वैसे भारत एक लोकतांत्रिक देश है, और लोकतंत्र बगैर राजनीति के चल ही नहीं सकता है, बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लोकतंत्र में प्राण फूंकने वाली राजनीति ही हैं। यह राजनीति उसको चलाने वाले राजनेताओं के सर पर हमेशा सवार रहती है, जिसके चलते ये राजनेतागण विभिन्न सार्वजनिक निर्णय जनता के हित के लिये लेते है, जिसे हमेशा जनहित और देशहित में लिया गया निर्णय करार दिया जाता है। चूंकि हमारे संविधान में लोकतंत्र की यही मूल व्यवस्था है, जहां के राजनैतिक दल चुनावों में भाग लेकर जनता का प्रतिनिधित्व चुनकर आकर उनकी सेवा करने का बीड़ा व जिम्मेदारी उठाना बखूबी निभाते आ रहे हैं। चूंकि संविधान में प्रत्येक पांच वर्ष में जनता का जनादेश प्राप्त करने की व्यवस्था है, इसलिए उस व्यवस्था के अनुपालन में आगामी मार्च से मई तक पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है। इसकी तैयारी में कोविड-19 से संक्रमित, ग्रसित हमारा देश दो कोविड लहरों सेे गुजरने के बाद तीसरी लहर के द्वार पर खड़ा होने के बावजूद राजनैतिक दल उक्त संवैधानिक दायित्व को बिना हिचकिचाहट के निभाने का कार्य कर रहे हैं।
संविधान की इसी मूल तत्व व भावना को हमारे देश के समस्त राजनैतिक दलों ने पढ़ा, महसूस किया और पूरी तरह से अपने में उतार लिया। ऐसा करके राजनेताओं ने कोविड-19 के संक्रमण काल में खासकर कोविड के बढ़ते हुये नए ओमीक्रॉन म्यूटेन के चलते स्वयं के और उनको वोट देने वाली जनता के जीवन की चिंता न करते हुये, लोकतंत्र को मजबूत रखने के तत्व को ज्यादा महत्वपूर्ण व मजबूत मानते हुए शहीद होने की आशंकाओं से ड़रे परे बिना एक देश भक्त होने का अहसास व कर्तव्य पालन का दर्शन न केवल देश को कराया बल्कि संपूर्ण विश्व को भी कराया जिसके लिये वे सब साधुवाद के पात्र है। उन्हे शत् शत् नमन।
देश के प्रधानमंत्री ने अपने 84वें मन की बात में नागरिकों को आत्म अनुशासन का पाठ पढ़ा कर सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष ने भी रैली रोकने की जिम्मेदारी से अपने को बहुत ही सुविधाजनक तरीके से अलग कर लिया। अब यह जिम्मेदारी स्वयं नागरिकों की हो गई कि वे आत्मानुशासन का अनुपालन करते हुये रैलियों सहित भीड़ भरे स्थानों पर न जाय, अन्यथा समस्त दुष्परिणामों की जिम्मेदारी उनकी स्वयं की होगी। लेकिन सत्ता व विपक्ष दोनों पक्ष नागरिकों के व्यक्तिगत कार्यक्रम जैसे शादी, पार्टियां और शव यात्रा के अवसरों पर लगाए गए संख्या के प्रतिबंध पर एक शब्द भी नहीं बोले। गोया, कोविड-19 के विभिन्न वेरिएंट, देसी भाषा में कीड़ा राजनेताओं को सम्मान करने के कारण या उनके खौफ व ड़र से (जो शायद उसने जनता के मन के अंदर महसूस किया है) वह लाखों की रैलियों और जन सभाओं में जाकर जनता को परेशान व संक्रमित नहीं करता है? या जाने से ही परहेज करता है? अथवा ‘‘जामर’’ लगे होने के कारण जाने में असफल रहता है? कारण कोई भी हो सरकार व विपक्ष दोनों का सर्वानुमति से उत्पन्न यह विश्वास है। इसीलिए लोकतंत्र की गाड़ी लगातार चलते रहे उसके लिए रैली, रेला और सभा की भीड़ आवश्यक है, जिसकी पूर्ति वे पूरी तन्मयता व कर्तव्य परायणता से कर रहे है? कोविड-19 का वेरिएंट चाहे उसके कितने ही भाई-बहन हो अभी तो एक नया भाई ने नये वैरिएंट के रूप में सामने आ गया है उसे ओमीक्रॉन से 50 प्रतिशत ज्यादा घातक बताया जा रहा है। राजनेताओं व उनके मंच के सामने बैठे नागरिकों वे गले लगाकर चूमता है। परन्तु आम नागरिकों को उनके जन्मदिवस, शादी या अन्य अवसर शव यात्रा में शामिल होने वाले नागरिक के गले लगने पर काटकर मृत्यु का ड़र पैदा कर देता है। क्या कमाल है?
संवेदनशील सरकार होने के कारण कोविड-19 काल में संक्रमितों व मृत्यु की संख्या अल्प से अल्पतर हो जाने पर कोविड-19 प्रोटोकॉल के प्रतिबंध से पूर्व में पूर्णतः मुक्त किए गए जन्म दिवस, शादी विवाह और शव यात्रा जैसे अवसर पर अब जैसे-जैसे संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है, उक्त व्यक्तिगत कार्यक्रमों में शामिल होने वाले की संख्या को लगातार कुछ कुछ दिनों के अंतराल में ठीक उसी प्रकार की कमी कर सीमित की जा रही है जिस प्रकार तेल की कीमतें बढ़ती रही है। और दोनों ही चीजें राष्ट्र के विकास मंत्रियों ने पेट्रोल-डीजल के बढ़े मूल्यों के माध्यम से नागरिकों को अपना योगदान देने की बात की थी। जन के विनाश को बचाने के लिए आवश्यक है? सार्वजनिक परिवहन, ऑफिसेस में 50 प्रतिशत उपस्थिति कम कर और सरकारी आफिसों में निरंक उपस्थिति का वर्क फ्रॉम होम की नीति लागू की जा रही है। इस प्रकार कोविड से बचाव के लिये जिस प्रकार अन्य क्षेत्रों में प्रतिबंध लगाया जा रहा है। वैसा सार्वजनिक रैलियों और सभाओं पर कोई अभी तक वास्तविक प्रभावी प्रतिबंध नहीं लगा है। यदि प्रतिबंध लगा भी है तो कोविड-19 के प्रोटोकॉल को मानने के शर्त के साथ अनुमति दी गई होगी, जिसका अनुपालन न होकर खुल्लम खुल्ला उल्लंघन हो रहा है। और उस पर अपराधिक या किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। इसलिए अब यदि नागरिको को अपने व्यक्तिगत शादी-ब्याह जन्मदिवस या मौत-मिट्टी के कार्यक्रमों में अपने समस्त परिचितों व रिश्तेदारों को बुलाना होगा तो सबसे आसान तरीका उनके पास यही रहेगा कि वे साथ में एक छोटी-मोटी सी राजनीतिक रैली या सभा करने की घोषणा कर दें। बेरोकटोक आपके व्यक्तिगत कार्यक्रम भी ठीक उसी प्रकार से संपादित हो जाएंगे जिस प्रकार से सार्वजनिक रैली, सभाएं लाखों की भीड़ इकट्ठा होकर विसर्जित होने के बाद नागरिक बेरोकटोक अपने घर वापस पहुंच जाते हैं।
यद्यपि अभी तक चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। तथापि आचार संहिता लागू होने पर लगने वाले प्रतिबंधों से फिलहाल उन्मुक्त होने के कारण उसका फायदा उठाकर सरकारी कार्यक्रमों को चुनाव पूर्व चुनावी रैलियों में कैसे बदला जा सकता है, आप सब देख रहे है। जब प्रधानमंत्री स्वयं अपने भाषणों में मंच पर या सभा स्थल पर कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन नहीं करवा पा रहे है। तब उनके जनता को दिये जा रहे कोविड-19 से बचने के लिए सावधानी बरतने के संदेश की कितनी अहमियत रह जाती है? इस पर आगे कुछ भी कहना व्यर्थ होगा।
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