देश के प्रधानमंत्री व गुजरात के ही नहीं, बल्कि देश के प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी की मां का जीवन उनके बेटे के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद बेहद सादगीपूर्ण होकर प्रेरक व प्रेरणा देने वाली है। न तो वे राजनैतिक परिवार से है और न ही उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि वैसी रही है। नरेन्द्र मोदी के ‘‘स्वयंसेवक’’ होकर राजनीति में आने के बाद भी राजनीति में उनकी न तो कभी दिलचस्पी रही और न ही उन्होंने कभी भी राजनीति में किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप किया है। ऐसा कोई आरोप विरोधियों द्वारा लगाया भी नहीं गया है। तब फिर अचानक एक हफ्ते पूर्व एक पुराना वीडियो वायरल कर और फिर प्रेस वार्ता कर प्रधानमंत्री की माता हीराबेन के नाम पर राजनीति प्रारंभ क्यों हुई? क्या आगामी होने वाले गुजरात के चुनाव (जिसकी अभी तक अधिकारिक घोषणा भी नहीं हुई है) के कारण उन्हें राजनीतिक रूप से तो घसीटा नहीं जा रहा है?
यह राजनीति का ही नहीं बल्कि देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि एक अविवादित, निर्मल व्यक्तित्व के साथ तथाकथित क्षणिक, तनिक राजनीतिक लाभ की दृष्टि से ‘‘अपना उल्लू सीधा करने के लिये’’ राजनीतिक विवाद में घसीटने का असफल प्रयास देश के प्रधानमंत्री की लगभग 100 वर्षीय वृद्ध माताजी के साथ किया जाए। इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? पक्ष-विपक्ष अथवा दोनों? सामान्य रूप से घृणित कथन कर विवादित बयान देने वाले आप पार्टी के नेता को ही इस निम्न स्तर की राजनीति को चमकाने के लिए जिम्मेदार ठहराया व माना जा रहा है। परंतु यह एक बड़ा गहरा विश्लेषण का विषय है, जिस पर गंभीर चिंता किये जाने की गहन आवश्यकता है, तभी आप पूरी परिस्थितियों का सही आकलन कर पाएंगे।
गुजरात आप पाटी के प्रदेश अध्यक्ष 33 वर्षीय गोपाल इटालिया पूर्व में भी कई बार विवादित होकर सुर्खियों में रह चुका है। कांस्टेबल व राजस्व क्लर्क की अल्प अवधि की नौकरी से बर्खास्त होकर वह आर्म्स एक्ट व अन्य आंदोलन के अंतर्गत जेल भी जा चुका है। जून 2020 में आप पार्टी से जुड़कर इटालिया ने राजनैतिक पारी प्रारंभ की व शीघ्र ही दिसम्बर 2021 में प्रदेश संयोजक बन गये। इटालिया के तीन पुराने (वर्ष 2018-2019 के) वीडियो को पिछले एक सप्ताह में भाजपा ने जारी किया है। वर्ष 2019 के इटालिया के नरेन्द्र मोदी के मां के संबंध में तथाकथित बयान को भाजपा के मीडिया सेल के द्वारा वायरल करने के बाद भाजपा की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपनी ‘‘अधजल गगरी को छलकाते हुए’’ प्रेस वार्ता कर गुजरात में राजनीति चमकाने के लिए केजरीवाल पर प्रधान सेवक की मां, राष्ट्रमाता का अपमान कर भद्दी-गंदी राजनीति करने का बड़ा आरोप लगाया है। प्रश्न यह है कि माता हीरा बेन के साथ हुई व हो रही तथाकथित राजनीति क्या सिर्फ आप ने ही की है? क्या भाजपा इसके लिए कतई जिम्मेदार नहीं है? निश्चित रूप से जो वीडियो वायरल किया गया है, जिसमें आप के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया ने जिस तरह की अभद्र टिप्पणियां व अपशब्द नरेन्द्र मोदी व उनकी माता के विरूद्ध की है, वे कदापि दोहराई नहीं जा सकती हैं। वे निंदनीय व अक्षम्य होकर राजनीति से परे उसकी घोर भर्त्सना हर हाल में की ही जानी चाहिए।
परन्तु वास्तव में आप एक ऐसी ‘‘बेशरम’’ पार्टी बन गई है, जहां केजरीवाल से लेकर विभिन्न नेताओं से प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया की टिप्पणियों के संबंध में मीडिया द्वारा प्रश्न पूछने पर उसका कोई जवाब न देकर न तो उसकी निंदा की गई और न ही बयान की आलोचना की गई। हजारों जवाबों से अच्छी है ‘‘आप’’ की खामोशी न जाने कितने सवालों की आबरू रखती है। विपरीत इसके पटेलों (पाटीदारों) की राजनीति कर उसे पटेल जाति व सम्मान से जोड़ने की राजनीति चमकाने का नया नैरेटिव बनाने का असफल प्रयास अवश्य किया गया। वस्तुतः आप पार्टी का नाम आप ही गलत है। तू-तड़ाक, तू-तू मैं-मैं से बातचीत करने वाली पार्टी ‘‘आप’’ कैसे हो सकती है? जिस पार्टी के ‘‘ताज में ऐसे नगीने जड़े’’ हुए हैं, उसे तो ‘‘तू तड़ाके पार्टी ही कहना ही सही वास्तविकता है। झूठ का पुलिंदा (ताजा उदाहरण मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर एक महीने बाद सलाखों से बाहर लेने की बात बाहर लाने की बात केजरीवाल ने गुजरात (मेहसाणा की रैली) में कही है) लिये हुए ऊल-जलूल बयान (मनीष सिसोदिया की भगत सिंह से तुलना करना) वीरों की पार्टी आम आदमी का न होकर व्यक्ति विशेष की रह गई है। बौद्ध धर्म दीक्षा समारोह में डॉ. अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ जिसमें हिन्दू देवी-देवताओं का बहिष्कार करने की बात कही गई है, को दोहराए जाने को लेकर उक्त विवाद की आंच गुजरात चुनाव पर पड़ने की आशंका के चलते स्वः स्फूर्ति से दिल्ली सरकार के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम को इस्तीफा देना पड़ा था। परन्तु यहां तो उलट गोपाल इटालिया का पार्टी बचाव कर रही है। केजरीवाल के इस दुःसाहस का दुष्परिणाम निश्चित रूप से आयेगा क्या?
परन्तु बावजूद इसके भाजपा व स्मृति ईरानी को इस बात का तो जवाब देना ही होगा कि वर्ष 2019 में दिये गोपाल इटालिया के उक्त बयान जिन्हें स्वयं भाजपा ने जारी किया है, तभी वर्ष 2019 में ही उनका संज्ञान लेकर तत्समय तुरंत क्यों नहीं कहा गया कि यह ‘‘राष्ट्रमाता’’ का अपमान है? तब भी नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री ही थे, भले ही गोपाल इटालिया प्रदेश अध्यक्ष नहीं थे। स्मृति ईरानी को इस बात को समझने में ही 3 साल लग गये? जो कथन निसंदेह असहनीय, घोर निंदनीय व अपमानजनक है। अतः ऐसी स्थिति में एक संकेत/निष्कर्ष यह भी निकलता है कि यह क्यों न माना जाए कि स्मृति ईरानी को प्रेसवार्ता कर जनता को उक्त बात बतानी पड़ी, भला ‘‘खलक का हलक कौन बंद कर सकता है’’? क्या यह राजनीति नहीं कहलायेगी? उक्त पुराने वीडियो को वायरल कर प्रेसवार्ता कर ‘हीरा बेन’ को राजनीतिक मुद्दा कौन बना रहा है? जिस बात की जानकारी अभी तक देश के नागरिकों को लगभग नहीं के बराबर (नगण्य) थी। उस वीडियो को वायरल कर उक्त अवांछनीय कथनों से संपूर्ण देश को अवगत किसने कराया? और उसके पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है? जरा सा दिमाग पर जोर लगाएंगे तो सब कुछ समझ में आ जाएगा।
स्मृति ईरानी का प्रेस वार्ता में साफ शब्दों में यह कथन की आप पार्टी ने प्रधान सेवक की मां का अपमान ही नहीं किया, बल्कि ‘‘गुजरात में’’ एक 100 वर्षीय मां का अपमान किया है। उक्त कथन ‘‘खंूटे के बल पर बछड़ा कूदने के समान’’ है जो राजनीतिक दृष्टिकोण को पूरी तरह से स्पष्ट कर देता है। क्योंकि स्मृति ईरानी ने गुजरात के अपमान का जिक्र किया, देश के अपमान का नहीं। जबकि प्रधानमंत्री की मां होने के कारण राष्ट्रमाता होने से यह देश के अपमान की बात है। चूंकि चुनाव गुजरात के हो रहे हैं, देश के नहीं, इस एक तथ्य में ही संपूर्ण जवाब छुपा हुआ है।
स्मृति ईरानी का आगे यह कथन की यह सब राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है, स्वयमेव ही साफ संदेश देता है। राजनीतिक लाभ किसे व कैसे होगा? उस पार्टी को जिसने राष्ट्रमाता के प्रति अनर्गल आधारहीन अक्षम्य शब्दों का प्रयोग किया हो, जिससे देश में नाराजगी है? अथवा उस पार्टी को जो इस पुराने कथन को वर्तमान में होने वाले चुनाव के संदर्भ में उठा रही है? जैसे ‘‘एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी’’ वैसे अरविंद केजरीवाल का यह ट्वीट भी चातुर्य राजनीति से परिपूर्ण है, जिसमें वे गोपाल इटालिया की गिरफ्तारी पर गुजरात के पटेल (पाटीदार) समाज में आक्रोश की बात कहते हैं, जिस पाटीदार आंदोलन में गोपाल इटालिया हार्दिक पटेल के साथ नेता रहे हैं। परंतु वे वह भूल जाते हैं कि विपरीत इसके इटालिया के कथन से पूरे देश में आक्रोश है।
..गुजरात में चुनाव आ गये है, जहां आप पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतर कर उछल-कूद रही है। निश्चित रूप से इस बात का श्रेय अरविंद केजरीवाल को अवश्य जाता है कि देश की राजनीति की दशा व दिशा और नेरेटिव वे ही तय करते है, यह लगभग मीडिया द्वारा दी गई प्रत्येक घटना के कवरेज से सिद्ध होता है। क्या केजरीवाल के बनाए नेरेटिव को प्रभावहीन करने के लिए भाजपा ने राजनीतिक रूप से ‘‘ईट का जवाब पत्थर से’’ देने के लिए उक्त कदम उठाया? क्योंकि आश्चर्य की बात तो यह है कि देश व विश्व की सबसे बडी पाटी व सदस्य संख्या होने के बावजूद किसी भी कार्यकर्ता ने अभी तक देश में कही भी आप पार्टी या उसके प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ न तो थाने में रिपोर्ट लिखाई और न ही न्यायालय में निजी इस्तगासा पेश किया। मतलब कुल मिलाकर यह कि ‘‘करनी ना करतूत लड़ने को मजबूत’’।..
स्मृति ईरानी का यह कथन तो बहुत ही हास्यास्पद व बिना किसी सबूत के है कि केजरीवाल के आदेश पर आप नेता ने तुक्ष राजनीति के चलते गुजरात और वहां के लोगों की भावनाएं आहत की हैं। ‘‘हुनर मदारी का और खेल जमूरे का’’। जबकि ‘‘आप’’ का यह दावा है कि यह पुराना वीडियो उस वक्त का है, जब गोपाल इटालिया आप पार्टी में थे ही नहीं। विपरीत इसके यदि काउंटर (पटल, प्रतिलेख) में स्मृति ईरानी पर क्या ऐसा ही आरोप नहीं लगाया जा सकता है कि उन्होंने पत्रकार वार्ता कर जो आरोप अरविंद केजरीवाल पर लगाए हैं, वह नरेन्द्र मोदी के इशारे पर है?
यद्यपि मैं यह समझता हूं कि प्रधानमंत्री बहुत ही बड़े दिलवाले व्यक्ति है और इस तरह की ओछी राजनीति में कभी न पड़ने वाले राजनेता है, जिनकी व्यक्तिगत जानकारी के बिना ही स्मृति ईरानी का उक्त कथन प्रेस वार्ता के माध्यम से सामने आया है। स्मृति ईरानी जी को आगे आकर इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि जब स्थापित नेताओं का परस्पर पार्टियों में आवागमन होता है, खासकर पिछले कुछ समय से भाजपा में कांग्रेस के कई दिग्गज विवादित, आरोपित, दोषी नेतागण भाजपा में शामिल हुए, तब उनके विवादित इतिहास को वहीं छोड़ दिया जाकर गले लगाया जाता है। तब ऐसी स्थिति में गोपाल इटालिया के आप पार्टी में आने के पूर्व के बयान की अहमियत क्या? और इसके लिए आप पार्टी कैसे जिम्मेदार ठहराई जा सकती है?
प्रेस वार्ता में स्मृति ईरानी की यह चुनौती तो और भी हैरत कर देने वाली है कि केजरीवाल गुजरात आकर नरेन्द्र मोदी की मां को गाली बके? निश्चित रूप से यह चुनौती चतुराई पूर्वक राजनीति से परिपूर्ण है। अन्यथा स्मृति ईरानी केजरीवाल को यह चुनौती देश के किसी भी स्थान के लिए देनी चाहिए थी। क्योंकि प्रधानमंत्री की मां होने के कारण वे राष्ट्रमाता (राष्ट्र की) है, सिर्फ गुजरात की नहीं। वस्तुतः तो स्मृति ईरानी का राष्ट्रमाता जी को इस तरह से चुनौती के लिए प्रस्तुत करना ही नितांत गलत है।
अभी तो गुजरात विधानसभा चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है। परंतु चूंकि यह चुनाव प्रधानमंत्री के गृह राज्य का होने के कारण राजनैतिक आकलन करने वाले पंडितों की नजर में वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव की दिशा व दशा तय करने वाला होगा, इसलिए हर पार्टी इस विधान सभा के चुनाव को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। परंतु यह समझ और कल्पना से बिल्कुल परे है कि राजनीति का स्तर कितना गिरकर स्तरहीन होकर समुद्र की कितनी गहराई की तल तक जाएगा? इसे रोकने की फिलहाल तनिक आशा भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। देश की गौरवशाली रही राजनीति का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
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