मेरे पुराने साथी, सहयोगी, मध्य प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री और ‘‘बच्चों‘‘ के ‘‘मामाश्री‘‘ की ‘‘कोविड-19 पॉजिटिव रिपोर्ट‘‘ आने से पूरे प्रदेश में हड़कंप मचने के साथ ही एक चिंता का वातावरण व्याप हो गया है। सर्वप्रथम तो मैं अपने हृदय की गहराइयों से ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं, (जैसा कि पूरा प्रदेश व उन्हें जानने वाले समस्त जन भी कर रहे हैं ) कि, भगवान उन्हें अति शीघ्र पूर्ण रूप से स्वस्थ करें। ताकि वे जनता के बीच पुनः त्वरित सेवा करने के लिए तत्पर होकर उपलब्ध हो सकें।
शिवराज सिंह के (विश्वव्यापी) कोरोना वायरस से संक्रमित होने की जांच के लिए ‘‘जाँच आयोग‘‘ गठित होने की आवश्यकता क्यों है? इसे किंचित राजनैतिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे। यह हमारा भारत देश है, जिसका ‘‘केंद्र बिंदु‘‘ व ‘‘ह्रदय प्रदेश’’ हमारा ‘‘मध्य प्रदेश’’ है। जब सरकारी तंत्र और मीडिया ने ‘‘कोविड-19‘‘ रोग को ‘‘सावधानी‘‘ से ज्यादा ‘‘भय‘‘ का इनपुट लिए लगातार प्रचारित करके उसे एक डरावनी बीमारी के रूप में विकसित कर दिया है। तब ऐसी ‘‘कोविड-19 संक्रमण जन्य’’ बीमारी से प्रदेश के मुखिया के संक्रमित हो जाने से, प्रदेश के करोड़ों लोगों के ‘‘हृदय को गहरे आघात व चोट‘‘ लगना स्वभाविक ही है। हमारे देश की राजनीति की यह एक नियमित प्रथा व प्रक्रिया है कि, जब भी कोई घटना, दुर्घटना या ‘‘चोट‘‘ लग जाए तो उससे तो बाद में निपटा जाता है, सर्वप्रथम तो तुरंत ही एक ‘‘जांच आयोग‘‘ के गठन की घोषणा कर दी जाती है। परिणाम स्वरूप घटना करने वाले ’’कर्ता’’ व ‘‘भुक्तभोगी’’ दोनों पक्ष तात्कालिक रूप से संतुष्ट कर दिये जाते हैं। अतः उसी प्रथा को अपनाते हुए यहां भी संक्रमित होने की जांच के लिए, एक जांच आयोग का बनाया जाना अत्यावश्यक है। ताकि रोग से संक्रमित करने वाला और संक्रमित हुआ (रोगी) अपने अपने पक्ष को आयोग के समक्ष रख सकंे। ताकि इस कोरोना संकटकाल के लॉकडाउन में एक दूसरे पर तीर चला कर लॉकडाउन की शांति भंग न हो।
आप लोग सभी यह सब जानते हैं कि, देश व प्रदेश में लोगों के आवागमन और सामान्य दिनचर्याओं पर भले ही ‘लॉकडाउन‘ लगा हुआ है, परन्तु राजनैतिक बाजार की ‘‘मंडी‘‘ में माननीयांे की खरीद-फरोख्त पर कोई लॉकडाउन नहीं लगा हुआ है। क्योंकि लॉकडाउन में ‘‘आवश्यक सेवाओं व वस्तुओं‘‘ की खरीदी बिक्री की छूट दी गई है। फलस्वरुप ही शिवराज सिंह की सरकार के मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद शिवराज सिंह ‘‘एंड कंपनी‘‘ ने कमलनाथ की ‘‘भागीदारी फर्म‘‘ ‘‘(कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह) जो पूर्व में ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से कम्पनी से फर्म में बदल गई, के माननीय, सम्मानीय, चुने गए जनप्रतिनिधियों को एक एक कर (छीन कर) अपनी कंपनी में शामिल कर लिया है। भविष्य में यदि इसी तरह से ’’मंडी’’ में बोली लगाकर आना जाना चलता रहा तो, कमलनाथ की ‘‘कम्पनी’’ से परिवर्तित हुई ‘‘भागीदारी फर्म’’ कहीं ‘‘प्रोप्रायटरशिप‘‘ में न बदल जाए? इस खतरे को भांपते हुए और अपनी फर्म के ‘जन सेवकों‘ को अपनी जागीर से भागने से रोकने में असफल होने के कारण ही ऐसा लगता है कि, कमलनाथ ने अपने में से एक ऐसे जनसेवक को ‘‘कोविड-19 से संक्रमित करके‘‘ शिवराज सिंह की कंपनी में भेज दिया। शिवराज सिंह ने कोरोना संकट काल के कारण पूरी तरह से सावधानी बरतते हुए (उक्त तीन सदस्यों का) सैनिटाइजेशन (सत्ता के पद व सुख का लाभ दे) कर अपनी कंपनी में शामिल तो कर लिया। लेकिन यहां पर शिवराज सिंह से ’’सैनिटाइजेशन’’ करने में कुछ चूक हो गई (शायद सत्ता के पद का पूरा लाभ किसी ‘‘एक‘‘ को नहीं मिला)। साथ ही डॉक्टर (हाई कमांड) से ‘‘प्राथमिक जांच‘‘ कराए बिना ही ‘‘कंपनी‘‘ में शामिल कर लिया, जिसके सम्पर्क में आते ही मुखिया (कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर) होने के कारण वे स्वंय ही संक्रमित हो गए। कमलनाथ का तीर यहां पर तो निशाने पर लग गया। फलस्वरूप शिवराज सिंह के कम से कम 15 दिन क्वॉरेंटाइन में रहते तक कमलनाथ की फर्म के शेष बचे जनसेवक कुछ समय तक उनके ही ‘बाड़े‘ में सुरक्षित रह सकेंगे (स्वतः क्वारंटाइन में होने के कारण मैनेजिंग डायरेक्टर द्वारा कुछ समय के लिये’’अभियान’’ को ’’विराम’’देकर लिए उन्हें ‘असुरक्षित‘ न करने के कारण से)। इसीलिए इस बात की जांच किए जाने की निहायत आवश्यकता ही है कि, कमलनाथ ने अपने ’’राजनैतिक स्थायित्व’’ व ’’विकास’’ (वहीं ‘‘विकास’’ जिसकी चिंता व चर्चा हर आजकल कहीं हैं) को बचाने लिए कहीं शिवराज सिंह को कोरोना वायरस से संक्रमित कर ‘‘राजनीतिक क्षेत्र‘‘ से भी कुछ समय के लिए संक्रमित (दूर) तो नहीं कर दिया? आयोग की जांच का निष्कर्ष भी क्वॉरेंटाइन अवधि के पूर्व आना अत्यावश्यक है। ताकि शिवराज सिंह बरती जाने वाली ‘‘सावधानियों’’ में पहले हो चुकी ‘‘चूक’’ (गलती) को, जान कर समझ कर उन्हे पुनः दोहराने की गलती न करें। ताकि वे कोरोना काल की शेष अवधि (मध्यप्रदेश में लगभग साढ़े तीन वर्ष तक) में सुरक्षित रह सकें।
चूंकि शिवराज सिंह के नाम में ही ‘‘शिव‘‘ शामिल है, अतः उनकी प्रकृति ही विष पीने की है। इसीलिए उन्होंने मुखिया होने के नाते ‘‘श्रावण मास‘‘ (भगवान शिव के प्रिय मास) में जनता के ‘‘कोरोना रूपी विष‘‘ (जहर) को स्वयं ग्रहण कर जनता को लगभग ‘‘निरोगी‘‘ कर दिया है । ठीक उसी प्रकार जैसे लोकतंत्र में चुनी हुई लोकप्रिय सरकार के मुखिया के रूप में अपने कर्तव्यों का पिछले 15 वर्षों से निर्वहन करते हुए शिवराज सिंह ने अधिकतर समस्याओं का निदान करते हुए प्रदेश में लगभग ‘‘रामराज्य‘‘ ला दिया है? हाल ही में मंत्रिमंडल के विस्तार और विभागों के बंटवारे के लिए चले (समुद्र) मंथन से उत्पन्न अमृत और विष में से विष को ग्रहण करने की बात स्वयं शिवराज सिंह ने सार्वजनिक रूप से कही थी। जनता की ‘‘समस्याओं रूपी जहर‘‘ को स्वयं पानकर उन्हें समस्या मुक्त करते रहना सदैव से शिवराज सिंह का चरित्र रहा है। भारतीय संस्कृति में ‘‘मामा’’ के द्वारा कन्यादान करने का बड़ा महत्व है। इसीलिए अनेक भांजी की दुआएं भी शिवराज को जहर पीने के लिए ताकत प्रदान करती रहती है।
शिवराज सिंह के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद इलाज हेतु यह कहकर वे एक ‘‘निजी अस्पताल चिरायु‘‘में भर्ती हो गए कि, यहां पर आम जनता का इलाज हो रहा है। साथ ही उन्होंने यह भी अपील की, जो कोई भी व्यक्ति उनसे संपर्क में आया है, वह अपना कोरोना वायरस टेस्ट अवश्य करवा ले। दुर्भाग्य देखिए! प्रदेश की राजधानी भोपाल में हमीदिया हॉस्पिटल व एम्स हॉस्पिटल, जे.पी. हॉस्पिटल ऐसे सरकारी अस्पताल है, जो सरकार द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए नामित है। चिरायु की हालत यह है कि कुछ दिन पूर्व ही शायद चिरायु के डायरेक्टर के परिवार के चार सदस्यों का कोरोना का ईलाज चल रहा है। फिर भी‘‘सरकार‘‘ (मुख्यमंत्री) का ही इन सरकारी अस्पताल पर बिल्कुल भी ‘‘भरोसा‘‘ नहीं है। क्योंकि सरकार जानती है कि सरकारी अस्पतालों की ‘‘सुव्यवस्था‘‘ कितनी ‘‘सुदृढ‘’ है? इसलिए पहले ‘‘जनता को उक्त सुदृढ़ सुव्यवस्था का ‘‘लाभ‘‘ ले लेने दीजिए। उसके बाद ही वीवीआइपी का नंबर लगे, इसीलिये तो हम जन सेवक कहलाते हैं? लेकिन शिवराज सिंह ने अन्य कई प्रसिद्ध निजी अस्पतालों की बजाय ‘‘चिरायु‘‘ को ही क्यों चुना। इसके जवाब में सोशल मीडिया शायद अपने तरीके से एक तरफा ‘व्यापम और नेताओं‘ के तार चिरायु से जोड़कर शायद अपनी ही ‘‘खीज‘‘ निकाल कर दे रहा है। लेकिन मैं यह मानता हूं कि, शिवराज ने ‘‘चिरायु‘‘को इसलिए चुना क्योंकि वह अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप कार्य करता है। अर्थात रोगी को स्वस्थ कर ‘‘चिरायु‘‘ बनाता है जिसकी फिलहाल नितांत आवश्यकता शिवराज सिंह सहित सभी को है। वैसे भी जब जांच आयोग गठित होगा, तब अधिसूचित की जाने वाली विषय वस्तु के अलावा उसके साथ लगे हुए घुन के समान अतिरिक्त विषयों की जांच भी करना आयोग के न्यायाधीश अपना विशेषाधिकार मानकर स्वयं को महिमामंडित करने का प्रयास भी अवश्य करेगें ही। तब उपचुनावों को रोकने के लिए ‘‘कोरोना लाया जा रहा है‘‘ जैसे सोशल मीडिया के कथनों की भी जांच आयोग अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतः ही ले लेगा।
अंत में हर क्षेत्र में ‘‘पॉजिटिव’’ नेस (पूर्ण विश्वास) से काम करने वाले शख्स शिवराज सिंह ’कोरोना’ के मामले में भी ‘‘पॉजिटिव‘‘ होकर कोविड-19 बीमारी के वे देश के पहले संक्रमित (रोगी) मुख्यमंत्री बन गए हैं। पूर्व में भी मैंने एक लेख में उदाहरण सहित लिखा था कि, ’’मध्य प्रदेश’’ को शिवराज सिंह के नेतृत्व में अन्यान्य क्षेत्रों में देश में ‘‘प्रथम‘‘ होने की लत सी लग गई है। इसी क्रम में देश में सबसे पहिले, शिवराज, केबीनेट की ‘‘वर्चुअल मीटिंग‘‘ भी करनें पर भी विचार कर रहें हैं। मैं ईश्वर से पुनः प्रार्थना करता हूं कि न केवल शिवराज सिंह को, बल्कि प्रदेश और देश की कोरोना वायरस संक्रमित पीडि़त जनता को इस बीमारी से शीघ्रातिशीघ्र निजात (मुक्ति) प्रदान करें।
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