देश में राष्ट्रीय लॉक डाउन लागू हुए 60 दिन से ज्यादा हो गए हैं। अभी लॉक डाउन-4 जारी है। याद कीजिए! जिस दिन राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा की गई थी, देश में 520 के लगभग कोरोना वायरस से संक्रमित रोगी थे। मतलब 30 जनवरी को त्रिवेन्द्रम में प्रथम कोरोना संक्रमित मरीज के आने के बाद राष्ट्रीय लॉक डाउन घोषित करने के दिन तक इन कुल 52 दिनों में 10 के औसत से कुल मात्र 520 कोरोना संक्रमित बीमार ही पाये गये थे। विश्व में तेजी से बढ़ते हुये कोरोना संक्रमण की स्थिति को देखते हुये 24 मार्च को पूरे देश में लॉक डाउन लागू इसलिए किया गया था कि, कोरोना वायरस के संक्रमण को अपने देश में बड़े पैमाने पर बढ़ने से रोका जा सकें। कोरोना वायरस संक्रमण के न बढ़ने का तार्त्पय व वास्तविक अर्थ कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी होने से है। कोरोना वायरस के फैलाव के शुरुआती दौर में, विश्व में कोरोना वायरस जिस तेजी से संक्रमित हो रहा था, उसकी तुलना में हमारे देश में संक्रमण की वृद्धि की दर तुलनात्मक रूप से निश्चित रूप से कम रही थी। स्वाभाविक पूरा देश सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर अपनी अपनी पीठ थपथपाते रहा। इसका वाजिब कारण भी था, जो परिणाम ऊपरी सतह पर हमें दिख रहे थे। तथापि जो आंकड़ें, हमें सुख का आभास मात्र करा रहे थे, वे वास्तविक स्थिति से वास्तव में दूर थे। वर्तमान स्थिति और आंकड़े भी इसी बात को सिद्ध कर रहे हैं।
राष्ट्रीय लॉक डाउन लागू करने के दिन से आज तक के प्रतिदिन संक्रमित मरीजों के बढ़ते आंकड़ों पर सामान्य रूप से एक सरसरी निगाह ड़ाले। स्पष्ट रूप से यह दृष्टिगोचर होता है कि 60 दिन में मात्र 15 दिवस ऐसे आये जब बढ़ोतरी (नाम मात्र) की रूकी रही। लेकिन सम्पूर्णता में औसत रूप से न केवल संक्रमित रोगियों की संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि उसकी वृद्धि की दर में भी प्रतिदिन तेजी से वृद्धि हो रही है। अर्थात प्रथम हफ्ते की बात करें तो मरीजों की वृद्धि का औसत लगभग 40 मात्र था। उसके पश्चात के पखवाड़े में औसत 100 फिर 200 फिर 500 फिर 800 फिर 1000 फिर 1200 फिर 1500 फिर 1800 फिर 2000 फिर 3000 फिर 3500 फिर औसत 4000 फिर एकदम से 5000 और आज 6000 के ऊपर पहंुच गया है। आज ही कम्यूनिटी हेल्थ विशेषज्ञ डॉ. जुगल किशोर ने इंदौर में कम्यूनिटी स्प्रेडि़ग शुरू होकर कोरोना संक्रमण की तीसरी स्टेज में प्रवेश करने की बात कही है, जो बेहद चिंताजनक है।
आंकड़ों के बाबत् सरकार के अपने तर्क है। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग ने कल ही अपनी पत्रकार वार्त्ता में यह कहा था कि, यदि राष्ट्रीय लॉक डाउन लागू नहीं किया जाता तो, आज हमारे देश में औसतन 20 लाख संक्रमित व्यक्ति होते और अभी तक लगभग 54000 लोगों की मौत हो जाती। आंकड़ों के आकलन का निश्चित रूप से यह एक तरीका हो सकता है। लेकिन जहां तक आम जनता का प्रश्न है, उनके भेजे (बुद्धि) में यह बात नहीं घुस रही है। इतने लंबे लॉक डाउन के बाद भी संख्या वृद्धि में कमी नहीं हो रही है और यह वृद्धि का ग्राफ किस दिन जाकर थमेगा, अभी तो यही प्रश्न आंखों के सामने कौंध रहा है। खत्म कब होगा इस प्रश्न के दिमाग में आने को उक्त वृद्धि की दीवार ने रोके रखा है।
यह तो हुई आंकड़ों की बात। पर जरा इस कोरोना व लॉक डाउन से उत्पन्न परिणामों के भुक्तभोगी, निरीह, चेहरों की ओर भी तो देखिए। वह अपने को कितना असमर्थ व असहाय की स्थिति में पा रहा है। एक परस्पर विरोधाभासी विचित्र निष्कर्ष पैदा हो रहा है। वह यह कि लॉक डाउन तो संक्रमण को रोकने के मकसद से लगाया गया था। लेकिन जैसे जैसे संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है, (उद्देश्य व लक्ष्य प्राप्ति के विपरीत) लॉक डाउन की शर्तों में ढील भी बढ़ती जा रही है। यही विरोधाभासी स्थिति है। परन्तु इस विचित्र बीमारी के ऐसे विरोधाभासी आभासी निष्कर्ष (परिणाम) से हमें आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए। सिर्फ बीमार न होने के निवारक उपाय है। बीमार होने के बाद रोगी के इलाज की कोई दवा फिलहाल विश्व में ईजाद नहीं हो पायी है।
अतः यदि इस कोरोना कोविड़-19 का एक मात्र निवारण, रोकथाम का उपाय मानव-दूरी को बनाये रखने के लिये लॉक डाउन ही है, तो फिर बढ़ती हुई, संक्रमित बीमारों की संख्या को देखते हुए हमें लंबे समय तक लॉक डाउन की स्थिति में ही रहना पड़ेगा। वह भी छूट बढ़ाता हुआ लॉक डाउन नहीं, बल्कि कड़क व कसा हुआ लॉक डाउन जो मानव-दूरी को हर हालत में बनाये रख सकें, लागू रखना पड़ेगा। इससे एक प्रश्न स्वयंमेव उत्पन्न होता है, क्या यह उचित और क्रियान्वन की धरातल पर संभव है? इस सत्य को तो सरकार से लेकर गैर सरकारी और जनता सभी स्तरों पर बिना किस शंका के स्वीकार किया जा रहा है कि, इस लॉक डाउन के कारण सरकार व नागरिक दोनों की आर्थिक स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। जहां सामान्य स्थिति में सरकार और नागरिक गण एक दूसरे को आर्थिक रूप से मजबूत करते रहे हैं। वहीं इस कोरोना कारावास काल में नागरिकों की तो छोडि़ये, सरकार की स्थिति भी खजाने में आवक कम व खर्च ज्यादा होने के कारण व विपदा बड़ी होने से नागरिकों की वह उतनी अपेक्षित सहायता करने की स्थिति में नहीं हैं, जितनी वर्तमान परिस्थितियों की मांग है।
हमारे देश के संदर्भ में विश्व के अन्य देशों की तुलना में एक और दिलचस्प लेकिन चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हुई है। यूरोपियन देश व कुछ अन्य प्रमुख देश कोरोना काल के प्रारंभिक दौर में कोरोना वायरस को बड़ी व ज्यादा संख्या में भुगत कर, अब वे धीरे-धीरे संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी लाकर, सामान्य स्थिति (नॉर्मेल्सी) की ओर लौट रहे हैं। इसका मतलब यह भी है कि, सामान्य स्थिति में आ जाने के बाद उन्हे लॉक डाउन की आवश्यकता नहीं होगी और तब वे तेजी से अपनी आर्थिक बद स्थिति को सुधारने में जुट पाएगंे। ठीक इसके विपरीत हमारा देश विरूद्ध दिशा मंे अग्रसर हो रहा है। अर्थात हम बीमारी की बढ़ोतरी की ओर बढ़ रहे हैं। अब यदि हम लॉक डाउन नहीं खोलते हैं तो, हमारी आर्थिक स्थिति और खराब होती जायेगी। मतलब संक्षेप में, विश्व के कुछ प्रमुख देश दो-ढ़ाई महीने के आर्थिक संकट काल से निकलते हुए सामान्य स्थिति की ओर अग्रसर होकर आर्थिक सुधार की दिशा की ओर बढ़ने के अवसर देख रहे हैं। लेकिन हमारा देश भारत अभी भी लॉक डाउन की लम्बी सुरंग में ही फंसा हुआ है। शायद यह सुरंग कुछ समय पूर्व जम्मू-कश्मीर में बनाई गई एशिया की सबसे लम्बी (14 किमी) जोजिला सुरंग जैसी ही है।
तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि, इस विकट विपरीत स्थिति से उभरने के लिए सरकार व जनता को क्या, व कौन से, और कैसे कदम कब उठाने चाहिए? उत्तर बिल्कुल स्पष्ट है! सरकार सहित समस्त क्षेत्रों में यह बात अब स्वीकारी जाने लगी है कि, शीघ्रता शीघ,्र यथासंभव देश और नागरिकों को कोरोना वायरस के साथ जीने की आदत ड़ाल लेनी ही चाहिए, बल्कि ड़ालनी ही पड़ेगी। यही यथार्थ सत्य है। जब हम सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 7 प्रतिशत मौत के आंकड़े होने के बावजूद बेहिचक यात्रा करते हैं, 4 प्रतिशत शिशु मृत्यु की दर में अपने को ढाल लेते हैं, देश का हर तीसरा व्यक्ति हृदय रोग क्लब का सदस्य है। मतलब हम हर कांटों का ताज पहने जीवन यापन कर रहे हैं। तब मात्र 3 प्रतिशत मृत्यु दर वाले इस कोरोना के कांटों का ताज को भी हमें पहनना ही होगा और उससे निपटने का उपाय निरोधक क्षमता (इमुनिटि) को और पैदा करना (बढाना) व जीवन को नियमित कर मानव-दूरी को हर हालत में बनाये रखना होगा। यही इस संक्रमित बीमारी से निपटने का सही, मुफ्त, बिना खर्चे का रोग का इलाज नहीं, बल्कि रोगी न होने का निवारण रोकथाम है।
मानव-दूरी को बनाये रखने के संदर्भ में हमें, हमारे देश में प्रति व्यक्ति घनत्व की एक विशिष्ट स्थिति पर भी ध्यान देने की आवश्यक होगी। हमारे देश का क्षेत्रफल 32.87 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 135 करोड़ के आसपास है। इसकी तुलना में रूस का क्षेत्रफल 1 करोड़ 71 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 14.5 करोड़ के आसपास। कनाडा का क्षेत्रफल 99.84 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 3.7 करोड़ के आसपास। अमेरिका का क्षेत्रफल 98.26 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 33 करोड़ के आसपास। चीन का क्षेत्रफल 95.96 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 143 करोड़ के आसपास। ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल 77.41 लाख वर्ग किमी और जनसंख्या 25.5 करोड़ के आसपास। मतलब विश्व में औसत जनसंख्या घनत्व 44 व्यक्ति प्रति किमी है, तो हमारे देश में 382 व्यक्ति प्रति किमी. अर्थात 9 गुना ज्यादा है। इसका एक अर्थ यह भी है कि, हमारे देश में प्रति व्यक्ति रहने के लिये जो जगह उपलब्ध है, वह उपरोक्त स्थिति को देखते हुये, तुलनात्मक रूप से कम होने के कारण व जनसंख्या घनत्व ज्यादा होने के कारण प्रकृति देय मानव-दूरी हमारे देश में कम होने से 2 गज की मानव-दूरी को बनाये रखने के लिये हमें सर्तकता व सावधानी के साथ ज्यादा मानवीय प्रयास करने होगें।
यदि हमने लॉक डाउन को नहीं हटाया तो निश्चित मानिये, कोरोना के संक्रमण से आप कितने शरीरों को लॉक होने से बचा पाएगें, यह शायद अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इससे उत्पन्न, दिन प्रतिदिन बढ़ती आर्थिक बदहवासी से जो भुखमरी व अराजकता की स्थिति उत्पन्न होगी, उसके परिणाम स्वरूप कितने मानव जीवन लॉक डाउन होंगे, उस बर्बर स्थिति की कल्पना करने मात्र से ही दिल-दिमाग सिहर उठता है। इसलिए यह उत्तर दायित्व सिर्फ सरकारों का ही नहीं है, बल्कि नागरिकों का भी उतना ही है कि वे सब मिलकर पूरे सामंजस्य के साथ इस संक्रमित बीमारी से लड़े, उत्तरदायित्व पूर्ण सामना करें, और आत्मविश्वास के साथ परस्पर विश्वास पैदा करें। आज के कोरोना का संकटकाल कम से कम मुझे तो यही संदेश दे रहा है।
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