दिलाई और संवैधानिक रूप से नरेन्द्र्र मोदी हमारे देश के प्रधानमंत्री चुने गये।
देश की लोकतंात्रिक व्यवस्था के द्वारा चुने गये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति दूसरी चुनी हुई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उक्त कथन निश्चित रूप से पूर्णतः अराजक व संवैधानिक व्यवस्था की चूल को हिलाने वाला है। आश्चर्य तो इस बात का है उनके इस अमर्यादित व अलोकतांत्रिक कथन पर पूरे देश के मीडिया से लेकर राजनैतिक विश्लेषको, राजनैतिक नेताओं, पार्टियांे व विशाल बुद्धिजीवी वर्ग की जो त्वरित प्रतिक्रिया होनी चाहिए थी, वैसी न होना भी एक निराशा लिये हुये आश्चर्य जनक दुखद पहलू है। यही देश की राजनीति का दुर्भाग्य भी है।
अभी-अभी आया ममता का यह बयान न केवल वास्तव में बहुत ही नग्न है, बल्कि कल्पना से परे राजनीति के निम्नतर स्तर का है कि जहाँ उन्होंने यह कहा कि नरेन्द्र मोदी बंगाल में आकर झूठ बोलते है और हाथ उठाते हुई वह यह कहती है कि ‘‘मन करता है मैं उन्हे लोकतंत्र का जमकर थप्पड़ मारू’’ मैं समझता हूँ कि अब वे दीदी कहलाने की अधिकारी भी नही रही है। इसके पूर्व वे पीएम के मुह पर सर्जिकल टेप व उनके होठो पर ब्यूकोप्लास चिपकाने की बात कह चुकी है। ताकि मोदी झूठ न बोल सके। जय श्री राम के नारे पर उनकी घुड़की को भी सारा देश देख चुका है। अमित शाह ने आज जो ममता को लेकर बयान दिया है, वह शायद भविष्य की कार्यवाही की ओर इंगित करता है जब चुनाव के बाद ममता की सरकार को कहीं भंग न कर दिया जाये। ममता के द्वारा इस आम चुनाव में अभी तक जो बहुत ही ‘‘प्रिय ममतामयी वाणी’’ का उद्गार उदघोषित हो रहा है उसके लिये उक्त कार्यवाही ही शायद अंतिम विकल्प व सही जवाब होगा।
ममता का मोदी के चक्रवाद फानी के संबंध पर फोन पर बात न करने के बयान को लेकर जो पलटवार किया है कि मैं मोदी की नौकर नहीं हूँ राजनैतिक अशिष्टता की निम्नतर श्रेणी है। चक्रवाद फानी के संबंध में सहायता देने के संबंध में बुलाई मीटिंग में मुख्यमंत्री के बदले मुख्य सचिव को बुलाये जाने पर ममता ने यह तर्क देकर कि यह एक संघीय ढाचा हैं, आप मुख्यमंत्री के बिना मिटिंग कैसे कर सकते है, बयान देकर जो पलटवार किया, वह उनकी दोगली व दोहरी नीति को ही दर्शाता है। एक तरफ संघीय ढ़ाचे के होते हुये चुने हुये प्रधानमंत्री मोदी को न केवल एक्सपायरी प्रधानमंत्री कह रही है बल्कि उन्हे प्रधानमंत्री मानने से ही इंकार कर दिया है। वहीं दूसरी ओर मुख्यसचिव को बुलाने पर संघीय ढाचे की दुहाई का तर्क दे रही है।
वर्तमान राजनीति में खासकर चुनावी दौर में मतभेदों का मनभेदों की सीमा तक ले जाना भी सामान्य प्रक्रिया मानकर उसे सहन किया जा सकता है। लेकिन यदि इसे उस सीमा तक ले जाया जाये कि वह देश व संविधान के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दे, संवैधानिक व्यवस्था को आखंे दिखाने वाला हो, तो यह स्थिति किसी भी रूप में स्वीकार योग्य नहीं हो सकती हैं। एक समय एनडीए के सदस्य रही ‘‘प्रिय’’ भाजपा के नेतृत्व में बनी सरकार में मंत्री रही ममता दीदी का भाजपा व मोदी के विरूद्ध इस तरह की लगातार घृणा-स्पद लिये हुये बयान क्या उनकी निराशा हताशा को नहीं दिखाता है? खासकर उक्त बयान पर तो राजनीति से परे सार्वजनिक जीवन के समस्त पक्षों को उनके विरूद्ध कानूनी व कड़े राजनैतिक कदम उठाये जाने की आवश्यकता नहीं है क्या? वर्ष 2019 के आम चुनाव में सत्ता व विपक्ष के बीच सबसे ज्यादा खटास लिये हुये रण उत्त्तर-प्रदेश, बिहार से भी ज्यादा जो दिखाई दे रहा हैं वह पश्चित बंगाल ही है। इस तूनक मिजाजी मुख्यमंत्री ममता के बयान पर देश के उन तथाकथित लेखक बुद्धिजीवियों व अवाडऱ् वापसी गैंग के बयान नहीं आये जो पूर्व में देश में घटित हुई कई घटनाओं के चलते जैसा सेना शोर्य का चुनाव में उपयोग पर आये हुआ बयान हो या मीटू का मामला हो, या असहिष्णुता के मुद्दे पर राष्ट्रीय पुरस्कार पद्म-श्री लौटाने का मामला हो, इत्यादि-इत्यादि घटनाओं के संबंध में बयान देने में एक मिनट की भी देरी नहीं करते रहे है।