उक्त विषय को आगे बढ़ाने के पूर्व यह जानना जरूरी है कि आखिर गुपकार घोषणा-1 एवं-2 है क्या? जिसकी घोषणा करने वालो को ‘‘गुपकार गैंग’’ का नाम दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के एक दिन पूर्व ही 4 अगस्त 2019 फारूख अब्दुल्ला की अध्यक्षता में जम्मू कश्मीर क्षेत्र की लगभग सभी बड़ी व छोटी राजनैतिक पार्टियां नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), सीपीएम(एल), जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मुमेंट (जेकेपीएम), अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स कांफ्रेंस, इफ्तेहार पार्टी, पंैथर पार्टी एवं कांग्रेस (मात्र जेकएपी पार्टी को छोड़कर) ने एक बैठक कर सर्वसम्मति से हस्ताक्षर युक्त एक घोषणा पत्र जारी किया। ‘‘गुपकार रोड़’’ स्थित फारूख अब्दुल्ला के निवास स्थान में बैठक होने के कारण उसे ‘‘गुपकार घोषणा’’ कहा गया। उक्त आपात बैठक में राज्य में अर्द्ध सैनिकों की तैनाती और जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को बनाये रखने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास करने का निर्णय लिया गया।
प्रमुख नेताओं की रिहाई के बाद 22 अगस्त 2020 को उक्त दलों में से 6 राजनैतिक दलों ने ‘‘गुपकार घोषणा पत्र’’ को आगे बढ़ाते हुये ‘‘गुपकार घोषणा-2’’ जारी की, जिसे लागू करवाने के लिए ‘‘पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन’’ (पीएजीडी) एक राजनैतिक गठबंधन बनाया गया। उक्त घोषणा पत्र में मुख्य रुप से अनुच्छेद 370 एवं 35ए की बहाली कर पूर्व से ही चला आ रहा जम्मू-कश्मीर का संविधान एवं विशेष राज्य का दर्जा, तथा जम्मू-कश्मीर को पुनः पूर्ण राज्य के दर्जे की मंाग की घोषणा की गई। 24 अक्टूबर की ‘‘पीएजीडी’’ की बैठक के एक दिन पूर्व ही महबूबा मुफ्ती ने जो बयान दिया, जिसे सिर्फ ‘‘विवादित बयान’’ कहकर झाड़ा नहीं जा सकता है। संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकता के कारण देश के एक जिम्मेदार नागरिक होने से उस नागरिक दायित्व के बिलकुल विरूद्ध व बेशर्मी लिये हुआ महबूबा का यह बयान है, कि अनुच्छेद 370 की बहाली तक वे जम्मू-कश्मीर के झंडे के अलावा और कोई झंड़ा नहीं उठायेगीं। यद्यपि प्रेस के एक खंड ने उक्त महबूबा के बयान की बजाए ‘‘तिरंगे और राज्य के झंडे को एक साथ रखूँगी’’, बयान बतलाया है। फिलहाल इस संबंध में उनके स्पष्टीकरण की प्रतिक्षा है। इसके पहले फारूख अब्दुल्ला भी कह चुके है कि चीन की मदद से अनुच्छेद 370 ‘‘फिर लागू करेगें’’।
निश्चित रूप से उक्त गुपकार घोषणा पत्र-2 सहित फारूख अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती के बयान बेहद आपत्तिजनक और सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि देश की अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, सम्मान और संविधान पर प्रहार और संघात (चोट) पहुंचाने वाला है, जहां पर विश्व समुदाय को जम्मू-कश्मीर में अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करने का न्योता भी दिया गया है। कोई भी सरकार ऐसी घोषणा पत्र व बयानों पर चुपचाप कैसे बैठे रह सकती है?
पूर्व में ‘‘पीएजीडी‘‘ ने स्थानीय निकाय जिला विकास परिषदों के चुनाव में भाग न लेने की बात थी। परंतु अब उक्त गुपकार गठबंधन जिसे उनके विरोधी गुपकार गैंग कहते हैं, द्वारा कांगे्रस के साथ स्थानीय जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव व पंचायतों के उपचुनावों की लड़ने की घोषणा पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। गृहमंत्री अमित शाह से लेकर अनेक प्रमुख भाजपा नेताओं ने ट्विटर और बयानों के द्वारा गुपकार घोषणा को राष्ट्र विरोधी व पाकिस्तान प्रायोजित बताकर कांग्रेस से यह पूछा है कि गुपकार घोषणा जो ग्लोबल हो रही है, का क्या वे समर्थन करते हैं? कांग्रेस ने तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनके राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने बयान जारी कर कहा कि कांग्रेस का ‘पीएजीडी‘‘ के साथ कोई गठबंधन नहीं है, न ही वह गुपकार घोषणा पत्र का हिस्सा है। डीडीसी के चुनाव में स्थानीय स्तर पर ‘पीजीएचडी‘ सहित अन्य कई छोटे-छोटे दलों के साथ मात्र कुछ सीटों का सामंजस्य भर है। लेकिन प्रवक्ता का यह बयान झूठा व तथ्यों के विपरीत है, क्योंकि कांग्रेस ने ‘‘गुपकार एक और गुपकार दो’’ दोनों घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए है।
कांग्रेस ने तो वर्तमान में ‘‘सेल्फ गोल‘‘ मारने में महारथी हासिल सी कर ली है। तब फिर भाजपा गोल मारने का ‘दावा‘ करके स्वयं के हाथों को कीचड़ में अनावश्यक क्यों सना रही है? प्रसिद्ध हाॅकी खिलाड़ी (गोलकीपर) ‘असलम शेर खान’ जो मेरे बैतूल संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के लोकसभा के सांसद रहे हैं, ने कुआलालंपुर में वर्ष 1975 के विश्व कप हॉकी में गोल का बेहतरीन बचाव कर बढ़िया गोलकीपिंग करके भारत को को जीत दिलाई थी। उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद से (राजनैतिक) ‘‘खेल मैदान‘‘ में सही ‘‘गोलकीपर‘‘ न मिल पाने के कारण कांग्रेस को सेल्फ गोल खाने की आदत सी पड़ गई लगती है। यद्यपि असलम शेर खान कांग्रेस में वापस लौटे जरूर, लेकिन तब तक उनकी ‘फिटनेस‘ कमजोर हो जाने के कारण और ‘‘खेल‘‘ के ‘‘तकनीकी नियम‘‘ में आवश्यकतानुसार परिस्थितियों में भारी बदलाव होने से व कांग्रेस द्वारा उन बदलावों के साथ सामजंस्य न बैठाल पाने के कारण असलम भाई कांग्रेस को ‘‘सेल्फ गोल‘‘ मारने से रोक नहीं पा रहे हैं। वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि, भाजपा ने जब पीडीपी को समर्थन दिया था, तब उसका यह देशद्रोही और बेहूदा शर्मनाक बयान वाला चेहरा सामने नहीं आया था। जबकि कांग्रेस ने तब समर्थन किया जब उसका यह अराष्ट्रवादी रूप सामने आया है। इसलिए मैंने कांग्रेस का इसे सेल्फ गोल कहा है। ‘‘गुपकार घोषणा गठबंधन’’ का ‘‘हाथ का साथ’’ कहीं कांग्रेस को अस्त-पस्त, गुप्त व विलुप्त न कर दे?
यदि ऐसी स्थिति में यदि भाजपा ‘‘कांग्रेस के सेल्फ गोल के बदले‘‘ तीक्ष्ण बयानों के द्वारा ‘‘गोल मारने का श्रेय‘‘ लेना चाहती है, तो फिर उसको यह भी बताना होगा कि उसने देश विरोधी हरकतें/कार्यवाही करने के लिए ‘‘देशद्रोह का अपराध’’ से लेकर देश के अन्य सुरक्षा कानूनों के अंतर्गत ‘‘गुपकार गैंग’’ के विरुद्ध अभी तक कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की? अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद जब फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती व अन्य राजनैतिक नेताओं द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया था, तब भी अपराध व शांति भंग किए जाने की मात्र आशंका के मद्देनजर ही उन सब नेताओं को 6 महीने से लेकर 14 महीने तक ‘‘बंदी निरोधक‘‘ बनाए रखा गया। तब आज स्पष्ट ‘‘अपराध‘‘ करने के बावजूद सजा दिलाने के लिए कोई कार्यवाही न करना, क्या सिर्फ ‘‘राजनीति‘‘ नहीं कहलायेगी? यह हास्यास्पद लगता है कि जम्मू-कश्मीर के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रविन्द्र रैना इनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे है। किससे? कौन करेगा? क्या ‘कांग्रेस’ इनको गिरफ्तार करेगी?
आपको याद करना चाहिए कि जब ‘गुपकार गैंग’ ने जिला विकास परिषदों के चुनाव में भाग न लेने की बात की थी, तब तक भाजपा ने उक्त गुपकार घोषणा बाबत कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं की थी। लेकिन जैसे ही कांग्रेस के साथ सीटों के समझौते करके चुनाव लड़ने की घोषणा की गई, भाजपा एकदम से बेहद आक्रमण हो गई। क्या गुपकार गठबंधन दलों की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने से भाजपा को चुनावी परिणामों के बाबत कोई ड़र लग रहा है? जम्मू-कश्मीर में हो रही किसी भी राजनीतिक प्रक्रिया में वहां के पंजीयत राजनीतिक दलों के अधिकतम भाग लेने पर हम विश्व समुदाय की नजर में ज्यादा सहज स्थिति में अपने को पाते हैं।
वैसे विपरीत सिद्धांतों के गठबंधनों का इतिहास देश की राजनीति में भरा पड़ा हुआ है। अटल जी के समय एनडीए में स्वयं भाजपा ने अपनी पहचान के मुद्दे राम मंदिर, अनुच्छेद 370, समान सिविल कोड़ आदि को तत्समय अस्थाई रूप से तिलांजलि दे दी थी। रामविलास पासवान, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मायावती, जयललिता, आदि के साथ सत्ता की भागीदारी भाजपा की सत्ता की सिद्धांतहीन राजनीति के उदाहरण रहे है। कांग्रेस तो इसकी जनक रही है। ‘‘न्यूनतम सामान्य कार्यक्रम’’ के साथ भाजपा के नेतृत्व में गठित ‘राजग’ के साथ ‘‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’’ (एनसी) की सत्ता में भागीदारी सिर्फ दिल्ली में ही नहीं रही है, बल्कि वर्तमान में भाजपा करगिल (लद्दाख) में स्थानीय निकाय में अभी भी भागीदारी जारी है। तब आज उस एनसी के कांग्रेस के साथ मात्र सीटों के सामजंस्य पर आपत्ति क्यों? खासकर भाजपा द्वारा? ‘‘मात्र सीटों के सामंजस्य’’ के साथ चुनाव लड़ने में दलों के सिद्धातों के परस्पर स्वीकार/मानने का मुद्दा उत्पन्न नहीं होता है।
भाजपा को ‘‘गुपकार गंैग’’ पर कांग्रेस को घेरने के पूर्व इस बात का भी जवाब देना होगा कि, उसने पूर्व में पीडीपी के साथ सत्ता की भागीदारी क्यों की? सत्ता की भागीदारी के समय यदि पीडीपी पूर्ण रूप से राष्ट्रीय थी, तो जिला परिषद की सत्ता में भागीदारी के लिए उसका कांग्रेस से हाथ मिलाने पर आप कांग्रेस को दोषी कैसे कह सकते हैं? और सामान्य नैतिकता भी आपको इस बात का अधिकार नहीं देती है। यह एक्सक्यूज (बहाना) करना कि, जब पीडीपी हमारे साथ थी तो, हमने उसे राष्ट्रवादी बनाए रखा, वह तिरंगा झंडे को मानती थी, भारत माता की जय करती थी, सही नहीं होगा। जैसा कि भाजपा प्रवक्ता टीवी बहसों में अपनी रक्षा में ये बातें कहते हैं। यदि भाजपा ‘‘राष्ट्रवाद को बनाने वाला पारस पत्थर’’ है, तो फिर उसने क्यों पीडीपी को छोड़ कर अराष्ट्रवादी होने दिया? स्पष्ट रूप से भाजपा को यह स्वीकार करना ही चाहिये कि पीडीपी के साथ उसका गठबंधन ‘‘होली अलायंस’’ (पवित्र गठबंधन) न होकर एक भूल थी, जो त्रुटि समझ में आते ही अलायंस तोड़ कर ठीक कर ली गई। आज के समय की यह आवश्यकता है कि एक अत्यंत संवेदनशील केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में असयंमित बयान बाजी न की जावे और राष्ट्र विरोधी ताकतों के विरूद्ध बिना शोर-शराबे के ठीक वैसे ही ठोस कदम उठाये जावें, जैसे दृढ़ कदम उठाकर अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया था। भाजपा को पूरी जिम्मेदारी से तुच्छ ‘‘राजनीति’’ से ऊपर उठकर अधिकारिक मजबूत राष्ट्रवादी नीति के साथ जम्मू-कश्मीर की स्थिति को संभालना चाहिए।
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