माननीय उच्चतम न्यायालय ने कल श्रमिकों की दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती बदहाली की स्थिति को देखते स्वतः संज्ञान लेते हुए जो निर्णय दिया, वह समस्त पक्षों के लिए संतोषप्रद है। केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारों, भारतीय रेलवे व निरीह मजदूर वर्ग सबकी सीमाओं को रेखांकित करते हुए तथा उनके दायित्वों को सीमांकित करके पालन करने के जो आदेश जारी किए हैं, वे स्वागत योग्य है।
“देर आयद दुरुस्त आयद“ की तर्ज पर उच्चतम न्यायालय ने अपनी पूर्व की गलती को सुधारते हुए बिना जनहित (पीएलआई) या अन्य याचिका के रहते, स्वविवेक से संज्ञान लेकर आवश्यक आदेश पारित किए हैं। आशा है, समस्त पक्ष बिना देरी किए, एक दूसरें पर दोषारोपण मढ़े बिना, अपने अपने कर्तव्यों व दायित्वों को पूरा करने में जुट जाएंगे ताकि श्रमिकों की दयनीय स्थिति को शीध्रातिशीघ्र सुधारा जा सके।
याद कीजिए। पूर्व में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायलय की खंड पीठ ने 15 मई को 16 प्रवासी मजदूरो की दर्दनाक मौत के पश्चात प्रस्तुत हुई एक याचिका, यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि, कोर्ट के लिए यह संभव नही है कि, वह इस स्थिति की मानिटरिंग करायें। उक्त याचिका में यह मांग की गई थी कि, देश के सभी जिला मजिस्ट्रेट्रोें को निर्देशित दिया जावें कि, वे पैदल चल रहे श्रमिकों को उनके घर पहॅुचाने में सहायता प्रदान करें। जिलाधीशो से फॅसे हुये प्रवासी कामगारो की पहचान कर उनको मुफ्त परिवहन सुनिश्चित करनें के पहले आश्रय, भोजन उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र को निर्देश देने हेतु, मॉग करने वाली सुनवाई को लेकर अनिच्छा दर्शाते हुये उक्त आवेदन पर आदेश देने से ही इंकार कर दिया था। यद्यपि इसके बाद कुछ उच्चन्यायलय बाम्बे, आन्ध्रप्रदेश, मद्रास हाईकोर्टो ने श्रमिकों की दुर्दुशा के संबन्ध में दायर याचिकाओं में कुछ न कुछ सहायता देने के आदेश अवश्य पारित किये।
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