सर्वकालीन पिछले 4 महीनों से कोरोना काल के साथ अभी राम जन्मभूमि में भगवान ‘‘रामलला’’ का जो ऐतिहासिक शिलान्यास होने जा रहा है, के साथ-साथ फिल्मी कलाकार सुशंात सिंह राजपूत की आत्महत्या (हत्या?) का मामला भी पिछले कुछ समय से मीडिया में छाया हुया है। सुशांत सिंह के मामले में इसे मीडिया ट्रायल भी कह सकते है। कुछ मीडिया द्वारा तो लगभग यह सिद्ध कर दिया गया है कि या तो सुशांत की हत्या की गई है या उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया था, जो एक आपराधिक कृत्य होकर अपराध है। मुंबई पुलिस की चल रही जांच की प्रक्रिया व धीमी गति को देखते हुये लोगो को संदेह और उँगली उठाने का एक मौका अवश्य मिल गया है। तदानुसार देश के विभिन्न भागों खासकर सुशांत के गृहप्रदेश बिहार के लोगों द्वारा और साथ ही उनके परिवार के द्वारा सीबीआई जांच की जोर शोर से की जा रही थी। इतना समय बीत जाने के बावजूद भी मुबंई पुलिस अभी तक इसी निष्कर्ष पर पंहुच सकी है कि, वह आत्महत्या का मामला है। चूंकि सुशांत मानसिक डिपरेशन में थे और ‘‘बाइपोलर डिसआर्डर’’ मानसिक रोग से ग्रसित थे। उनका इलाज मनोचिकत्सक (साइक्रियेस्टि एवं साइकोलोजिस्ट) द्वारा इलाज भी चल रहा था, जैसा कि मुंबई पुलिस ने अपनी प्रेस वार्ता में कहा है।
परन्तु उक्त निष्कर्ष लोगों के गले नहीं उतर पा रहा है। इसका एक बहुत बड़ा कारण, इस घटना के पीछे कुछ प्रमुख ‘‘वीआईपी कलाकारों’’ और शायद ‘‘नेता’’ का संबंध होना भी है, जिन्हे तथाकथित रूप से बचाने की कोशिश हो रही है, जैसा कि सोशल मीडिया में प्रचारित हो रहा है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण बिहार पुलिस को मुंबई पुलिस का शिष्टाचार व परम्परागत औपचारिक सहयोग का न मिलना भी है, जो दुखदायी होकर आश्चर्यचकित भी करता है। महाराष्ट्र सरकार के द्वारा पहले बिहार पुलिस के 4 अधिकारियों को जांच हेतु आने दिया गया। लेकिन पटना पुलिस अधीक्षक विनय तिवारी के मुबंई पहंुचते ही उन्हे क्वारंटाइन कर दिया गया। इस प्रकार बिहार पुलिस का सहयोग नहीं किया गया। शायद पूर्व में देश में ऐसा कहीं भी कमी नहीं हुआ होगा। कोरोनाकाल में, जो अन्य दूसरे प्रदेशों से सरकारी कार्यवश महाराष्ट्र आये नेताओं, मंत्रियों, ऑफिसर्स व अन्य वीआईपीज मंे से कितनों को आवश्यक रूप से क्वारंटाइन किया गया? यह निरूत्तर कर देना वाला प्रश्न ही महाराष्ट्र सरकार को जनता की अदालत में खडा कर देता है। लेकिन इस स्थिति से निपटने के लिए बिहार सरकार ने जो निर्णय लिया है, क्यों वह कानूनी रूप से सही और कितना उचित है? आइये; इसका आगे विश्लेषण करते है।
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरों (सीबीआई) का गठन 1963 में केन्द्रीय सरकार द्वारा डीएसपीई अधिनियम 1946 (दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना) से प्राप्त शक्तियों के अंतर्गत किया गया है। 6 खंडो वाले उक्त अधिनियम में यह कहा गया है कि, सीबीआई केवल उन अपराधों की जांच के लिए है, जो केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित की गई हो। केन्द्र सरकार भी राज्य सरकार की सहमति के बिना अपनी शक्तियों व अधिकार क्षेत्रांे का उपयोग नहीं कर सकती है। राज्य सरकार का मतलब उस राज्य सरकार से है, जहां कि अपराध उत्पन्न (घटित) हुआ है और जहां उसकी जांच की जानी है या की जा रही हैं। राज्य सरकार डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सहमति की अधिसूचना जारी करती है। तदनुसार केन्द्र सरकार अधिनियम की धारा 5 के अंतर्गत अधिसूचना जारी करके प्रकरण सीबीआई को सौंप देती है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च व उच्च न्यायालय को भी, अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी प्रकरण को जांच हेतु सीबीआई को सौंपने के अधिकार है, जो उच्चतम न्यायालय ने कई निर्णयों में प्रतिपादित किया है। जैसी व्यवस्था मुख्यरूप से प्रकरण पश्चिम बंगाल राज्य बनाम कमिटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (2010) 3 एससीसी 571 में स्पष्ट रूप से दी गई है।
अब सुशांत प्रकरण में मूल प्रश्न, यह है कि घटना चंूकि मंुबई में घटित हुई है, जिसकी प्राथमिकी जांच (प्राथमिकी रिपोर्ट नहीं) मंुबई पुलिस द्वारा की जा रही है। चंूकि आत्महत्या में मृत्यु हो जाने से वह अपराध नहीं रह जाता है। लेकिन आत्महत्या का प्रयास (धारा 309) एवं आत्महत्या के लिए प्रेरित करना (ऐबेटमेंट) धारा 306 के अंतर्गत एक संज्ञेय अपराध है। यद्यपि अभी तक मुंबई पुलिस द्वारा कोई प्राथमिकी (प्रथम सूचना पत्र एफआईआर) दर्ज नहीं की गई है। कारण, अभी तक मुंबई पुलिस को कोई ऐसा साक्ष्य नहीं मिला है जो उक्त आत्महत्या के प्रकरण में किसी के भी खिलाफ प्राथमिकी जांच को ‘‘प्राथमिकी’’ में परिवर्तित कर सकें। सुशांत के पिताजी व उनके वकील का यह तर्क है कि 25 फरवरी को सुशांत के जीवन के खतरे के बावत उनके परिवार के लोगो ने वाट्टसअप पर मुंबई पुलिस को मैसेज किया था। जिस पर मुंबई पुलिस ने इस आधार पर तत्समय कोई कार्यवाही इसलिये नहीं की थी कि, कोई लिखित शिकायत नहीं दी गई है। लेकिन घटना के बाद भी उस वाट्टसअप में उल्लेखित वर्णित तथ्यों का कोई संज्ञान मुंबई पुलिस द्वारा न लेना निश्चित रूप से एक गंभीर चूक है। इस प्रकार के के सिंह के वकील के अनुसार मुंबई पुलिस ठीक से जांच नहीं कर रही है व अभी तक प्राथमिकी जांच ही चल रही है। प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज नहीं हुई है। लेकिन उनकी शिकायत के आधार पर पटना में प्राथमिकी दर्ज (एफआईआर) हो चुकी है। अतः अब जांच का अधिकार बिहार पुलिस को ही है। मेरे मत में कानून की यह गलत व्याख्या है।
पटना (बिहार) जहां के सुशांत रहने वाले थे, उनके पिताजी द्वारा की गई शिकायत पर पटना पुलिस ने धारा 341, 342, 380, 406, 420, 306 के अंतर्गत अभिनेत्री रिया चक्रवती व अन्य पांच के विरूद्ध प्रकरण दर्ज किया गया है। जोे अपराध दर्ज किये गये है, वे गलत तरीके से रोकना, गलत तरीके से प्रतिबंध लगाना, अमानत में खयानत, चोरी करना व बेइमानी करने के साथ आत्महत्या के लिए उकसाना। इन तथाकथित अपराधों के प्रारंभ होने से लेकर अंत तक घटित होने में, पटना पुलिस का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं होता है। सुशांत के पिताजी कृष्ण कुमार सिंह के वकील का कहना है कि, पैसों के ऐठने (जबरन अवैध वसूली धारा 383) को लेकर पटना पुलिस को क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है, तो क्या बिहार सरकार यह स्पष्ट करेगी कि उसकी धारा 6 के अंतर्गत जारी की गई अधिसूचना सिर्फ पैसे ऐठने से संबंधित अपराध तक ही सीमित होकर, आत्महत्या/हत्या से संबंधित नहीं है। वैसे भी पटना पुलिस ने धारा 383 के अपराध का प्रकरण दर्ज नहीं किया है।
सामान्यतः असंज्ञेय मामलों में घटना के घटित होने पर जहां जाहिर तौर पर विशिष्ट साक्ष्य नहीं होती है तब, ‘‘प्राथमिकी’’ (एफआईआर)दर्ज करने के पूर्व ‘‘प्राथमिकी जांच ही की जाती है’’ जो मुंबई पुलिस कर रही है। ये बात अलग है कि मुंबई पुलिस किस ‘‘मुस्तेदी’’ से जांच कर रही है? जो स्वयं में एक जांच का विषय हो सकता है। पटना पुलिस द्वारा उस घटना के संबंध में जो उसके प्रदेश में घटित ही नहीं हुई और उससे संबंधित कोई भी साक्ष्य पटना पुलिस के पास तत्समय नहीं थी, तब अतिशीघ्रता से पिताजी की लिखित शिकायत को प्राथमिकी के रूप में दर्ज कर क्रमांक दे दिया। जबकि नियमानुसार पटना पुलिस को जीरो पर एफआईआर दर्ज कर उस संबंधित प्रदेश को जहां उक्त घटना घटित हुई थी, हस्तांतरित करना चाहिए था। क्योंकि नियमानुसार उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार घटना घटित होने वाले प्रदेश के ही जांच करने का अधिकार है। पटना पुलिस की यह त्वरित कार्यवाही गैरकानूनी होकर अतिरिक्त दिलचस्पी को ही दिखाती है।
यदि मुंबई पुलिस जांच नहीं कर रही है या जांच में कोई कमी है, तो उच्च या उच्चतम न्यायालय के माध्यम से आवश्यक निर्देश दिलवाये जा सकते है। इसलिए मीडिया से लेकर उनके परिवार और समस्त वकीलों को यह समझने की आवश्यकता है कि सुशांत प्रकरण की जांच सीबीआई से करवानी है तो, या तो उन्हे इसके लिये महाराष्ट्र सरकार से निवेदन करना होगा, अथवा फिर उन्हे उच्च/उच्चमत न्यायालय में जाना चाहिये और वही सही प्रकिया होगी। यदि महाराष्ट्र सरकार पर इस प्रकरण में राजनीति का आरोप लगाया जा रहा है तो, उसके प्रति उत्तर में वही आरोप बिहार सरकार पर भी लगेगें। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। वस्तुतः पूरा प्रकरण महाराष्ट्र पुलिस की निष्कियता व बिहार सरकार की अतिरिक्त दिलचस्पी के बीच ही झूलता दिख रहा है। इंतजार कीजिये! आगे क्या परिणाम निकलते है।
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