नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली का बयान भारत की विदेश नीति के संदर्भ में बहुत ही चिंताजनक है। वे कहते है कि भारतीय वायरस ‘‘चीनी व इटली वायरस’’ की तुलना में अधिक घातक लगते हैं। वे आगे कहते है, कि भारत से नेपाल आ रहा कोरोना वायरस इटली और चीन से भी ज्यादा खतरनाक है। इसके पहले नेपाल ने भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी पर दावा करते हुये नया मानचित्र भी जारी कर दिया था। इसके पूर्व विश्व स्वास्थ संगठन पर जब चीन के विरुद्ध कोरोना वायरस की उत्पत्ति के संबंध में जांच के लिए प्रस्ताव लाया जा रहा था, तब भारत ने विश्व की महाशक्तियों के साथ लीड रोल अदा कर संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। लेकिन उस समय भी ‘‘सार्क‘‘ देशों का नेतृत्व करने के बावजूद ‘‘सार्क‘‘ के 8 देशों में से सिर्फ एक बांग्लादेश व भूटान ने ही भारत का साथ दिया। शेष 5 मालद्वीप, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, पाकिस्तान देशों ने चीन के विरुद्ध भारत का साथ नहीं दिया। कोरोना संकट काल में क्या यह विदेश नीति पर बड़ा संकट नहीं है? मामला चूंकि चीन से जुड़ा है और चीन से हमारे संबंध अच्छे नहीं है, इसलिए यह और ज्यादा चिंता का विषय है।
इसमे कोई शक नहीं है कि आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गिनती विश्व की पांच महा शक्तियों के साथ की जाती है। लेकिन यदि हम अपने चारों तरफ स्थित पड़ोसियों को ही अपने साथ नहीं रख पा रहे हैं, तब ऐसी महाशक्ति बनने का फायदा क्या? दूसरे इसका विपरीत प्रभाव भी विश्व में हमारी मजबूत होती स्थिति पर पड़ेगा। कोरोना के इस संकट काल में हमारी विदेश नीति निर्धारकों को क्या इस पर शीघ्रता से व गहनता से देश हित में विचार करने की आवश्यकता नहीं है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें