भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जो पूर्व में भी अपने कई बयानों के कारण मीडिया व देश की राजनीति में न केवल चर्चित रही, बल्कि उनके बयानों के कारण भाजपा को शर्मिदंगी भी उठानी पड़ी है, व पार्टी की किरकिरी भी हुई है। प्रधानमंत्री तक को पार्टी की छवि बचाने के लिये यह कहना पड़ा कि गोड़से को देशभक्त बताने वाले उनके बयान के लिये वे साध्वी को कभी भी दिल से माफ नहीं कर पाएगें।
वही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का सीहोर में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में यह उद्बोधन/कथन सामने आया है कि ‘‘हम नाली साफ करवाने के लिए नहीं बने है। हम आपका शौचालय साफ करने के लिए बिल्कुल नहीं बनाएं गए हैं। कृपया इसे समझें! हम जिस काम के लिए चुने गए हैं, वह काम हम ईमानदारी से कर रहे हैं’’। आगे उन्होंने ये भी जोड़ा कि ‘‘निर्वाचन क्षेत्र के समग्र विकास के लिए स्थानीय विधायक और नगरपालिका पार्षदों सहित स्थानीय जनप्रतिनिधयों के साथ काम करना संसद के सदस्य का कर्तव्य है।’’ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का यह बिल्कुल सीधा सादा सही अर्थो में संवैधानिक रूप से सत्य बयान होने के बावजूद भी उस पर तुच्छ राजनीति भी हो सकती है, यह शायद सिर्फ हमारे देश में ही संभव है। उक्त बयान पर मीडिया से लेकर राजनैतिक नेताओं तक ने बवाल और बवंडर मचा दिया। इससे यह भी सिद्ध होता है कि देश का राजनैतिक स्तर, नेताओं का बौद्धिक स्तर व मीडिया की गुणवता का स्तर निम्न होकर कितने नीचे गिर सकता है? किसी बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते समय उस बयान के प्रसंग में जाए बिना राजनेताओं द्वारा अनर्गल व असंदर्भित प्रतिक्रिया देकर मीडिया के सहयोग से किस तरह से वे सुर्खियों में आना चाहते हैं, उसके निम्न स्तर का यह एक ‘‘श्रेष्ठ’’ उदाहरण है।
बयान पर प्रतिक्रिया देने के पहिले जरा सोचिए तो! साध्वी ने उक्त कथन कहां पर किस संदर्भ में व किनके समक्ष दिया है। किसी भी बयान को उसके संर्दभ से अलग कर उस पर प्रतिक्रिया देना अपरिपक्वता नहीं तो और क्या है? साध्वी के बयान पर दी गई प्रतिक्रिया, बयान के तथ्यों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है। अतः बिना सोचे समझे, या यह कहां जाए तो ज्यादा बेहतर होगा कि जानबूझकर सोची समझी योजनाबद्ध रूप से उक्त बयान को प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम की सीमा तक ले जाकर, उसके विरूद्ध ठहराकर, आलोचना करने का जिस तरह माध्यम उक्त बयान को बनाया गया है, वह नितांत बचकाना कार्य लगता है। सांसद असदुद्ीन ओवैशी ने कहां मुझे कतई हैरानी नहीं हुई, न मैं इस वाहियात बयान से स्तब्ध हूूँ, वह ऐसा इसलिए कहती हैं, क्योंकि उनकी सोच ही ऐसी है। सांसद भारत में हो रहे जाति तथा वर्गभेद में यकीन करती हैं। वह साफ-साफ यह भी कहती है कि जो काम जाति से तय होता है वह जारी रहना चाहिए यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और उन्होंने खुलेआम प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का विरोध किया।
जरा ओवैसी केे उक्त बयान पर ध्यानपूर्वक गौर कीजिये। जो बात साध्वी ने कही ही नहीं, वह ओवैसी उनके मुख में जबरदस्ती डलवाना चाहते है। यह देखा जाना चाहिऐ कि साध्वी अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठी हुई थी, और जब किसी कार्यकर्ता ने उन्हें सफाई की कोई समस्या बताई तब उन्होंने उक्त कथन किया, कि मुझे आपने इस कार्य के लिए नहीं चुना गया है। उनका यह कथन पूर्णतः सही है। लेकिन देश में आज कल राजनैतिक वातावरण भाजपा के ईर्द गिर्द सीमित मात्र होकर शैनेः शैनेः एक तंत्रीय प्रणाली होता जा रहा है। भाजपा में रहते हुए कड़क सही बात बोलने की जो हिम्मत उन्होंने दिखाई है, वह काबिले तारिफ है। उसके लिये वे साधुवाद की पात्र है।
आखिर उन्होंने गलत क्या कहा है? हमारे देश में लोकतंत्र को पूर्ण सही रूप से सच्चे अर्थो में स्थापित करने की प्रक्रिया स्वरूप ही संविधान और कानून समस्त विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप पंचायत स्तर से लेकर राष्ट्र को चलाने की केन्द्रीय शासन की व्यवस्था तक प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग तंत्र स्थापित किया गया है। पंचायत का कार्य ग्राम पंचायत स्तर पर ग्रामों का विकास करना है, जिसे पंचायती राज कहा गया है। नगर पंचायत, नगर पालिका व नगर निगम के माध्यम से स्थानीय स्वशासन स्थापित कर कस्बे-शहर में साफ सफाई करने से लेकर शौचालय व सड़कों की सफाई के कार्य के साथ-साथ सर्वांगींण विकास के कार्य का उत्तरदायित्व स्थानीय स्वशासन अर्थात पार्षदों का ही है। मतलब निश्चित रूप से मूलतः सफाई का कार्य विधायक या सांसद का नहीं है, और न ही जनता उन्हे इस कार्य के लिये चुनती हैं। इसके लिये तो सामान्य पार्षद चुने जाते है। लेकिन जनप्रतिनिधी होने के नाते सफाई कार्य व स्वच्छता पर निगरानी रखना जनप्रतिनिधी होने के नाते जरूर उनका दायित्व बनता है, क्योंकि आजकल क्षेत्र का विकास नापने का एक मापदंड स्वच्छता भी है।
विधायक को विधानसभा क्षेत्र के विकास व प्रदेश के नागरिकों के हित के लिए आवश्यक कानून बनाने के लिए विधानसभा भेजा जाता है। ठीक उसी प्रकार सांसद को संसदीय क्षेत्र के विकास के साथ-साथ देश हित में देश के नागरिकों के सर्वांगीण शांतिपूर्ण विकास व देश की आंतरिक-बाह्य सुरक्षा के लिए पर्याप्त समुचित कानून बनाने के लिए चुना जाता है। इसीलिये विकास के लिये विधायक निधि व सांसद निधि का प्रावधान भी किया गया है। मतलब साफ है कि विधायिका जिसमें सांसद व विधायक शामिल है, का कार्य मुख्य रूप से मूलतः कानून बनाना है। ट्रांसफर, पोस्टिंग व्यक्तिगत कार्य और साफ सफाई का कार्य सांसद का नहीं है। यद्यपि नागरिकों के चुने हुए प्रतिनिधी होने के नाते सांसद यदि उक्त कार्यों पर प्रभावी निगरानी रखते है, तो अवश्य वे एक सजग विधायक या सांसद कहलाएंगे।
भारतीय जनता पार्टी के विधायक व प्रदेश के उपाध्यक्ष अरविंद भदोरिया इस बात के लिए बधाई के पात्र है, कि उन्होंने साध्वी की भावनाओं को सही परिपेक्ष में समझा, और उसे सही बतलाया। वास्तव में साध्वी ने जो कहा, उसे इस बात से भी समझा जा सकता है, कि गिलास आधा भरा है, अथवा आधा खाली। साध्वी ने गिलास आधा भरा है, के अनुसार कथन किया। बात कही। बाकी नासमझ लोगों ने उसे आधा खाली जताने की कोशिश की।
ओवैसी से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा से यह पूछा जाना चाहिये कि वास्तव में सांसद के संविधान में निहित कार्य, दायित्व, जिम्मेदारी व अधिकार क्या है? जिनका वर्णन संविधान में किया गया है। जब साध्वी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान कार्यक्रम का कोई संदर्भ या जिक्र तक नहीं किया और न ही इस ओर इग्ंिांत ही किया है अथवा किसी भी तरह से उक्त अभियान की कोई आलोचना की है, तब उनसे उनके उक्त बयान को राष्ट्रीय अभियान से जबरदस्ती संर्दभित कर,स्पष्टीकरण मांगने की आवश्यकता बन गई ? उक्त बयान सेे पार्टी की छवि को कैसे नुकसान पहंुच गया, यह समझना मुश्किल है। इससे तो यही सिद्ध होता है, कि भाजपा में भी सांसदों को सही बात दिल से कहने की स्वतंत्रता नहीं है? उन्हे अपने कार्यकर्ताओं को सही बात (जो प्रायः कड़वी होती है) समझाने का अधिकार नहीं है। उन्हे परिपक्व बनाने व अपने दायित्व के प्रति जाग्रत करने का अधिकार नहीं है? शायद कड़वी बात कहना आज की राजनीति में संभव ही नहीं है।
निश्चित रूप से ‘‘साध्वी’’ उस तरह की अनुभवी व बड़ी राजनीतिज्ञ नहीं है, जैसे (अन्य) लोग राजनीति में आते हैं। इसीलिए वेे वह राजनैतिक सावधानी नहीं बरत पाई, जो आज की राजनीति में अत्यंत आवश्यक है। यदि वे उस बयान के साथ यह भी जोड़ देती कि मोदी जी के राष्ट्रीय स्वच्छता कार्यक्रम को आप लोग आगे बढ़ाये, तो शायद यह बवंडर नहीं होता। चंूकि वह कोई स्वच्छता अभियान की बैठक तो नहीं ले रही थी? न ही कोई समीक्षा कर रही थी, न ही उक्त कथन साध्वी ने किसी संगोष्ठी में, किसी टीवी डिबेट में या किसी सार्वजनिक मंच पर दिया था। शायद देश में आज की राजनैतिक स्थिति में सीधे सज्जन और साध्वी जैसों की आवश्यकता ही नहीं है। इसलिए आवश्यकता साध्वी के कान उमेठने की नहीं, बल्कि राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता को जागृत करने की है। ऐसे कार्यकर्ताओं को उनका दायित्व बोध कराकर, परिपक्व बनाने की है, जो अपने मोहल्ले के नाली साफ करने के लिए भी सांसद से अपेक्षा रखते हैं।
लेख को शुरू से अंत तक पढ़ने के लिये धन्यवाद!
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