बुधवार, 31 जुलाई 2019

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने आखिर गलत क्या कहाँ ?


भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो पूर्व में भी अपने कई बयानों के कारण मीडिया व देश की राजनीति में न केवल चर्चित रही, बल्कि उनके बयानों के कारण भाजपा को शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी है, व पार्टी की किरकिरी भी हुई है। प्रधानमंत्री तक को पार्टी की छवि बचाने के लिये यह कहना पड़ा कि गोड़से को देशभक्त बताने वाले उनके बयान के लिये वे साध्वी को कभी भी दिल से माफ नहीं कर पाएगें। 
वही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का सीहोर में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में यह उद्बोधन/कथन सामने आया है कि ‘‘हम नाली साफ करवाने के लिए नहीं बने है। हम आपका शौचालय साफ करने के लिए बिल्कुल नहीं बनाएं गए हैं। कृपया इसे समझें! हम जिस काम के लिए चुने गए हैं, वह काम हम ईमानदारी से कर रहे हैं’’। आगे उन्होंने ये भी जोड़ा कि ‘‘निर्वाचन क्षेत्र के समग्र विकास के लिए स्थानीय विधायक और नगरपालिका पार्षदों सहित स्थानीय जनप्रतिनिधयों के साथ काम करना संसद के सदस्य का कर्तव्य है।’’ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का यह बिल्कुल सीधा सादा सही अर्थो में संवैधानिक रूप से सत्य बयान होने के बावजूद भी उस पर तुच्छ राजनीति भी हो सकती है, यह शायद सिर्फ हमारे देश में ही संभव है। उक्त बयान पर मीडिया से लेकर राजनैतिक नेताओं तक ने बवाल और बवंडर मचा दिया। इससे यह भी सिद्ध होता है कि देश का राजनैतिक स्तर, नेताओं का बौद्धिक स्तर व मीडिया की गुणवता का स्तर निम्न होकर कितने नीचे गिर सकता है? किसी बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय उस बयान के प्रसंग में जाए बिना राजनेताओं द्वारा अनर्गल व असंदर्भित प्रतिक्रिया देकर मीडिया के सहयोग से किस तरह से वे सुर्खियों में आना चाहते हैं, उसके निम्न स्तर का यह एक ‘‘श्रेष्ठ’’ उदाहरण है। 
बयान पर प्रतिक्रिया देने के पहिले जरा सोचिए तो! साध्वी ने उक्त कथन कहां पर किस संदर्भ में व किनके समक्ष दिया है। किसी भी बयान को उसके संर्दभ से अलग कर उस पर प्रतिक्रिया देना अपरिपक्वता नहीं तो और क्या है? साध्वी के बयान पर दी गई प्रतिक्रिया, बयान के तथ्यों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है। अतः बिना सोचे समझे, या यह कहां जाए तो ज्यादा बेहतर होगा कि जानबूझकर सोची समझी योजनाबद्ध रूप से उक्त बयान को प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम की सीमा तक ले जाकर, उसके विरूद्ध ठहराकर, आलोचना करने का जिस तरह माध्यम उक्त बयान को बनाया गया है, वह नितांत बचकाना कार्य लगता है। सांसद असदुद्ीन ओवैशी ने कहां मुझे कतई हैरानी नहीं हुई, न मैं इस वाहियात बयान से स्तब्ध हूूँ, वह ऐसा इसलिए कहती हैं, क्योंकि उनकी सोच ही ऐसी है। सांसद भारत में हो रहे जाति तथा वर्गभेद में यकीन करती हैं। वह साफ-साफ यह भी कहती है कि जो काम जाति से तय होता है वह जारी रहना चाहिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और उन्होंने खुलेआम प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का विरोध किया। 
जरा ओवैसी केे उक्त बयान पर ध्यानपूर्वक गौर कीजिये। जो बात साध्वी ने कही ही नहीं, वह ओवैसी उनके मुख में जबरदस्ती डलवाना चाहते है। यह देखा जाना चाहिऐ कि साध्वी अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठी हुई थी, और जब किसी कार्यकर्ता ने उन्हें सफाई की कोई समस्या बताई तब उन्होंने उक्त कथन किया, कि मुझे आपने इस कार्य के लिए नहीं चुना गया है। उनका यह कथन पूर्णतः सही है। लेकिन देश में आज कल राजनैतिक वातावरण भाजपा के ईर्द गिर्द सीमित मात्र होकर शैनेः शैनेः एक तंत्रीय प्रणाली होता जा रहा है। भाजपा में रहते हुए कड़क सही बात बोलने की जो हिम्मत उन्होंने दिखाई है, वह काबिले तारिफ है। उसके लिये वे साधुवाद की पात्र है।
आखिर उन्होंने गलत क्या कहा है? हमारे देश में लोकतंत्र को पूर्ण सही रूप से सच्चे अर्थो में स्थापित करने की प्रक्रिया स्वरूप ही संविधान और कानून समस्त विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप पंचायत स्तर से लेकर राष्ट्र को चलाने की केन्द्रीय शासन की व्यवस्था तक प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग तंत्र स्थापित किया गया है। पंचायत का कार्य ग्राम पंचायत स्तर पर ग्रामों का विकास करना है, जिसे पंचायती राज कहा गया है। नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के माध्यम से स्थानीय स्वशासन स्थापित कर कस्बे-शहर में साफ सफाई करने से लेकर शौचालय व सड़कों की सफाई के कार्य के साथ-साथ सर्वांगींण विकास के कार्य का उत्तरदायित्व स्थानीय स्वशासन अर्थात पार्षदों का ही है। मतलब निश्चित रूप से मूलतः सफाई का कार्य विधायक या सांसद का नहीं है, और न ही जनता उन्हे इस कार्य के लिये चुनती हैं। इसके लिये तो सामान्य पार्षद चुने जाते है। लेकिन जनप्रतिनिधी होने के नाते सफाई कार्य व स्वच्छता पर निगरानी रखना जनप्रतिनिधी होने के नाते जरूर उनका दायित्व बनता है, क्योंकि आजकल क्षेत्र का विकास नापने का एक मापदंड स्वच्छता भी है। 
विधायक को विधानसभा क्षेत्र के विकास व प्रदेश के नागरिकों के हित के लिए आवश्यक कानून बनाने के लिए विधानसभा भेजा जाता है। ठीक उसी प्रकार सांसद को संसदीय क्षेत्र के विकास के साथ-साथ देश हित में देश के नागरिकों के सर्वांगीण शांतिपूर्ण विकास व देश की आंतरिक-बाह्य सुरक्षा के लिए पर्याप्त समुचित कानून बनाने के लिए चुना जाता है। इसीलिये विकास के लिये विधायक निधि व सांसद निधि का प्रावधान भी किया गया है। मतलब साफ है कि विधायिका जिसमें सांसद व विधायक शामिल है, का कार्य मुख्य रूप से मूलतः कानून बनाना है। ट्रांसफर, पोस्टिंग व्यक्तिगत कार्य और साफ सफाई का कार्य सांसद का नहीं है। यद्यपि नागरिकों के चुने हुए प्रतिनिधी होने के नाते सांसद यदि उक्त कार्यों पर प्रभावी निगरानी रखते है, तो अवश्य वे एक सजग विधायक या सांसद कहलाएंगे।
भारतीय जनता पार्टी के विधायक व प्रदेश के उपाध्यक्ष अरविंद भदोरिया इस बात के लिए बधाई के पात्र है, कि उन्होंने साध्वी की भावनाओं को सही परिपेक्ष में समझा, और उसे सही बतलाया। वास्तव में साध्वी ने जो कहा, उसे इस बात से भी समझा जा सकता है, कि गिलास आधा भरा है, अथवा आधा खाली। साध्वी ने गिलास आधा भरा है, के अनुसार कथन किया। बात कही। बाकी नासमझ लोगों ने उसे आधा खाली जताने की कोशिश की। 
ओवैसी से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा से यह पूछा जाना चाहिये कि वास्तव में सांसद के संविधान में निहित कार्य, दायित्व, जिम्मेदारी व अधिकार क्या है? जिनका वर्णन संविधान में किया गया है। जब साध्वी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान कार्यक्रम का कोई संदर्भ या जिक्र तक नहीं किया और न ही इस ओर इग्ंिांत ही किया है अथवा किसी भी तरह से उक्त अभियान की कोई आलोचना की है, तब उनसे उनके उक्त बयान को राष्ट्रीय अभियान से जबरदस्ती संर्दभित कर,स्पष्टीकरण मांगने की आवश्यकता बन गई ? उक्त बयान सेे पार्टी की छवि को कैसे नुकसान पहंुच गया, यह समझना मुश्किल है। इससे तो यही सिद्ध होता है, कि भाजपा में भी सांसदों को सही बात दिल से कहने की स्वतंत्रता नहीं है? उन्हे अपने कार्यकर्ताओं को सही बात (जो प्रायः कड़वी होती है) समझाने का अधिकार नहीं है। उन्हे परिपक्व बनाने व अपने दायित्व के प्रति जाग्रत करने का अधिकार नहीं है? शायद कड़वी बात कहना आज की राजनीति में संभव ही नहीं है।  
निश्चित रूप से ‘‘साध्वी’’ उस तरह की अनुभवी व बड़ी राजनीतिज्ञ नहीं है, जैसे (अन्य) लोग राजनीति में आते हैं। इसीलिए वेे वह राजनैतिक सावधानी नहीं बरत पाई, जो आज की राजनीति में अत्यंत आवश्यक है। यदि वे उस बयान के साथ यह भी जोड़ देती कि मोदी जी के राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम को आप लोग आगे बढ़ाये, तो शायद यह बवंडर नहीं होता। चंूकि वह कोई स्वच्छता अभियान की बैठक तो नहीं ले रही थी? न ही कोई समीक्षा कर रही थी, न ही उक्त कथन साध्वी ने किसी संगोष्ठी में, किसी टीवी डिबेट में या किसी सार्वजनिक मंच पर दिया था। शायद देश में आज की राजनैतिक स्थिति में सीधे सज्जन और साध्वी जैसों की आवश्यकता ही नहीं है। इसलिए आवश्यकता साध्वी के कान उमेठने की नहीं, बल्कि राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता को जागृत करने की है। ऐसे कार्यकर्ताओं को उनका दायित्व बोध कराकर, परिपक्व बनाने की है, जो अपने मोहल्ले के नाली साफ करने के लिए भी सांसद से अपेक्षा रखते हैं। 
लेख को शुरू से अंत तक पढ़ने के लिये धन्यवाद!

क्या विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत ‘‘एकल पार्टी’’ तंत्र बनने जा रहा है?


बेशक, भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। नरेंद्र मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार पिछले कुछ समय से भारतीय राजनीति में जो घटनाएं घटित हो रही हैं, उनसे लगता है कि अगले कुछ समय में ही भारत विश्व का सबसे बड़ा एकमात्र ऐसा लोकतांत्रिक देश बन जायेगा, जहां सिर्फ एक पार्टी (सत्ताधारी) का ही अस्तित्व होगा। इसके बावजूद भी वह विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाता रहेगा। जहाँ दूसरे देशों में इस स्थिति को (राजशाही) मोनोआर्की कहां जाता है। विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश के संविधान में यह नहीं लिखा है कि लोकतंत्र के लिए दो राजनीतिक पार्टियों के होने की आवश्यकता है। लेकिन व्यवहारिक रूप से प्रभावी लोकतंत्र की सफलता के लिए सामान्यतः कम से कम दो राजनीतिक पार्टियां के अस्तित्व की अपेक्षा अवश्य की जाती है। एक सत्ताधारी और दूसरी उस पर अंकुश रखने वाला विपक्ष। यद्यपि कानून में ऐसा कोई सीमा का प्रावधान/प्रतिबंध नहीं है। वर्ष 1947 के पश्चात स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत में भी गुजरते समय के साथ-साथ लोकतंत्र परिपक्व होता गया। वर्ष 1952 के प्रथम आम चुनाव में भारी बहुमत प्राप्त करने वाले सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस की तुलना में बहुत अल्प (नगण्य) संख्या में विपक्ष रहने के बावजूद एक प्रभावी विपक्ष की उपस्थिति और भूमिका हमेशा रहती आयी है। क्योंकि तत्समय कई प्रबुद्ध और स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिए हुए प्रसिद्ध राजनैतिक नेता संसद में मौजूद रहकर विपक्ष से प्रभावी रूप में उपस्थिति दर्ज कराते थे। 
नरेंद्र मोदी द्वारा दोबारा प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद जनादेश द्वारा चुनी हुई कांग्रेसी सरकारों के एक के बाद जाने को संभावनाएं दिन प्रतिदिन बलवती होती जा रही हैं। कर्नाटक का उदाहरण ताजा है, जहां सरकार गिर जाने की पूरी संभावनाएँ है। इसके पूर्व गोवा में भी 10 विधायक दल बदल करके भाजपा में शामिल हो कर विपक्ष के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया। वहाँ आम चुनाव में कांग्रेस (अब विपक्ष) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी व सरकार बनाने का उसका वैधानिक व नैतिक आधार राजनैतिक चाल बाजियों के चलते छीन लिया गया था। पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तर पूर्व प्रदेशों में लगातार दल बदल के द्वारा विपक्ष को अस्तित्वहीन करते हुए भाजपा तेजी से एकाधिकार की ओर बढ़ती जा रही है। तर्क यह किया जा सकता है कि विपक्ष को मजबूत बनाए रखना क्या सत्ताधारी पार्टी का काम है? निश्चित रूप से कदापि नहीं। लेकिन एक लोकतांत्रिक देश, जहां दल बदल विरोधी कानून वर्षो से लागू है, सत्ता लोलुपता के लाभ में उस कानून का पूरा मखौल वास्तविक रूप से नहीं उड़ाया जा रहा है?या कानून की बारिकियों से (नैतिकता से नहीं) तोड़ मरोड़ कर उससे बचने का रास्ता नहीं निकाला जा रहा है? इस तथ्य को भी ध्यान में रखना आवश्यक होगा कि जनता जनादेश देकर एक पार्टी के लोकतांत्रिक शासन को सौपना नहीं चाह रही है। नरेंद्र मोदी का सिद्ध निस्वार्थ जनसेवक जैसे महान व्यक्तित्व व राहुल गांधी का प्रेरणा हीन एक सामान्य व राजनीति में असफलता का पु्रछल्ला लिये हुये व्यक्तित्व होने के बावजूद, यदि कांग्रेस को गुजरात में सफलता से लेकर कर्नाटक, राजस्थान मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने का मौका जनता ने दिया है, तो  सत्ता और धन बल का उपयोग करके छेड़ छाड़ द्वारा सत्ताधीष भाजपा को उस जनादेश को बदलने का नैतिक व कानूनी अधिकार बिलकुल भी नहीं है। विशेषकर इसीलिये भी क्योंकि भाजपा एक ऐसी पार्टी रही है जिसने उस समय हमेशा सिद्धांतों व नैतिकता के मूल्यों की बात की है, जब कांग्रेस ने उक्त मूल्यों को लगभग समाप्त कर दिया था। विशेष कर अटल बिहारी के जमाने में तो अटल जी ने विपक्ष (भाजपा) को हमेशा सम्मान दिया। मात्र एक वोट कम पड़ने पर भी उन्होंने सरकार को गिर जाने दिया, लेकिन सरकार बचाने के लिये वह एक वोट पाने का प्रयास नहीं किया। जिस तरह अभी पूर्ण बहुमत प्राप्त सरकारे दल बदल कर अपनी सरकारो को और मजबूत कर रही है। अटल जी की और नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का यह अंतर स्पष्ट गोचर होता है।
इसलिए भाजपा को यह सोचना चाहिए कि जनता जब उन्हें लगातार जनादेश दे रही है व आगे भी तैयार दिखती है, तब वह समय का इंतजार कर वह जनता से सीधा जनादेश लेकर अपना एकछत्र राज स्थापित करके नरेंद्र मोदी की उस कल्पना को क्यों नहीं चरितार्थ एवं साकार करती है जिसमें नरेंद्र मोदी यह कहते हुये नहीं थकते रहे कि देश की राजनीति एक दिन कांग्रेस विहीन हो जाएगी। सत्ता के शीघ्र विरोध शिखर पर पहुंच जाने के चक्कर में सिद्धांतों की बली देकर खासकर उस समय जब जनता को आज की परिस्थितियों में किसी अन्य पार्टी से कोई उम्मीद ना बची हो, क्या भाजपा भी उसी रास्ते की ओर नहीं जा रही है जिस रास्ते को कांग्रेस द्वारा लम्बे समय तक अपनाये जाने कारण जनता उसे लगभग पूर्णतया खारिज कर चुकी है?सिंद्धातों व नैतिकता को कमजोर करने जाने का कतई कोई औचित्य/समझ नहीं पड़ता है।

जानिये!‘‘कैलाश मानसरोवर’’ ‘‘यात्रा का अनुभव’’ एवं यात्रा में बरतने वाली सावधानियाँ!


सामान्यतया प्रत्येक हिन्दू धर्मावलंबियों की अन्तिम इच्छा देश के चारों धाम बद्रीनाथ (जिसमें उत्तराखंड के चारो धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री शामिल है) द्वारका, जगन्नाथ पुरी व रामेश्वरम की तीर्थ यात्रा कर लेने के बाद कैलाश मानसरोवर की ‘‘अदभुत यात्रा’’ करने की होती है। केदारनाथ धाम को छोड़कर मेरी बाकी धामों की यात्रा पूरी हो चुकी थी। इसलिये मेरी केदारनाथ धाम यात्रा जाने की सतत उत्कट इच्छा अवश्य रही। लेकिन कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने का मन एवं दिमाग मैने कभी भी नहीं बनाया था। उक्त यात्रा के संबंध में एक बात तो बचपन से ही सुन रखी थी कि यह एक कड़ी कठिन यात्रा है और तत्समय उन दिनों जो लोग उक्त कठिन यात्रा पर जाते थे, उनके परिवार के सदस्य मानसिक रूप से उन्हे अंतिम बिदाई मानकर भेजते थे। उनके सकुशल लौट आने पर घर व समाज में त्यौहार जैसी खुशी मनायी जाती थी। दूसरी बात जो मेरे मन में थी, वह यह कि मेरा स्वास्थ्य कैलाश मानसरोवर यात्रा की परिस्थितियों के बिलकुल भी अनुकूल नहीं था। साथ ही मेरे व्यस्ततम जून महीने में 20 दिनों का समय निकालना संभव प्रतीत नहीं होता था। इन्ही सब मानसिक द्वन्दों के चलते मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मुझे कभी कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाना चाहिये। 
कैलाश मानसरोवर यात्रा का अनुभव साझा करने के पूर्व कैलाश मानसरोवर के बाबत संक्षिप्त जानकारी देना आवश्यक है। कैलाश पर्वत 22,068 फीट ऊंचा विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केन्द्र है। इसकी बाहरी परिधि 52 कि.मी. है। हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। यह पूरे वर्ष भर बर्फ की सफेद चादर में लिपटा रहता है। इस कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है-ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली हैं। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख, पश्चिम में हाथी का मुख, उत्तर में सिंह का मुख व दक्षिण में मोर का मुख है। 
मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। साथ ही यह उतना ही पुराना है जितनी हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश व ध्वनि तरंगों का समागम होता है जो ‘‘ऊं’’ की प्रतिध्वनि निकालता है। कैलाश पर्वत की तलहटी मंे कल्पवृक्ष लगा हुआ है। अदभुत स्वरूप होने के कारण इसके हर भाग को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है। पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व को क्रिस्टल, पश्चिम को ‘‘रूबी’’ और उत्तर को ‘‘स्वर्ण’’ के रूप में माना जाता है। पौराणिक कथाओं में भी यह जिक्र मिलता है कि यह स्थान कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है। यहां से बाबा भोलेनाथ उन्हें अपनी जटाओं में भरकर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यु लोक है। जहां भगवान शिव साक्षात विराज मान है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि कैलाश पर्वत ब्रम्हाण्ड़ की धुरी, और भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। शिव पुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण इत्यादि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां कैलाश महिमा का गुणगान किया गया है। 
कैलाश से 40 कि.मी. की दूरी पर मानसरोवर झील के दर्शन की विशेष महिमा है। मान्यता है महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की थी, जो पुराणों में क्षीर सागर के नाम से वर्णित है। इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित है जो पूरे संसार को संचालित कर रही है। यही विष्णु का आश्रय भी है। यह लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। मानसरोवर के पास एक संुदर सरोवर रकसताल है। इन दो सरोवर के उत्तर में कैलाश पर्वत है, दक्षिण में गुर्रला पर्वत माला व शिखर है। संस्कृत शब्द ‘‘मानसरोवर’’, मानस तथा सरोवर को मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर। कहते हैं कि मानसरोवर वह झील है, जहां माता पार्वती स्नान करती थीं और मान्यता अनुसार, वह आज भी करती हैं। यह भी मान्यता है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर में एक बार डुबकी लगा ले तो वह रूद्र- लोक पहुंच सकता है। शाक्त ग्रंथ के अनुसार देवी सती के शरीर का दाया हाथ इसी स्थान पर गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। इसलिये इसे 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना गया है। 
कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मो हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म का धार्मिक केन्द्र भी  है। बौद्ध धर्मावलंबी यहां भगवान बुद्ध व माणिपद्या का निवास मानते हैं। भगवान बुद्ध का अलौकिक रूप ‘‘डेमचौक’’ (धर्मपाल) बौद्धों के लिये पूज्यनीय हैं। उनका यह भी मानना है कि इसके केन्द्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। भगवान बुद्ध की माता ने यहां की यात्रा की यह भी माना जाता है। जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल ’अष्टपद’ है। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था। इसलिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है। वैज्ञानिक मान्यता: वैज्ञानिकों के अनुसार, यह स्थान धरती का केंद्र है। इसके एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत और मानसरोवर। वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के चारों ओर पहले समुद्र होता था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानतः 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी। यहां एक ऐसा केंद्र जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं। कई बार कैलाश पर 7 तरह की  लाइट आसमान में चमकते हुये देखने का दावा भी किया गया है। 
आइये अब कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने की भूमिका की थोड़ी चर्चा कर ले।
एक दिन मेरे पारिवारिक मित्र महेन्द्र दीक्षित आए और उन्होंने बतलाया कि बैतूल के ही लगभग 18 से 20 लोग कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने के लिये तैयार हो रहे है। वे सब आपके परिचित ही है। आप भी इस यात्रा पर चलें। महेन्द्र दीक्षित लगभग पिछले 20 वर्षो से बैतूल के नागरिकों को ‘‘बाबा अमरनाथ’’ की धार्मिक यात्रा पर लेकर जाते रहे हैं। धार्मिक यात्राओं का उन्हें अच्छा खासा लम्बा अनुभव है, यह बात मैं अच्छी तरह से जानता था। महेन्द्र दीक्षित ने तीन चार बार आकर मुझसे यात्रा में चलने का आग्रह किया। मैंने उनसे यही कहा कि मेरा यात्रा में जाना ठीक नहीं होगा, क्योंकि मैं तीन बार का हृदय घात से पीडि़त मरीज हूँ। कमर में दर्द है, एल-फोर में गेप हैं। अस्थमा का भी मरीज हूँ। कैलाश मानसरोवर की परिस्थितियाँ व पहुुच मार्ग मेरे स्वास्थ्य के बिल्कुल विपरीत होने के कारण मैं निश्चित रूप से बीमार पड़ जाऊगाँ, जिससे परेशान होकर आप सब लोगो की यात्रा का मजा ही खराब हो जायेगा। लेकिन इसके बावजूद उनका यह लगातार अनुरोध रहा कि ‘‘आप तो अपना मन बनाइये, बाकि सब ‘‘बाबा’’ पर छोडिये। कैलाश मानसरोवर वे ही लोग पहंुच सकते है जिन्हे ‘‘बाबा’’ बुलाते है’’। तब मैने अपने आपको मानसिक रूप से यात्रा के लिये तैयार किया। अंततः उनका उक्त कथन तब अक्षरसः सही सिद्ध हुआ, जब मैं 10 जून को बैतूल से निकल कर 30 जून को सम्पूण यात्रा सफलता पूर्वक पूर्ण करके, एकदम स्वस्थ रूप में वापिस घर लौट आया। 
आस्तिक होकर ईश्वर पर मेरा दृढ़ विश्वास शुरू से ही रहा है। प्रारंभ से ही जीवन के अनेक क्षेत्रों के साथ धार्मिक क्षेत्रों में भी जुड़ा रहा हँँू। कई पंडितो, साधु-संत, महात्माओं, आचार्यो शंकराचार्यो के निकट संपर्क में रहने के बावजूद कभी भी मुझे ईश्वर की अनुभूति महसूस नहीं हुई। लेकिन यह एहसास मुझे उस दिन हुआ जब हम लोग कैलाश मानसरोवर की यात्रा में काठमांडू से तिब्बत सीमा तक बस से गये। चट्टानों को काटकर बनाये गये संकरे एकल रास्ते से बस हिचकोले लेकर रेंगते हुये चल रही थी। लगातार हर क्षण/कुछ-कुछ क्षण बाद धक्का लगते रहने के बावजूद जब मेरी कमर में किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई, तब मुझे वास्तव में ईश्वर का अनुभव हुआ क्यांेकि मुझे तो डाक्टरों ने स्कूटर पर बैठने से भी मना किया हुआ है। वास्तव में बारम्बार मुझे यह अहसास हो रहा है ‘‘बाबा कैलाश’’ ने ही मेरी यह यात्रा पूरी कराई। ‘‘जय बाबा कैलाश की’’।
बैतूल के 21 नागरिकों के कैलाश मानसरोवर यात्रा से सकुशल बैतूल वापिस लौट आने के बाद निश्चित रूप से यहां के नागरिकों की उक्त यात्रा बाबत उत्सुक्ता बढ़ी है। मेरे पास व अन्य साथियों के पास भी फोन आये व हमसे यात्रा का अनुभव व जानकारी पूछी गई। इस लेख का उद्देश्य भी उन लोगों को यथा संभव पूरी अधिकृत जानकारी देने का प्रयास है, जो (लोग) भविष्य में इस यात्रा पर जाने की सोच रहे है या प्लान बना रहे है। ताकि उन लोगो की यात्रा सुविधा पूर्वक सुगमता व निश्ंिचतता से हो सके व उन्हें उन परेशानियों से बचाया जा सकंे जो हमने यात्रा के दौरान झेली हैं।                            
सर्वप्रथम यात्रा पर जाने का सही समय सामान्यतया जून से लेकर सितंबर तक का होता है। अक्टूबर से अप्रैल तक सरोवर व पर्वत बर्फ (सफेद चादर) से आच्छदित रहते हैं, पानी जमकर ठोस हो जाता है। ठंड में तापमान सामान्य से अत्यंत कम होने के कारण वहां का वातावरण बहुत ही ठंडा हो जाता है। दूसरे, यात्रा पर ले जाने वाली एजेंसी दो तरह की होती है। एक प्रायवेट व दूसरी सरकारी। शासकीय स्तर पर यात्रियों (सिर्फ वे भारतीय नागरिक जिनके पास पासपोर्ट हैं) के आवेदन ऑन लाईन बुलाये जाते है, जिसकी तारीख प्रतिवर्ष अधिसूचित होती है (सामान्यतया जून महीने में)। आवेदकों की आयु सीमा 18 से 70 साल के बीच निर्धारित की हुई है। बॉड़ी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 या उससे कम होना चाहिए। उच्च रक्त चाप, मधुमेह दमा हृदय रोग मिरगी इत्यादि रोगों से पीडि़त व्यक्ति योग्य नहीं होते है। सरकारी एजेंसी में संख्या निश्चित व सीमित होती है। 50 श्रृद्धालुओं के 10 जत्थे से लेकर 60-60 श्रद्धालुओं के 18 जत्थे रूट अनुसार निर्धारित किये जाते है। पूरी यात्रा अवधि 24 दिन होती है। अलग-अलग रूटो की यात्राविधि अलग-अलग होती है। प्रायवेट एजेंसी की यात्रा में संख्या निश्चित नहीं हेाती है। कंप्युटरीकृत ड्रा द्वारा आवेदनों को चुनाव (चयन) के साथ ही बैच व मार्ग भी आंवटित किया जाता है (हेल्पलाईन नं. 011-24300655 हैं)।  कट आफ तिथी के पूर्व पुष्टीकरण राशी जमा कर अपनी भागीदारी की पुष्टि करनी होती है।
चयन के बाद चुने गए एवं संपुष्ट किए गए यात्रियों को यात्रा के लिए दिल्ली आते समय निम्नलिखित दस्तावेजों को अपने साथ अनिवार्य रूप से लाना होगा। (1). भारतीय पासपोर्ट, जो वर्तमान वर्ष के कम से कम 6 महीने के लिए वैध हो। (2). रंगीन पासपोर्ट साइज फोटो की (6 प्रतियाँ)। (3). क्षतिपूर्ति बांड 100 रूपय या स्थानीय स्तर पर लागू राशि के गैर-न्यायिक स्टांप पेपर पर जो प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट या नोटरी पब्लिक द्वारा सत्यापित हो। (4). वचन पत्र आपात स्थिति में हेलिप्कॉटर द्वारा निकासी हेतु। (5). सहमति पत्र, चीनी क्षेत्र में हुई मृत्यु की स्थिति में पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार हेतु। 
सरकारी टूर एजेंसी में तीन जगह डीएचएलआई (दिल्ली हार्ट एंड लंग इंस्टीट्यूट) एवं आईटीबीपी बेस अस्पताल द्वारा आयोजित विशिष्ट चिकित्सा जांच करनी होती है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी स्तर पर मेडि़कल जांच में किसी भी तरह से अनप्युक्त (फिट नहीं) पाया जाता है, तो उसे यात्रा पर आगे जाने से रोक दिया जाता है (पूर्व में भुगतान किया गया शुल्क भी वापिस नहीं किया जाता है) यानी मेरा जैसा रोगी व्यक्ति तो सरकारी यात्रा हेतु शायद ही फिट पाया जाता। प्रायवेट एजेंसीज में न तो कोई मेडि़कल जांच होती है और न ही कोई डॉक्टर यात्रा में साथ होता है। सरकारी एजेंसी में डॉक्टर यात्रा के साथ रहते है। 
हम लोग काठमांडू से बस से सायप्ररूबेंसी मार्ग से तिब्बत सीमा पहंुचे थे। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे से एक मार्ग (जिसमें प्रति व्यक्ति सरकारी यात्रा का खर्च 1.8 लाख रूपये आता है) और दूसरा मार्ग गंगटोक से गुजरने वाले नाथुला दर्रे से होकर जाने वाला मार्ग है ,जिसमें हांगू लेक व तिब्बत पड़ता है। लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरने वाले मार्ग में ‘‘ओम पर्वत’’ (चियालेख घाटी) की प्राकृतिक सुंदरता के भी दर्शन हो जाते है जहाँ प्राकृृतिक रूप से बर्फ में ओम की आकृति बनी होती है। नाथूला दर्रे से जाने वाला मार्ग मोटर वाहन और टेªकिंग न कर सकने वाले वरिष्ट नागरिकों के लिए ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन फिलहाल डोकलाम विवाद के बाद से यह रास्ता बंद कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त वायु मार्ग से काठमांडू से नेपालगंज, नेपालगंज से सिमिकोट पहुंचकर वहां से हिलसा तक हेलीकॉप्टर द्वारा पहंुचा जा सकता है। वैसे काठमांडू में लैंडक्रूजर गाड़ी की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। काठमांडू से ल्हासा के लिए ‘चाइना एयर’ वायुसेना उपलब्ध है, जहां से तिबब्बत के विभिन्न कस्बों शिंगाटे, ग्यांतसे लहात्से, प्रयाग पहंुचकर मानसरोवर यात्रा पर जा सकते हैं। 
प्रायवेट एजेंसियों के द्वारा यात्रा में जाने पर अधिकांश यात्रियों को एजेंसीज की अनेकानेक मनमानीयों का प्रायः शिकार होना पड़ता है। उनके द्वारा यात्रियों से तय शुुदा राशि तो शुरू में ही पूरी ले ली जाती है। लेकिन अतिरिक्त लाभ के लालच में अतिरिक्त राशि के लिये वे विभिन्न तय शुदा सुविधाओं में कमी करके बार-बार परेशान करते रहते हैं। चंूकि यात्री उस समय दूसरे देश में असहाय स्थिति में होता है, अनजान जगह में रहता है अतः मजबूरी में (टेªवल्स कंपनी के कर्मचारियों के अनावश्यक दबाव में) उसे उनकी अनुचित मांगो को भी स्वीकार करके अतिरिक्त राशि देते जाना पड़ता है। हमारी यात्रा में एक दिन तो स्थिति इतनी बदतर हो गई कि हमारी टूर एण्ड़ टेªवल्स एजेंसी ने हमसे अतिरिक्त पैसे लेने के उद्देश्य से होटल के मैनेजर से कहकर हमारे कमरों की लाईट ही बंद करवा दी। इसलिए यदि आप प्रायवेट एजेंसी के द्वारा जा रहे है तो सही टूर टेªवल्स एजेंसी को चुनना अत्यंत आवश्यक है। 
हमने भोपाल की ‘‘हालिडे पांइट टूर एण्ड टेªवल्स एजेंसी’’ के मालिक (राजेश अग्निहोत्री जिनका बैतूल से संबंध रहा है) से यात्रा की सुविधाएँ शर्ते व रेट महेन्द्र दीक्षित के माध्यम से तय किए थे। रूपये 1 लाख 26 हजार प्रति यात्री तय हुआ था। पैकेज काठमांडू से कांठमांडू तक था।  हालिडे पांइट टूर एण्ड टेªवल्स एजेंसी भोपाल के राजेश अग्निहोत्री ने अपना कमीशन/लाभ लेकर उक्त सम्पूर्ण यात्रा का पैकेज ‘‘ओझा हालिडे टूर एण्ड़ टेªवल्स काठमांडू’’ की एजेंसी को हस्तांतरित कर हमे उनके हाथों में सौप दिया जिनसे हमारी कोई पहचान ही नहीं थी। इसलिए प्रायवेट कंपनी से जब भी हम बात करे तो स्थानीय या भोपाल की ख्याति प्राप्त परिचित टूर एवं टेªवल्स एजेंसी से बात करे जो परिचित रहने से उन पर आवश्यकता पड़ने पर दबाव बनाया जा सके। भोपाल वाली ऐसी टेªवल्स टूर कंपनीयाँ जो स्वयं सीधे यात्रा का प्रबंध न करके काठमांडू की टेªवल्स एवं टूर कंपनी के द्वारा पूरे टूर को आयोजित करवाती है, ऐसी कंपनियों के बजाय सीधे काठमांडू की कंपनी से बातचीत करना ही ज्यादा फायदे मंद साबित होगा। पूरी यात्रा के दौरान मैने राजेश भाई को हमेशा हो रही लगातार असुविधा व तकलीफों व कठनाइयों से मोबाईल के द्वारा सूचित किया वाट्सअप से मैसेज किया लेकिन परिचित होने के बावजूद राजेश अग्निहोत्री नेे हमारी शिकायतो को न तो कोई  तवज्जों दी और न ही उन्हें दूर करने के लिए किसी भी प्रकार का दबाव उक्त ‘‘ओझा हालिड़े टूर एण्ड़ टेªवल्स’’ एजेंसी पर बनाया। जो सुविधाएँ बताकर हमसे पैसे लिये गए उनकी कतई पूर्ति नहीं हुई। साथ ही ओझा हालिडे टूर एण्ड़ टेªवल्स एजेंसी नेे भी हाथ खड़े कर दिये। अतः ‘‘ओझा हालिडे टूर एण्ड़ टेªवल्स’’ एजेंसी काठमांडू व ‘‘हालिडे पांइट टूर एण्ड़ टेªवल्स’’ भोपाल की कंपनी के साथ जाने के पहले दस बार सोच लेना उपयुक्त रहेगा। 
इंटरनेट पर कई प्रायवेट कम्पनियाँ है जिन्हे सर्च करके उचित कंपनी से बातचीत करना चाहिए। सबसे बड़ी सावधानी तो यह बरतनी चाहिए कि टूर कंपनी की पैकेज राशी व उनके द्वारा यात्रा में दी जाने वाली प्रत्येक सुविधा को लिखित में ले लेना आवश्यक है, ताकि पूरी यात्रा के दौरान उक्त कपंनी पर निर्धारित तय सुविधाएँ देने के लिए दबाव बनाया जा सकें। अकेले यात्रा करना कतई सुविधा जनक नहीं होगा। परिचित लोगो केे साथ ग्रुप में यात्रा करेगें तो सुविधा देने के लिए टूर कंपनी पर सामूहिक रूप से दबाव डाल सकेगें। (वैसे कंपनी के पम्पलेट में कई सुविधाओं का उल्लेख होता है) फिर भी लिखित में समस्त सुविधाओं का विस्तृत उल्लेख किया जाना अति आवश्यक है। कौन-कौन सी किस स्तर की जगहों पर ठहराया जायेगा। होेटल सुविधा रहेगी कि नहीं। प्रत्येक स्थान पर होटल किस केटेगरी की होगी। रात्रि विश्राम कितने और कहाँ-कहाँ कब से कब तक रहेंगे। पीने व नहाने के लिये कितना व कैसा पानी मिलेगा। गरम पानी मिलेगा या नहीं। खाने में क्या-क्या और उनकी क्वालिटी कैसी होगी? यात्रा के लिये बस एसी होगी या नॉन एसी। दो सीटर होगी या तीन सीटर। इत्यादि-इत्यादि। सुगम यात्रा के लिये कुछ सावधानियाँ आपको बरतना आवश्यक है। सर्वप्रथम अपने साथ मूल वोटर आइडी/पासपोर्ट का होना आवश्यक है। अन्यथा आपको एयरपोर्ट पर रोक दिया जायेगा। आक्सीजन के लिये कपूर की बट्टी साथ में रखें। आक्सीजन की कमी होने के कारण आक्सीजन सिलेंडर साथ में रखे यद्यपि वहां भी उपलब्ध हो जैसः-गरम कपड़े भी रखे। टार्च रखे। कुछ खराब न होने वाले खाने का समान जैसे जरूर अपने साथ रखे।
सबसे महत्वपूर्ण सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है, (जिस कारण हमें बहुत परेशानी हुई।) कि जब तक टूर एण्ड टेªवल्स कंपनी आपका वीजा न बना दे, तब तक यात्रा की तारीख निश्चित न करे व यात्रा प्रारंभ न करे। सामान्य रूप से टूर कपंनी पासपोर्ट व पैसे लेकर आप से कह देती है कि आपको निकलने के पूर्व या फिर बाद में दिल्ली में तत्पश्चात काठमांडू व अंत में तिब्बत सीमा पर वीजा पासपोर्ट देने का आश्वासन देते रहते है। यात्री ऐसे आश्वासनों पर विश्वास करके बगैर वीजा और पासपोर्ट के यात्रा प्रारंभ कर देते है। हमारा यह अनुभव रहा है कि समय पर वीजा न मिलने के कारण हमारे महत्वपूर्ण 6 दिन बरबाद हो गये। नेपाल पहुंचने पर हमे तुरंत वीजा नहीं मिला। इस कारण तीन दिन काठमांडू में अतिरिक्त रूकने के फलस्वरूप हमारे लौटने का पूर्व निधारित हवाई यात्रा व टेªन का रिजर्वेशन निरस्त कराकर पुनः नया रिजर्वेशन कराना पड़ा, जिसमें हमें बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। पासपोर्ट साथ में न होने के कारण हमारे एक साथी को दिल्ली पर ही रोक दिया गया। क्योंकि मूल वोटर आइड़ी उसके साथ में नहीं था। उसे दूसरे  दिन दूसरी फ्लाइट से काठमांडू पहुंचना पड़ा। इसके एवज में टूर कपंनी ने नुकसान की कोई भरपाई नहीं दी। 
अंतिम पड़ाव डार्चन है जहां तक ही बस जाती है। यहां से लगभग 3 कि.मी. दूर यमद्वार (तारबोचे) है, जहां से ही समस्त लोग कैलाश बाबा के दर्शन करते है। यमद्वार से पैदल या घोडे के द्वारा यात्रा दूरी 12 कि.मी. की दो दिन की (एक रात्रि विश्राम) डिरापुर की होती है। टूर कंपनी के माध्यम से किराए पर घोड़ा-पिट्टू लेने पर ज्यादा पैसे लेते है (लगभग 35 हजार)। इसलिये किराए पर घोड़ा टूर कपंनी से तय न करके यमद्वार (तार बोचे) पहुंचने के बाद स्वयं तय करंे। यहां पर आक्सीजन की कमी तुलनात्मक रूप से ज्यादा होती है। तापमान भी शून्य से नीचे माइनस 2 डिग्री तक होता है। इसके आगे लगभग 38 किलोमीटर की पैदल यात्रा और होती है। सामान्यतः प्रशासन इस पर आगे नहीं जाने देता है। बहुत जबरदस्ती करने पर स्वयं की रिस्क (लिखित घोषणा) पर आप आगे जा सकते है। कैलाश की सम्पूर्ण परिक्रमा 50 कि.मी. की है जिसे सामान्य पैदल यात्री तीन दिन में पूरा कर लेते है। यात्रा के दौरान टूर कंपनी की तरफ से कोई डाक्टर भी नहीं रहते है। बस दो तीन सेवकों के साथ एक गाइड रहता है। वही डॉक्टरी का कार्य करता है और वही सेवा का कार्य भी करता है। अन्त में सबसे महत्वपूर्ण अनुभव यह रहा कि प्रायवेट यात्रा में दिल्ली से लेकर काठमांडू तक काठमांडू (नेपाल) से लेकर तिब्बत बाडऱ्र (चीन) तक व तिब्बत सीमा से लेकर कैलाश मानसरोवर तक की सम्पूर्ण यात्रा पर किसी भी सरकार का कोई प्रभावी नियत्रंण दिखाई नहीं पड़ा। सिवाय तकनीकि रूप से तिब्बत सीमा पर चीन द्वारा माइग्रेशन के कार्य के। जबकि यह यात्रा उत्तराख्ंाड (कमाऊँ मंडल विकासनिगम) दिल्ली, सिक्किम सरकार, भारत व चीन सरकार के विदेश मंत्रालय तथा भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के सहयोग से आयोजित कराई जाती है। 
अंत में इस स्थान से जुड़़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो है ईश्वर ही सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर हैं। 

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