-:द्वितीय भाग:- द ग्रेट पॉलीटिकल शो (ड्रामा) ऑफ केजरीवाल’’!
केजरीवाल के जवाब देने की शैली की दो पहचान है। प्रथम जवाब में वे प्रश्न ही पूछने लग जाते है, तो दूसरा, विषय (प्रश्न) को इस खूबसूरती व चालाकी से वे विषयांतर कर देते हैं कि ’’सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे’’। शायद इसी कारण उन्हें अपना स्टेण्ड पल-पल बदलने में असहजता व असुविधा महसूस नहीं होती है। उनके पुराने बयानों का वीडियो चला कर देख लें। प्रत्येक मुकदमे बाज, राजनेता अपराध में संलिप्त होने के कारण दाग-दार हैं। और इसलिए चुना हुआ दागी, सांसद, विधायक या जनप्रतिनिधियों को अपने पद बने रहने का कोई हक नहीं है जब तक कि वह अपने पद से इस्तीफा देकर मुकदमा लड़ कर, अंतिम रूप से निर्दोष सिद्ध होकर, फिर से चुनाव लड़कर, जनता का विश्वास प्राप्त कर, फिर से संसद या विधानसभा में आये। कड़क ईमानदार केजरीवाल इस सिद्धान्त को ‘आप’ के लगभग 35 से अधिक दाग-दार विधायक पर क्यों नहीं लागू करते है? जवाब नहीं? भला ’सांच को आंच क्या’?
अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में विश्वास मत पर बोलते हुए एक और नया शिगूफा छोड़ दिया। कट्टर बेईमान पार्टी (भाजपा) में कम पढ़े लिखे लोग हैं। आधे से ज्यादा अनपढ़ हैं। तो दूसरी तरफ ईमानदार पार्टी में आईआईटी के लोग हैं, विजन है। इसका अर्थ तो यही निकलता है कि देश की 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या जो आज भी अनपढ़ है, केजरीवाल की उक्त परिभाषा अनुसार भ्रष्ट है। केरल भारत का सबसे शिक्षित राज्य जहां 94 प्रतिशत साक्षरता है। इस हिसाब से तो केरल की तुलना में दिल्ली के लोग ज्यादा भ्रष्ट हैं (जहां साक्षरता का प्रतिशत 86.21 है)? केजरीवाल द्वारा तय किए गए नैरेटिव के अनुसार। केजरीवाल की झूठ की पराकाष्ठा का एक और उदाहरण आईने समान आपके सामने है। 6300 करोड़ रुपए से 277 विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप भाजपा पर मढ़ना। न सूत न कपास,! न कोई तथ्य! न कोई गवाह! न कोई दस्तावेज! न 6300 करोड़ रुपयों की आवा-गमन (लेन देन) का साक्ष्य? साक्ष्य में सिर्फ केजरीवाल की दहाड़ती सच्चाई का कथन मात्र? आप इसे सच क्यों नहीं मान लेते हैं? पेट्रोलियम उत्पाद के दाम बढ़ने का कारण भी इस 6300 करोड़ को बता दिया। झूठ का एक और पुलिंदा! ’’ऑपरेशन लोटस’’ के तहत दिल्ली सरकार को गिराने के गंभीर आरोप को हल्के-फुल्के ढंग से जड़ दिया। न कोई ऑडियो-वीडियो क्लिपिंग! न रुपए लेने देने वालों का नाम! न अन्य कोई साक्ष्य न कोई एफआईआर। सिर्फ मनीष सिसोदिया का बयान जो ब्रह्म वाक्य होने के कारण साक्ष्य मान लिया जाए?
दिल्ली के वर्तमान उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना जब वे राष्ट्रीय खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष थे, पर नोटबन्दी के समय 1400 करोड़ रूपये के तथाकथित घपले के आरोपी को जड़ देना झूठ की इंतिहा (पराकाष्ठा) ही हैं। एक शाखा के कैशियर द्वारा 16 लाख (22 लाख नहीं) के नोट अध्यक्ष के कहने पर बदलने की बात कही थी, को राजनीतिक गुणा भाग कर राजनीतिक गुणा भाग कर रुपए 1400 करोड़ के घोटाले में परिवर्तित करना ’’केजरीवाल गणित’’ से ही संभव हैं। शायद यह केजरीवाल की ’’आक्रमण करना ही अच्छे बचाव’’ (अटैक इज द बेस्ट डिफेंस) की नीति का ही परिणाम है। क्योंकि इन्हीं उपराज्यपाल ने शराब नीति को लेकर मनीष सिसोदिया के विरुद्ध सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। उल्लेखनीय बात यहां पर यह भी है कि उक्त नोट बदलने की जांच सीबीआई द्वारा पूर्व में ही की जा चुकी है, जिसकी मांग केजरीवाल अभी कर रहे है व नौटंकी कर रहे हैं (फिर झूठा कथन)। उक्त जांच में सक्सेना को निर्दोष पाया जाकर अन्य अभियुक्तों के विरूद्ध न्यायालय में प्रकरण पेश किया गया। वास्तव में यह आरोप भी इतना हास्यास्पद है कि हिन्दी मीडिया चैनल ’’टाईम नाउ नवभारत’’ के कार्यक्रम ’पाठशाला’ में एंकर ने केजरीवाल का दिल्ली के उपराज्यपाल पर 1400/- करोड़ के भ्रष्टाचार के आरोप को ’तर्क’ के लिये सही मानकर केजरीवाल द्वारा 1400 करोड़ की भ्रष्टाचार की गई गणना के गणित को ही आधार बनाकर गुजरात में आगामी होने वाला विधानसभा के चुनाव में आप की संभावनाएं पर उक्त गणित को लागू करते हुये गणनानुसार ’परिणाम स्वरूप’ आप 90 प्रतिशत से अधिक वोट पाने के अनुमान के कारण गुजरात में आप की सरकार ही बना दी। यह बहुत ही भद्दा और क्रूर मजाक केजरीवाल के जरा ज्यादा ही होशियारी भरे? आरोपों के कारण ही एंकर ने किया। इसी तरह आरोपों के सर्जन (क्रिएटिविटी) के चलते भविष्य में शायद अन्य टीवी प्रोग्राम ‘‘अजब-गजब’’ या ‘‘अद्भुत-अकल्पनीय-अविश्वसनीय’’ (आज तक) में केजरीवाल एपिसोड शामिल हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए?
वैसे उक्त अद्भुत अकल्पनीय अविश्वसनीय में शामिल शब्द अविश्वसनीय से एक बात जेहन में जरूर आयी कि इस अविश्वसनीय शब्द को जिस तरह से केजरीवाल ने ‘‘जिया’’ है, वैसे अन्य कोई उदाहरण आपको शायद ही मिले। कम समय की लगभग 10 साल की राजनैतिक यात्रा में ही केजरीवाल ने दिल्ली में दो बार व पंजाब में लगभग 90 प्रतिशत विधानसभा की सीटें जीतकर निसंदेह एक अकल्पनीय अविश्वसनीय कार्य जरूर किया है। परन्तु विपरीत इसके कसम खाते हुए राजनीति में नहीं आऊंगा, दागी सांसद इस्तीफा दे, ‘‘स्वराज’’ पत्रिका में लिखे अपने आदर्शों से पीछे हटना, सुरक्षा व वीआईपी कल्चर से दूर आदि आदि से उनकी विश्वसनीयता खत्म होकर अविश्वसनीय हो गई है।
गनीमत है, केजरीवाल इतनी ईमानदारी जरूर बरत रहे हैं कि अपनी पार्टी की हो रही दागदार छवि को स्वच्छ करने, धोने के लिए न्यायालय में जाकर साफ करने का प्रयास जरूर कर रहे हैं। अन्यथा उन्हे अपनी स्वप्रमाणित ईमानदारी के साथ यह कहने से कौन रोक सकता था कि न्यायालय भी ’’दाग से धुली नहीं है?’’ और जब मैंने कह दिया हमारा कोई विधायक, मंत्री अपराधी नहीं है, ईमानदार हैं, इतने छापे पड़ गये परन्तु कुछ नहीं मिला, ’लाकर’ में भी नहीं मिला। तब आप ’’अमिताभ बच्चन शो’’ समान मेरे जवाब को लॉक कर मेरे द्वारा दिये गये ईमानदारी के प्रमाण पत्र को मानिये? केजरीवाल जी ’प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती', ’चूहे का जाया बिल ही खोदता है’। तथ्य यह है कि सीबीआई व ईडी का कोई आधिकारिक बयान प्रकरण की प्रगति के संबंध में अभी तक सामने नहीं आया है, जहां उन्होंने आरोपी को क्लीन चिट दे दी हों? केजरीवाल जारी किये जा रहे प्रमाण पत्र के लिए किसी भी तंत्र को बदलने की या ‘वाशिंग मशीन’ की आवश्यकता नहीं है क्या?
वाह रे केजरीवाल जी! ’शौकीन बुढ़िया चटाई का लंहगा’! गजब का जरूरत से ज्यादा, 56 इंच से भी ज्यादा का गरूढ़ भरा (कुमार) विश्वास को छोड़कर आत्मविश्वास। निश्चित रूप से कमजोर (नर्वस) दिल वालों को केजरीवाल को अपना गुरु मानकर उनका स्कूल ज्वाइन कर अपने कमजोर आत्मविश्वास को मजबूत कर लेना चाहिए? कम से कम मैं जरूर यह कह सकता हूं कि केजरीवाल को सुन-सुन कर मेरा भी आत्मविश्वास इतना ज्यादा बढ़ गया है कि मुझे यह लेख लिखने के लिए हिम्मत के साथ प्रेरित किया। हां मैं उन पर मनन करते हुए, सुनते हुए, पढ़ते समय अपनी ’’आंख कान और दिमाग’’ एक साथ खुला जरूर रखता हूं।
केजरीवाल का व्यक्तित्व एक ऐसी विशेषता लिये हुए है, जो दो एकदम परस्पर विपरीत ध्रुवों पर स्थित विचारों को ’’एक ही समय एक साथ जीने’’ का माद्दा रखते हैं। ’’आधा गिलास खाली है या भरा,’’ यह दोनों विकल्पों का एक साथ एक ही समय उपयोग की क्षमता ’एक म्यान में दो तलवारें रखने की कला’ के समान केजरीवाल के ही पास है, देश के अन्य किसी दूसरे राजनेता के पास नहीं। इसलिए दोहरा मापदंड अपनाने के लिए उन्हें कई उपाधियों से एक साथ सुशोभित किया जा सकता है। जैसे दोहरा चरित्र, ‘‘मुंह में राम-बगल में छुरी’’, कथनी-करनी में अंतर, सिद्धांतों की नहीं सुविधा की राजनीति, सुविधा अनुसार परिभाषाओं का गठन करना, कट्टर देश भक्ति के दावे के साथ बेबाक बेशर्मी से सफेद झूठ बोलना, गिरगिट समान रंग बदलना, साहस नहीं दुस्साहस के साथ गलत बात को सही प्रमाणित करने का अथक प्रयास करना, नौटंकी कार, मुखौटा, बाजीगर, पलटूराम (नीतीश कुमार समान नहीं) आदि आदि! अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘‘कालिया’’ का यह प्रसिद्ध डायलाग वर्तमान में केजरीवाल पर लागू होता हैं ’’हम जहां खडे हो जाते है, लाइन वही से शुरू होती हैं।’’ मैं ही कानून, न्यायाधीश, गवाह, आरोपी, शिकायतकर्ता होकर मेरा कथन ही अंतिम सत्य हैं।
2014 में एक ओर जहां नवभारत टाइम्स ने लिखा केजरी सरकार एक्शन ड्रामा, इमोशन, संस्पेस का कंप्लीट पैकेज। वहीं प्रतिष्ठित ’’टाईम मैगनीज" ने वर्ष 2014 में केजरीवाल को विश्व के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में शामिल किया। विपक्षियों पर हवाई आरोप लगाकर सीबीआई जांच की मांग करने वाले केजरीवाल की सरकार पर शराब नीति व स्कूल निर्माण तथा बस खरीदी में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से इंकार। केजरीवाल भले ही सिसोदियां को ‘‘भारत रत्न’’ न दिला पाए, (भई वाह! छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल!!) लेकिन केजरीवाल को उक्त ’आभूषणों’ के लिए (डॉ.) पीएचडी की डिग्री जरूर मिलनी चाहिए। अन्यथा अनाधिकृत दूसरो को चारित्रिक प्रमाण पत्र देने वाले, स्वयं को ही प्रमाण देने से बच क्यों रहे हैं?
कि हम लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं, जहां लोकतंत्र के स्वस्थ व मजबूत होने के लिये पक्ष-विपक्ष का मजबूत होना आवश्यक हैं, ताकि परस्पर एक दुसरे पर अंकुश लगाकर कोई भी पक्ष निरंकुश न हो पायें। परन्तु विद्यमान राजनैतिक स्थिति का सबसे दुखद पहलू यह है कि देश की राजनीति में कांग्रेस की प्रासंगिकता कुछ-एक अपवादों को छोड़कर (अमित शाह के शब्दों में शब्दों में कांग्रेस गायब होती जा रही है) तेजी से समाप्ति की ओर जाने के कारण लोकतंत्र एकतंत्रीय दिशा की ओर बढ़ने से उत्पन्न शून्य के चलते उक्त शून्य को भरने हेतु वैकल्पिक राजनीति का झंडा लिए हुए झंडाबरदार केजरीवाल ने स्वयं पलटूराम बनकर, और राजनीति को ’चलती का नाम गाड़ी’ बना कर वैकल्पिक राजनीति की ’’ भ्रूण-हत्या’’ कर दी। अन्ना के सानिध्य से आशा का केन्द्र बने ’’ईमानदार केजरीवाल’’ ने मात्र 8 वर्ष में ही दोहरे मापदंड अपना कर विश्वसनीयता खोकर देश व जनता को निराशा के अंधकार में धकेल दिया। अविश्वास या विश्वास पैदा न करने से ज्यादा खतरनाक विश्वासघात होता है, जिसके लिए केजरीवाल इतिहास में पूर्णतः दोषी ठहराये जायेंगे।न्द्र बने ’’ईमानदार केजरीवाल’’ ने मात्र 8-9 वर्षों में ही देश व जनता को निराशा के अंधकार में धकेल दिया। अविश्वास होना या विश्वास पैदा न करने से ज्यादा खतरनाक विश्वासघात होता है, जिसके लिए केजरीवाल इतिहास में पूर्णतः दोषी ठहराये जायेंगे।
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