’इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्वयं को देश का ’’सबसे आगे’’ ’’सबसे तेज’’ कहने वाला (अरुण पुरी का) चैनल ’’आज तक’’ और उसका अंग्रेजी संस्करण ’’इंडिया टुडे’’ के कार्यकारी संपादक राजदीप सर देसाई के ’’सुशांत आत्महत्या’’ प्रकरण में ’’प्राइम व प्रथम’’ अभियुक्त ’’रिया चक्रवर्ती’’ से लगभग पौने दो घंटे (एक घंटा 42 मिनट) के धमाकेदार साक्षात्कार (इंटरव्यू) ने ’’दर्शको’’ं के पहले ही स्वंय ’’मीडिया’’ के भीतर ही एक बड़ा ’’धमाका’’ पैदा कर दिया है। देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ’’इतिहास’’ में शायद यह पहली बार ही हुआ है, जब एक नामजद अभियुक्त के इंटरव्यू के कारण सबसे ज्यादा दर्शकों के द्वारा देखे जाने वाले प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ’’आज तक’’ के विरुद्ध एक साथ कई अन्य मीडिया चैनल खड़े हो गए हैं। इसके पूर्व कभी भी हमने (परस्पर प्रतिस्पर्धा के बावजूद) मीडिया को सामान्यतया एक दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप लगाते हुए नहीं देखा है। जैसा कि ‘‘रिया’’ के उक्त इंटरव्यू ने कई मीडिया हॉउसेस को ’’आज तक’’ के विरुद्ध खड़ा कर दिया है। यद्यपि ’’न्यूज-18’’ ने भी रिया का इंटरव्यू प्रसारित किया है। साथ ही एन.डी.टी.वी के सवंाददाता ने भी रिया से बातचीत की हैं। लेकिन अन्य मीडिया हाउसेस ने उन सबका संज्ञान शायद इसलिए नहीं लिया है कि टीआरपी की दौड़ में वे न्यूज 18, एन.डी.टी.वी. या अन्य कोई मीडीया को अपना प्रतिद्वंदी नहीं मानते हैं। इसलिए ‘‘आज तक’’ पर ही अन्य मीडियों द्वारा यह आरोप लगाया जा रहा है कि, उसने एक ‘‘मुख्य अभियुक्त’’ को एक बडे मीडिया का प्लेटफॉर्म देकर ‘रिया’ को प्रचारित कर उसके घडि़याली आंसू दिखाकर ’’तथाकथित सात्वना’’ मिलने से ’जांच’ को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसलिए यह आरोप भी लगाया गया है कि यह एक प्रायोजित व स्क्रिप्टेड (लिखा हुआ) इंटरव्यू है। क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि, किसी अभियुक्त का मीडिया द्वारा पहली बार इन्टरव्यू प्रसारित किया गया है? सैकड़ों अभियुक्तों के उदाहरण समस्त मीडियो के प्लेटफार्म पर मिल जाएंगे। सिर्फ सामान्य अभियुक्तियों के ही नहीं, बल्कि ‘‘आर्थिक आपराधिक अपराधी,’’ कई हत्यारों के ’’हत्यारे’’ डाकू, स्मगलर, आतंकवादी, देशद्रोही, देश के विरूद्व दूसरे देशों के शत्रु व्यक्ति, ऐसे न जाने कितने घृणित अपराधों के आरोपियों को समय-समय पर विभिन्न मीडियो ने अपने स्टुडियों में आदर पूर्वक बुलाकर, चाय पिलाकर इंटरव्यू लिये है। और उन्हें लाइव बहस में बैठा कर चर्चा भी करवाई है। उदाहरणार्थ आतंकवादी दाऊद इब्राहिम, अबु सलेम, याकूब मेमन, ताहिर हुसैन चंदन तस्कर वीरप्पन कई हत्यारों का अपराधी विकास दुबे, ईन्द्राणी मुखर्जी ऐसे न जाने कितने उदाहरणों से मीडिया के स्टूडियों के प्लेटफार्म भरे पड़े हुये होंगे। रिया के आज तक के तथाकथित प्रायोजित साफ्ट लेकिन लम्बे चौडे़ धमाकेदार इंटरव्यू से यदि जांच प्रभावित होती है, तो कृप्या समस्त मीडिया हाउस क्या यह बतलाने का कष्ट करेंगे कि, पिछले 2 महीने से जिस तरह से सुशांत आत्महत्या प्रकरण में रिया सहित अन्य कई व्यक्तियों के विरुद्ध आत्महत्या के लिये उकसाने से लेकर हत्या तक के आरोपों की स्टोरी (कहानी) मीडिया में चलाई जा रही है। तब क्या जांच प्रभावित नहीं होती है? हद तो तब हो गई, जब ‘‘प्राथमिकी’’ आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए दर्ज हुई है, हत्या की दर्ज नहीं है। न ही शिकायतकर्ता ने अपनी लिखित शिकायत में अथवा अपने बयानों व कथनों में हत्या का आरोप लगाया हैं। लेकिन विभिन्न एजेंसियों की जांच के दौरान पाए गए तथाकथित तथ्यों व सबूतों को अनाधिकृत रूप से चुपके से लीक किए जाने के आधार पर मीडिया का एक बड़ा वर्ग उन्हें सत्यापित किए बिना विभिन्न कहानियां गढ़ कर, रच कर, हत्या सिद्ध करने पर तुला हुआ है। यह कितना उचित हैं?
क्या इस तरह से मीडिया द्वारा समस्त दर्ज आरोपियों व ’अनामित’ व्यक्तियों को अपराधी दिखाकर उनके विरुद्ध एक तरफा रिपोर्टिंग नहीं की जा रही है? क्या यही निष्पक्ष व स्वथ्य पत्रकारिता है? क्या ऐसी यह रिपोर्टिंग एक फिक्सड़ (गाइडेड) लक्षित उद्देश्य लेकर की जाने के कारण जांच को प्रभावित करने का यह तरीका नहीं है? समाचार लेखनी व प्रेषण (न्यूज रिपोर्टिंग) (पत्रकारिता) तथा न्याय का यह एक मान्य प्रचलित सिद्धांत है कि, यदि आप किसी व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध कोई रिपोर्टिंग कर रहे हैं, तो उस व्यक्ति या संस्था से उनका पक्ष जानकर उनकी भी रिपोर्टिंग करें। तभी वह निष्पक्ष पत्रकारिता कहलाएगी। सिर्फ ’एक पक्ष’ को सामने लाने का मतलब विशिष्ट उद्देष्य के लिये एक पक्षीय रिपोर्टिंग करना कहलायेगा। इसलिए उन मीडिया हॉउसेस को यही सलाह है कि, दूसरों पर पत्थर फेंकने के पहले स्वयं के गिरेबान में भी झांके। जब वे स्वंय ‘‘कांच’’ के घर में रह रहे हैं, तो उनको दूसरे पर ‘‘पत्थर फेंकने’’ का क्या अधिकार है? वैसे उक्त विवाद में एक अच्छी बात यह निकल कर आई है, कि मीडिया के किसी भी व्यक्ति पर अन्य किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा हमला या कोई कार्रवाई करने पर अभी तक समस्त मीडिया एकजुट होकर अपने व्यक्ति की रक्षार्थ दीवार बनकर सामने खड़े हो जाता था। यह पहली बार हुआ है, जब मीडिया का यह सिंडिकेट टूट कर परस्पर आमने सामने खड़ा हो गया है।
उक्त उपजे विवाद ने एक प्रश्न को जरूर जन्म दे दिया है, वह यह कि अभियुक्त के टीवी इंटरव्यू से जांच प्रभावित हो सकती है। तो फिर इन पर वैधानिक प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाता है? और यह मांग वे समस्त मीडिया चैनल क्यों नहीं कर रहे हैं व उठा रहे हैं जो उक्त प्रायोजित इंटरव्यू की आलोचना कर रहे है। अतः यदि उक्त आलोचना को सही अंजाम तक पहुंचाना है, तो आपको ये कदम उठाने ही होंगे। तभी आपकी आलोचना सार्थक कही जा सकती है। ’’प्रेस की स्वतंत्रता’’ व लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जैसे ’’प्रिय लुभावने नारे’’ व उसकी स्वतंत्रता ‘‘मधुमक्खी के छत्ते के’’ समान होने के, कारण साहस की कमी के कारण से यदि कानून नहीं बनाया जा सकता है, तो समाचार पत्रों, एजेंसियों की संस्था एनबीए, भारतीय प्रेस परिषद व अन्य संस्थाआंे की स्वयं आगे आकर इस संबंध में एक आर्दष आचार संहिता क्यों नहीं बनाना चाहिए? वैसे कल ही भारतीय प्रेस परिषद ने मीडिया की सुशांत प्रकरण की रिपोर्टिंग पर एक एडवाइजरी जारी कर कहा है कि, पत्रकारिता आचरण के मानकों का पालन करते हुये मीडिया स्वयं के समानांतर ट्रायल को अंजाम न दें। उक्त इंटरव्यू में रिया द्वारा अपनी प्रतिरक्षा में दिए गए तथ्यों व तर्को पर पर यह अन्य मीडियो और विशेषकर सुशांत के वकील विकास सिंह द्वारा यह तर्क दिया गया कि कोई आरोपी कभी आरोप स्वीकार करता है क्या? बात सामान्यतया सही है। लेकिन आपको इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि प्रस्तुत प्रकरण में स्वयं रिया ने न केवल सर्वप्रथम सीबीआई जांच की मांग की थी, बल्कि वह अभी भी यह कह रही है कि यह आत्महत्या या हत्या का जो भी मामला है, उसकी पूरी जांच होनी चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में इसके पूर्व कभी किसी अभियुक्त ने ऐसा कभी कहा हैं? उच्चतम न्यायलय में भी रिया ने सीबीआई जांच का समर्थन किया था। वह जांच में पूरा सहयोग दे रही है। और अभी तक किसी भी जांच एजेंसियों ने यह आरोप नहीं लगाया है कि रिया जांच में सहयोग नहीं दे रही है।
इन समस्त बातों के बावजूद ’’आज तक’’ को इस बात का तो स्पष्टीकरण देना ही होगा कि इतने लम्बी समयावधि (लगभग पौने 2 घंटे) के साक्षात्कार की क्या आवश्यकता थी? न तो घटना बड़ी व बहुत ही महत्वपूर्ण थी और न ही अभियुक्त कोई बहुत बड़ी ‘सेलिब्रिटी’ हैं। प्रधानमंत्री के भी इंटरव्यू एक घंटे से ज्यादा अवधि के लिए नहीं किये गये है। जिस प्रकार चुप्पी कई बार प्रश्नांे को जन्म दे देती है। उसी प्रकार उक्त लम्बी अवधि का इंटरव्यू (खटकने के कारण) कुछ आशंका को अवश्य जन्म देता है। इसका जवाब तो ’आज तक’ को देना ही चाहिए।
लेख का समापन करते-करते अभी केन्द्रीय जांच अन्वेक्षण ब्यूरों ने ‘रिया’को सुरक्षा प्रदान करने के आदेश दिये है। इस संबंध में सुशांत के परिवार के वकील विकास सिंह अब क्या कहेगें? क्योंकि यह भी शायद पहली बार ही हुआ है कि, सीबीआई ने मुंबई पुलिस को एक नामजद आरोपी रिया को ‘‘कस्टोडि़यन सुरक्षा’’ की बजाए स्वयं की सुरक्षा हेतु पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने के आदेश दिये हैं।
Correct analysis.
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