मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन हुये लगभग 3 महीने (23 मार्च को) से ज्यादा समय बीत चुका है। ‘‘अलोकतांत्रिक’’ ‘‘ऑपरेशन लोटस’’ के दौरान लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार गिराई जाकर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में नई सरकार का गठन किया गया था। लेकिन ‘‘कोरोना’’ के कारण तत्समय मंत्रिमंडल का नवांगुत गठन नहीं हो पाया था। सिर्फ नेतृत्व (नेता) मात्र ही शपथ ग्रहण कर सकें। शायद शिवराज सिंह चौहान यह समझ बैठे थे कि, जिस प्रकार ‘‘अमिताभ बच्चन ’’की ‘सरकार’ (फिल्म) थी, जिसमें (बिना मंत्रिमंडल के) वे ही एक मात्र मुखिया थे। वैसे ही वे भी मध्यप्रदेश के (अमिताभ बच्चन के समान) जगत ‘‘मामा’’ के रूप में एक आइकॉन हैं। जिस प्रकार ‘‘सरकार’’ के अमिताभ को जनता के बीच अपना दबदबा बनाये रखने के लिए कुछ समय बाद अपने कुछ सहयोगी को जमीन पर उतारना पड़ा था। ठीक उसी प्रकार शिवराज सिंह चौहान ने लगभग 1 महीने के बाद मंत्रिमंडल का आंशिक गठन कर (मात्र) 5 मंत्री बनाकर तात्कालिक परिस्थितियों की आवश्यकताओं की आंशिक पूर्ति कर ली। कोरोना के संक्रमण के आंतकी हालात यह थे कि, (देश में शायद पहिली बार) विभाग बांटने के पहिले ही बिना विभाग के मंत्रियों को संभाग के प्रभार दे दिये गये। दुर्भाग्यवश, शिवराज सिंह चौहान की चौथी पारी के शपथ ग्रहण के समय की ‘‘कुड़ली’’ में नई कोरोना की गृहदशा (ग्रहण) है।
याद कीजिए! मध्यप्रदेश में मार्च में जब ऑपरेशन लोटस चल रहा था, तब भाजपा पर और खासकर अमित शाह व पीएमओं पर कतिपय क्षेत्रों द्वारा यह आरोप लगाये जा रहे थे कि ऑपरेशन लोटस के चलते ही ‘‘कोरोना’’ से निपटने के लिये ‘‘आवश्यक त्वरित कार्यवाही’’ व ‘‘लॉकडाउन’’दोनों उक्त ऑपरेशन के पूरा होने की प्रतिक्षा करते रहे। तत्पश्चात शपथग्रहण समारोह के तुरंत बाद ही लॉकडाउन लगाया गया, जो उक्त आरोप को ‘बल’ देता है। अतः स्पष्ट है कि नई सरकार गठन के समय से ही कोरोना वायरस से संक्रमित रही है। शायद उस संक्रमण की गति को तेजी से बढ़ने से रोकने के लिए ही मुख्यमंत्री सहित पांचों मंत्री ‘‘डॉक्टरों’’ के समान ‘‘मंत्री’’ पद की ‘‘पीपीई किट’’ पहनकर दूसरे विधायकों को (‘‘पीपीई किट’’ तत्काल उपलब्ध नहीं होने की वजह से) मंत्री न बनाकर उन्हे संक्रमित होने से बचाते रहे। शायद उन्हे यह कह कर आश्वस्त किया गया कि अभी कोरोनटाईन अवधि चल रही है। इसकी समाप्ति के पश्चात ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा। तभी आपको भी कोरोना के भय के बिना कार्य करने के लिए ‘‘पीपीई किट’’ याने ‘‘मंत्रीपद’’ उपलब्ध कराया जायेगा।
निश्चित रूप से राजनैतिक कोरोना के समग्र इलाज के लिए मंत्रियों के रूप में ‘‘डॉक्टरों’’ की शीघ्र ही नियुक्ति की जायेगी। लेकिन जबसे यह बात ज्ञात हो रही है कि, कोरोना वायरस के संक्रमण का फैलाव रूकने वाला नहीं हैं, बल्कि जुलाई में उसमें और तेजी से वृद्धि होने वाली है। साथ ही इसकी मारक क्षमता दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ने के कारण मृत्यु की संभावना भी कम होती जा रही है। इस कारण मंत्री बनने की राह जोह रहे विधायकों का धैर्य कमतर होते जाकर वे ‘‘अधीर’’ होते जा रहे हैं। कहीं उनकी यह अधीरता (‘‘अधीर रंजन चौधरी’’ लोकसभा में कांग्रेसी नेता) न बन जाये; अर्थात फिर से कोई दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया पैदा न होकर‘‘ ऑपरेशन कमल का मौका विपक्षियों (कमलनाथ) को न मिल जावंे? वस्तुतः ये विधायक उन परिक्षार्थियों के समान हैं, जो स्वयं को परीक्षा में पास मानकर रोके गये परीक्षा परिणाम की घोषणा होने की प्रतीक्षा में स्वयं को सफल परीक्षार्थियों की सूची में शामिल मानते है। ऐसे सफल अघोषित चयनित परीक्षार्थी मुख्यमंत्री और उनके माध्यम से हाईकमान को यह बात लगातार समझाने में लगे हुये है कि, यदि हम स्वतः यदि इस कोरोना संक्रमण काल में ड़र के मारे सामान्य जीवन (मंत्री के रूप में) स्वयं ही नहीं जी पा रहे है, तो हम नागरिकों व अपने मतदाताओं को इस कोरोना के साथ आत्मबल पैदा करके जीने की सलाह कैसे दे पायेगें?
चूँकि यह अब लगभग सुनिश्चित हो चुका है कि नागरिकों को ड़र को दूर कर कोरोना को आत्मसात करके उसके अस्तित्व के साथ ही जीवन व्यतीत करते हुए कोरोना के अस्तित्व को समाप्त करना होगा। इसीलिए हे; हाईकमान! मध्य प्रदेश की लगभग 7.26 करोड़ की जनसंख्या की भावनाओं को जानिए! समझिये! हमें ‘‘जीते हुये’’ सच्चे जनप्रतिनिधी होने के नाते जनता की भावनाओं के अनुरूप कोरोना के ड़र को दूर कर हमें मंत्रिमंडल में शामिल करवाइये। अन्यथा अंततः हमको भी जनता की भावनाओं के साथ ही रहना पड़ेगा? मतलब.........साफ है? शायद इन भावनाओं को शिवराज सिंह चौहान ने सुन लिया है। इसीलिए शायद वे भगवान तिरूपति बालाजी के दरबार में जाकर मत्था टेक कर हाईकमान को त्वरित कार्यवाही के लिये प्रेरित करने की; प्रार्थना करेगें। वैसे भी जिस प्रकार अमिताभ बच्चन को आवश्यकता होने पर ही ‘‘सरकार’’-2 बनाना पड़ा था। उसी तरह शिवराज सिंह चौहान को भी इस कोरोना काल में जन आकांक्षाओं की पूर्ति करने हेतु अब पूरे संवैधानिक संख्या के अनुरूप मंत्रिमंडल की आवश्यकता महसूस हो रही है। एक जागरूक नागरिक होने के नाते जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधियों की आवाज को हाईकमान के पास पहंुचाना मेरा कर्त्तव्य हैं। इस लेख के माध्यम से यही प्रयास कर रहा हूं।
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