विषय लेख लम्बा होने से इसे दो भागों में लिखा जा रहा हैं:- प्रथम भाग
‘‘नाँवल’’ ‘‘कोरोना वायरस’’ का पहला रोगी विश्व में 30 दिसंबर को चीन के ‘वुहान’ शहर में और 30 जनवरी को भारत के केरल प्रदेश के ‘त्रिशूर’ में ‘‘चिन्हित’’ हुआ था। तब से लेकर आज तक ‘‘कोरोना वायरस (कोविड-19)’’ के संक्रमण के कारण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह ‘संस्थागत’ हो या ‘व्यक्तिगत’, ‘आर्थिक’, ‘मानसिक’, ‘शारीरिक’ आदि क्षेत्रों व अवस्था में आए ‘‘दुष्परिणामों‘‘ को प्रत्येक ‘व्यक्ति’ और ‘संस्था’ भुगत रही है। ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’’ से लेकर देश का ‘‘समस्त तंत्र‘‘ ‘आवश्यक प्रबंध और सावधानियां’ स्वयं बरतने और दूसरों को बरतने के लगातार ‘संदेश’ देने के बावजूद (मानव निर्मित) ‘‘कोरोना‘‘ मानव के नियंत्रण में नहीं आ पा रहा है। और ‘मानव’ को लगातार कोरोना ‘‘रोने‘‘ के लिए विवश कर रहा है। आज इसके गहरे विश्लेषण की गंभीर आवश्यकता है। तभी वास्तविक समस्या व इसके पीछे छिपे एजेंड़े को समझा जा सकता है। इसे समझने के पूर्व ‘‘कोविड़-19’’ का संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक है। कोविड़-19 एक वायरस से होने वाली खतरनाक और बहुत जल्दी फैलने वाली बीमारी है। बीमार व्यक्ति के खांसते, छींकते या बोलते समय मुह से निकली सूक्ष्म बूंदों के माध्यम से यह वायरस दूसरे व्यक्ति में फैलता है। जहां ये सूक्ष्म बूंदे गिरती हैं, उन सतहों को छूने से भी फैलता है। यह वायरस बिना किसी लक्षण के 14 दिनों तक मानव शरीर में रह सकता है और उससे दूसरों तक फैल सकता है।
निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के बीच हुई संभवतः कुछ दूरभि संधि के दुष्परिणामस्वरूप ही कोरोना वायरस की उत्पत्ति हुई है। यह बात कई बार, कई तरीको से सामने आ चुकी है कि, चीन के हुबेई प्रांत के शहर ‘‘वुहान‘‘ में ‘‘कोविड-19’’ का वायरस मानव द्वारा निर्मित हुआ है। इसके कुछ प्रमाण भी हैं। प्रथम दो चीनी वैज्ञानिक स्कॉलर बोताओ शाओ और ली शाओ का दावा है कि हुबेई प्रांत के वुहान शहर में स्थित एक सरकारी लैब सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ने रोग फैलाने वाली इस बीमारी के वायरस को जन्म दिया हो। लैब में ऐसे जानवरों को रखा गया, जिनसे बीमारियां फैल सकती है, इसमें 605 चमगादड़ भी शामिल थे। वुहान शहर में तेजी से कोरोना का संक्रमण बढ़ने के बाद उससे ज्यादा तेजी से उस पर वहां पर नियंत्रण पा लिया गया। चीन ने इस रहस्मय बीमारी को गुप्त (सीक्रेट) रखने की पूरी कोशिश की। संपूर्ण चीन में संक्रमितों की संख्या अत्यंत ही अल्प अर्थात लगभग अभी तक कुल मात्र 85269 ही है, जहां पर कि विश्व में सबसे पहले कोरोना पैदा हुआ था, और वह भी वुहान व कुछ शहर तक सीमित रहकर ही, पूरे चीन में नहीं। जबकि चीन विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। उपरोक्त समस्त तथ्यों से उक्त आशंका को बल मिलता है। यदि कोविड़-19 मानव निर्मित नहीं था, तो चाइना ने किस तरह से शीघ्रतिशीघ संक्रमण के फैलने पर काबू पा लिया व उसे पूरे देश में फैलने नहीं दिया। जबकि विश्व में वह लगातार तेजी से फैल रहा है। यद्यपि चीन ने पलटवार कर अमेरिका पर ही वुहान में विश्व खेल के दौरान इस वायरस को प्लांट करने के आरोप लगाए। दूसरा कारण अमेरिका ने 22 अप्रैल को ‘‘डब्ल्यूएचओ‘‘ पर चीन का साथ देने के कारण उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था, जो अवश्य ही विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन के बीच कुछ न कुछ दूरभि संधि को ओर इंगित करता है। हाल में ही इटली से कोविड़-19 के बाबत एक बड़ी विस्फोटक सूचना विश्व को मिली है। वह यह कि कोविड़-19 ‘वायरस’ के रूप में न होकर ‘एक बैक्टीरिया’ के रूप में ऐमप्लीफाईड़ ग्लोबल 5 जी इलैक्ट्रोमैगेनेटिक रेडिएशन (जहर) के कारण लोग मर रहे हैं। वहां के डॉक्टरों ने डब्ल्यूएचओ के कानून का उल्लंघन करके कोविड़-19 से मरे मृत व्यक्तियों की लाशों का पोस्टमार्टम कर उक्त निष्कर्ष निकाला है। इस प्रकार यह एक बड़ा ग्लोबल घोटाला लगता है। यद्यपि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड़-19 को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी जरूर (वैश्विक स्वास्थ्य आपात्तकाल (पीएचईआईसी) घोषित की है। लेकिन चीन के खिलाफ कोई भी प्रतिबंधात्मक कार्यवाही नहीं की। प्रेसिडेंट ट्रम्प ने चीन पर इस कोरोना उत्पन्न करने के आरोप को आज दोहराया भी है। इसमें शासन-प्रशासन, मीडिया व डॉक्टरों के बीच एक मिली भगत का गहरा आर्थिक रैकेट दिखता है, जिसकी चर्चा अपने देश के संदर्भ में आगे करेगें।
सर्वप्रथम ‘‘कोरोना’’ के संबंध में देश के ‘‘तंत्र’’ की ‘‘अव्यवस्था‘‘ व ‘‘असफलता‘‘ की चर्चा कर लें। याद कीजिए! जब कोरोना वायरस भारत में आया था, तब कोविड-19 की आरंभिक अवस्था में ही हमारे प्रधानमंत्री जी ने 24 मार्च को प्रथम लॉकडाउन घोषित करते समय यह नीतिगत बात की थी कि ‘‘जान है तो जहान‘‘ है। मतलब सर्वप्रथम जान की सुरक्षा प्रदान करना है। कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण की विश्व से तुलनात्मक बेहतर स्थिति को देखते हुए 12 अप्रैल को राष्ट्र के नाम संबोधन करते हुये द्वितीय लॉकडाउन की घोषणा के समय प्रधानमंत्री जी ने यह कहा कि ‘‘जान भी है और जहान भी है‘‘। अर्थात जान के साथ जहान दोनो पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। लेकिन आज स्थिति क्या है? ‘‘न जान बच रही है और न ही जहान’’।
जब विश्व में कोरोना वायरस के संक्रमण की संख्या तेजी से बढ़ रही थी और भारत में तुलनात्मक रूप से उसकी गति बहुत ही धीमी थी। तब अचानक बिना समय दिए पूरे देश में एक झटके में लॉक डाउन की घोषणा कर देश के आर्थिक पहिये को रोक दिया गया। आपको अनुभव होगा, तेजी से चलती हुई बस में अचानक एकदम से ब्रेक लगा दिया जाए तो, बस में बैठी सवारियां भी एक दूसरे के ऊपर गिर कर बस हिचकोले खाते हुए रूक जाती है। अचानक लॉकडाउन से देश की आर्थिक व्यवस्था भी इसी प्रकार से हिचकोले खाते हुए ‘‘जाम‘‘ हो गई। लेकिन संक्रमितों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। अंततः लगभग 2 महीनों बाद 17 मई को कंटेनमेंट जोन को छोड़कर पूरे देश से लॉकडाउन लगभग उठा लिया गया। जबकि आज संक्रमित होने की संख्या प्रतिदिन लगभग एक लाख के आसपास है व निरंतर बढ़ती जा रही है।
यह बात एक आम आदमी की समझ से परे है कि, कम संक्रमितों की संख्या के समय पूरे देश में लॉकडाउन जरूरी क्यों था? और अब ‘‘लक्ष्मण रेखा‘‘ की सीमा से तेजी से बाहर जा रही संक्रमितों की संख्या के बावजूद लॉक डाउन नहीं! क्यों? इसके लिए आपको थोड़ा बारीकी से शासन तंत्र की कोरोना वायरस कीे सामना करने की नीति का अध्ययन करना होगा। शासन तंत्र की नीतियों में दो स्पष्ट कमियां दृष्टिगोचर होती है। प्रथम कोरोना वायरस से लड़ने के लिए शासन ने जो भी नीतियां और सावधानियां बरतने के लिये जनता को संदेश दिये, उसके संबंध में शासन स्वयं में ही पूर्ण रूप से निश्चित (कन्फर्म्ड) नहीं है। अर्थात सरकार का स्वयं का इन नीतियों के बाबत पूर्णतः दृढ़ और निश्चित दृष्टिकोण व विश्वास नहीं है। सामान्यतया जब भी सरकार कोई नीति, निर्देश, नियम, कानून बनाती है, तो कम से कम उसकी स्वयं की नजर में तो वह पूर्ण परफेक्ट व असरकारक होती ही है। भले ही विपक्ष या नागरिक गण उसको सही नहीं माने या कुछ न कुछ कमियां निकालें। लेकिन दुर्भाग्यवश कोरोना सेे निपटने के मामले में स्वयं के द्वारा बनाई गई नीति के संबंध में सरकार पूरे समय असंमजस की स्थिति में ही रही है। फिर चाहे प्रवासी श्रमिकों के विस्थापन, कोरोना काल में श्रमिकों-कर्मचारियों को पूरी तन्खा देना व छटनी न करने की नीतिगत घोषणा (परन्तु निगरानी निरंक) श्रमिक गाड़ी, बसों, यात्री ट्रेन व प्लेन चलाने, ऑनलाईन या काऊंटर से रेलवे टिकिटों, का आरक्षण बस, टैक्सी, कार इत्यादि द्वि-चक्रवाहिनियों में सवारियों को बैठालने की संख्या, वर्क फ्रार्म होम, आदि-आदि। हवाई जहाज में अंदर बैठते समय 6 फीट की दूरी नहीं, लेकिन हवाई अड्डों की लाऊन्ज पर 6 फीट की दूरी आवश्यक जैसे विरोधाभाषी निर्णय आदि। मतलब साफ है! निर्धारित मापदंडों के बारे में जब सरकार खुद ही सुनिश्चित नहीं है, तब उन आधारों को सार्वजनिक रूप से लागू कर हम वायरस के संक्रमण को रोकने की पूरी आशा कैसे कर सकते हैं? अर्थात् आपका इरादा ही कमजोर रहा है। वह इस बात से भी सिद्ध होती है कि सरकार स्वयं कितनी लापरवाह है। वह उसके सरकारी कार्यक्रमों और सरकार चलाने वाले माननीयों द्वारा कोविड-19़ के प्रतिबंधों का निरतंर उल्लघंन करते हुये दिन प्रतिदिन देखी जा सकती है। तब उन पर कौन कार्यवाही करेगा। ‘सैइयां भये कोतवाल तो फिर ड़र काहे का!
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए तीन मुख्य सावधानियां विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर हमारी केंद्रीय सरकार ने लगातार बतलाई हैं। मास्क, 6 फीट की दूरी एवं लगातार हाथ धोना और सैनिटाइज करना। ये तीनों बरती जाने वाली मुख्य सावधानियां भी अपने आप में और संयुक्त रूप से पूर्ण नहीं है। इसी कारण से ही कोरोना वायरस का संक्रमण रुक नहीं पा रहा है। मास्क लगाने के बावजूद आपकी आंखे व कान खुले हुये हैं, जहां से संक्रमण हो सकता है। सरकार फेस मास्क के उपयोग के लिए जोर क्यों नहीं दे रही है? जिसके द्वारा पूरे चेहरे को ढ़का जाकर संक्रमण को रोका जा सकता है। दूसरी 6 फीट की दूरी को खुद विश्व स्वास्थ संगठन और सरकार ने यह कहकर संदेह पैदा कर दिया है कि वायरस हवा में ट्रेवल कर आठ-दस फीट की दूरी तक हवा में तैरकर जाकर उसके ड्रॉपलेट गिर सकते है। इस प्रकार सरकार अपनी ही निर्धारित मापदंडों को कमजोर करती रही है। एन 95 मास्क को पहले सर्वश्रेष्ठ बतलाया जाकर फिर बाद में कहा गया कि यह स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ही ज्यादा उचित है। आम आदमी ज्यादा समय तक यदि उक्त मास्क या सामान्य, मास्क का भी उपयोग करेगा, तो उसे सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। इसी मास्क के लगातार उपयोग करने पर भी आशंका व्यक्त की गई है। उपरोक्त तीनों सावधानियां का पूर्ण पालन हो इसके लिए ही सरकार ने शुरू में ही 21 दिन का लॉकडाउन लागू कर और फिर उसे बढ़ाते बढ़ाते लॉकडाउन-4 तक ले गयी। लेकिन नेशनल टास्क फोर्स के सदस्य डी.डी.सी.ए. रेड्ढी ने खुद यह माना है कि लॉकडाउन असरदार विकल्प नहीं है। क्योंकि बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या घर में भी हो सकती है, जो संक्रमण को फैलायेगें।
क्रमशः शेष अगले अंक में..........
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