बुधवार, 28 अगस्त 2019

‘‘नौ सौं चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’


विश्व के 195 देशों में भारत निश्चित रूप से एक अनूठा स्थान लिये हुये है। शायद इसका एक बहुत बड़ा कारण हमारी पीढि़यों से चली आ रही खुबसूरत सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत है। हमारे देश की संस्कृति में इतनी (एकता में अनेकता) विभिन्नतायें है, जो सदैव जीवन्त बनी रहकर  और अंततः एक मुहावरे के रूप में प्रसिद्ध होती जाती रही हैं। अर्थात हमारे देश में जितने भी मुहावरे प्रचलित है, उनके पीछे निश्चित रूप से कोई न कोई गूढ़ार्थ अवश्य होता है, जो यथार्थ लम्बे अनुभव का जन हितैषी संदेश लिये हुये होता है। 
पूर्व गृह एवं वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी का मामला हमें एक साथ इससे संबंधित  कई मुहावरों की याद दिला देता है। विगत दिवस घटित हुई पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी की घटना से उपरोक्त शीर्षक (मुहावरे) के अतिरिक्त भी ‘‘इतिहास अपने आप को दोहराता है’’ कभी भी वक्त एक जैसा नहीं होता ‘दुनिया गोल है’, ‘‘कभी व्यक्ति ऊपर तो कभी नीचे भी आना पड़ता है’’ ‘‘जैसे को तैसा’’ ‘‘जैसी करनी वैसी भरनी’’ ‘‘अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे’’ आदि इत्यादि अन्यान्य मुहावरे चरितार्थ हो रहे हैं। 
कांग्रेस का यह कहना कि ‘‘उक्त कार्यवाही राजनीति से प्रेरित है’’ न तो वह सत्य से परे है और न ही नया है। स्वयं कांग्रेस का उक्त बयान राजनीति पुट लिये हुये है। लेकिन कांग्रेस को स्वतः के इतिहास के परिपेक्ष में नैतिक रूप से क्या यह अधिकार है कि वह उक्त गिरफ्तारी की कार्यवाही पर प्रश्न उठा सके? मामले का कानूनी पक्ष तो न्यायालय देख ही रहा है। जब कांग्रेस जब सत्ता में रही, तब लगातार दुरूपयोग के कारण सीबीआई को ‘‘कांग्रेस ब्यूरों ऑफ इनवेस्टीगेशन’’ कहा जाने लगा था। अभी तो यहाँ पी. चिदंबरम भर की  घटना ही दिख रही है। यद्यपि कुछ ऐसी और घटनाएं और भी हुई हैं, लेकिन शायद मीडिया ने उन्हे उतना महत्व नहीं दिया। यदि राजनैतिक द्वेष एवं प्रतिशोध से प्रेरित कांग्रेस के जमाने की इसी प्रकार की द्वेष प्रेरित कार्यवाहियों की सूची बनाई जाय, तो वह सूची थमेगी नहीं। इसीलिए मैंने शीर्षक लिखा ‘‘नौ सौं चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’’।
यह भी कहा जाता है ‘‘जैसी करनी वैसी भरनी’’ यह मुहावरा भी इस मामले में पूर्णतः सही सिद्ध हो रहा है। याद कीजिए! और यह भी मात्र एक संयोग ही है, जब पी. चिदंबरम केन्द्रीय गृहमंत्री थे, तब वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह तब के गुजरात प्रदेश के मंत्री थे जिनको राजनैतिक सत्ता के दुरूपयोग के कारण फर्जी सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में फंसाया जाकर उन्हे लम्बे समय तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था। उन्हे दो वर्ष तक गुजरात से तड़ीपार भी किया गया था। ठीक उसके विपरीत पी. चिदंबरम को आज वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अधीन सीबीआई एवं ईडी के कारण उन्हें 5 दिन की रिमांड (कस्टडी) में जाना पड़ा। इसे बदला (‘बदलापुर’ किसी मीडिया हाऊस ने कहा है) या इतिहास का अपने आप को दोहराना कहना ज्यादा युक्ति संगत होगा। यह भी एक अदभुत संयोग ही है कि वर्ष 2011 में जिस सीबीआई के वर्तमान कार्यालय का उद्धाटन् तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिंदबरम के हाथों हुआ था, उसी कार्यालय में आज पी. चिंदबरम को गिरफ्तार कर रखा है।   
सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। भाजपा ने पी. चिदंबरम कांड की कार्यवाही में जिस तरह से उतावलापन दिखाया है, उससे यह जाहिर होता है कि भाजपा ने भी इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा। राजनैतिक प्रतिशोध (वैनडेटा) के शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा इतिहास जनसंघियों से लेकर भाजपाइयों का ही रहा है। राजनैतिक सत्ता के दुरूपयोग के भुक्त भोगी एवं पीडि़त भाजपाइयों से कम से कम यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि, जब भी भाजपा को सत्ता सुख भोगने का या चस्का लेने का मौका मिलेगा, तब वह कम से कम वह न तो स्वयं उस सत्ता का दुरूपयोग कदापि नहीं करेगें, साथ ही भविष्य में सत्ता के दुरूपयोग नहीं होने देने के लियेे आवश्यक कडे़ कदम अवश्य उठायेगें, ताकि राजनैतिक प्रतिशोध पर की भावना पर अंकुश लग सकें। इससे सत्ता के इस अवांछित अविरल निरंतर चलने वाले चक्र की निरंतरता पर भी अंकुश लग सकेगा। 
इससे भी बडी बेढब मीडिया की यह रही जिसने पी. चिदंबरम के 24 घंटे तथाकथित रूप से भागने पर व प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके द्वारा कहे गये कथन कि ‘‘मुझे शुक्रवार तक गिरफ्तार न किया जाये’’, के लिये उनका मजाक उड़ाते हुये यह टिप्पणी की ‘‘क्या पी. चिंदबरम के लिये कानून अलग है?’’ मीडिया के इस प्रश्न का उत्तर भी मीडिया के उसी प्रश्न में शामिल है। एक तरफ मीडिया पी. चिदंबरम को सामान्य नागरिक मानते हुये उनकी तीव्रगति से की गई गिरफ्तारी की कार्यवाही पर उठाए गये प्रश्न के औचित्य, पर प्रश्न कर रहा है कि, चिदंबरम को एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में क्या कोई विशेषाधिकार प्राप्त है? सामान्य नाते बिल्कुल नहीं। वही मीडिया पी. चिदंबरम को विशिष्ट व्यक्ति मान कर उनकी गिफ्तारी को लगातार 24 घंटे लाइव दिखा रहा है। क्या आपने कभी किसी सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी पर मीडिया का इस तरह की ‘‘लाइव’’ देखी। अर्थात कभी मीडिया उन्हे एक तरफ सामान्य अभियुक्त मानता है, तो दूसरी बार.विशिष्ट वीआईपी नागरिक भी मान कर सीधा प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) कर रहा है। मतलब साफ है, मीडिया भी एक ही तरह के प्रकरण को अपनी सुविधानुसार टिप्पणी करता है।
एक प्रश्न न्यायालय पर भी है। पूर्व में अग्रिम जमानत रद्द करने के आवेदन पर अंतिम बहस हो जाने के बाद भी उस पर 7 महीने तक आदेश पारित न करके माननीय न्यायालय ने किस न्यायिक उच्च गुणवत्ता को दर्शित किया है? जब इन 7 महीने में पी. चिदंबरम देश से भागे नहीं तो, सीबीआई यदि 2 दिन और उन्हे उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हेतु मिल जाते तो कौन सा पहाड़ टूट जाता। तब तक वे संविधान में प्रद्धत समस्त ‘‘स्वतंत्रता’’ के अधिकारों का प्रयोग करके संतुष्ट हो जाते व तब उन्हे कोई शिकायत या अफसोस नहीं होता न ही उसका अवसर रहता। 
अंत में बात राजनीति पर आकर अटक जाती है, जैसा कि मैं पूर्व में ही कई बार लिख चुका हूंँ। राजनीति इस देश में ‘‘चीनी’’/‘‘नमक’’ बन कर रह गई है जो कहीं भी किसी भी पदार्थ में मिलने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। इसीलिए देश के हर क्रिया-कलाप में राजनीति सदैव हावी हो जाती है। इसी अटल सत्य को आम नागरिकों ने भी स्वीकार शायद कर लिया है। 

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) समाप्त! लेकिन उपबंध (1) क्या 370 का भाग नहीं?

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के इतिहास में राष्ट्रीय सुरक्षा व अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से वर्ष 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सबसे बड़ा कदम उठाकर पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह से पटकनी देकर बंग्लादेश का निर्माण किया था। भारतीय सेना ने उक्त युद्ध में दो लाख से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों जिसमें सिविलियन्स, नागरिकगण व कुछ बंगाली लोग भी शामिल थे, का आत्मसमर्पण करवा कर पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिये, तबके विपक्ष के नेता भाजपाई अटल बिहारी बाजपेयी ने इंदिरा गांधी को मां दुर्गा तक की संज्ञा दी थी। 
आज गृहमंत्री अमित शाह ने बड़ा ऐतिहासिक राजनैतिक कदम उठाने के पूर्व उक्त कदम को लागू करने से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पड़ने वाले प्रभाव का समुचित प्रबंध करते हुये, संविधान के अनुच्छेद (धारा) 370 (1) को छोड़कर अनुच्छेद 370 की शेष समस्त उपधाराएं (खंड 2 एवं 3) को समाप्त करते हुये, धारा 370 की धार को ही बोठल कर दिया। साथ ही धारा 35ए भी समाप्त कर दी। लद्दाख व जम्मू-कश्मीर दो नये केन्द्र शासित प्रदेश बना कर आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘‘अगस्त क्रंाति’’ की याद दिला दी। (इसी सावन महीने में ही चंद्रयान 2 का सफल परीक्षण एवं ट्रिपल तलाक बिल भी पारित हुआ। राम जन्मभूमि मामले में उच्चतम न्यायालय में प्रतिदिन सुनवाई भी आज प्रांरभ हो गई हैं) इस प्रकार दोहरी नागरिकता, दो झंडे और दो विधान के प्रावधानों को एक झटके में समाप्त कर दिया। 
इंदिरा गांधी द्वारा बांग्लादेश निर्माण के समय उठाये गये कदम एवं अमित शाह के आज पूरी तैयारी के साथ उठाये गये कदमों में कई समानताएं हैं। प्रथम इंदिरा गांधी ने घोषित रूप से पाकिस्तान पर आक्रमण कर बांग्लादेश का निर्माण नहीं करवाया, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में वहां के निवासियों जिन्हे मुक्तिवाहिनी कहा गया द्वारा पश्चिमी पाकिस्तान के अत्याचार के विरूद्ध चला रहे आंदोलन जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में परिणित हो गया था, को पूरी तरह से मदद देकर स्वतंत्र होने में पूरी सहायता की थी। ठीक उसी प्रकार गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले एक हफ्ते से जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त फौज इस आधार पर भेजी कि वहां पर आंतकी गतिविधियों एवं उनके द्वारा की जाने वाली आंतकी कार्यवाहियों का इनपुट मिला है, अमरनाथ यात्रियों पर हमले की आंशका है। अतः कानून शांति व्यवस्था व नागरिकों की सुरक्षा बनाये रखने का कारण बताया जाकर, राजनैतिक नेताओं की गिरफ्तारी, कर्फ्यू व धारा 144 लगाई गई। स्पष्ट है, घोषित रूप में अनुच्छेद 370 पर संशोधन करने की घोषणा के उद्देश्य से उक्त कार्यवाही नहीं की गई। अतः आज जब संसद में धारा 370 में संशोधन लाने की घोषणा की गई, तब यह महसूस हुआ कि यह उक्त एजेंड़ा हिडन (छिपा हुआ) हैं, ठीक वैसा ही, जैसा कि इंदिरा गांधी के बंग्लादेश बनाने के समय फौज भेजने के निर्णय के साथ था। 
एक समानता यह भी है कि जहां इंदिरा गांधी ने दुश्मन देश के दो टुकड़े किये, वहीं गृहमंत्री ने ‘‘गृह’’ (घर) जम्मू-कश्मीर (भारत का ताज) के दो टुकड़े कर दिये। बांग्लादेश बनाकर विश्व में एक राष्ट्र की और बढ़ोत्री हुई, तो अमित शाह के संकल्प पत्र से 29 प्रदेश वाला भारत 28 प्रदेश में सिमट गया व केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में दो प्रदेशों की वृद्धि हुई। इंदिरा गंाधी ने जहां पश्चिम पाकिस्तान के अत्याचार से पीडि़त पूर्वी पाकिस्तान की जन भावना के अनुरूप कार्य कर बांग्लादेश बनाया, वही अमित शाह ने सेना व बंदूक के साये में वहां की जनता को (बिल्कुल) विश्वास में लिये बिना जम्मू-कश्मीर का राज्य का स्ट्टेस खत्म कर केन्द्र शासित प्रदेश कर दिया।
उक्त कदम ऐतिहासिक कई कारणों से है। पिछले 70 सालों से जनसंघ से लेकर भाजपा तक सत्ताधारी पार्टी का एजेंडा संविधान की धारा (अनुच्छेद) 370 जो कि स्वयं में एक अस्थायी संक्रमण कालीन प्रावधान है, को पूर्णतः समाप्त कर एक राष्ट्र, एक निशान व एक विधान की लगातार वकालत करते रहने का रहा है। अस्थायी का मतलब ही यह होता है कि उसे किसी न किसी दिन समाप्त होना ही है, जैसा कि स्व. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अनुच्छेद 370 के संबंध में कहा था कि यह घिसते-घिसते घिस जायेगा। शिवसेना ही एक मात्र ऐसी राजनैतिक पार्टी है, जो शुरू से इस मुद्दे पर भाजपा के साथ रही है। अटल जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार अलग-अलग अवसरांे पर लगभग कुल छः वर्ष की अवधि में रही। नरेन्द्र मोदी भी वर्ष 2014 से 2019 तक पांच साल की अवधि में प्रधानमंत्री रहे। लेकिन नरेन्द्र मोदी की दूसरी पारी में आज यह कदम उठाने के पूर्व किसी भी सरकार ने उक्त साहस नहीं दिखाया। भाजपा को वर्ष 2014 के चुनाव में भी पूर्ण बहुमत मिला था, जैसा की आज प्राप्त है। भाजपा के पास राज्यसभा में पूर्ण बहुमत तब भी नहीं था, और आज भी नहीं है (अपने बलबूते पर)। इन तथ्यों के रहते हुये राजनाथ सिंह के बदले अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने जो यह कदम उठाया वह साहसिक व ऐतिहासिक ही कहा जायेगा। क्योंकि पूर्व में अटल जी व नरेन्द्र मोदी राजनाथ सिंह के गृहमंत्री रहते हुये यह कदम नहीं उठा पाये। ऐतिहासिक इस कारण से भी है कि पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में सरकार जो कार्यवाही कर रही थी, उसका लबालूब निष्कर्ष यही निकल रहा था कि सरकार जम्मू-कश्मीर में ‘‘कुछ’’ करने जा रही है व अधिकतम धारा 35ए को समाप्त कर सकती है। लेकिन समस्त समीक्षकों, आलोचकों, समालोचकांे को हतबद्ध कर अमित शाह ने न केवल धारा 35ए को समाप्त किया, बल्कि जम्मू-कश्मीर प्रदेश का राज्य का दर्जा समाप्त कर उसके दो टूकडे़ कर दो अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख बना दिया। यह कदम ऐतिहासिक इसीलिये भी है, क्योंकि भाजपा अपने एजेंडे़ से दो कदम और आगे जाकर (जिसकी कल्पना किसी भी ने नहीं की थी) जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया। लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से काटकर नया केन्द्र शासित प्रदेश बनाना व जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाना निश्चित रूप से समस्त राजनैतिक आलोचकों के लिये एक आश्चर्यजनक व कौतूहल पूर्ण कदम रहा है।  
यह निर्णय इसलिये भी ऐतिहासिक है कि वे पार्टियाँ जो प्रायः संसद में व संसद के बाहर कभी भी भाजपा के साथ खड़ी दिखाई नहीं दी है, लेकिन भाजपा के इस ऐतिहासिक कदम के साथ संसद में आज खड़ी हुई दिख रही है। इसमें प्रमुख रूप से बसपा, एआईडीएमके, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, आप, टीआरएस, एवं तेलगु देशम पार्टी शामिल है। अतः यदि आज उक्त ऐतिहासिक कदम से कुछ क्षेत्रों में सरदार पटेल की याद ताजा हो रही है, तो यह अतिश्योक्ति नहीं है। 
एक बात और! कांग्रेस को अनुच्छेद 370 में किये जा रहे संशोधन के विरोध इस आधार पर कि यह महाराजा हरिसिंह के साथ किये गये वायदे का उल्लंघन है और कोई नैतिक बल व अधिकार नहीं है क्योंकि कांग्रेस ने स्वयं वर्ष 1969 में निजी बैंको के राष्ट्रीय करण के साथ पूर्व राजाओं का प्रिविपर्स समाप्त कर 562 रियासतों के साथ भारत में शामिल करते समय किये गये समझौते का उल्लंघन किया था। तब उक्त कदम को बड़ा क्रंातिकारी प्रगतिशील व ऐतिहासिक बतलाया था।    
आइये, अब सिक्के के दूसरे पहलू को भी थोड़ा समझने का प्रयास करें। एक बात जो समझ से बिल्कुल परे है, वह जम्मू-कश्मीर को केन्द्र शासित प्रदेश बनाना, जो भाजपा सहित देश की किसी भी पार्टी के एजेंडा में शामिल नहीं था। निश्चित रूप से कश्मीरियों का जम्मू-कश्मीर के प्रति एक प्राकृतिक भावनात्मक लगाव है। कुछ लोगो का अनजाने या ना-समझी मंें ही सही, अनुच्छेद 370 से भावनात्मक लगाव है, यह भी सही है। क्योंकि वे भारत से जुडाव का बंधन इसी को मानते है,  जो यद्यपि सही नहीं हैं। अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) के उपबंधों में प्रतिबंध के प्रावधान रहने के बावजूद अनुच्छेद 370 के उपबंध (1) का प्रयोग करते हुये भारत के अधिकांश कानून कश्मीर पर लागू कराये गये। इस प्रकार व्यवहारिक रूप से इन 70 वर्षो में अनुच्छेद 370 के प्रभाव को निष्प्रभावी कर दिया गया था। धारा 35ए के कारण ही देश के नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने का अधिकार अभी तक नहीं था। अतः अनुच्छेद 370 (2) एवं (3) को समाप्त करते समय गृहमंत्री ने कश्मीरियों की भावनात्मक भावना को ध्यान में रखे बिना उक्त राज्य जिसे विशेष दर्जा प्राप्त था का न केवल विशेष दर्जा समाप्त किया, बल्कि उसे अन्य प्रदेशों के समान एक राज्य भी नहीं रहने दिया। उसे दिल्ली, गोवा समान केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर जहां एक समय ‘‘महाराजा’’ राज्य करते थे से लेकर गर्वनर जनरल, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री फिर मुख्यमंत्री व अंत में राज्यपाल के बाद अब उपराज्यपाल के अधीन कर दिया है, जो निश्चित रूप से कश्मीरियों के सम्मान को भावनात्मक रूप से ठेस पहंुचता है। इस स्थिति को देखते हुये जब गृहमंत्री ने राज्य को केन्द्र शासित राज्य बनाने का कोई उचित, आवश्यक व स्वीकार योग्य कारण नहीं बतलाया हैं, जबकि उनका उद्देश्य तो धारा 370 में संशोधन कर उसका विशेष दर्जा समाप्त करना मात्र था। जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन की मांग कभी भी, किसी, ने किसी कार्नर से नहीं उठाई थी, तब इस विभाजन की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी यदि राजनैतिक रूप से यह आवश्यक था, तब उसे विभाजित कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के बदले दो राज्य बनाते तो ज्यादा बेहतर होता। 
संसद में जम्मू एवं कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक व अनुच्छेद 370 में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत करते समय व उस पर हुई बहस का जवाब देते हुये अमित शाह द्वारा दिये उस कथन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर को कोई फायदा नहीं मिला (उनके शब्दों में ‘‘कोई मुझे बताएं तों...’’।) आगे उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की अधिकांश समस्यायें चाहे वह विकास, भ्रष्टचार, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, अपराध आदि किसी से भी संबंधित हो या आंतकवादी घटनाएं हो, उन सबके लिये अनुच्छेद 370 ही मुख्यतः जिम्मेदार है। अनुच्छेद 370 के कारण ही देश के लगभग 116 कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पाये। लेकिन उन्होंने यह नहीं बतलाया कि अनुच्छेद 370 के प्रतिबंध के प्रावधान के बावजूद अधिकतम महत्वपूर्ण कानून जम्मू-कश्मीर में की विधानसभा में पारित करवाकर लागू किये गये। जब पीडीपी व भाजपा की संयुक्त सरकार थी, तब वे 116 कानून विधानसभा में पारित करवाकर क्यों नहीं लागू करवाये गये, यह प्रश्न विपक्ष द्वारा न तो पूछा गया और शायद उसका कोई जवाब भी नहीं था। अमित शाह के अनुसार यदि समस्त समस्याओं की जड़ अनुच्छेद 370 है, जैसा कि उन्हांेने संसद में अपने भाषण में कहां है, तो हमारे उत्तर पूर्वी प्रदेश व अन्य प्रदेश नागालैंड (अनुच्छेद 371ए) असम (371 बी) मणिपुर (371 सी) आंध्र प्रदेश तेलंगाना (371 डी) सिक्किम (371 ई) मिजोरम (371 जी) अरूणचल प्रदेश (371 एच) एवं गोवा (371 आई) एवं महराष्ट्र गुजरात हिमाचल प्रदेश (371), इन सभी राज्यों को विशेष दर्जा उपरोक्त उल्लेखित अनुच्छेदों को संविधान में शामिल करके दिया गया है। क्या  उक्त इन्ही आधारों पर ही उपरोक्त उल्लेखित समस्त अनुच्छेदों को संविधान से हटाकर (जैसा कि 370 (2) एवं (3) के साथ किया गया) कर विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के लिए सरकार क्या संसद के अगले सत्र में बिल लायेगी? ताकि उक्त समस्त विशेष दर्जा प्राप्त प्रदेशों का समुचित विकास हो सके। दुर्भाग्य की स्थिति तो यह है कि कोई भी पार्टी किसी भी समय चाहे देश में कितने ही संकट की स्थिति क्यों न हो बिना राजनीति किये सिर्फ और सिर्फ देश हित में कार्य करना ही नहीं चाहती है। निरपेक्ष रूप से शुद्धता के साथ सिर्फ देश हित में कार्य इस देश में कब संभव होगा? यद्यपि आज संसद में बार-बार यह कहा जा रहा था कि चर्चा राजनीति से ऊपर उठ कर की जानी चाहिये। लेकिन उक्त कथन में ही राजनीति भी परिलक्षित हो रही थी। यह एक बड़ा अवसर अमित शाह के लिये था। देश की जनता इस मुद्दे पर उनके साथ थी। यदि वे थोड़ा सा भी राजनीति से ऊपर उठकर बहस करते, तो शायद वे असरदार से सरदार होकर लौहपुरूष भी कहलाते। उदाहरणार्थ यह कहने की कतई आवश्यकता नहीं थी कि धारा 370 से जम्मू-कश्मीर के मात्र 3 परिवार को ही फायदा मिला जो न तो सच था और न ही समायोचित था। जूनागढ़ व हैदराबाद रियासत का भारत में विलय का मामला सरदार पटेल ने संभाला था, इसलिये समस्या नहीं हुई, जबकि कश्मीर का मुद्दा नेहरू के कारण आज तक विवादित बना रहा। उक्त कथन चीरफाड़ के बाद मरहम लगाने वाले तो कम से कम नहीं थे।  
खैर अब तो यही आशा है कि गृहमंत्री के आशानुरूप स्थिति तेजी से सामान्य होगी, ताकि गृहमंत्री लोकसभा में दिये गये आश्वासन के अनुसार जम्मू-कश्मीर पुनः देश का 29 वां राज्य बन सके, ताकि उसकी मुकुटमणि की स्थिति को पुर्नस्थापित किया सके।  
अंत में एक बात और सरकार द्वारा संसद भवन में रोशनी कर खुशी का अतिरिेक्त प्रर्दशन करने का औचित्य क्या है? ऐसी स्थिति में, जबकि वह जनता जिसके फायदे के लिये उक्त कानून बनाया गया कर्फ्यू में ड़र व खौंफ के माहोल में है, व उसे अपनी खुशी(?) व्यक्त करने का अवसर सरकार नहीं दे रही है। इसीलिए ऐसे अति उत्साह से बचा जाना चाहिए था। खैर अब तो मोदी सरकार का अगला कदम निश्चित रूप से ‘राम जन्म भूमि’’ ही होना चाहिये जो पूरे राष्ट्र की मांग व आवाज है।

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