केन्द्रीय वित्त मंत्रालय, आयकर विभाग द्वारा पूरे देश में 13 सितंबर 2021 से 17 दिसम्बर 2021 के बीच ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव’’ कार्यक्रम के अंतर्गत उपरोक्त विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया। आयकर अधिकारी, बैतूल द्वारा आयोजित इस सेमीनार में भाग लेते हुये मेरे द्वारा कहे गये उद्बोधन के प्रमुख अंश प्रस्तुत है।
किसी भी राष्ट्र का विकास निसंदेह उसकी आर्थिक मजबूत स्थिति पर ही निर्भर होता है। देश की दृढ़ व मजबूत आर्थिक स्थिति के लिए नागरिकों को कर के रूप में अपना अंशदान देना होता है। कर अर्थात टैक्स लैटिन भाषा "टैक्सो" से लिया गया शब्द है। वैसे "कर" कराधान से निकला शब्द है, जिसका तात्पर्य आकलन से होता है। कर देश के नागरिकों द्वारा स्थानीय शासन, राज्य शासन या केंद्रीय शासन को दिए जाने वाला अनिवार्य वित्तीय भुगतान है, जो आर्थिक असमानता को दूर करता है। आधुनिक लोकतंत्र में किसी भी सरकार के लिए यह आय का मुख्य स्त्रोत हो गया है। कर के रूप में यह अंशदान भारत में दो तरह से हैं। एक प्रत्यक्ष कर व दूसरा अप्रत्यक्ष कर। आपको पहले यह समझना होगा कि प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। वह कर जो सामान्यतया आय पर और उसका भुगतान व्यक्ति सीधे करता है, सामान्यतया प्रत्यक्ष कर कहलाता है। इसे हम मुख्य रूप से आयकर के रूप में जानते हैं। यह भी दो मुख्य प्रकार का होता है। व्यक्तिगत आयकर एवं दूसरा निगमित (कम्पनी) कर। आयकर पर सरचार्ज व सेस भी लगता है। तथापि दान कर और राज्यों द्वारा आरोपित वृत्ति कर भी प्रत्यक्ष कर ही है। पूर्व में प्रत्यक्ष कर के रूप में एस्टेट ड्यूटी (संपत्ति शुल्क) व वेल्थ टैक्स ( धन कर) भी लगता था, जिसे समय-समय पर आवश्यकता के अनुरूप समाप्त कर दिया गया था। फ्रिज बेनिफिट टैक्स नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को दिये जाने वाले बेनिफिट पर राज्य सरकार को दिया जाता है। सर्वप्रथम देश में आयकर वर्ष 1860 में लगाया गया। वैसे मनुस्मृति और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कर का संदर्भ मिलता है। वर्ष 1922 में पहला आयकर कानून आया। जबकि 1961 में वर्ष 1922 के अधिनियम को समाप्त कर नया आयकर अधिनियम लाया गया। वर्तमान में भी आयकर अधिनियम 1961 को समाप्त कर नये आयकर अधिनियम की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इस कारण से एक नया आयकर कोड भी कुछ वर्ष पूर्व बनाया गया था जो विचार विमर्श के लिए सार्वजनिक रूप से लम्बित है।
दूसरा अप्रत्यक्ष कर जो माल के विक्रय या सर्विस के रूप में एक उपभोक्ता को सामान्यतया खर्चे के रूप में देना होता है। इसमें पहले विक्रय कर, कमर्शियल टैक्स, वेट, प्रवेश कर, सर्विस टैक्स, सीमा शुल्क, उत्पाद कर, स्वच्छ भारत सेस (15.11.2015 से लागू), कृषि कल्याण सेस, इंफ्रास्ट्रक्चर सेस इत्यादि अप्रत्यक्ष कर होते थे। इन सब अधिकांश करों को मिलाकर अब जीएसटी के नाम से एक अप्रत्यक्ष कर 1-7-2017 से लागू किया गया है। वस्तुओं पर अभी भी वेटकर लागू है, जैसे पेट्रोलियम उत्पाद। स्टॉक एक्सचेंज में सिक्योरिटीज पर भी वर्ष 2004 में सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स लगाया गया है। कम्पनी को अपने लाभ निवेशकों को दिये गये लाभाश पर डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स देना होता है। इसके अतिरिक्त राज्य शासन भी अनेक प्रकार के प्रत्यक्ष कर जैसे प्रॉपर्टी टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, पंजीकरण शुल्क, लग्जरी टैक्स, टोल टैक्स व अप्रत्यक्ष कर मनोरंजन शुल्क, मंडी टैक्स इत्यादि लगाते रहें हैं, जो राज्यों की आय के स्त्रोत के अतिरिक्त साधन है।
हमारे देश की आय में प्रत्यक्ष करों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। चालू वित्तीय वर्ष में प्रथम तिमाही में कुल राजस्व रुपए 2,46,519.80 करोड़ प्राप्त हुआ जबकि इसी अवधि में पिछले वर्ष रुपए 1,17,783.87 करोड़ मिले थे। इस प्रकार लगभग 109% की वृद्धि हुई। सितंबर 2021 को समाप्त हुई तिमाही तक कुल प्रत्यक्ष कर के रूप में भारत सरकार को 570568 लाख करोड़ रुपए की शुद्ध राजस्व (रिफंड राशि घटाने के बाद) की प्राप्ति हुई है, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में लगभग 56% अधिक है। जबकि इसी अवधि में अप्रत्यक्ष करों से कुल राजस्व 675742 करोड़ हुई जो मासिक औसत 1.15 लाख करोड़ हुई है। माह नवंबर तक राजस्व संग्रहण 93795 लाख करोड़ रू. का हुआ है । नवंबर माह में 131526 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई ,जो जीएसटी लागू होने के बाद का अभी तक का दितीय द्वितीय उच्चतम राजस्व है। अप्रैल 2021 में रुपए 141354 करोड़ राजस्व प्राप्त हुआ था जो अभी तक का जीएसटी का उच्चतम रिकॉर्ड है। इस प्रकार जीएसटी का संग्रहण (कलेक्शन) भी अनुमानित बजट की आय से कहीं ज्यादा हुआ है।
भारत में आयकर की अधिकतम दर 42.74% (सरचार्ज सहित) है। विश्व में सबसे अधिकतम आयकर की दर स्वीडन में 57.19% है । विश्व के 14 देश ऐसे हैं जहां पर किसी प्रकार का व्यक्तिगत या निगमित आयकर नहीं है। इनमें अधिकतर तेल उत्पादक देश शामिल है । जहां तक देश में कुल (डायरेक्ट टैक्सपेयर्स) प्रत्यक्ष करदाता की संख्या का प्रश्न है, उनकी कुल संख्या अभी लगभग 82.7 मिलियंस है, जो देश की कुल जनसंख्या का मात्र 6.25% है। जबकि अमेरिका में 40% से अधिक लोग आयकर दाता हैं। अतः स्पष्ट है हमारे देश मे टैक्स देने वालो की संख्या तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इसलिए सरकार को देश के विकास में और अधिक नागरिकों को भागीदार बनाने के लिए उन्हे प्रत्यक्ष कर की सीमा में लाने की नीति व प्रयास करने चाहिए। बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जैसे कृषि क्षेत्र जहां बड़े कृषक हैं, फार्म हाउस खेती करते हैं, उनको आयकर की परिधि में लाने पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। ताकि वे भी देश के विकास में अपना अंश देकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर सकें। एक अध्ययन के मुताबिक 4% अमीर किसानों को आयकर के दायरे में लाकर लगभग 25 हजार करोड रू. से अधिक का राजस्व जुटाया जा सकता है और साथ ही इस तरीके से काले धन को सफेद का जो माध्यम बन गया है उस पर भी रूकावट भी आ जायेगी, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है।
परंतु सरकार का डायरेक्ट प्रत्यक्ष कर करदाता के प्रति उतना संवेदनशील रुख नहीं रहा है जितना (इनडायरेक्ट टैक्सपेयर्स) अप्रत्यक्ष करदाता के प्रति। आपको याद होगा कि जब डीजल और पेट्रोल की कीमतें लगातार दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी, तब पेट्रोलियम मंत्री से लेकर पूरी सरकार का यही रुख रहा कि नागरिकों को देश के विकास में अपना अंश देने के लिए इस मूल्य वृद्धि में कर के रूप में अपना सहयोग देकर आगे आना चाहिए और यह उनका देश के प्रति कर्तव्य व दायित्व भी है। परंतु यही भावना सरकार ने डायरेक्ट टैक्स करदाता के प्रति व्यक्त नहीं की, जो खेद जनक है।
वैसे प्रत्यक्ष कर की वसुली हेतु हो रहे खर्चे तथा अप्रत्यक्ष कर के समान लगभग अधिकाश नागरिकों को देश के राजस्व में कर के रूप में अपना अंश देने के लिये कुछ क्षेत्रों से यह सुझाव कॉफी समय पूर्व से आया है कि आयकर की बजाय बैंकिंग कैश ट्रान्जेक्सन टैक्स (बीसीटीटी)(बैंक से लेन-देने पर कर) (0.25%/0.50%/1.00%) लगा देना चाहिये। इससे न केवल अधिकतम नागरिक कर देने वालों की संख्या में शामिल होकर कर दाताओं का दायरा बढ़ जायेगा बल्कि राजस्व में भी वृद्धि होगी। क्योंकि जन-धन योजना के अंतर्गत आज देश में अधिकाश नागरिकों के न केवल बैंक खाते खुले है, बल्कि बैंक ट्रान्जेक्संस् भी बढ़े है। साथ ही कर वसूली के लिए इतने बड़े आयकर के अमले की आवश्यकता न होने पर कर वसूली के खर्चे में जो अभी लगभग 1% कुल राजस्व का है, मैं भी काफी कमी हो जाएगी।वैसे वर्ष 2005 में आयकर के अतिरिक्त कुछ मामलों में यह टैक्स लगाया गया था, जो वर्ष 2009 में वापस ले लिया गया। इसके अतिरिक्त राजस्व बढ़ाने के लिए व्यय कर के भी सुझाव कुछ क्षेत्रों से आये है जिस पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिये।
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