संघ की स्थापना से लेकर अभी तक तथाकथित हिन्दू कट्टरवाद का करारा जवाब
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तेलंगाना (हैदराबाद) में आरएसएस स्वयं- सेवकों के तीन दिवसीय विजय संकल्प शिविर में एक बड़ा बयान यह दिया है कि, संघ की नजर में भारत में पैदा होने वाला भारत माँ का प्रत्येक व्यक्ति हिन्दु है, फिर चाहे उसकी संस्कृति या धर्म कोई भी हो या वह किसी भी तरह की पूजा में विश्वास न रखता हो। भारत माता की समस्त संतान जो राष्ट्रवादी भावना रखते हैं, भारत की संस्कृति व विरासत का सम्मान करते हैं, हिन्दु समाज है। अर्थात भारत की 130 करोड़ की पूरी आबादी हिन्दु है। जन, जल, जंगल, जमीन, जानवर से प्यार करने वाले व सभी का कल्याण करने वाली श्रेष्ठ संस्कृति का आचरण करने वाले सभी हिन्दू हैं।
अभी तक कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगते रहे हैं और भाजपा व संघ पर हिन्दू तुुष्टिकरण का आरोप लगाया जाकर उनको साम्प्रदायिक बताया जाता रहा है। संघ के इतिहास में यह एक ऐतिहासिक क्षण आया है, जब संघ प्रमुख ने तथाकथित साम्प्रदायिकता और हिन्दुत्व के आधार पर संघ की आलोचना करने वालो को एक बड़ा करारा जवाब दिया है। अभी तक संघ को हिन्दुआंे का संगठन व भाजपा को मुख्य रूप से हिन्दुआंे की पार्टी माना ंजाता रहा है। इन पर आरोप यही लगते रहे है कि वे समस्त हिन्दु-मुस्लिमों को धर्म के आधार पर बाँट- बाँट कर साम्प्रदायिक तुुष्टिकरण करके वोट की राजनीति कर रहे हैं।
अब इस देश में पैदा होने वाले 130 करोड़ लोगांे को पैदाईश के आधार पर हिन्दू मान लिया गया है, जिसमें मुस्लिम पैदाईश व्यक्ति भी शामिल है। देश में कुछ शेष भारत के बाहर पैदा हुये व्यक्ति बचे जाते हैं, जिन्होंने शरनागत रूप से भारत में आकर नागरिकता प्राप्त की है या आकर नागरिकता प्राप्त करना चाहते है, उन्हीं सबके लिए सीएए लाया गया है। तब इस देश का कौन सा ऐसा नागरिक रह गया है जिसे संघ अपना नहीं मानता है। इस एक मान्यता से तुष्टिकरण की राजनीति चलाने वाले खासकर मुसलमानों को बरगलाने की राजनीति चलाने वाले नेताआंे और दलों की हवा ही खिसक गई है। क्यांेकि अभी तक जिस मुददे पर वे संघ के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं, उसे संघ प्रमुख ने एक झटके में आईना के समान स्वच्छ व साफ कर दिया है। समस्त नागरिकांे को एक ही र्दृिष्ट (भारत माता के पुत्र) से देखने वाला संघ, अब देश का एकमात्र सबसे बड़ा संगठन हो गया है। इस गहन सोच का व्यापक रूप से देशहित में स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि पक्षपाती आलोचक तो आज भी आलोचना से बाज नही आएंगे, लेकिन एक कहावत का भी ध्यान रखिए, ‘‘आलोचकों का कभी भी स्मारक नहीं बनता है,’’। इस कथन ने सरकार की सीएए पर होने वाली समस्त आलोचनाआंे को भी खारिज करने का एक बडा हथियार भाजपा को दे दिया है। अब आशा की जानी चाहिए, कम से कम भविष्य में धर्म के आधार पर राजनीतिक दल राजनीति न कर सिध्दांतो व मुददो को लेकर यदि राजनीति करेंगंे, तो निश्चित रूप से सर्वसाधारण जनता का यर्थाथ कल्याण कर सकेंगें।
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