क्या खोया-क्या पाया?
इंदौर (मध्य-प्रदेश) में 7वीं आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की ऐतिहासिक सफलता में प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन एवं दो राष्ट्राध्यक्ष गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली और सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी भी खासतौर पर शामिल होने का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 65 से अधिक देशों के प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए। साथ ही 20 से अधिक देशों के राजदूत, उच्चायुक्त, वाणिज्य दूतावास के अफसर और राजनयिक शामिल हुये। उक्त समिट के आयोजन की ब्रांडिंग कुछ इस तरह से उच्चस्तरीय हुई कि आयोजक, भागीदार, मीडिया और आम जनता सबकी नजर में उक्त समिट बेहद सफल हुई और संबंधित समस्त लोग गदगद हो गये। ऐसी स्थिति में मेरा प्रश्न क्या खोया-क्या पाया? प्रथम दृष्टया में असहज होकर मुझे प्रतिगामी ठहराया जा सकता है? परंतु न तो मैं ऐसी समिट के मूलतः विरूद्ध हूं और न ही मैं इसकी सफलता (जिसका आकलन भविष्य में ही हो पाए) पर कोई प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगा रहा हूं। परन्तु बावजूद इसके पिछली हुई 6 समिट का जब अवलोकन करता हूं, तब निश्चित रूप से उक्त प्रश्न पैदा होता है। उक्त निष्कर्ष जानकारी आगे आपसे साझा कर रहा हूं।
सर्वप्रथम इन 6 समिटों के हुए आंकड़ों पर गौर करे, कुल संख्या 6431 एमओयू अनुबंध हुये, जिसमें 17.03 लाख करोड़ रुपए राशि निवेश की घोषणाएं हुई थी। कमल नाथ सरकार के समय हुई समिट जिसे मैग्नीफिसेंट एमपी कहा गया था, घोषित 74000 करोड़ के निवेश की राशि इसमें शामिल नहीं है। क्या सरकार ने इस समिट के पूर्व इसमे आने वाले भागीदारों, प्रधानमंत्री और आम जनता को इस बात की जानकारी दी कि उक्त समिटों की घोषणाओं के वास्तविक परिणाम धरातल पर कितने प्रतिशत फलीभूत हुये? कितने एमओयू धरातल पर बिल्कुल नहीं उतर पाए? समय सीमा में कितने एमओयू लागू हुए? समय सीमा के बाहर औसत देरी प्रोजेक्ट को लागू करने में कितनी हुई? कितने घोषणावीर उद्योगपतियों को इस समिट में नहीं बुलाया गया? कुल घोषित निवेश की राशि 17.03 लाख करोड़ रुपए में से मात्र 152113 करोड़ रुपए खर्च हुई। इससे सीधे जुडा हुआ सवाल (नेक्सस) रोजगार का है। इन समिटों में कुल 237730 लोगों को रोजगार मिला। इन सब महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर यदि जनता को पारदर्शी तरीके से दे दिया जाता, तो इस समिट के आयोजन पर और चार चांद लग जाते। लेकिन वह हो नहीं पाया। शायद इसलिए कि पिछले आयोजनों से ऐसी कोई उल्लेखनीय सफलता आशातीत उपलब्धि नहीं मिली, जिसका उल्लेख करने से इस आयोजन में चार चांद लग जाते।
यदि हम पिछली शिवराज सिंह सरकार की समिट का ही उदाहरण ले तो 5.63 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा हुई थी, जिसमें से मात्र 32597 करोड़ रुपए का ही निवेश हो पाया था जो 17 के आसपास है। जबकि कमल नाथ सरकार के समय हुए समिट में 74 हजार करोड़ रुपए का निवेश हुआ जो लगभग 12 प्रतिशत के आस-पास रहा। जहां तक बेरोजगारी की बात है, वित्तमंत्री द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत वर्ष 2021-22 आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार ही जहां प्रदेश की जीडीपी बढ़ी है, प्रति व्यक्ति आय में बढोतरी हुई, वही बेरोजगारी के मोर्चों पर 5.51 लाख नये बेरोजगार मात्र 1 साल के अंदर बढ़ गये हैं। तब स्वभाविक प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि इतना निवेश होकर उद्योगों के खोलने से उक्त रोजगार मिलने? के बावजूद बेरोजगारों की संख्या क्यों बढ़ रही है? और यदि वास्तव में निवेश ने हमारे प्रदेश और अंततः देश का विकास किया है, तो फिर इसका एक ही मतलब निकलता है, इन निवेशों से विकास तो जरूर हुआ है, परन्तु वह उस वर्ग का है जो विकसित/विकासशील है, अविकसित (गरीब) नहीं। मतलब साफ है अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई में विकास का भी योगदान है? ऐसे अनियोजित विकास पर गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत दुनिया के सबसे असमान देशों की सूची में शुमार है। आर्थिक असमानता बढ़ती हुई छुपी सामाजिक असंतोष को कहीं चिंगारी न दे दे, यह एक बड़ी चिंता का विषय हमारे सामने है। क्योंकि बढ़ती हुई असमानता का अंततः एक दुष्परिणाम गृह युद्ध के रूप में भी सामने आ सकता है, जैसा कि विश्व के कुछ देशों में हुआ है।
नेशनल स्टेटिस्टिकल ऑफिस (एनसओं) के सर्वे के मुताबिक देश के टॉप 10 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास औसतन 1.5 करोड़ रुपये की संपत्ति है, जबकि भारत के शहरों में निचले वर्ग के परिवारों के पास औसतन सिर्फ केवल 2,000 रुपये प्रति व्यक्ति की संपत्ति है। असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत के शीर्ष 10 फ़ीसदी अमीर लोगों की आय भारत की कुल आय का 57 फ़ीसदी है, 10 सबसे अमीर घराने देश की 65 प्रतिशत संपत्ति पर काबिज हैं। 1 फ़ीसदी अमीर घराने देश की कुल कमाई में 22 फीसदी हिस्सा रखते हैं व देश की कुल संपत्ति में से 33 प्रतिशत संपत्ति इन 1 अमीरों के पास है। जबकि विपरीत इसके निम्न और मध्यम वर्ग 50 फीसदी लोगों जिनकी सम्पत्ति में कुल हिस्सेदारी 3 फ़ीसदी है, की कुल आय का योगदान घटकर मात्र 13 रह गया है। आॅक्स फैम इंडिया दुनिया के 20 देशों में आपदा राहत व गरीबी उन्मूलन का काम कर रहा है। आॅक्स फैम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में बसते है, जिनकी संख्या करीब 22 करोड़ 89 लाख है। इससे स्पष्ट है कि हमारी योजनाओं को वह सही दिशा का सही तड़का नहीं लग पाया है, जिसकी आवश्यक हमारी भौगोलिक, सामाजिक और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कच्चे माल को देखते हुये हैं। तभी तो गरीबी रेखा से नीचे व्यक्तियों का विकास उसके उपर वाली सीढियों से कहीं न कहीं ज्यादा दोगुना तक ही सही, विकास कर पायेगें।
मेरी नजर में हुई इन समस्त समिटों का एक ऑडिट किया जाना नितांत आवश्यक है। ऑडिट का मलतब सिर्फ टैक्स ऑडिट या सामाजिक संस्थाओं, सोसायटी का ऑडिट नहीं होता है। ऑडिट का मतलब होता है जिस प्रोजेक्ट या आयोजन को सरकार ने अपने हाथों में लिया है, वह अपने उद्देश्यों में जमीन पर वास्तविक रूप में कितना खरा उतरा, ताकि उस पर हुए खर्चा न्यायोचित ठहराया जा सके। यह बात जनता के सामने आंकड़ों के साथ प्रस्तुत की जाकर आईने के समान स्थिति साफ होनी चाहिए, वही सही ऑडिट कहलाता है। और तभी सही मायने में ही सरकार की साख जनता के बीच बनती है। इस ऑडिट का अधिकार जनता के पास भी है। मतलब जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों के पांच वर्ष के लेखा जोखा को परखने का अधिकार जनता के पास है, जो पुनः पांच साल के बाद मताधिकार के रूप में उपयोग होता है। परन्तु दुर्भाग्यवश इस देश की जनता के पास ऑडिट का अधिकार अर्थात मताधिकार होने के बावजूद वह अपने इस अधिकार को गुणदोष के आधार पर प्रयोग नहीं करती है। इसलिए 80 प्रतिशत चुने हुए व्यक्ति सही नहीं चुने जाते है जो अन्यथा नहीं चुने जाते? इसलिए क्या सच्चे अर्थो यह लोकतंत्र का उपहास नहीं है?
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस आयोजन के संबंध में आया वक्तव्य पर ध्यान देने का कष्ट करें। मैं ‘‘सीएम नहीं’’ इस प्रदेश का ‘‘सीईओ भी हूं’’। मध्य प्रदेश के नक्शे में उद्योगपति जिस जगह उंगली रख देंगे, हम उद्योग के लिए वहां जमीन देने में 24 घण्टे का समय भी नहीं लगाएंगे। एकल खिडकी लागू है। बिजली भी अब पर्याप्त है। यहां स्किल्ड मैनपावर अच्छी है। ग्लोबल स्किल पावर पार्क हम भोपाल में बना रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि गुड गवर्नेंस में मध्यप्रदेश का स्थान पहले नंबर पर है।
एक समय ऐसा भी था कि इन उद्योगों को प्रारंभ करने के लिए इस देश में 100 से अधिक कानूनों व नियमों का पालन करना पड़ता था। आज भी विद्यमान कानून में 108 अफसरो में से कोई भी एक उद्योग को बंद करा सकता है, ऐेसा मेरे वरिष्ठ पारिवारिक मित्र एनआरआई उद्योगपति का बहुत पहले कथन था। शायद समिट करने की आवश्यकता भी इसीलिए पड़ी कि सरकार इनवेस्टर्स को इस बात को समझाये कि हमारे प्रदेश में नौकरशाही की लालफीता शाही नहीं है। हम अतिथि देवों भव की परंपरा का निर्वाह उद्योग स्थापित करने के मामले में भी करते है। यदि शिवराज सिंह के उक्त दावे सही है, तब इस समिट की आवश्यकता ही क्यों हुई? यदि ‘तंत्र’ आपका सही है, उद्योग लगाने के लिए आवश्यक तंत्र चुस्त-दुरूस्त मजबूत व सक्रिय है, तब इस तरह के महंगे आतिथ्य के समिट की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? क्या यह सब ब्रांडिंग के लिए तो नहीं किया जा रहा है? जैसा कि कुछ विपक्षी आरोप लगा रहे हैं। यह सरकार का दायित्व होता है व श्रेष्ठ सरकार भी वही कहलाती है, जहां सामान्य परिस्थितियों में सामान्य रूप से समस्त निर्माण गतिविधियां निर्बाध रूप से सम्पन्न हो सके।
वृद्धाश्रम खोलना कोई अच्छी बात नहीं है। लेकिन वृद्धाश्रम खोलने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है कि हमारे समाज का परिवेश बदलता जा रहा है। संयुक्त हिन्दू परिवार की धारणा टूटते जा रही है। नई पीढ़ी अपने माता-पिता के प्रति अनुत्तरदायी होती जा रही है। इसलिए वृद्धाश्रम एक आवश्यक बुराई के रूप में आवश्यक हो गया है। यही सिद्धांत यहां भी लागू होता है। यदि समस्त सामाजिक तंत्र सुधर जाएंगे तो वृद्धाश्रम खत्म हो जाएंगे। ठीक इसी प्रकार यदि शासन-प्रशासन तंत्र-यंत्र सुधर जायेगा, तो समिटों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, यह मेरा अटूट विश्वास है।
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