अभी तक तो आपने, हमने, सभी ने यही पाया है कि, ‘‘सत्ता के ड़र व डंडे‘‘ के आगे सब ‘‘ड़रकर’’ भागते फिरते हैं। सत्ता के डंडे के ड़र का प्रभाव ही लोगों को उच्छंखल व उद्दण्ड़ होने से बचाता है। लेकिन अपने डंडे के डर से स्वयं सत्ता ही भागते फिरे, ऐसा हमने अभी तक न तो देखा है, न सुना है और न ही इसकी कल्पना किसी ने कभी भी की ही होगी। बात राजस्थान की है। अभी तक राजनैतिक उथल पुथल के दौर में कुछ समय के लिये ही ‘‘माननीय’’ ‘‘घोषित छुट्ठियाँं’’ मनाने जाते रहे। पिछले 1 महीने से ‘‘सरकार‘‘ के ‘‘सरकारी निवास‘‘ लगातार बदलते जा रहे हैं। यदि इन दिनों में किसी ‘‘पीडि़त नागरिक‘‘ को अपनी समस्याओं को ‘‘सरकार’’ को अवगत कराने के लिए कोई चिट्ठी लिखनी पड़े तो, पहले यह खोज करनी पड़ेगी कि चिट्ठी पोस्ट करने के लिए ‘‘सरकार‘‘ का सही पता कौन सा है, ताकि उसकी ड़ाक ‘‘सरकार‘‘ तक पहुंच सके। कोरोना काल में यह भी एक नया राजनैतिक अनुभव सरकार के अंदर ही पैदा हुए ‘‘भय‘‘ का देश के नागरिकों को हो रहा है।
14 अगस्त को राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र बुलाए जाने की स्वीकृति दी जाने के बाद, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रेस से चर्चा करते हुए कहा कि हॉर्स ट्रेडिंग में रेट 30 करोड़ से बढ़कर असीमित (अनलिमिटेड़) हो गए हैं। इससे बड़ी दुर्भाग्य की क्या बात हो सकती है कि, लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए मुख्यमंत्री अपने उन्ही विधायकों को "हॉर्स" कह रहे है, जिन्होंने गहलोत को नेता चुना है। क्या गहलोत ‘‘अस्तबल‘‘ चला रहे हैं, जहां उनके 100 के लगभग हॉर्स बांधे गए हैं? यदि उनके वे सब माननीय ‘‘हॉर्स’’ हैं, तो उन्ही विधायकों द्वारा चुने गए नेता के रूप में बने मुख्यमंत्री "स्वयं" को क्या कहलाना पसंद करेगें? जैसा ‘‘अस्तबल’’ में बोली लगाने के बजाय आज के राजनैतिक बाजार की मंडी में बोली लगाने के लिए क्या अकेले सिर्फ गहलोत ही जिम्मेदार है? यदि ‘‘माननीय’’ बाजार में बोली लगाने लायक एक ‘‘कमोडिटी‘‘ हो गए हैं, तो ‘कई’ ‘‘बोली लगाने वाले‘‘ भी तो होगें? तभी तो अधिकतम बोली मिलने पर आप बिक पाएंगे?चूकि कोरोना काल में ‘‘मंडी‘‘ में नए ‘‘कमोडिटी‘‘ का प्रवेश कुछ ज्यादा ही हो गया है, जिस पर फिलहाल कोई ‘‘मंडी शुल्क‘‘ नहीं लग रहा है। क्या यह सामयिकी आवश्यकता नहीं है कि, इन राजनीतिक मंडियों में नए कमोडिटी के मूल्य की अधिकतम सीमा तय करके और उस पर ‘‘मंडी शुल्क’’ निर्धारित कर उनके व्यापारिक सौदों को नियमित और कानूनी बना दिये जाँय? मंडी में तो अनाज तिलहन इत्यादि अनाजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय रहता है, अधिकतम नहीं! लेकिन राजनैतिक मंडी के कोरोना काल की राजनैतिक मंडी में तेजी से बढ़ती हुई महंगाई के मद्देनजर अधिकतम मूल्य की सीमा भी तय किए जाने की आवश्यकता है? वैसे ज्यादा अच्छा तो यह रहेगा कि, इस नई कमोडिटी के व्यापार के लिए एक नया कानून ही बना दिया जाय। ताकि प्रत्येक बोली कानूनी रहकर‘‘नैतिकता‘‘ इतिहास के गर्त में स्वमेव ही ढ़केलते जायेगी।
यद्यपि इस ‘‘खरीद फरोख्त’’ की जांच राजस्थान सरकार करवा रही है। चूकि वह राजनैतिक बाजार की इस मंडी में स्वयं एक पक्ष है, तो ज्यादा अच्छा यह होगा कि, नए कानून बन जाने तक उच्चतम न्यायालय द्वारा एक जांच आयोग का गठन स्वतः के पर्यावेक्षण में किया जावें। जिसकी विषय वस्तु बिकवाल व खरीदार दोनों की भूमिका की गहन जांच होना चाहिए। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार रिश्वत में दोनों पक्ष अपराधी माने जाते है। जांच का एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी होना चाहिए कि, ‘‘बाजारों’’ में हजारों तरह के ‘‘माल बिक्री हेतु’’ उपलब्ध होने के बावजूद एक नई कमोडिटी (नैतिकता की गिरावट के कारण) को ‘‘विक्रय’’ की परिभाषा में क्यों लाया जा रहा है? यह ठीक उसी प्रकार से है कि, पुराने सेल्स टैक्स और वर्तमान जीएसटी कानून में कुछ प्रकार के ‘‘लाइसेंसों’’ को जो कि सामान्य रूप से ‘‘कमोडि़टी’’ (वस्तु) नहीं होते है, तथा कुछ वस्तुओं के उपयोग (विक्रय न होकर) को वस्तु़ व ‘विक्रय’ मानकर राजस्व बढ़ाने की दृष्टि से उन पर करारोपण कर दिया गया है। यदि इस आशय से ही उक्त नई कमोडिटी पर भी ‘‘राजस्व’’ की दृष्टि से मंडी में विक्रय हेतु मानकर करारोपण करना है। तो चूकि वह ‘‘उच्च क्वालिटी’’ की कमोडिटी है, इसलिए उस पर उच्चतर दर के रेट से (पेट्रोल डीजल के समान) करारोपण किया जाना उचित होगा।
कैसे, कब व किन तरीकों से यह संभव हो पायेगा। यह तो आयोग की अंतिम विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट होगा। तब तक के लिए इस कोरोना काल में जनता जनार्दन स्वयं को भी आत्मग्लानि से लड़ने के लिए दवाईयों का सेवन अवश्य करती रहें। आत्मग्लानि इसलिये क्योंकि ऐसे माननीयों को अपने ‘‘मताधिकार’’ का प्रयोग करते हुए तो आखिर आपने ही तो चुना है। इस बात की भी आशंका हो सकती है कि, जांच आयोग अपना कार्य क्षेत्र बढ़ाकर कहीं जनता जनार्दन को भी लपेटे में न ले ले? ऐसा घटित न हो, इसके लिए आप ‘‘भगवान’’ से निरंतर प्रार्थना करते रहें। निश्चित रूप से वैसे आप दुराशय दोषी नहीं है।
अंत में एक बात और! ‘राजनीति’ की ‘गंगा’ से तुलना करना बिल्कुल ही अनुचित और गलत है। लेकिन मुझे उक्त शीषर्क मुहावरें का कोई विकल्प न मिल सकने के कारण, क्षमा पूर्वक उक्त मुहावरें का यहां उपयोग किया है। क्षमस्व।
सदन के नेता का चुनाव और confidence vote गुप्त मतदान से ही होना चाहिए ।
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