वर्तमान में देश की विभिन्न कार्यक्षेत्रों में स्थिति इतनी गिर चुकी है कि आज खेल-खेल में राजनीति हो रही है या राजनीति का खेल हो रहा है, यह समझना बड़ा मुश्किल सा हो गया है। देश भक्ति और देश प्रेम की भावना का तो दूर-दूर तक (दूर)दर्शन, सुगंध अनुभव और आभास मिलना इतना मुश्किल हो गया है, जैसे ‘‘रेगिस्तान में नख़लिस्तान‘‘। वास्तव में ऐसा लगता हैं कि देश भक्ति की भावना व्यक्ति के शरीर के अंदर मात्र इनबिल्ट होकर रह गई है, जिसके प्रदर्शन की कदापि आवश्यकता अब शायद नहीं रह गई हैैं। बात भारत की पाकिस्तान के विरुद्ध शर्मनाक हार अर्थात पाकिस्तान की भारत पर ऐतिहासिक विजय पर कश्मीर और दिल्ली समेत देश के कुछ स्थानों पर पटाखे फोड़ कर खुशी प्रदर्शन करने की शर्मनाक घटनाओं की है। क्या इसे देख कर ऐसा नहीं लगता कि ‘‘कुत्तों को घी हजम नहीं होता‘‘?
खेल, खेल होता है। “खेल“ में राजनीति का न तो कोई स्थान है और न ही होना चाहिए। इस कटु अटल सत्य से कोई व्यक्ति न तो इनकार करता हैं और न हीं कर सकता है। परन्तु जब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी अध्यक्षा नेत्री महबूबा मुफ्ती कहती है कि विराट कोहली ने पाकिस्तान की जीत पर उनके कप्तान को बधाई दी, तो कश्मीर घाटी में बधाई और खुशी का सिलसिला गलत कैसे? तो लगता है कि ‘‘करेले की बेल नीम पर जा चढ़ी हो‘‘। आगे समझाईश देती हुई वे कहती हैं कि विराट कोहली की तरह इसे सही भावना से लें। वाह! निश्चित रूप से एक सीजन्ड (अनुभवी) राजनीतिज्ञ की इस तुलना व सोच पर हंसी ही नहीं तरस भी आता है। वास्तव में उन्हंे विराट कोहली की सही भावना को सही परिपेक्ष में लेना आना चाहिए? वे वीरेन्द्र सहवाग व गौतम गंभीर की लताड़ को भूल गई, जब उन्होंने यह कहकर कि जश्न मनाने वाले भारतीय नहीं हो सकते है। महबूबा (यदि वे वास्तव में एक भारतीय है तो?) को बधाई व खुशी में कोई अंतर समझ नहीं आ रहा है? तो यह उनके दिमाग की दिवालियापन को ही इंगित करता है। ऐसी दिवालिये हुए दिमाग कश्मीर के राजनीति में वर्षों सत्ता में कैसे रही और भाजपा भी उनके साथ मानो ‘‘ओछे की प्रीत, बालू की भीत‘‘ के समान साझेदारी में सत्ता में रही, यह सोच कर ही दिमाग सुन्न सा हो जाता है।
निश्चित रूप से खेल का यह सिद्धांत है कि खेल को खेल की तरह ही खेल भावना से लेना चाहिए। जीत और हार खेल का अभिन्न आवश्यक अंग है। अर्थात एक टीम तभी जीतती है, जब दूसरी टीम हारती है। जैसा कि कहा जाता है कि ‘‘कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर‘‘ और आजकल तो टाई की स्थिति में भी परिणाम निकालने की अधिकांशतः व्यवस्था कर दी गई है। खेल भावना यही कहती रहती है कि जो टीम जीतती है, उन्हें हारी हुई टीम बधाई देती है और जीती टीम हारी हुई टीम को नैतिक सांत्वना देती है। यही काम विराट कोहली ने खेल के मैदान में किया, जो बिल्कुल सही व खेल भावना के अनुरूप हैं।
प्रत्येक खिलाड़ी चाहे वह फिर विश्व के किसी भी देश का क्यों न हो, उसे खेल के मैदान में ऐसा ही करना चाहिए और वह करता भी है, फिर चाहे वे परस्पर दुश्मन देश के खिलाड़ी ही क्यों न हो। तथापि जीत की बधाई देने में हारी हुई टीम के मन में कहीं न कहीं एक कसक टीस अवश्य रहती है, कि काश हम जीत जाते। और जब खेल क्रिकेट का हो और वह भी भारत व पाकिस्तान दो पैदाईशी पारंपरिक दुश्मन देशों के बीच हो, तब यह भावना उग्र हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में यह बधाई औपचारिक मात्र ठीक वैसे ही रह जाती हैं, जब हम अपने दुश्मन या नापसंद लोगो के स्वर्गवासी हो जाने पर संवेदना प्रकट करते हैं। बधाई देना मात्र एक औपचारिकता है, ‘‘फेस इज नॉट द इंडेक्स ऑफ द हार्ट‘‘ और खुशी व्यक्त करना या खुशी में शामिल होना एक वास्तविक भावना का प्रदर्शन है। इस महत्वपूर्ण अंतर को महबूबा को समझना होगी, तभी वह पूर्णतः भारतीय हो पायेगी? एक और महत्वपूर्ण बात महबूबा के संतुष्टि के लिये है। यदि पाकिस्तानी टीम भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी देश की टीम को हराती है तो, भारतीय मुसलमान जश्न मना सकते है। इतना बड़ा दिल भारतीयों का तो हो सकता है, परन्तु पाकिस्तानियों का तो कदापि ही नहीं जो हिन्दुओं को भारतीय जीत पर पाकिस्तान में जश्न मनाने दे।
हमारा देश जब किसी अन्तर्राष्ट्रीय खेल में हार जाए, तो क्या देश के नागरिको को खुशी होगी या दुख होगा? सवाल पाकिस्तान का भी नहीं हैं? किसी भी खेल के अन्तर्राष्ट्रीय मैचो में हार-जीत देश की होती है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मैचों में खिलाड़ी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है और राष्ट्र के लिए खेलता है। इसीलिए जीत पर खुशी का इजहार देश के नागरिकों द्वारा होता है। उसी प्रकार हार पर आंसू पीना व मायूस होना पड़ता, है खुशी नही हैं? आंसू पीने का मतलब पटाखे फोड़ना नहीं होता है? महबूबा मुफ्ती से यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि भारत की हार पर कश्मीर में जिन लोगों की ‘‘बोटियां फड़कने लगीं‘‘, जिन्होंने पटाखे फोड़े, खुशियां मनाई, क्या वे ईश्वर-अल्लाह से यह प्रार्थना कर रहे थें कि भारत हार जाए और उन्हें पटाखा फोड़ने का मौका मिले? यह तो वही बात हुई कि ‘‘जिस थाली में खाना उसी में छेद करना‘‘। वे कृपया यह भी बतलाने का कष्ट करे कि, यदि वह मैच भारत जीत जाता तो तब हार में अभी पटाखें फोडने वाले लोग वैसे ही पटाखे फोडते? या आगजनी लूट मार करते? अथवा पाकिस्तान में हिन्दुओं को भी ऐसे ही पटाखे फोड़ने की स्वतंत्रता देती? संभवतः कभी भी किसी हिन्दु पाकिस्तानी नागरिक ने भारत की जीत पर पाकिस्तान में पटाखे नहीं फोडे है। चूंकि ‘‘चूहे का जाया बिल ही खोदता है‘‘, अतः ऐसी स्थिति में ऐसे लोगों को भारत देश की नागरिकता छोड़कर पाकिस्तान की नागरिकता ग्रहण कर लेना चाहिए?
इस स्थिति पर चर्चा होना ही दुर्भाग्यपूर्ण है और न ही यह कोई डिबेट (बहस) का विषय होना चाहिए। देश भक्ति देश प्रेम, हार व जीत से प्रभावित नहीं होता है। जीत में तो दुगना हो जाता है। इससे भी ज्यादा दुर्भाग्य की बात यह है कि जब देश के गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर के 3 दिवसीय “सफल“ दौरे पर हों, तब ऐसी देश विरोधी घटनाओं का होना और उस पर तुरंत कोई कार्यवाही न होना, किस बात व स्थिति को इंगित करता है? जैसा कि सरकार अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से कश्मीर में लगातार सामान्य होती स्थिति की बात कहती आई है। अमित शाह का इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आना और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। हिन्दुवाहनियों द्वारा पूरे देश में इस घटना का विरोध का आव्हान न करना भी, कहीं न कहीं उनकी देशभक्ति की गहराई पर आँच लाता है व उछलेपन को दिखाता है। उक्त घटनाएं किसी भी स्थिति में स्वीकार योग्य नहीं है और ‘‘तत्र दोषं न पश्यामि, शठे शाठ्यम् समाचरेत‘‘, अतः उन सब व्यक्तियों के खिलाफ न केवल देशद्रोह की त्वरित आपराधिक कार्यवाही की जानी चाहिए, बल्कि उनकी भारतीय नागरिकता ’भी समाप्त कर उन्हें सबक सिखाना चाहिए। क्योंकि नागरिकता के अधिकार का दुरूपयोग कदापि नहीं होने देना चाहिए। यह कदापि संभव नहीं होना चाहिये कि आप नागरिकता के फायदे भी ले और राष्ट्र को दुश्मन देश के सामने व विश्व में नीचा गिराए दिखाएं।
अभी-अभी उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उक्त राष्ट्र विरोधी घटित घटनाओं के लिए कुछ देश द्रोही व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है जिसके लिए न केवल सरकार बधाई की पात्र है बल्कि देश की अन्य सरकारों को भी योगी सरकार से सीख लेनी चाहिए ।
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