‘‘टाईम्स नाउ’’ न्यूज चैनल को दिये गये एक लम्बे इंटरव्यू में अपने विवादास्पद बयानों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहने वाली फिल्मी कलाकार कंगना रनौत ने कहा कि ‘‘1947 में भीख में मिली आजादी ‘‘आजादी’’ कैसे हो सकती है। वह भीख थी, आजादी नहीं। असली आजादी 2014 में मिली’’। उक्त कथन पर देशव्यापी, सर्वव्यापक आलोचना होनी ही थी, जो सही भी है। उक्त कथन पर आयी प्रतिक्रियाओं व आलोचनाओं पर कंगना ने सोशल मीडिया इंस्टाग्राम पर बचाव में एक पोस्ट किया। इस पोस्ट में एक कदम आगे बढ़कर कंगना ने कहा कि ‘‘1947 में कौंन सा युद्ध हुआ मुझे नहीं पता! ‘‘अगर मुझे कोई बता सकता है तो अपना पद्मश्री वापस कर दूंगी और माफी भी मागूंगी। कृपया मेरी इसमें मदद करे’’।
एक (तथाकथित अबला) महिला जो मदद की गुहार कर रही हो (यद्यपि जिनको पहले से ही भारत सरकार ने ‘‘वाय प्लस’’ श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है), उनकी मदद करना एक भारतीय नागरिक का कर्तव्य हो जाता है। इसलिये कंगना जी, निश्चित रूप से में न केवल आपकी निशुल्क मदद करने को तैयार ही नहीं हूं, बल्कि तुरंत ही आगे मदद भी कर रहा हूं। अर्थात आपके प्रश्न का आपको संतुष्ट करने वाला और समधानकारक उत्तर दे रहा हूं। गणतंत्रीय भारत देश स्वतत्रं देश है या नहीं, यह तो प्रश्नवाचक चिन्ह लगाने वाली कंगना ही बता पायेगी? लेकिन इस देश की युगों-युगों से चली आ रही भारत देश भारतीय संस्कृति में भगवान राम, दानवीर कर्ण, राजा हरिश्रचंद्र जैसे अनेक महान विभूतियां हुई हैं, जिन्होंने ‘‘प्राण जाए पर वचन न जाये’’ को अक्षरसः मानते हुये अपने दिये गये वचनों को पूर्ण किया। उम्मीद है, आपको संतुष्ट करने वाला उत्तर अर्थात आपके निरुत्तर होनेे पर आप भी अपने वचनों का अवश्य पालन करेगी। अर्थात् देश से माफी मांग कर अपने कथनानुसार पद्मश्री अवश्य वापस कर देंगी।
आइये, सर्वप्रथम उन्होंने ‘‘टाईम्स नाउ’’ से बातचीत में क्या-क्या प्रमुख बातें कहीं तथा उनका सार व अर्थ क्या है? उन्होेंने साफ तौर पर कहा कि वर्ष 1947 में मिली आजादी भीख थी, और असली आजादी 2014 में मिली है। इस पर आयी प्रतिक्रियाओं पर इंस्टाग्राम में की गई पोस्ट में वे कहती ‘‘1947 की भौतिक आजादी हो सकती है, अर्थात् शारीरिक आजादी हमारे पास थी। एक मृत सभ्यता जीवित हुई। परन्तु 2014 में देश की चेतना व विवेक मुक्त हुई है’’। मतलब क्या अटलजी के शासन में भी विवेक व चेतना मुक्त नहीं हुई थी? इसका भी तो जवाब तो दीजिये कंगना जी? उन्हे याद दिलाना होगा कि 1977 में आपातकाल हटने के बाद तत्समय उसे दूसरी आजादी बतलाया गया था। तब भी आपातकाल में हुये अत्याचार के विरूद्ध देश का विवेक जाग्रत हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी की पहली सामूहिक लड़ाई 1857 में शुरू हुुई थी। उन्होंने गांधीजी पर तंज कसते हुये आलोचना करते हुए कहा कि आजाद हिंद फौज की छोटी सी लड़ाई, राष्ट्रवाद के साथ उत्पन्न ‘‘राईट विंग’’ भी लड़कर ले सकती थी और सुभाष चंद्र बोस पहले प्रधानमंत्री बन सकते थे। क्यों आजादी को कांग्रेस के कटोरे में ड़ाला गया? गांधीजी पर तंज कसते हुये उन्होेंने कहा ‘‘दूसरा गाल देने से भीख मिलती है, आजादी नहीं।’’
उनके समस्त शब्दों व कथनोें को पढ़ने-सुनने से यह बात अपने आप में बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि वे अत्यधिक भ्रमित (कन्फ्यूज्ड) होकर स्वयं को ही अपनी उलूल-झूलूल बातों में उलझा रही हैं। जब वह यह कहती हैं कि ‘‘1947 में कौंन सी लड़ाई लडी’’? तब उनको यह समझाना होगा व उन्हें समझना भी होगा कि स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई सिर्फ सैनिक युद्ध से ही नहीं जीती जाती है, वरन् उसके बिना भी हो सकती है व हुयी हैं। कालांतर में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन सैनिक युद्ध न होकर एक जन आंदोलन व राजनीतिक आंदोलन में परिवर्तित हुआ। अंततः देश ने 15 अगस्त 1947 को जो स्वाधीनता प्राप्त की वह बातचीत के टेबल पर ही प्राप्त हुई थी, दान में दी गई भीख नहीं थी।
कंगना रनौत में इस बात की समझ होनी ही चाहिए (यदि नहीं है तो इतिहास की किताबें पढ़ ले) कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 1 दिन या 1 वर्ष अर्थात सिर्फ वर्ष 1947 का ही नहीं था, जैसा कि कंगना ने पूछा कि 1947 में कौंन सा युद्ध हुआ था? कंगना की बात को शाब्दिक रूप से सही मान भी ले कि यदि 1947 में कोई लड़ाई नहीं हुई तो आजादी कैसे? तब वे यह भी बतलायें कि वर्ष 2014 में कौन सा युद्ध हुआ? कौन सी लड़ाई लड़ी गई, जिस कारण से वे 2014 में आजादी मिलने की बात कह रही है।
कंगना जब वर्ष 1947 में आजादी नहीं मिलने की बात कह रही हैं, तब फिर उन्होंने 1947 में काैंन सी आजादी को कांग्रेस के कटोरे में ड़ालने की बात कर गंाधी जी की आलोचना की? यदि ‘‘आपकी’’ नजर में वर्ष 2014 में ही असली आजादी मिली, तो वर्ष 2014 को स्वतंत्रता वर्ष या कोई नया स्वतंत्रता दिवस घोषित करने के लिए आप आगे क्यों नहीं आई? कांग्रेस को ‘‘कटोरे में मिली आजादी’’ द्वारा बनाया गए संविधान को बदल कर नया संविधान लागू करने पर ‘‘स्वतः संज्ञान’’ ‘आपने’ क्यों नहीं लिया गया? इन प्रश्नों का जवाब कंगना को देना होगा।
दूसरा प्रश्न 1947 में मिली आजादी को कांग्रेस के कटोरे में तथाकथित रूप से ड़ालने से क्या हमारी आजादी समाप्त हो जाती? क्या उस आधार पर आजादी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा सकता है? ‘‘आखिर आजादी आजादी है’’। और कंगना जी यह 1947 की आजादी ही है जो 2014 के बाद भी चली आ रही है, जहां आप मुक्त भाव से निड़र होकर निरतंर निर्भीक बोल रही है। आपके उलूल-झूलूल बयानों से न केवल देश के महत्वपूर्ण समय का अपव्यय हो रहा है बल्कि मेरा भी समय आपकी बकवास का जवाब देने में जाया हो रहा है। इसीलिए आपके टीवी इंटरव्यू, इंस्टाग्राम द्वारा आए विचारों से असहमत भाजपा सहित देश की लगभग समस्त पाटियों व बुद्धिजीवियों ने आलोचना कर विरोध दर्ज कराया है। तथापि कंगना के समर्थन में सोशल मीडिया में एक मेसेज चल रहा है, जहां पर कंगना को सच (तथाकथित?) बोलने के साहस के लिए यह कहकर समर्थन किया जा रहा है कि भारत आजाद देश न होकर आज भी राष्ट्र मंडल का सदस्य है।
यदि यह मान भी लिया जाए कि तथ्यात्मक रूप से उक्त आधार सही है, तो वर्ष 2014 के बाद तथाकथित रूप से मिली आजादी (कंगना के शब्दों में) के बाद भी भारत राष्ट्रमंडल देशों के समूह का सदस्य बना हुआ है। यदि 1947 में आजादी नहीं बल्कि मात्र सत्ता का हस्तांतरण हुआ है, जैसा कि सोशल मीडिया में दुष्प्रचारित किया जा रहा है, तो वर्ष 2014 में क्या हुआ?
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और देश का बंटवारे होने में कांग्रेस और उन्हे नेताओं की भूमिका की आलोचना जरूर की जा सकती है। बहुत से मुद्दों को लेकर उनके समक्ष प्रश्नों का जंजाल खड़ा किया जा सकता है। परंतु देश को स्वतंत्रता या आजादी निश्चित रूप से 1857 के गदर युद्ध से प्रारंभ होकर आजाद हिंद फौज (जिसने आक्रमण कर अंग्रजों से कुछ प्रदेश मुक्त कराये थे) के नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे गरम दल व कांग्रेज जैसे नरम दल और मंगल पांडे, भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, खुदीराम बोस, सुखदेव थापर, शिवराम राजगुरू, अशफाक उल्ला ख़ाँ बटुकेश्वर दत्त जाने माने अनेक क्रांतिकारियों के संयुक्त व सामूहिक योगदान से ही प्राप्त हुई है। और वह भी 15 अगस्त 1947 को ही। इस ऐतिहासिक तथ्य को कंगना को अपने दिल दिमाग में अच्छी तरह से फिट कर दिमाग को दुरूस्थ कर लेना चाहिये।
आज कंगना ने पुनः अपनी छपास आदत व हेड़लाइंस हंटर (जैसा कि टाइम्स नाउ के एंकर ने उपाधी भी दी) के चलते महात्मा गांधी को भी सत्ता का लोभी बता कर उनका अपमान किया है। कंगना को शायद राष्ट्रपिता और राष्ट्रपति में अंतर का ज्ञान नहीं है। महात्मा गांधी देश के राष्ट्रपिता है, राष्ट्रपति नहीं, जो सत्ता का प्रतीक होता है। यद्यपि यदि वे चाहते तो सत्ता पर जरूर आसीन हो सकते थे। बावजूद सत्ता त्याग करने वाले, सादगी पूर्ण जीवन जीने वाले महात्मा को सत्ता का भूखा कहना स्वयं को मूर्ख सिद्ध करना ही है। देश के नागरिकों को स्व-स्फूर्ति अब आगे आकर गंभीर रूप से सोचना होगा कि पिछले कुछ समय से कुछ बयानवीरों के इस तरह के आये राष्ट्र विरोधी व देश की अंखड़ता को खंडि़त करने का प्रयास करने वाले बयानों की बाढ़ को रोकने के लिए ऐसे प्रभावी कड़क कानून बनाए जाएं जिनके खौंफ व ड़र से लोग व्यक्तिगत और प्रेस की स्वतंत्रता का इस तरह दुरुपयोग कर देश की आजादी को खंडित करने का प्रयास न कर सकें। कंगना के उक्त कथन उनकी विक्षिप्त मानसिकता को ही दर्शाते है। अतः उनका मानसिक इलाज पूर्ण होने तक उनकी भारतीय नागरिकता निलंबित कर देनी चाहिये।
अंत में कंगना रनौत के प्रश्न का यही जवाब है कि उनका प्रश्न बकवास पूर्ण है, अर्थहीन अर्थात निरर्थक व तथ्यों के बिल्कुल परे होकर उनकी आदत के मुताबिक मात्र एक जुमलेबाजी ही है। यह बात उन को अच्छी तरह से इस लेख के द्वारा समझा दी गई है, यदि वे जरा सी भी समझदार हैं और समझना चाहती हैं तो?। इस तरह उनके इस प्रश्न का उत्तर इस प्रश्न को समाप्त करने में ही निहित है, जो इस लेख के माध्यम से किया गया है।
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