सोमवार, 21 अक्टूबर 2019

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभी तक का सफर। कितना सफल।

वर्ष 1925 में विजयादशमी के पावन दिवस पर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा एक शाखा प्रांरभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई थी। वर्ष 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी सौवीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। किसी भी संगठन के लिये 100 वर्ष पूर्ण करने का अत्यधिक महत्व होता हैक्योंकि इतने लम्बे समय तक किसी भी संगठन को सफलता पूर्वक चलाना  आसान कार्य नहीं होता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिसकी स्थापना 28 दिसम्बर 1875 को एक अवकाश प्राप्त अंग्रेज ऑक्टोवियन ह्नयूम ने की थीदेश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी हैके सर्वमान्य नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश ने स्वाधीनता संग्राम आंदोलन लड़ा,  जिनकी अभी 150 वीं जंयती भी मनाई जा रही है। स्वतंत्रता संग्राम के लिए अधिकतम श्रेय भी इसी पार्टी को दिया जाता है। 145 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद कांग्रेस की देश की राजनीति में आज क्या स्थिति हो गई हैयह आप सबके सामने है। 100 वर्ष की पूर्णता हीरक जयंती (डायमंड जुबली) मानी जाती है। अतः यह अवसर आत्मावलोकन करने का एक मौका देता है कि 100 वर्ष के सफर में जिन उद्देश्यों को लेकर संगठन बनाया गया थाउसकी कितनी पूर्ति अभी तक हो पाई है व कितनी प्राप्ति अभी बाकी है। अतः जो शेष बच गई हैउसको पूरा करने के लिए आगे क्या योजना बनाई जानी चाहिए।                                                                                                     100 वर्ष पूर्णता का मतलब पूर्णांक मानना चाहिए। अर्थात 100 वर्ष में किसी भी कार्य ने पूर्णता प्राप्त कर लेना चाहिएयही इसका शाब्दिक अर्थ होता है। परन्तु इस सृष्टि में ऐसी कोई भी  संस्थाव्यक्ति या व्यक्तित्व नहीं हैजो पूर्ण है। यद्यपि सबका उद्देश्य उक्त लक्ष्य को ज्यादा से ज्यादा प्राप्त कर लेने का अवश्य होता है। आज 95 वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी पूरे हो गए हैं। यही वह अवसर हैजहां से उद्देश्यों की पूर्णता में जो कुछ भी कमी रह गई हैउसे आगामी 5 वर्षों में पूर्ण नियोजित योजना बना कर उक्त उद्देश्यों को आगे बढ़ाते हुए पूर्णता के निकटतम स्थिति तक पहुंँचाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए आत्म विश्लेषण कर स्व-मूल्यांकन करते रहने की महती आवश्यकता है। इस बात पर भी विचार किया जाना होगा संगठन के उक्त स्थापित व विस्तारित उद्देश्यों में संगठन में अभी भी कौन सी कमियां बाकी हैजिन्हे दूर किया जाना अत्यावश्यक है।        इस बात में कोई शक नहीं हैं कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन है। इस बात में भी कोई शक नहीं है कि इस मूल संगठन ने अनेकानेक आनुषांगिक क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जितने संगठन (शाखाएं) खड़े किए गये हैंवह किसी भी अन्य मूल संगठन केे नहीं है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि संघ के कई आनुषांंिगक संगठन भी विश्व के सबसे बड़े संगठन हैं व उनकी सदस्यता सबसे ज्यादा हैजैसे भारतीय मजदूर संघविद्या भारतीभाजपा इत्यादि एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठन विश्व हिन्दु स्वयंसेवक संघ। यद्यपि भाजपा को सैद्धांतिक रूप से संघ का राजनैतिक आनुषांगिक संगठन नहीं माना जा सकता हैक्योंकि संघ का घोषित उद्देश्य राजनीति नहीं हैबल्कि वह सामाजिक कार्य में विश्वास करता है। किसी भी राजनैतिक पार्टी का कार्यकर्ता जो राष्ट्रवाद में विश्वास करता हैवह समाज सेवा के लिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बन सकता है।                                                                इस वर्षगांठ के अवसर पर आज संघ को यह विचार करने की आवश्यकता है किउसमें ऐसी कौन सी कमियां हैंजिन्हें अगले 5 वर्ष में पूरा किया जा सकें। मेरे विचार में संघ इस समय दो अन्तर्विरोधी विषयों से जूझ रहा है। एक तो क्या संघ हिंदुओं मात्र का संगठन है या सभी  समाजों काहिन्दुहिन्हुत्वहिन्दुस्तान एवं हिन्दु राष्ट्र की स्पष्ट व्याख्या व आचरण संघ को जनता के सामने रखनी ही होगी। यदि यह सिर्फ हिंदुओं का संगठन है तोफिर संघ द्वारा एक आनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय मुस्लिम मंच क्यों बनाया गया हैजो सिर्फ मुस्लिम लोगों के बीच में कार्य करता है। यदि संघ सभी समाजों का संगठन हैतो फिर संगठन के समस्त संदेश व उपदेश और उद्देश्य सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों होते हैसर्व धर्मसर्व समाज के लिए क्यों नहींक्या सभी समाजों में मुस्लिमईसाईपारसीयहूदीसिजैनइत्यादि शामिल नहीं है। संघ के पदाधिकारी (स्वयंसेवकों को छोड़करवह भी उंगली पर गिनतियों में) गैर हिन्दु क्यों नहीं। यह एक विराट प्रश्न हैजिसका उत्तर और स्पष्टीकरण संघ को देना ही चाहिए। यद्यपि इस संबंध में सरसंघ चालक जी का यह बयान भी प्रांसगिक है किसंघ हिन्दुओं के साथ अन्य वर्गो का भी विकास चाहता हैवह समाज के समस्त वर्गो के बीच सामाजिक समरसता में विश्वास रखता है। लेकिन इसके बावजूद उक्त प्रश्न अनुत्त्रित है।     दूसरा विषय (मुद्दा) हैजनसंख्या के मामले में संघ’ की नीति।संघ’ का यह मानना हैकि मुसलमानों द्वारा जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिये न तो वे जागरूक है और नहीं इस संबंध में उनके द्वारा कोई प्रयास किया जाता हैवरण उनके व्यक्तिगत कानून (पर्सनल लॉ) में 4 बीबी रखने की अनुमति होने के कारणउनकी जनसंख्या में तुलनात्मक रूप से तेजी से वृद्धि हो रही है। इसलिए मुस्लिम कट्टरवाद के कारण उनकी बढ़ती जनसंख्या से निपटने के लिए हिंदुओं को भी अपनी जनसंख्या में बढ़ोतरी करना आवश्यक है। जनसंख्या नियंत्रण करने के लिये भारतीय नागरिकों के लिये पहले ‘‘दो या तीन बस’’ का नारा थाफिर ‘‘हम दो हमारे दो’’ का नारा आयाअब फिर एक ही बच्चा शेर काप्रचलन हो रहा है। यदि हम राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तोदेश की राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था इतनी सुदृढ़ नहीं है कि हम तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या का भार उठा सकें। हम सबको यह मालूम है कि देश के साधन-संसाधन चाहे वे प्राकृतिक हो या मानव निर्मितसीमित हैंव उनकी क्षमता की एक अधिकतम निश्चित सीमा है। तब बढ़ती जनसंख्या वृद्धि की तुलना में इन संसाधनों के विस्तार में समानुपतिक रूप से वृद्धि कर पाना संभव नहीं है। इसीलिए यदि देश के प्रत्येक नागरिक का जीवन के हर क्षेत्र में सर्वांगीण विकास परिलक्षित नहीं हो पा रहा हैतो उसका एक प्रमुख सबसे बड़ा कारण जनसंख्या वृद्धि ही है। यह स्थिति भी तब हैजब हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में बहुसंख्यकों के बीच पिछले कुछ समय से प्रभावी रूप से कार्य किया जा रहा है। देश के ‘‘बहुसंख्यक’’ नागरिकों को भी यह बात समझ में आ रही है कियह एक बड़ी भारी राष्ट्रीय समस्या है। सामान्य नागरिकगण भी राष्ट्रीय कर्तव्य निभाते हुए इस समस्या को कम करने में अपनी जिम्मेदारी मानते हुये स्वीकार करते हुयेयथासंभव कम-ज्यादा सहयोग दे रहे हैं। संघ की असमानता पूर्ण जनसंख्या की वृद्धि के मुद्दे पर चिंता का विषय तो बिल्कुल सही है लेकिन उससे निपटने के लिये हिन्दुओं को उनकी जनसंख्या में वृद्धि करने के लिये प्रेरित करना समस्या का कतई सही समाधान नहीं है। यदि इस समस्या को हल करना हैतो इस मुद्दे पर संघ को खासा जोर देना होगा किजो लोग जनसंख्या बढ़ा रहे हैंअर्थात मुस्लिम समाज जनसंख्या नियंत्रण के लिये अविलम्ब और अनवरत प्रभावी प्रयास करें। इसके लिए उन्हें सामाजिक रूप से प्रेरित किया जाकर व शिक्षा दी जानी चाहिए। यदि इन प्रयासों से बात नहीं बनती हैतो निश्चित रूप से कड़क कानून देशहित में लाया जाना चाहिए। जब धारा 370 को निष्प्रभावी बनाने का लगभग असंभव कार्य (संघ के निर्देश पर) भाजपा कर सकती हैजिसकी कल्पना किसी भी आम नागरिक को नहीं थीतब ऐसा कड़क कानून लगाकर इस समस्या का समाधान क्यों नहीं किया सकताप्रश्न यही है।                    क्या संघ को एक ओर महत्वपूर्ण बात पर आगे विचार करने की आवश्यकता नहीं है किहमारे आदिवासी भाई जो हिन्दु समाज का ही अभिन्न भाग हैआज अपने को कुछ क्षेत्रों में हिन्दुओंसे अलग मानकर अलग-थलग क्यों महसूस कर रहे हैबैतूल जिला आदिवासी बाहुल्य है व यहां पर आदिवासियों का एक बड़ा सम्मेलन 8 फरवरी को भागवत जी के मुख्य आतिथ्य में हो चुका है। संघ जो प्रांरभ से ही हिन्दू समाज को एक होने का संदेश लेकर कार्य कर रहा हैतब क्या यह संघ की असफलता नहीं कहलायेगीक्योंकि 10-15 साल पूर्व तक तो आदिवासियों में इस तरह की कोई प्रवृत्ति देखने को नहीं मिल रहीथीजो आज कुछ भागों में समझ आ रही है। मुझे याद आते हैंमेरे स्व. पिताजी श्री जी.डी. खंडेलवाल जी के इस दिशा में किए गए प्रयास। उन्होंने बैतूल जिले में इन आदिवासियों के बीच वर्ष 1960 से मृत्यु (वर्ष 1978) तक अथक ऐसे-ऐसे जनहितेषी कार्य किए जिनके कारण ही वे आदिवासियों के नेता बनकर उभर करगैर आदिवासी होेने के बावजूद स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के नेतृत्व में बनी संविद सरकार में (देश में शायद प्रथम बार) आदिवासी विभाग के केबिनेट मंत्री बनें। आज कुछ क्षेत्रों में आदिवासियों का हिन्दुओं से दुराव क्यों परिलक्षित हो रहा हैचिंता का विषय यही है।                                                             उपरोक्त चिंताओं के साथ संघ को वर्ष 2025 के लिये अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँइस विश्वास के साथ कि वह राष्ट्र के 90 करोड़ से अधिक समस्त बालिग नागरिकों का हितेषी संगठन स्वयं को सिद्ध करेगा। संघ ‘‘राष्ट्रवाद’’ को समस्त मुद्दे से परे सबसे ऊपर रखकर सर्व-धर्म-समाज में समान रूप से मजबूत करने में सफल होगा। क्योंकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश में राष्ट्रवाद’ की अलख जगाने वाला सही मायने में यही एक मात्र प्रभावी राष्ट्रीय संगठन रह गया है। 

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