-ःलेख का सारः-
हमारी हिंदू संस्कृति में ‘‘पहली रोटी गाय के लिये‘‘ व आखरी रोटी कुत्ते के लिए निकालने की परम्परा रही है। इस तर्क के आधार पर उपकर को ‘‘पहला कौर‘‘ (गो ग्रास) कहकर उपकर लगाने को औचित्य पूर्ण ठहराने का शिवराज सिंह का प्रयास किसी भी रूप में उचित व सही नहीं लगता है। गोया! गाय के लिए पहला कौर (गो-ग्रास) निकालना ‘‘उपकर लगाने के कारण‘‘ ‘‘चौथ‘‘ (रंगदारी टैक्स) होकर गौमाता द्वारा जबरदस्ती वसूल किए जाने वाला कर हो गया हो? आशंका है इस आधार पर कुछ विशिष्ट वर्ग के लोगों को औंरगजेब के जमाने के ‘‘जजिया कर’’ को सही ठहराने का अवसर न मिल जाएं। शिवराज जी टैक्स व दान में अंतर को समझिये! गाय का ‘‘गो-ग्रास’’ ‘‘कर‘‘ (टैक्सेशन) की भावना से नहीं, बल्कि पूजा व श्रद्धा की भावना लिये हुये एक संस्कारित हिंदू का गाय के भोजन के लिए एक अंशदान है।
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अपनी प्रकृति व जनहितेषी प्रवृत्ति के अनुरूप मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘‘मामा‘‘ हमेशा कुछ न कुछ ऐसा अवश्य करते रहते हैं, जिससे उस ‘‘कार्य क्षेत्र’’ में वे देश में ‘सबसे पहले, ‘सर्वप्रथम‘ और अपनी ‘अलग पहचान‘ बनाते हुए ठीक उसी प्रकार जैसा कि ‘‘सबसे तेज’’ ‘सबसे आगे’ ‘‘दूर-दूर तक कोई नहीं’’ का दावा ‘‘आजतक’’ (टीवी) करता है। उसी एजेड़ा को आगे बढ़ाते हुये हाल मंे ही ‘‘ढ़ाई चावल की खिचड़ी पकाते’’ देश की पहली‘‘ गो कैबिनेट‘‘ बनाने की घोषणा कर, मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थी। मध्य प्रदेश में पूर्व में ‘‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना‘‘(वरिष्ठ नागरिकों के लिए), ‘‘लाडली लक्ष्मी योजना‘‘, ‘‘न्याय दान योजना‘‘ आदि अनेक योजनाओं को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सबसे पहले लागू कर देश में ‘‘पहली बार/सबसे पहले‘‘ होने का ‘श्रेय लूटा‘ है।
आगर मालवा जिले की सुसनेर तहसील के सालरिया गांव में लगभग 1100 एकड़ में एशिया का सबसे बड़ा गो अभयारण्य वर्ष 2017 में बनाकर शिवराज ने तब भी काफी वाह वाही लूटी थी। यद्यपि छत्तीसगढ़ की कांग्रेसी सरकार ने गोबर की कीमत निश्चित करने के लिये ‘‘गोधन न्याय योजना’’ हरेली त्यौहार (जुलाई 2020) से प्रारंभ कर देश में इस दिशा में प्रथम होकर शिवराज सिंह पर बाजी अवश्य मारी हैं।
शिवराज सिंह चौहान उस ‘‘एकमात्र हिन्दुत्व धारा‘‘ के प्रतीक व प्रतिनिधि हैं, जो ‘‘भारतीय हिंदू संस्कृति‘‘ जिसमें ‘‘गौ संरक्षण’’ एक ‘‘प्रमुख तत्व’’ है, को संरक्षण प्रदान करता है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से शिवराज सिंह उस ‘‘संस्कृति‘‘ के संरक्षण व संवर्धन के लिए ‘‘उपकर‘‘ लगाने का सोच रहे हैं? क्यों? इसे कहते है‘‘, ‘‘पार्चा बांधकर शिकार करना’’। शिवराज सिंह तो हमेशा लोकप्रिय निर्णयों के लिये जाने जाते रहे है। भले ही उनके विरोधी उनके लोकप्रिय निर्णयों को सस्ती लोकप्रियता या नौंटकी का तमगा देकर आदतन आलोचना करते रहे हों।
याद कीजिए! कांग्रेस की पिछली सरकार, जिस कांग्रेस का गो संरक्षण संवर्धन से कभी कोई नाता नहीं रहा है, जिसने गौ स्लाटर हाउस पर प्रतिबंध लगाने का कभी नहीं सोचा, ऐसी कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ ने अपनी सरकार में गौ संवर्धन को बड़ा महत्व दिया और प्रत्येक जिले में उन्होंने न केवल गौशाला बनाने की घोषणा की, बल्कि उसके लिए बिना कोई कर उपकर लगाएं बजट में आवश्यक धन का प्रावधान कर और जिलों की गौशालाओं में खर्च भी किया। लगभग 1000 गौशाला का निर्माण किया गया, जैसा कि पूर्व मंत्री जीतू पटवारी दावा करते है। शिवराज सिंह सरकार के आते ही उस बजट में कटौत्री हो गई और तदनुसार जो गौशालाओं को खर्चे का अनुदान मिल रहा था उसमें भी काफी कटौती हो गई। प्रत्येक गाय के लिये मात्र 1.60 रू. का प्रावधान किया गया है, जो पूर्व में 20 रू. प्रति गाय थी। पिछले वित्तीय वर्ष में 132 करोड़ रू. पशुपालन विभाग का बजट वर्ष 2020-21 में घटाकर मात्र 11 करोड़ कर दिया गया है। जबकि शिवराज सिंह जानते है कि ‘‘ओंस चाटने से प्यास नहीं बुझती है’’।
कमलनाथ चूंकि नरेंद्र मोदी के ‘‘फॉलोअर’’ नहीं है, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के एक महत्वपूर्ण मिशन आत्मनिर्भर भारत को बनाने की दिशा में गौ संवर्धन सहित सामाजिक योजनाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास नहीं किया जिसका परिणाम यह आया कि गौशाला के लिए उन्होंने कोई कर या उपकर नहीं लगाना पड़ा। लेकिन शिवराज सिंह, नरेंद्र मोदी के देश में सबसे बड़े समर्थक हैं और यह बात सिद्ध करने में लगातार लगे हुए हैं। बल्कि वे उनसे एक कदम आगे निकल गये है। महत्वाकांक्षी योजना आत्मनिर्भर भारत के अतंर्गत मोदी जी ‘‘साध्य’’ को आत्मनिर्भर करने की बात कर रहे है, तब शिवराज सिंह ‘‘साध्य’’ के साथ ‘‘साधन’’ को भी आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प इस ‘उपकर’ (सेस) के माध्यम से लिया है। उसी कड़ी में गौवंश संवर्धन जो समाज को आत्मनिर्भर बनाने व आर्थिक स्वालंबन का आधार हैं, उस योजना को स्वयं भी आत्मनिर्भर होना चाहिये इस सोच के परिणाम स्वरूप ही उपकर लगाने की योजना प्रस्तावित की है। गोपाष्टमी के दिन एशिया की सबसे बड़ी गो अभयारण्य सालरिया गांव में गो अधिनियम, भूमि आवंटन अधिनियम, गोसदन, गो-पर्यटन केन्द्र बनाने की आकर्षक लेकिन महत्वपूर्ण घोषणाएँ की गई। लेकिन इसके पूर्व हुई गो-कैबिनेट की वर्चुअल बैठक में भी गो टैक्स वसूलने का भी एलान किया गया।
हमारी हिंदू संस्कृति में ‘‘पहली रोटी गाय के लिये‘‘ व आखरी रोटी कुत्ते के लिए निकालने की परम्परा रही है। इस तर्क के आधार पर उपकर को ‘‘पहला कौर‘‘ (गो ग्रास) कहकर उपकर लगाने को औचित्य पूर्ण ठहराने का शिवराज सिंह का प्रयास किसी भी रूप में उचित व सही नहीं लगता है। गोया! गाय के लिए पहला कौर (गो ग्रास) निकालना ‘‘उपकर लगाने के कारण‘‘ ‘‘चौथ‘‘ (रंगदारी टैक्स) होकर गौमाता द्वारा जबरदस्ती वसूल किए जाने वाला कर हो गया हो? आशंका है इस आधार पर कुछ विशिष्ट वर्ग के लोगों को औंरगजेब के जमाने के ‘‘जजिया कर’’ को सही ठहराने का अवसर न मिल जाएं। शिवराज जी टैक्स व दान में अंतर को समझिये! गाय का ‘‘गोग्रास’’ ‘‘कर‘‘ (टैक्सेशन) की भावना से नहीं, बल्कि पूजा व श्रद्धा की भावना लिये हुये एक संस्कारित हिंदू का गाय के भोजन के लिए एक अंशदान है।
उक्त उपकर लगाए जाने की स्थिति में शिवराज सिंह सामाजिक समरसता और समानता का भी संदेश देंगे? क्योंकि कोई भी कर किसी जाति वर्ग या धर्म विशेष पर तो नहीं लगेगा। इसका मतलब है कि हमारे अन्य धर्म के स्वालंबी लोग इस उपकर में अंश देकर अपना हाथ बटायेंगे? सामाजिक समानता को बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का अगला कदम शायद ‘‘मुर्गी पालन‘‘ को बढ़ाने के लिए भी ‘‘उपकर‘‘ की घोषणा का हो सकता है?
वैसे इस मामले में शिवराज सिहं चौहान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से काफी पिछड़ गये लगते है। यदि वे योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश के गौ संरक्षण माड़ल से कुछ सीखते तो शायद उपकर की नौबत ही नहीं आती। उत्तर प्रदेश सरकार ने 100 करोड का फंड बिना उपकर के इस हेतु दिया है। साथ ही उन्होंने विभिन्न विभागों से एक्साइस, टोल टैक्स, यूपी एक्सप्रेस वे अथॉरिटी, मंडी परिषद, से कुल 3 प्रतिशत फंड गौ कल्याण के लिये प्रंबध किया है। यद्यपि आवारा पशुओं के लिए आश्रय स्थल निर्माण हेतु गौ कल्याण सेस भी लागू किया है। परन्तु निराश्रित गायों को पालने वाले व्यक्तियों को प्रत्येक गाय 900 रू. प्रतिमाह आर्थिक मदद भी दी जायेगी।
धन्य हो शिवराज जी! ‘‘शिव अंनत शिवकथा अंनता’’ आप गौं माता को भी स्वयं के मान सम्मान और संवर्धन सरक्षण के लिए सिर्फ आत्मनिर्भर होने के खातिर गौ संवर्धन प्रेमी अनेक दानदाताओं के होने के बावजूद जनता से टैक्स वसूल करने के लिए आगे कर दिया है। तब जनता और गाैं माता के बीच फिर आप का श्रेय कहां रह पायेगा। वह करदाता व दानदाता के बीच बट जाएगा? इस बात को आपको शायद ध्यान नहीं रहा होगा? तभी आपने उपकर लगाने की बात कही। अन्यथा गौ माता के नाम पर उपकर लगाने की बात सपने में भी नहीं सोचते? इस बात का आपके संज्ञान में आने के बाद आप शायद उपकर नहीं लगाएंगें। इसी उम्मीद विश्वास के साथ एक गौ सेवक की भावनाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत करने का मैं माध्यम बन रहा हूं। वैसे अभी आपने महिला सशक्तीकरण के लिये 150 करोड़ रू. बिना उपकर के देने की घोषणा की है। निश्चित रूप से आपकोे यह तय करने में अवश्य परेशानी हो रही होगी कि ‘‘माता’’ (महिला) व ‘‘गौं माता’’ में पहिले किसे प्राथमिकता दी जावे?
धन्यवाद।
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