उक्त विषय के ‘‘वैधानिक‘‘ पहलू पर चर्चा करें, उसके पूर्व चल रही कुछ आरोप-प्रत्यारोपों की भी बात कर ली जाए। 12080 वर्गमीटर (129980.80 वर्ग फीट, लगभग 3 एकड़, 1.2080 हेक्टेयर, 100 बिस्वा) कीमत 2 करोड़ रूपए की जमीन कई गुना अधिक कीमत रुपए 18.50 करोड़ में खरीदने का सौदा किया जाकर भ्रष्टाचार व ‘‘मनी लॉन्ड्रिंग‘‘ का आरोप लगाया गया। ये आरोप नितांत बचकाने पूर्ण तथ्यों के विपरीत, आधारहीन व राजनीति से प्रेरित से दिखते है। वैसे भ्रष्टाचार, घोटाला, गड़बड़झाला, अनियमितताएं और मनी लांड्रिंग के आरोप लगाने "वाले" यदि अपने "गिरेबान में झांक लेते", "आईने में अपना चेहरा देख लेते" या अपनी "पृष्ठभूमि" को याद कर लेते तो, निश्चित रूप से वे तथाकथित इतने "गंभीर" आरोपों को "विश्वसनीयता" प्रदान करने के लिए "स्वयं" न लगा कर कोई "सत्यवादी, सदाचारी" से लगवाते ? तब शायद उन्हें उसी "जमात" के पास जाना पड़ता, जिनके विरुद्ध आरोप लगाया गया है। शायद "यहां" उनकी "बुद्धिमानी" झलकती है ?
इस सौदे के पैसे के लेन-देन में सरकार या सरकारी अधिकारी/अधिकारियों की सीधे कोई भूमिका नहीं है। इसलिए दो निजी व्यक्तियों या संस्थान के बीच हुए सौदे पर ‘‘भ्रष्टाचार का कानून‘‘ लागू नहीं होता है। जहाँ तक मनी लॉन्ड्रिंग का सवाल है, यह अवैध रूप से प्राप्त धनराशी को छुपाने का एक तरीका है। इसके प्रत्युत्तर में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का यह स्पष्ट कथन है कि पूरा भुगतान ऑनलाइन बैंक जो कानूनी बाध्यता भी है, के द्वारा हुआ है। इसलिए ‘‘गड़बड़झाला‘‘ का कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। यहां तक तो बात बिलकुल ठीक है।
लेकिन आरोप तो दो करोड़ रुपए की ‘‘सस्ती‘‘ जमीन को 15 (कुछ जगह 5 व 10) मिनट के भीतर कई गुना ‘‘महंगी‘‘ कीमत रुपए 18.5 करोड़ पर खरीदने का सौदा कर अपने ‘‘चहेतों को उपकृत व अनैतिक लाभ‘‘ पहुंचाने का है, जो सिर्फ बैंक भुगतान होने के कारण से ख़ारिज नहीं हो जाता है। तथापि इस आरोप के जवाब में ट्रस्ट ने उक्त भूमि का बाजार मूल्य 1.5 करोड़ ‘‘ज्यादा‘‘ होने की बात कही है। 1423 रुपए वर्ग फीट की दर से जमीन की कीमत तय हुई, जो मुख्य (प्राईम) स्थान प्रस्तावित नये रेल्वे स्टेशन के मुख्य द्वार के पास स्थित है। और यदि सरकार उक्त भूमि को अधिग्रहित करती (जैसा कि लगभग 67 एकड़ जमीन राम मंदिर निर्माण के लिये 05.02.2020 को अधिग्रहित की गई), तो वर्तमान नियम के अनुसार उक्त जमीन के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में लगभग 24 करोड़ से ज्यादा का भुगतान करना पड़ता। उच्चतम न्यायालय के निर्णय आने के बाद मंदिर निर्माण के प्रारंभ होने से अयोध्या में जमीनों की कीमतों में निसंदेह अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। यह सर्वविदित स्वीकृत तथ्य है। 2 करोड रुपए जमीन (100 बिस्वा) का मूल्य वर्ष 2011 का है, जबकि इसके पहले इसी वर्ष उक्त जमीन पूरी (180 बिस्वा) का सौदा 1 करोड़ रूपए में हुआ था। पुनः 17 सितंबर 2017 को उक्त जमीन (180 बिस्वा) का सौदा 28.50 करोड़ रू. में हुआ। आरोप लगाने के पूर्व इन दोनों महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान देना अति आवश्यक है। अतः स्पष्ट है जमीन के मूल्य में तत्समय तेजी से वृद्धि हुई है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। क्रय मूल्य के संबंध में ट्रस्ट ने खुला प्रस्ताव दिया है कि इससे सस्ती कोई जमीन हो, तो ट्रस्ट लेने को तैयार है। कुछ सूत्रों के अनुसार ट्रस्ट यदि आज उक्त जमीन बेचना चाहे तो उसे दुगनी कीमत मिल सकती है।
जहां तक ज्यादा कीमत सर्किल रेट के अनुसार कुल कीमत 5.89 करोड़ के बजाय 18.50 करोड़ अर्थात 11.70 करोड़ अधिक भुगतान कर धर्म प्रेमी जनता के पैसे का दुरुपयोग का प्रश्न है, उस जगह का बाजार मूल्य सर्किल रेट से कई गुना ज्यादा है। ‘‘सर्किल रेट‘‘ का प्रावधान आया ही इसीलिए है कि स्टाम्प डयूटी की चोरी को रोका जा सके। लेकिन यह भी पूर्णतः प्रभावी नहीं है। आज भी सर्किल रेट ‘‘वास्तविक बाजार मूल्य‘‘ को प्रदर्शित नहीं करते है। कहीं ‘‘ज्यादा तो कही कम‘ होते है। ‘‘बाग बिजैसी’’ में 1 अप्रैल 21 को वर्ष 2021-22 के लिए सर्किल रेट का पुर्न निर्धारण किया गया होगा। क्या सर्किल रेट 580 रुपए वर्ग फीट से बढ़ाकर 1423 किया गया है? इससे भी स्थिति बहुत कुछ स्पष्ट हो सकती है।
उक्त विवाद के निष्कर्ष पर पहुंचने के पूर्व मुद्दे के प्रमुख स्वीकृत तथ्य को जानना आवश्यक है, जो निम्नानुसार हैंः-
1).सदर तहसील के ‘‘बाग बिजैसी‘‘ स्थित जिस जमीन के क्रय को लेकर ट्रस्ट पर सवाल उठे हैं, वह जमीन 2010 से पहले मोहम्मद आलम की मृत्यु के बाद उनके पुत्रगण प्रॉपर्टी डीलर महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम व फिरोज आलम पुत्रगण मो. आलम निवासी बरवारी टोला थाना रामजन्मभूमि अयोध्या के नाम से आयी। उक्त जमीन का गाटा संख्या 242, 242/1, 242/2, 243, 244, 246 कुल रकबा 2.334 हेक्टेयर (180 बिस्वा) है।
2).उक्त वर्णित चारों व्यक्तियों ने वर्ष 2011 को पूरी 180 बिस्वा जमीन हरीश पाठक उर्फ स्वामी बाबा हरिदास पुत्र स्व. हौसिला प्रसाद पाठक एवं श्रीमति कुसुम पाठक पत्नि हरीश पाठक को 1 करोड़ रू. में बेचने का सौदा किया गया था, बतौर अग्रिम 10 लाख रू. सौदा पेटे भी दिये गये।
3). वक्फ़ बोर्ड के उक्त जमीन पर दावों के चलते न्यायालय में विवाद (लगभग 9 मुकदमे ) होने के कारण वर्ष 2014 में उक्त अनुबंध का नवीनीकरण कराया गया।
4).हरीश पाठक ने 4 मार्च 2011 को इसमें से 100 बिस्वा (लगभग 3 एकड़, 12080 वर्ग मीटर) जमीन का एग्रीमेंट 2 करोड़ रुपए में इरफान खान उर्फ नन्हें मियां से कर लिया था। तब एडवांस के तौर पर नन्हें ने बबलू को 10 लाख रुपए दिए थे।
5).चूंकि एक एग्रीमेंट की वैधता तीन साल के लिए होती है, ऐसा पक्ष समर्थन वालो ने दावा किया है। (जबकि वास्तविकता में कानून् दोनों पक्षों के बीच यदि अच्छी सहमति व समझ है, तो तीन साल की लिमिटेशन इंकार (डिनायल) दिनांक से प्रारंभ होती।) इसलिए बबलू ने 4 मार्च 2014 को व फिर 17 सितबंर 2017 को फिर से वही जमीन नन्हें के बेटे सुल्तान अंसारी के नाम से सौदा चिट्टी की गई।
6).17सितंबर 2017 को पंजीयन अनुबंध द्वारा हरीश एवं कुसुम पाठक द्वारा पूरी 180 बिस्वा जमीन सुल्तान अंसारी, रविमोहन तिवारी उर्फ चिंटू बलराम यादव, राजेन्द्र यादव, रविंद्र कुमार दुबे, मनीष कुमार सुबेदार, इच्छाराम सिंह व उपाध्याय सहित कुल 9 लोगों के साथ 28.50 करोड़ में सौदा किया गया।
7).न्यायालय में वक्फ बोर्ड का विवाद निपटारा के बाद 20 नवंबर 2017 महफूज आलम, जावेद आलम, नूर आलम व फिरोज पुत्रगण मो. आलम निवासी बरवारी टोला थाना रामजन्मभूमि अयोध्या ने गाटा संख्या 242, 242/1, 242/2, 243, 244, 246 रकबा 2.334 हेक्टेयर जमीन कुसुम पाठक पत्नि हरीश पाठक उर्फ स्वामी हरिदास व पुत्र स्व.हौसिला प्रसाद पाठक निवासी पठकापुर थाना छावनी बस्ती को रजिस्ट्री की।
8).21 नवंबर 2017 कुसुम पाठक व हरीश पाठक उर्फ स्वामी हरिदास ने उक्त संपूर्ण गाटा की कुल 2.334 हेक्टेयर भूमि का बिना कब्जा का अनुबंध इच्छा राम सिंह एवं उनके पुत्र जितेंद्र कुमार सिंह उर्फ बबलू व राकेश कुमार के नाम किया।
9).7 दिसंबर 2017 को उपरोक्त विक्रय विलय अनुबंध निरस्त कर दिया गया।
10).17 सितंबर वर्ष 2019 में इस भूमि का नया पंजीयत अनुबंध 2 करोड़ रूपए में किया गया। हरीश पाठक व कुसुम पाठक ने सुल्तान अंसारी सहित आठ लोगों के पक्ष में कराया। पचास लाख रूपए बतौर बयाना दिया गया इसमें रविमोहन तिवारी शामिल नहीं थे। यद्यपि वे एक गवाह जरूर थे।
11). 18 मार्च 2021 को गाटा संख्या 263 रकबा 1.037 हेक्टेयर (80 बिस्वा) जमीन 8 करोड़ रुपए में बबलू (हरीश) पाठक एवं कुसुम पाठक ने ट्रस्ट के पक्ष में पंजीयत बैनामा (रजिस्ट्री) की।
12).18 मार्च 2021 को 17 सितंबर 2019 को किया गया तीसरा पंजीयत अनुबंध को सायं 5.16 बजे निरस्त किया गया।
13).18 मार्च 2021 को गाटा संख्या 243, 244, 246 कुल रकबा 12080 वर्ग मीटर 100 बिस्वा लगभग 3 एकड़ जमीन को कुसुम पाठक व हरीश पाठक ने सुल्तान अंसारी व रविमोहन तिवारी को 2 करोड़ रू का पंजीयत बैनामा किया गया (उस समय सर्किल रेट उक्त जमीन का 580 रू. वर्गफीट था)। सौदा चिट्टी जो वर्ष 2019 में हुई थी, में उल्लेखित सुल्तान अंसारी के अतिरिक्त अन्य 8 नाम इस रजिस्ट्री में नहीं है। लेकिन रविमोहन तिवारी का नया नाम जुड़ गया।
14).18 मार्च 2021 को ही बैनामा कराने के 15 मिनट बाद ही सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी ने जो जमीन 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी, उसे 18.5 करोड़ रुपए में कब्जा सहित बेचने का पंजीयत सौदा ‘‘ट्रस्ट‘‘ (द्वारा चंपत राय) को कर कर दिया।17 करोड़ का "आरटीजीएस" कर भुगतान किया गया।
उंगली उठाने या शंका आशंका या कुशंका पैदा होने का ‘‘आधार‘‘ (जो अंततः ‘‘निराधार’’ हैं) निम्न कारणों से हैंः- (जिनका स्पष्टीकरण देने का भी प्रयास किया गया है)
1).जमीन के असली मालिक के पुरखों ने उक्त जमीन वक्फ बोर्ड को देना बताया गया। वर्ष 1924 में वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति थी। जमीन के केयर टेकर ने विरासत के आधार पर नाम दर्ज कराया।
उत्तरः तथापि वर्ष 2017 में वक्फ र्बोर्ड का दावा न्यायालय ने समाप्त कर दिया गया। यद्यपि अभी भी बोर्ड के सदस्य इकबाल सहित मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने इसे वक्फ बोर्ड की जमीन बताया है।
2).अधिकतर ‘‘सौदा लेख‘‘ जिनके दावे किए गए हैं, अपंजीयत हैं, जिनका पंजीयन विक्रय पत्रों में उल्लेख भी नहीं है।
उत्तरः परंतु कोई भी कानूनी या नैतिक अड़चन नहीं।
3).क्रय करने के लिये ट्रस्ट ने प्रस्ताव कब लिया? रजिस्ट्री के 15 मिनट के भीतर?
उत्तरः जानकारी नहीं! लेकिन यह आगे पीछे कभी भी लिया जा सकता हैै। दोनों स्थिति में सौदा वैद्य है।
4).एक ही दिन 15 मिनट के अंतराल से 2 करोड़ व 18.5 करोड़ में क्रमशः रजिस्ट्री व सौदा चिट्टी उतने ही क्षेत्रफल की एक ही 'वही' (समान) भूमि की हुई। उत्तरः महासचिव चंपत राय ने यह स्पष्ट किया कि मालिकाना ह़क को अंतिम रूप से निर्णित करने के लिये ही ‘‘सौदे‘‘ के पहले ‘‘बैनामा‘‘ कराया गया। इसमें कानूनन रूप से गलत क्या है? बाजार कीमत के संबंध में उपर विस्तृत स्पष्टीकरण दिया जा चुका है।
5).सायं 7.10 व 7.25 मिनट पर रजिस्ट्री व सौदा पंजीयत हुई। उत्तरः कोई कानूनी या नैतिक अड़चन नहीं।
6).‘‘सौदा चिट्टी‘‘ जो पंजीयत विक्रय पत्र के बाद हुई, के स्टेम्प पेपर, पंजीयत विक्रय पत्र के स्टेम्प के पहले खरीदे गये।
उत्तरः उक्त सौदे को यथासंभव सही वैधानिक रूप देने के लिए खरीददार व दोनों सौदो के विक्रेता गण सहित समस्त पक्ष सहमत थे।अतः यह सारहीन है कि कौन से स्टेम्प पेपर पहले खरीदे गए।
7).इस पूरे सौदे में पंजीयत विक्रय पत्र व पंजीयत सौदा चिट्टी में दोनों गवाह कॉमन है। अर्थात महापौर ऋषिकेश उपाध्याय व ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा।
उत्तरः सम्पत्ति में हित रखने वाले समस्त व्यक्तियों से बातचीत होकर सहमति बनाई गई। इसलिये ऐसा हुआ। चूँकि दोनों सौदे एक ही समय निष्पादित किया गए और पूरे सौदों के अनुक्रम में अंसारी व आलम से लेकर पाठक और तिवारी तक ये दोनों व्यक्ति संपूर्ण बातचीत में रहे। इसलिए दोनों में गवाह कॉमन है। ‘‘मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’’। इसमें अवैधानिकता या अनैतिकता "कहां, कैसी व क्या" है?
8).क्या विक्रय पंजीयन के 15 मिनट के भीतर ही ‘‘नामांतरण‘‘ हो गया? अथवा नामांतरण बिना ही ‘‘सौदा चिट्ठी‘‘ पंजीयत की गई?
उत्तरः स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालांकि इससे दस्तावेज की वैधता पर कानूनन कोई फर्क नहीं पड़ता है।
9).सुल्तान अंसारी के आये बयानों में अंतर आ रहे है। उनके अनुसार कुल 18.50 करोड़ में सौदा तय हुआ। जिसे बाद में 17 करोड़ कर दिया गया। बचा हुआ 1.5 करोड़ रजिस्ट्री के बाद दिया जायेगा। 50 लाख रूपए पेशगी में दिए गए थे। 8.30 करोड़ 8.30 करोड़ खाते में आये। इस प्रकार कुल 17.10 करोड़ का भुगतान होता हैं। जबकि भुगतान 17 करोड़ का आरटीजीएस द्वारा हुआ है।
उत्तरः मौखिक बयानों में आए कुछ अंतरों की तुलना में लिखित दस्तावेज वैध व मान्य है।
10).क्रेता सुल्तान अंसारी व रविमोहन तिवारी को 5.89 स्टाम्प डयूटी व वास्तविक कीमत 2 करोड़ के अंतर 3.79 करोड़ रूपए पर आयकर अधिनियम की धारा 56(2) के अंतर्गत ‘‘अन्य स्त्रोत से आय‘‘ मानकर आयकर देय होगा। जो प्रत्येक को लगभग 65-65 लाख भरना होगा।
11).विक्रेतागण कुसुम व हरीश पाठक को आयकर अधिनियम की धारा 48 के अंतर्गत 01.04.2001 को उक्त जमीन का मूल्य (यदि रू. 25 लाख मानी जाय) का तीन गुना (*301 लागत मुद्रास्फूर्ति सूचकांक) (-) 5.79 करोड़ (स्टाम्प डयूटी मूल्य) की अंतर राशि पर आयकर कानून की धारा 48 के अनुसार 20 प्रतिशत की दर से ‘‘दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ‘‘ जो लगभग 55-55 लाख प्रत्येक को आयकर के रूप में देना होगा। अथवा पूंजीगत आय से ‘‘छूट के बांड‘‘ क्रय या अन्य प्रावधित "निवेश" किये जाने होंगे । जानकारी मिलने से ही स्थिति स्पष्ट हो सकती है।
उत्तरः उपरोक्त शंका क्रमांक10,11 का उत्तर ट्रस्ट या संबंधित व्यक्तियों से आने से स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।
जिस तरह से इस पूरे ट्रांजैक्शन को मूर्त रूप दिया गया है, उससे शायद यह बात तय सी लगती है कि रजिस्ट्री या सौदा चिट्टी के समय जो भी स्टॉम्प डयूटी दी गई या देय होगी, वह ट्रस्ट, द्वारा वहन होगी । सामान्यता चलन मैं तो "क्रेता ही बहन" करता है। अन्यथा 2 करोड़ की हुई रजिस्ट्री में दोनों पक्ष खरीददार व बेचवाल चारों व्यक्तियों को कुल मिलाकर सिर्फ 2.40 करोड़ आयकर ही देना होगा। यदि धारा 211(2) सहपठित परंतुक 1धारा 156 के अनुसार अग्रिम आयकर नहीं भरा होगा तो ब्याज भी देय होगा जो 20 लाख के करीब होगा।
इस पूरे मामले का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, 18 मार्च की रजिस्ट्री व सौदा के संबंध में लगभग तीन महीने बाद (12-13 जून) को प्रश्नचिन्ह लगाये गये। स्पष्टीकरण अप्राप्त?
अंत में यदि उक्त संपूर्ण सौदों को सही तरीके से निष्पादित किया जाता तो, यह परसेप्शन, भ्रम और विवाद की स्थिति शायद उत्पन्न नहीं होती। भ्रम (परसेप्शन) उत्पन्न ‘‘किया‘‘ अथवा उत्पन्न ‘‘हुआ‘‘ है, दोनों स्थिति में ‘‘कुछ सत्यता‘‘ अवश्य हो सकती है। बावजूद इसके चूकि सब कुछ ‘‘भगवान श्रीराम को अर्पित‘‘ किया जा रहा है। अतः जब तक की ट्रस्ट के पैसे का तथाकथित दुरुपयोग कर व्यक्ति विशेष को फायदा पहुंचाने का आरोप (तथाकथित उक्त आरोप अभी तक तो सत्यता से कोसों दूर है) कानूनन् बिना शक के सिद्ध नहीं हो जाते है, तब तक समस्त ‘‘उत्पन्न/उत्पादित परसेप्शन‘‘ एक तरफ रख दीजिए। जय श्री राम।