‘‘बलात्कार’’ व सहमति के साथ ‘‘सहवास’’ में कुछ तो अंतर रहने दीजिए?
हाल में ही कुछ सेलिब्रिटीज की हत्या, वीभत्स हत्या और आत्महत्या होने पर यह सोचने के लिए विवश कर दिया है कि, ‘‘लिव-इन-रिलेशनशिप’’ भारतीय संस्कृति में कितनी जायज व उचित है?‘‘मूलभूत निजता के अधिकार’’ के आधार पर उनके सामाजिक और कानूनी मान्यता देने के पूर्व इसके दुरुपयोग-दुष्परिणाम की कितनी संभावनाएं अंतर्निहित हैं? अतः इस पर वर्तमान बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए ‘‘राजहंस के समान नीर-क्षीर विवेक बुद्धि’’ से गंभीरता से विचार किए जाने की क्या नितांत आवश्यकता नहीं है?
अभी तुनिषा शर्मा (साथी शीजान खान) द्वारा की गई आत्महत्या (हत्या?) और इसके पूर्व श्रद्धा वाल्कर (शरीर के 35 टुकड़े) (साथी आफताब अमीन पूनावाला) और झारखंड की रूबिका पहाडिन नामक (शरीर के 50 टुकडे) की जघन्य तरीके से हत्या की गई। इन तीनों ही मामलों में वे तीनों युवतियों बिना शादी किए हुए लिव-इन-रिलेशन में साथी व्यक्ति के साथ रह रही थी। अब ‘‘बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से होय’’। जुलाई 2022 में नोयडा में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले अजय चैहान ने आत्महत्या कर ली। इस प्रकार महिलाएं ही नहीं, बल्कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले पुरूष भी अप्राकृतिक मौत के शिकार हो रहे हैं। ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बात इन मामलों में यह भी है कि युवक और युवती के बीच मनमुटाव, लड़ाई झगड़े हुए जिनकी रिपोर्ट भी की गई, जिसकी जानकारी युवतियांे के माता-पिता को भी थी। बावजूद इसके जब तक वे युवतियाँ इस दीन-दुनिया से बेरहमी से विदा नहीं कर दी गई, उनके माता-पिता से लेकर समाज व स्वयं युवतियों ने उनके लिव-इन-रिलेशन जीवन पर प्रभावी आपत्ति नहीं की, जिसके उक्त दुष्परिणाम देखने को मिले।
उल्लेखित प्रकरणों में तुनिषा शर्मा ने तो परेशान होकर अथवा अन्य कारणों से आत्महत्या कर ली। इनकी माता श्री हत्या का एंगल (दृष्टिकोण) लाने का भी प्रयास कर रही हैं। तूनिषा का साथी शीजान खान के साथ तीन महीने का रिलेशन रहा। मृत्यु के 15 दिन पूर्व ही दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया था। धर्म के साथ उम्र में भी बड़ा अंतर था। श्रद्धा वाल्कर को तो बुरी तरीके से बेरहमी के साथ 35 टुकड़े-टुकड़े कर मौत के घाट उतार दिया गया। उपरोक्त मामलों में युवकों के अन्य कई युवतियों के साथ अंतरग संबंध थे, जो शायद कलह विवाद का कारण बने। कहते है कि ‘‘दूध का जला छाछ भी फूक कर पीता है’’, परन्तु अन्य युवतियों से अनैतिक संबंधों की जानकारी अभिभावकों को होने के बावजूद वे अपनी बेटियों को लिव-इन-रिलेशन से इन जीवन साथियों से अलग नहीं कर पाए, जैसा कि उनकी मृत्यु के बाद अब वे क्रोध, दुख व विषाद् व्यक्त कर रहे हैं।
इन तीन प्रकरणों में से दो प्रकरणों में मुसलमान युवक जीवन साथी थे, जिस कारण इन प्रकरणों को ‘लव-जिहाद’ का एंगल देने का भी प्रयास किया गया। परंतु इसी तरह के अनेक प्रकरणों में हमने यह देखा है कि ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ के टूटने पर युवती उस साथी युवक के ऊपर बलात्कार का केस दर्ज करवाती है, जिसके साथ वह महीनों, वर्षों साथ में रहकर सहमति के साथ सहवास करती है। उसका यह आरोप कदापि नहीं होता है कि ‘‘लिव-इन-रिलेशनशिप’’ के दौरान उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती साथी युवक ने सहवास किया। बल्कि आरोप यह लगाया जाता है कि उसके साथ शादी का प्रलोभन देकर शादी न करके धोखा कर या अन्य कोई लालच, धमकी, डर के कारण वह लिव इन रिलेशनशिप में रहती रही। ‘‘अपने बेरों को खट्टा कोई नहीं कहता’’। वास्तव में लिव-इन-रिलेशनशिप के टूटने के बाद युवतियों द्वारा इस तरह की लगभग की जा रही ब्लैकमेलिंग को रोकने के लिए सहमति के साथ किए गए सहवास को किसी भी स्थिति में बलात्कार की परिभाषा में नहीं लाना चाहिए, इस तरह के संशोधन की बलात्कार की परिभाषा में नितांत आवश्यकता है। धोके के साथ ली गई सहमति को धोखधड़ी का अपराध माना जाना चाहिये, जिस प्रकार ऐसी स्थिति में पुरूषों के लिये कानूनी व्यवस्था है। इसी कारण से भा.द.स. की धारा 376 लैंगिक रूप से समान नहीं है।
बलात्कार में बल शब्द से ही यह स्पष्ट होता है कि बलपूर्वक जबरदस्ती युवती के साथ सहवास करना ही बलात्कार है। एक समय बलात्कार न केवल एक अत्यंत घृणित कृत्यों के साथ शब्द माना जाता रहा, बल्कि उससे एक खौफनाक खौफ और घृणित अपराध का आभास भी होता था। लेकिन आजकल बलात्कार और सहमति के साथ सहवास को बलात्कार की निकट लाकर बलात्कार की परिभाषा में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाकर उसकी व्याख्या व उसकी भयानकता को कम करने का प्रयास एक ओर किया जा रहा है। तो दूसरी ओर कानून को कड़क बनाकर सजा को कड़क कर उक्त अपराध के अपराधी को अधिकतम सजा देने का प्रयास भी किया जा रहा है। निश्चित रूप से सजा को कड़क बनाए जाना तो उचित और जायज है। परन्तु विपरीत इसके बलात्कार की परिभाषा को विस्तृत करने के नाम पर लिबरल (उदार) करना बलात्कार की वीभत्सता भयानक और घृणा को कम करने के ही बराबर है।
वास्तव में लिव-इन-रिलेशनशिप हैं क्या? जब दो व्यस्क अपनी मर्जी से बिना शादी किये एक छत के नीचे रहते है, तो उसे लिव-इन-रिलेशनशिप कहते है। उसकी कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। इसलिए यह अंधों का हाथी’’ बना हुआ है। परन्तु घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा एफ-2 में इसे परिभाषित किया गया है। तथापि उच्चतम न्यायालय ने ऐसे संबंधों की वैधता को बरकरार रखा है। वर्ष 1952 में गोकुल चंद बनाम परवीन कुमारी के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि इस तरह कई सालों तक एक साथ रहना शादी ही मानी जायेगी। इसके बाद वर्ष 1978 में उच्चतम न्यायालय ने ‘‘बद्री प्रसाद बनाम डायरेक्टर ऑफ कंसोलिडेशन’’ के मामले की सुनवाई के दौरान बिना शादी किए एक ही घर में रहने को मान्यता दी और कहा कि दो व्यस्क लोगों का लिव-इन-रिलेशनशिप में रहना किसी भी भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं है। वर्ष 2022 के पंजाब हाई कोर्ट के एक निर्णय ने विवाह के होते हुए भी दूसरे व्यक्ति के साथ ‘‘लिव-इन-रिलेशनशिप’’ में रहना अपराध नहीं माना है, क्योंकि एडल्टरी (व्यभिचार, परस्त्रीगमन/परपुरुष गमन) को अपराध की श्रेणी से पहले ही हटा दिया गया है, यद्यपि ‘तलाक’ के लिए यह एक वैधानिक आधार आवश्यक माना गया है। तथापि मेरी नजर में पंजाब उच्च न्यायालय का यह निर्णय उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णय के विपरीत है, जहां लिव-इन-रिलेशनशिप को शादी की मान्यता दी है। तदनुसार ही और बालसुब्रमण्यम विरुद्ध सुल्तान के मामले में उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन-रिलेशन से पैदा हुए बच्चे के पैतृक संपत्ति में अधिकार को मान्यता दी है। तथापि उच्चतम न्यायालय के द्वारा अवधारित लिव-इन-रिलेशनशिप को शादी की मान्यता देने की अवधारणा पर उसके ब्रेकअप होने पर क्या तलाक लेने की आवश्यकता होगी? यह एक बड़ा प्रश्न है, जो मन में उत्पन्न हुआ है, जिसके जवाब की प्रतीक्षा है।
लिव इन रिलेशनशिप की प्रथम स्टेज वर्तमान समय में सोशल मीडिया के माध्यम से चैट के सिलसिले का चालू होना होता है। फिर द्वितीय स्टेज डेट पर जाने की होती है। तत्पश्चात की अवस्था लिव-इन-रिलेशनशिप की होती है। इसकी कोई निश्चित समय अवधि नहीं है। आधुनिक परिवेश में एक नजर में लिव-इन-रिलेशनशिप एक दूसरे को समझने का बेहतर अवसर देकर परिणामस्वरूप शादी में परिवर्तित होकर अपना अस्तित्व समाप्त कर लिव इन रिलेशनशिप की अंतिम पड़ाव की यह एक आदर्श स्थिति है। इस दृष्टि से आधुनिक युग में लिव इन रिलेशनशिप का समर्थन किया जा सकता है, यदि शादी के पूर्व शारीरिक संबंध न बनाये जाएं क्योंकि सभ्य व नैतिक समाज में शादी ही शारीरिक संबंध बनाये जाने का एकमात्र वैध लाइसेंस है। परंतु वास्तविकता में यह अक्सर ‘‘दूर के ढोल सुहावने’’ ही सिद्ध होता है, क्योंकि व्यवहार व धरातल पर उक्त आदर्श स्थिति नगण्य ही है। इसलिए इसके वर्तमान में दिन-प्रतिदिन सामने आ रहे दुष्परिणाम को देखते हुए इसका विरोध तेजी से होते जा रहा है। इस पर ठीक उसी प्रकार से प्रतिबंध लगाये जाने चाहिए, जिस प्रकार से संविधान द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकार से पूर्ण (एब्सुलूट) नहीं होते हैं, ताकि भारतीय सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्था चरमराये-भरभराये-ढ़हाये नहीं? क्योंकि यह हमारी संस्कृति की हमारी मूल पहचान है, के विरूद्ध होकर नैतिक व सामाजिक रूप से अस्वीकार है।